सोमवार, मार्च 07, 2011

शोध-पत्र....


अखबार की खबरों से उकताकर इधर की दुनिया में आये थे।, आये तो फ़िर ऐसे रमे कि अखबार वगैरह पढ़ने सब भूल गये। अब जब आते-जाते, सोते-जागते ये नैट की दुनिया हमारे ऊपर के माले में कब्जा कर गई तो जाकर स्थिति की गंभीरता का अहसास हुआ। लेकिन अब पछताये होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत। 
पुष्ट सूत्रों ने बताया  हैं कि आजकल रात में सोते समय भी हम कभी रोते हैं, कभी हँसते हैं। उनकी बात में हमने करैक्शन किया कि सोते समय ही हम रोते हैं या हँसते हैं। ये ’भी’ और ’ही’ का जरा सा अंतर बात के मायने बदल देता है।

स्पष्टीकरण माँगा गया, “वजह बताओ, क्यों हँसे थे?”  सतर्क, सजग और सावधान सरकारें किसी भी तरह के विद्रोह को शुरुआती चरण में ही दबा लेती हैं, न कि  हमारी केन्द्र सरकार की तरह कि पहले समस्या को बढ़ने दिया जाये, फ़िर कभी वार्ता, कभी पैकेज के जरिये सुलटाने की कोशिश की जाये।  

हमने हमेशा की तरह बात घुमाने की कोशिश की, “ज्यादा तानाशाही से हालात बिगड़ते ही हैं, थोड़ी स्वायत्तता अधीनस्थ लोगों को मिलती रहे तो सही रहता है। नींद में थोड़ा सा हँस लिया या मुस्कुरा लिया गया तो ऐसा तो कोई कुफ़्र नहीं टूट पड़ा।” हमारी ओब्जैक्शन ओवररूल्ड हो गई हमेशा की तरह। 

हमने फ़िर कोशिश की, “थोड़ी सी प्रेरणा वड्डे सरदारजी से लेकर देखो। राजा बाबू को स्वायत्तता  दे रखी थी,  वो भी खुश और इनकी अपनी मोटर भी चलती  रही पम-पम। बाद में बात खुलखुला गई तो फ़ट से बयान दे दिया कि मुझे क्या पता कि ये मेरे मंत्री संतरी क्या कर रहे थे?  मेरे बयान ले लो, मेरे से कर लो पूछताछ।   मैं कहीं भ्रष्टाचार का दोषी मिल जाऊँ तो बात करना।  हो गई न ईमानदारी सिद्ध?  अब राजाबाबू पहुंच गये ससुराल, सरदारजी की कुर्सी सलामत। इसी नीति  पर चलना चाहिये।  हम अगर थोड़ा बहुत इधर-उधर तीन-पांच  कर भी लेते है  वो भी नींद में, तो तुम पर कोई इल्जाम थोड़े ही आयेगा? और अगर कोई टोक भी दे तो सरदारजी वाला  फ़ार्मूला है ही।”

लेकिन हमारा ये फ़ार्मूला भी फ़ेल हो गया। सुनने को ये मिला, “तुम लो प्रेरणा सरदार जी से, वो बेचारे  क्या अपने मन से हंसते  बोलते हैं?  इशारा मिलता है, वैसे ही कह देते हैं और देख लो फ़ल मिल रहा है, कित्ती बड़ी कुर्सी मिली हुयी है उन्हे। और देखो जरा  अपने लक्षण, बिना इशारे के हँस देते हो,  टूटा स्टूल भी नहीं मिलेगा।  वजह बताओ, हंसने का  क्या चक्कर है(पसीने आने वाली बात का कोई स्पष्टीकरण नहीं मांगा गया हमसे,  SWOT analysis पक्का है)?”    

क्या बताते?  और बता देते तो किसने मानना  था कि पोस्ट पर आते कमेंट्स को देख सोच कर नींद में कोई खुश हो सकता है।

महाशिवरात्रि को कई दिन बीत चुके लेकिन असर जैसे अब तक है।  लिखना कुछ और चाहा था, लिख दिया इधर उधर का। अब करते हैं जी ’टु द प्वाईंट’ बात। इस रोज रोज की छीछालेदर से दुखी होकर हमने फ़ैसला किया कि फ़िर से पहले जैसा हुआ जाये। अखबारों, किताबों, रिसालों से दोस्ती की जाये। अखबार पढ़ने शुरू किये। ब्लॉगिंग का इतना असर तो हो गया है कि हर सीधी बात भी पेचोखम लिये दिखती है। महंगाई,  भ्रष्टाचार,  साम्प्रदायिकता, भाई भतीजावाद, हत्या, लूटपाट, चार बच्चों की मां प्रेमी संग फ़रार  जैसी बातें वैसे भी अब बोर करती हैं तो हम निकल लिये मेन रास्ता छोड़कर पगडंडियों की सैर पर।
ध्यान गया दो शोध पत्रों पर। 

पहला शोधपत्र बताता है कि मानव इतिहास में पर्यावरण संरक्षण में अभी तक का सबसे बड़ा योगदान जिसने दिया है, उसका नाम है ’चंगेज़ खान।’ अपने जीवन काल में उसने जो नरसंहार किये थे, जितने इंसानों का कत्ल किया था, उस गिनती के आधार पर गणना करके बताया गया था कि इस धरती से पता नहीं कितने क्यूबिक टन कार्बन का सफ़ाया किया था भले आदमी ने।   बताईये, कितना महान योगदान था उस का और हम सब उसे बर्बर, असभ्य, क्रूर कहकर याद किया करते रहे।  बहुत नाईंसाफ़ी हुई उस बेचारे के साथ, पता नहीं कैसे होगी प्रतिपूर्ति उसकी मानहानि की:)

अब बात दूसरी रिसर्च की।  शायद अमेरिका में  कोई रिसर्च की गई है और उन्होंने ये फ़रमान सुनाया है कि किसी के नाम का प्रथम अक्षर उस व्यक्ति के behaviour in queue का निर्णायक तत्व है। वर्णमाला के अक्षर क्रम के अनुरूप ही व्यक्ति लाईन में लगने के संबंध में  व्यवहार करता है। हमारी तो उमर गुजर गई लाईन में सबसे पीछे लगने में लेकिन लॉजिक अब जाकर पता चला है। स्कूल में थे तो बैकबेंचर, कहीं लाईन में लगने का मौका आये तो सबसे पीछे और अब तो ऐसी आदत हो गई है कि बस, ट्रेन या किसी प्रशिक्षण कार्यशाला, सेमीनार में जाना होता है तो चाहे सबसे पहले ही क्यूं न पहुंच जायें, नजर अपनी पिछली सीटों पर ही टिकी होती है, वहीं जाकर रखते हैं तशरीफ़ का टोकरा। अब तो आदत ही ऐसी हो गई है।      अपने आसपास नजर डालता हूं तो अब समझ आया कि  अभिषेक ओझा, अदा जी, अजीत गुप्ता जी, अमित शर्मा, अली सैय्यद साहब. अनुराग शर्मा जी, अरविन्द झा, अरुणेश जी, अंशुमाला जी, अर्चना जी, आशीष, अंतर सोहिल,  अविनाश जैसे ब्लॉगर्स इसलिये लाईन में हमसे इतनी आगे हैं। किसी यारे-प्यारे का नाम छूट गया हो तो E. & O.E.  ये नाम हमने सिर्फ़ उनके लिये हैं  जो आसपास हैं, दूर की नजर हमारी शुरू से ही कमजोर है:)   हम ऐंवे ही इनके लेखन की तारीफ़ किये रहते हैं, विद्वान लोगों ने जो कहीं इनका नाम अ से न शुरू करके किसी और वर्णाक्षर से किया होता तो पता चलता इन्हें आटे दाल का भाव। हम तो जहाँ हैं, मस्त हैं बल्कि सोचता हूं एक हलफ़नामा देकर नाम XANJAY  या   ZANJAY   रख लेता हूँ,  थोड़ा सा माडर्न लुक आ ही जाये:) 

खैर,  थ्योरी  दमदार लगी। कितना टाईम है यार लोगों के पास।   पता नहीं किस किस विषय पर रिसर्च करते रहते हैं। पता चला कि अमेरिका में कोई फ़ाऊंडेशन बनाकर यदि किसी रिसर्च वगैरह के नाम पर खर्च किया जाये तो उसे टैक्स में छूट मिलती है। तो इसका मतलब ये है कि टैक्स मैनेजमेंट, टैक्स- प्लानिंग, टैक्स इवेज़िंग  सब तरफ़ चलती है। कल ही एक दोस्त कह रहा था साल में 2060 रुपल्ली की छूट देकर मुखर्जी ने मूरखजी बना दिया वेतनभोगियों को। अपन आशावादी बने हुये थे, कहा ये भी न देते तो क्या उखाड़ पछाड़ कर लेते भाई?  तो भाई उदारवादीयों, वैसे तो त्वाडी गड्डी LPG(Liberalisation, Privatisation & Globalisation) पर चल रही है, बाहर के मुल्कों से थोड़ा सा सबक लेकर यहाँ भी रिसर्च वगैरह पर टैक्स की छूट वगैरह का ऐलान करो,  फ़िर देखो हमारे ब्लागजगत के जलवे। एक से एक प्रतिभा छुपी है यहाँ, ऐसी ऐसी रिसर्चें कर डालेंगे कि पनाह मांगते फ़िरेंगे सब विकसित देश और वहाँ के रिसर्चर।

तो साहब, जब तक टैक्स में छूट नहीं मिलती, आप सबको छूट है हमारी  रिसर्च से बचे रहो। जिस दिन छूट मिल गई, उस दिन देख लेंगे आप सबको:)

आज फ़िर दिखाते हैं आपको एक पुराना गाना, पसंद न आये तो हमारा नाम वही रख दीजियेगा पहले वाला:)

38 टिप्‍पणियां:

  1. मैं अभी नींद में हूँ और नींद में ही इसे पढ़कर कभी हँस रहा हूँ कभी रो रहा हूँ कभी बड़बड़ा रहा हूँ। सुबह देखी जाएगी कि ये है क्या आखिर। आधी रात को पोस्ट करते हो कहीं आप भी तो नींद में नहीं हो?

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  2. नींद में हंसना, सपने देखने का लाइसेंस है आपके पास?

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  3. "सतर्क, सजग और सावधान सरकारें किसी भी तरह के विद्रोह को शुरुआती चरण में ही दबा लेती हैं, न कि हमारी केन्द्र सरकार की तरह कि पहले समस्या को बढ़ने दिया जाये, फ़िर कभी वार्ता, कभी पैकेज के जरिये सुलटाने की कोशिश की जाये। "....

    सही है हुकुम……! वैसे आपकी हालत भी उस सरकारी जुमले की तरह हो गयी थी… "स्थिति तनावपूर्ण लेकिन नियंत्रण में है" :)

    और लाइन में हम और आप आगे-पीछे ही रहेंगे… दाऊ भी करीब ही होंगे…और जहाँ इतने जुगाड़िये होंगे वहाँ queue पीछे से भी execute करा लेंगे… आखिर हम वड्डे सरदार की हुकुमत के बाशिंदे हैं :P

    नमन !

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  4. और एक अतिरिक्त कमेंट सिर्फ़ उस गीत के लिये जिसने मेरी सुबह बना दी… पुन: नमन आपको और मुकेश जी को !

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  5. एक आइडिया-
    कहना शुरू कर दें 'अनेजा संजय' बस काम बन जाएगा, मूड बदले तो फिर संजय अनेजा हो गए.

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  7. .

    पहली रिसर्च के समर्थन में एक बात :
    तभी शासन में ... अ-भाव, अ-न्याय, अ-ज्ञान, आगे नज़र आ रहा है. और सद-भाव, न्याय, ज्ञान आगे आने की मशक्कत करता रहता है.

    विरोध में भी एक बात सुन लें :
    मेरे एक मित्र हैं 'सञ्जय राजहंस' जो अब युक्रेन की यूनिवर्सिटी में प्रोफ़ेसर हैं.
    उन्हें कभी लाइन में लगना पसंद नहीं रहा. अपने आकर्षक व्यक्तित्व और प्रभावित करने वाली विविध भाषाओं के कारण वे अपना काम हर जगह बनवा लेते रहे हैं.
    अब भी ऐसा ही है. उनसे मैंने एक बात सीखी थी कि अपना काम निकलवाने के लिये 'तुम पहली बार में ही पूरी तरह परेशान नज़र आओ."

    दूसरी बात, एक प्रसिद्ध ब्लोग्गर भी इस रिसर्च का अपवाद हैं :
    zeal ............. जानते ही होंगे आप.

    मुखर्जी ने मूरखजी
    @ आपने शब्दों के साथ अच्छी छेड़खानी की है. मज़ा आया.

    .

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  8. .....जब भी आपको पढ़ता हूँ तो लगता है भड़भूजे की दुकान पर खड़ा हूँ...भड़भूजा जुनरी भून रहा है...शब्द जुनरी की तरह फूट रहे हैं...फड़ फड़ फड़ फड़..इधर पोस्ट खतम होती है उधर लगता है भड़भुजा वाला शब्दों को.. मेरा मतलब है जुनरी को थोंगे में भरकर दे रहा है...गाना लगाके.. मेरा मतबल है नमक मिर्च लगाके...घर जा कर खाना।
    ...अब यही आलम रहा तो स्वप्न तो आयेंगे ही न।

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  9. .

    आप हमेशा पीछे इसलिए रहते होंगे काहे कि आपका क़द ऊँचा है शायद...
    हमें आगे इसलिए रखा जाता है काहे कि हम पाँच फूटी हैं जी..पीछे रहें तो नज़र ही नहीं आयेंगे..आप कहीं भी रहें आप नज़र आयेंगे ही आयेंगे...
    @ ऐसी हाज़िरजवाबी (वाली टिप्पणी) पसंद आयी....... जो सम्मान घटाने की बजाये बढ़ाने में इस्तेमाल हुयी.

    सञ्जय जी,
    स्वप्न मंजूषा जी का वास्तविक परिचय आपके घर पर हुआ. अच्छा लगा.

    .

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  10. 'अपने आसपास नजर डालता हूं तो अब समझ आया कि अभिषेक ओझा, अदा जी, अजीत गुप्ता जी, अमित शर्मा, अली सैय्यद साहब. अनुराग शर्मा जी, अरविन्द झा, अरुणेश जी, अंशुमाला जी, अर्चना जी, आशीष, अंतर सोहिल, अविनाश जैसे ब्लॉगर्स इसलिये लाईन में हमसे इतनी आगे हैं।'
    *
    बाकी सब तो ठीक है। पर आपकी पोस्‍ट पर हमने जो रिसर्च की उससे पता चलता है कि आप सबको एक ही श्रेणी 'इतनी' में रखते हैं। वैसे कल महिला दिवस है तो कहीं आप उन्‍हें ही खुश करने के चक्‍कर में तो नहीं।
    *
    वैसे आपके साथ साथ अपना भ्रम भी थोड़ा दूर हुआ है। क्‍यों कि हम भी बस आपसे एक सीढ़ी ही तो ऊपर हैं पहले अक्षर के मामले में।

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  11. पहले आपकी पोस्ट पढने के लिए आता था तो मूसलचंद कि तरह दांत फाड़ने लगता था,............ साथ वाले देखते तो सामने तो कुछ नहीं कहते पर कानो में सुनाई पड़ ही जाता था कि दिमाग फिर गया है सारा दिन कम्पूटर में उलझा रहता है ..................... बहुत इनसलेट करवाई है आपके ब्लॉग ने मेरी मेरे माताहतो में ......................... पर ऊपर वाला कर्म का फल तो देता ही है अब आप खुद अपनी पोस्टों के चक्कर में बाबलो कि तरह हसने रोने लगे ............................ जैसी करनी वैसी भरनी

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  12. xanjay नाम जँच रहा है , मॉडर्न नाम के साथ एक नया ट्रेंड शुरू कर रहे हो ! मेरा नाम सजेस्ट करो सतीश की जगह xatish !!
    क्या आइडिया दिया है यार .??? लगता है जवान हो गए :-))

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  13. लगता है जवान हो गये...???
    @ सतीश जी का नाम मुझे सूझ गया है. बताऊँ क्या? ......

    X-atish = एक्स-आतिश
    अर्थात
    आउट ऑफ़ डेट 'आतिशबाजी'

    बुरा ना मानो कुछ दिनों बाद होली है!

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  14. sachhi muchhi me risarch karne layak post......

    hamra sujhaw hai ke 'diye gaye sujhaw achhe hain'

    kuchh final-synal ho jaye .... phir dekhte hain...

    pranam.

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  15. ये सोते हुए हसंने और रोने की बिमारी तो मुझे है आपको कैसे लग गयी,
    नाम XANJAY ही ठीक रहेगा,
    मेरे लिए भी कोई नाम सोच कर बता दो तो अच्छा रहेगा, है तो हम भी बैकबेंचर ही

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  16. xanjay और zanjay की बजाय
    Anjay के बारे सोचिये जी।
    नाव S फॉर Sailor के भरोसे चलती है।
    "अ" आगे आने से भी मैं तो मित ही रहा हूँ। और आप S से Super, Sachem, Sacrament, Sacred, Sacrosanct, Sagacious, Sagamore, Sage, हैं ही और रहेंगें।
    ट्रेन में बच्चों को पहले चढाया जाता है, इसलिये हम आगे रह्ते हैं लाईन में
    पीछे खडे बडों का सहारा मिलेगा तो ही चढ पायेंगें।

    प्रणाम स्वीकार करें

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  17. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  18. भारत में बहुत पहले एक रिसर्च हुआ था की जब फगुनहट बहती है तो उसका असर पुरुषो पर ज्यादा होता है एक तो लगता है शिव रात्रि का असर कम नहीं हुआ उस पर से फगुनाहट का असर , खतनाक कॉकटेल , असर पोस्ट और टिपण्णीयो दोनों पर दिख रहा है बिना ज्यादा और कहे बिदा लेना बेहतर है | अदा जी की टिपण्णी अच्छी लगी |

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  19. ये दूसरा शोध तो एकदमीच बकवास है। अपना शोध तो ये है कि S से जिनका नाम है वो ज्यादा सफल हैं। अब ब्लॉग जगत में ही देख लीजिए- संजय अनेजा, समीर लाल, सुरेश चिपलूनकर, सलिल वर्मा, सतीश पंचम, सतीश सक्सेना, स्वप्न मंजूषा, साँझ, संजय भास्कर, शाहनवाज इत्यादि इत्यादि। (अपन भी S वाले हैं ये मात्र संयोग है ये रूल हम पर लागू नहीं होता)

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  20. @ भारतीय नागरिक:
    सरजी, आपको तो मजा आ गया लेकिन हमारा मजा तो आपके ब्लॉग पर MALWARE WARNING छीने ले रही है, कुछ करिये उस लाल दीवार का ईलाज।

    @ सोमेश सक्सेना:
    मैं नींद में? मैं तो भाई वही हूँ - न जागा हुआ हूँ, न सोया हुआ हूँ:))

    @ स्मार्ट इंडियन:
    लाईसैंस तो है भैया, रिन्यूअल पेंडिंग है:)

    @ रवि शंकर:
    जिन दाऊ के बल पर मीठे सपने देख रहे हो, वो शायद किसी जुगाड़ में ही लगे हैं:)

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  21. @ राहुल सिंह जी:
    काहे हमारा आनंद छीनते हैं सरजी? हम XANJAY बनना चाह रहे हैं और आप हैं कि...:)

    @ अदा जी:
    आप तो हमारा मुँह बंद करके ही मानेंगी। लंबाई की अच्छी कही आपने, चंदन का छोटा सा टुकड़ा भी बहुत बड़े ठूंठ से ज्यादा कीमती होता है। आप जहाँ भी होंगी, लाईन आपके बाद ही शुरू होगी।

    @ प्रतुल वशिष्ठ:
    वाह, समर्थन सटीक है एकदम। विरोध में प्रोफ़ेसर साहब का उदाहरण भी जबरदस्त और उनकी थ्योरी भी। @ ब्लॉगर अपवाद - iron lady को कौन नहीं जानता?
    और प्रतुल भाई, आभारी हूँ बहुत आपका।

    @ देवेन्द्र पाण्डेय:
    हे राम, टिप्पणी के चक्कर में भड़भूंजा बनना भी अच्छा लग रहा है:)

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  22. @ राजेश उत्साही जी:
    राजेश भाई, मान गये आपकी बारीक ’कताई’ को। यूँ ही कोई इतना\इतने\इतनी लंबी पारी थोड़े ही खेल सकता है संपादकी की:) आप मीलों आगे हैं जी हम जैसों से, और रहेंगे। आभार।

    @ अमित शर्मा:
    हुये तुम दोस्त जिसके, दुश्मन उसका आसमां....:)
    ऐसे कोस रहे हो जैसे तुम्हारा जयपुर लूट लिया हमने। कर लेना हमारी आऊटसलेट अपने मातहतों के आगे, जब आयेंगे तुम्हारी गुलाबी नगरी:)

    @ Poorviya:
    मिश्राजी,आपकी अमूल्य आलोचना सर आँखों पर। जिसके दामन में जो कुछ है वही तो दे सकेगा।
    अपने पास यही है, यही देते हैं। :)

    @ सतीश सक्सेना जी:
    बड़े भोले हैं हमारे बड़के भैया, खुद ही मौका दे दिया। क्या जरूरत थी ये कहने की, ’लगता है जवान हो गए :-))’
    पकड़ लिया देखो प्रतुल जी ने:))

    @ प्रतुल वशिष्ठ:
    देव, थोड़ा भाई भतीजावाद चलने दें न:) बड़े भाई हैं हमारे - X-atish = एक्स-आतिश
    अर्थात
    आउट ऑफ़ डेट 'आतिशबाजी' की जगह ’पुरानी आतिश’ कर लें? :))

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  23. @ सञ्जय झा:
    हम तो लाईन में साथ साथ ही रहेंगे नामराशि, हमलाईनर मेरे हमलाईनर:)

    @ दीपक सैनी:
    70 मॉडल है मेरा, बीमारी मुझे पहले से है दोस्त। हम तो चिंगारी दिखाकर बैठ जाते हैं प्यारे, सोचो भी खुद और विचारो भी खुद। सुना नहीं, ’दोस्ती पक्की, खर्चा अपना अपना’:)

    @ अन्तर सोहिल:
    भाई, और बम बरसाना रह गया हो तो वो भी भटका देने थे एक साथ, एक ही बार डिक्शनरी खोलता मैं:)
    प्रणाम।

    @ anshumala ji:
    सही है जी, जो कहना है कह दिया और निकल लिये पतली गली से। शिवरात्रि, फ़गुनाहट, पोस्ट, टिप्पणी सब स्त्रीलिंगी शब्द, असर ज्यादा पुरुषों पर - क्या रिसर्च है, वाह। पक्की नारीवादी हो आप:))

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  24. पहले शोध के लिए यही कहूँगा कि चिंता न करें, २-३ हज़ार साल बाद अबकी जो पेट्रोल निकलेगा, गवाही देखी चंगेज़ बाबा के पुण्यों की।

    और दूसरे शोध पर विरोध है हमारा भी। वैसे सामूहिक गीत हो चला है अब ये, तो कोरस में हम भी आपत्ति दर्ज करेंगे।
    माना नाम 'अ' से है हमारा, युजुअली तनिक मूर्ख भी हैं, लेकिन फिर भी मानते तो हम सचिन-सौरव को ही आए हैं बेस्ट ओपनिंग पेयर।
    और मान लीजिये शोध सही भी है, तो भी..."हम ऐंवे ही इनके लेखन की तारीफ़ किये रहते हैं, विद्वान लोगों ने जो कहीं इनका नाम अ से न शुरू करके किसी और वर्णाक्षर से किया होता तो पता चलता इन्हें आटे दाल का भाव।"
    यूँ सरेआम हमारी मिट्टी पलीद करेंगे :)

    XANJAY नाम है वाकई बड़ा, क्या कहते हैं. ... in to the 21st century।


    गाना और मूरख जी, सब कुछ बहुत पसंद आया।
    कहानियों/संस्मरणों के बाद ये शोध-पत्र पढना भी बहुत अच्छा लगा।

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  25. हमारी गोद के बालक (लैपटॉप)ने रुला रखा है.. टिप्पणी करने बैठता हूँ तो पता ही नहीं होता छपेगी भी कि नहीं..
    ये आपके नाम के आगे एक्स लगाने की सूझ आपको भले अब मिली हो, हम तो जब पहली बार आए थे तभी भाँप गये थे इस एक्स फ़ैक्टर को.. और बस तब से लगे हैं!! सन्योगवश हम भी उसी नाम राशि के हैं.. और राहुल जी के तरीके से अपनी और दुर्गत होने वाली है, लिहाजा खुश हैं इसी में.. फत्तू की कमी अखरने लगी है... गाने दिल चुराने लगे हैं!!

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  26. शुक्रिया प्रतुल ...
    बिलकुल बुरा नहीं मानते बल्कि अच्छा लगा कि यारों की निगाह तो गयी अब नया पुराना तो तब पता लगेगा जब लोग पहचान लेंगे ! हो सकता है पटाखों के बीच कोई हमें भी देख ले ....
    शुभकामनायें !

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  27. @ ताऊ रामपुरिया:
    आशीर्वाद बना रहना चाहिये ताऊ का।
    राम राम।

    @ सोमेश सक्सेना:
    सही में बकवास है, सॉरी बकवासीच! अपन पर भी संयोग वाला रूल लागू होता है।

    @ अविनाश:
    क्यों नहीं भैये, तुम क्यूँ न बहुमत के साथ चलो? एक बनारसी बाबू भड़भूंजा बता गये, एक ने तनावपूर्ण लेखन बताया, खतरनाक भी बताया गया, एक तुम से आशा थी कि बाबा विश्वनाथ की नगरी से कोई तो तारीफ़ करेगा...मेरी बात रही मेरे मन में:))

    @ चला बिहारी...
    सलिल भैया, आपकी भाँपन शक्ति चमत्कारी है:) N-Z ग्रुप के पक्का खंभा हैं आप, रवि की टिप्पणी देखिये, कितनी आशावादी है:)

    @ सतीश सक्सेना जी:
    आप आप पर तो पहले से ही यारों की नजर है। हमने तो पहले ही बता दिया है आपको पुराना(दमदार) पटाखा :):)

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  28. मैं तो मुस्कुरा रही हूँ और गीत सुन रही हूँ। ये तो बता देते कि "न" वाले लोगों के लिये रिसर्च मे क्या कहा गया है? बेहतरीन पोस्ट के लिये बधाई, शुभकामनायें।

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  29. संजय जी मैं तो "S" फॉर सर्वोत्तम, सर्वश्रेष्ठ मानता आया हूँ.... जरा ध्यान दें .... नेताओं में सोनिया गाँधी, अभिनेताओं में शाहरुख़ खान, खिलाडियों में सचिन और अनाड़ियों में साऊथ अफ्रीकन क्रिकेट टीम, दिल्ली में साऊथ दिल्ली.... अरे साहब उदाहरण बहुत हैं जरा हमारी नजर से देखिये..

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  30. शब्द विचारों के साथ अठखेलियाँ करते हुये से प्रतीत हो रहे थे।

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  31. शानदार पोस्ट, जानदार गीत के साथ.

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  32. हा हा हा सच कहूँ ,पढा कुछ नही.अब गाना ही इतना प्यारा डाल दिया है तो पहले उसे सुनने बैठ गई और कई बार सुना.
    पूर्णिमा फिल्म मैंने देखि थी.ये गाना मुझे बेहद पसंद.
    शुक्रिया बोलू? नही पहले सब पोस्ट्स के गाने सुनूंगी.
    क्या करूं ? ऐसिच हूँ मैं तो.

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  33. @ निर्मला कपिला जी:
    आप तो हमारे गुट (N-Z)की फ़्लैगबियरर हैं। आपकी मुस्कुराहट की वजह हम बने, इतराने लायक बात है - आभारी हूँ।

    @ विचार शून्य:
    बन्धु, तुम्हारी नजर सी नजर मिल जाये तो मजा ही आ जाये।

    @ प्रवीण पाण्डे जी:
    शुक्रिया प्रवीण जी।

    @ वन्दना अवस्थी दुबे:
    धन्यवाद, वन्दना मैडम।

    @ इन्दु पुरी गोस्वामी जी:
    शुक्रिया मैं बोलता हूँ आपको, और आप ’ऐसिच’ ही बनी रहें ये कामना करते हैं। ’ऐंवे-से-ही’ तो हम जैसे बहुत हैं:)

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  34. इस रिसर्च में दम लग रहा है ! आपने शायद गौर नहीं किया कि बुजुर्गों की बख्शी महानता के आगे भी 'अ' का ज़लज़ला कायम है ! ख्याल कीजिये नाम किसी भी हर्फ़ से रखो बजेगा कुछ ऐसे ... 'अ'बे*****सुन , 'अ'री भाग्यवान ,'अ'जी सुनती हो ,'अ'जी सुनिए , 'अ'हमक कहीं के , 'अ'जीब इंसान है तू भी... ,'अ'रे स्साला वगैरह वगैरह :)

    यहां के ईसाई बंधु अपने उपनाम 'खाखा' और 'खेस' को xaxa और xess लिखते हैं इसके अलावा क्रिसमस उर्फ एक्समस / जीराक्स / एक्सरे को xmas / xerox /x-ray कहें तो फिर sanjay को लेकर कोई एक्सपेरीमेंट मत कीजियेगा ! हो सके तो satish जी को भी समझाइयेगा :)

    राहुल सिंह जी ने 'अ' को आगे किया ही है और भौजाई भी आपका इतना ख्याल तो रखती ही होंगी :)


    ***** कोई भी नाम डाल कर देखें :)

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  35. @ अली सा:
    सही सुझाया अली साहब। भौजाई का दिया हर नाम हमें तो अलंकरण ही लगेगा, हमारा प्रणाम पहुंचे भौजाई तक:)
    सतीश भैया को हम नहीं समझा सकते। वो अपनी शराफ़त, भलमानसहत के चलते समझ नहीं सकते:)

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