उस दिन ऑफ़िस में कनैक्टिविटी नहीं थी और काम बीच में फ़ँसा हुआ था। मैं और बॉस, हम दोनों ही ऑफ़िस में रुके थे और बाकी स्टाफ़ चला गया था। कहते हैं कि पिछले कई साल में एक बार अमेरिका में बिजली गई थी, और बहुत से लोग ऐसे थे जिन्हें तब जाकर याद आया कि आसमान की तरफ़ देखे हुये उन्हें एक जमाना गुजर चुका था। जरूरत ही नहीं पड़ती थी। हम भी तो उन्हीं नक्शे कदम पर हैं। यातायत और संचार के साधन इतने तेज हो चुके हैं और हमें अपनों से यूँ ही कुछ बात करने का मौका नहीं मिलता। और खुद अपने से बात करने की तो फ़ुर्सत ही किसे है?
वो दिन शायद ऐसा ही था जब खुद अपने से बात होनी थी। एकदम से बॉस कहने लगे, “संजय जी, एक बात बताओ, क्या इस दुनिया में कोई पूरा है, कम्पलीट?”
अचानक ये सवाल सुनकर मैं भी हैरान रह गया। मेरे अपने ही सवालों का हल नहीं ढूँढ पाता और ये साहब मुझसे ही पूछ रहे हैं। उन्होंने फ़िर से अपना सवाल दोहराया। मैंने अब उनसे ही पूछा, “सरजी, किसी की मृत्यु होनेपर पंजाबी में क्या कहते हैं?”
उन्होंने बताया, “फ़लाँ पूरा हो गया है, ऐसा बोलते हैं।”
“सरजी, मेरे हिसाब से तो इसीमें आपके सवाल का जवाब है। हम सब अधूरे हैं, एकदम अधूरे और अपने अधूरेपन में ही मस्त हैं। गाफ़िल हैं इस सच्चाई से कि इस दुनिया में संपूर्ण कोई नहीं। कूछ हैं, जिन्हें इस बात का अंदाजा है और वो अपने अधूरेपन की लहर को किसी समंदर में मिलाने की कोशिश भी करते हैं। और उनमें से भी विरले हैं, जो ये कर पाते हैं और अपनी कोशिश में कामयाब होते हैं।”
बॉस कहने लगे, “तो इसका मतलब ये हुआ कि इस दुनिया में कोई तो होंगे ही ऐसे जो संपूर्णता को प्राप्त हुये?”
मैंने कहा, “मैं शायद अच्छे से बात स्पष्ट कर नहीं पाया, सरजी, जो संपूर्ण हो गया फ़िर वो इस दुनिया से ही गया। पंजाबी में कहते हैं न, फ़लाँ पूरा हो गया।”
सरजी हमारे पता नहीं सच में पूछ रहे थे कि आपकी तरह मजे ले रहे थे लेकिन अपने को सोचने को मुद्दा दे गये। कई बार कहा करते हैं, “त्वाडी हिम्मत है यार, अकेले रहते हो। मैं तो सच में इसीलिये गाँव में रहने से डर गया था कि तुम्हारा ट्रांसफ़र हो गया तो अकेला रह जाऊँगा। टाईम कैसे बीतेगा, ये सोचकर भी डर जाता हूँ।”
मैं सोचता हूँ कि आदमी अकेलेपन से क्यों डरता है? क्यों अकेलेपन से तारतम्य बैठाना इतना मुश्किल लगता है? मेरी संवेदनायें शायद काम करना बंद कर रही हैं, मुझे क्यों भीड़भाड़ से दिक्कत और अकेलेपन में सहज लगता है? आधा अधूरा रहना ही अपनी नियति है, ऊपर से ये गाना क्या सुन लिया, समय का मालूम ही नहीं चलता कि कैसे बीत गया। गाने के बोलों से इत्तेफ़ाक न रखते हुये भी एक मासूम दिल के सवाल कोंचते तो हैं। कभी दुख भी होता है और कभी हँसी भी आती है जब पूछा जाता है कि ’की खट्टया(कमाया) मैं तेरी हीर बनके।’ कमाने के लिये प्यार किया था? पागल न हो तो …. आधे अधूरे ही रह लो जब तक इस दुनिया में रहना है, पूरे हो गये तो हो जाना है हैप्पी बड्डे:)
क्या बाऊजी आप भी
जवाब देंहटाएंकभी-कभी इतना सीरियस कर देते हो कि लगता है हम संबुद्ध होने ही वाले हैं।
प्रणाम
सही है इन्सान पूरा होने के बाद ही पूरा होता है|
जवाब देंहटाएंसंजय भाई समय का आभाव है........ पूरी पोस्ट ढनग से नहीं पढ़ पाया ........ पर "वो पूरा हो गया" : दिल को छू गया .....
जवाब देंहटाएंमेरी भी फिलोसोफी यही है की हम अधूरे हैं....... और पूर्णता की और अग्रसर हैं. वो दिन होगा जब हम 'पुरे' ह जायेंगे.. आप मानोगे नहीं... कई बार लगता है की जो कुछ हो रहा है वो नाटक है ..... बस विसल बजने की देर है और पर्दा गिर जायेगा... उसके बाद सारे प्रोजेक्ट धरे रह जायेगे ... हमारी महत्वकान्क्षाये बस हमारे साथ पञ्चतत्व में वालीन हो जायेंगी.... जीवन का तथ्य यही है ......
तुम सोचोगे... बाबा को अपना ब्लॉग कम था जो यहाँ बक बक छेड़ दी....... क्या करें दोस्त.... हिन्दुस्तान है .. जिसको पेंट का पोंचा पकडवा दो वही गिरेबान पर हाथ डालता है.... रही बात बाकिम चंद्र चट्टर्जी की "आश्रय पाकर तो कुत्ता भी मुंह चाटने लगता है"
जय राम जी की.
पूरा हो गया को बुंदेलखंडी (मैं बुंदेलखंडी नहीं) में कहते हैं 'शांत हो गया' अभिव्यक्ति और अस्तित्व का चरम.
जवाब देंहटाएंये गलत बात है. हमारा आईडिया चोरी हो गया. एक तो पता चला किसी ने किताब लिख मारी है इस आईडिया पर:
जवाब देंहटाएंhttp://www.amazon.com/Undecided-Endless-Perfect-Career-Life-Thats/dp/1580053416/
और अब आप भी :) अब मैं कह भी लूं कि मेरा आईडिया था तो कौन मानेगा ;)
हम पूर्ण नहीं हैं, इसीलिए तो इंसान हैं। अगर कोई पूर्ण होता है तो फिर वह बुद्ध कहलाता है या महावीर।
जवाब देंहटाएंकभी-कभी कुछ क्षण के लिए दार्शनिक हो जाना पूर्णता को झांकने की कोशिश करना है। ऐसी कोशिश करने वालों को अकेलापन प्यारा लगता है और ऐसे इंसान ही सही अर्थों में इंसान होते हैं।
संजय जी, आपकी यह प्रस्तुति अच्छी अगी।
पूरा हो जाना दूसरों के लिए पीड़ादायक होता है. आधा अधूरा ही भला है.
जवाब देंहटाएंतब तो हम अपूर्ण ही अच्छे।
जवाब देंहटाएंMrityu hee ek poorn viram hai...anyatha sab kuchh chalta hee rahta hai....!Adha adhura!
जवाब देंहटाएंहर कोई संपूर्णता को प्राप्त करना चाहता है और एक न एक दिन पूरा हो जाता है. वैसे खुदी में खुद से बात भी गजब बात है.
जवाब देंहटाएं@आसमान की तरफ़ देखे हुये उन्हें एक जमाना गुजर चुका था।
जवाब देंहटाएंहां अमरीकी अब चन्द्र अभियान से तो काफी आगे निकल चुके हैं
@क्या इस दुनिया में कोई पूरा है, कम्पलीट?”
complete failure?
@हमारा आईडिया चोरी हो गया
अल्लाह करे मीर का जन्नत में मकाँ हो
मरहूम ने हर बात हमारी ही बयाँ की
ईश्वर करें आपका और आपके बॉस का काम कभी पूरा न हो :)
जवाब देंहटाएं@ Abhishek Ojha:
जवाब देंहटाएंअरे हम मानेंगे न भैय्ये, इल्ज़ाम मान लेने के ऑलटाईम रिकॉर्डहोल्डर हैं:)
जीवन भर अधूरे ही रहते हैं ...पूरे हुए नहीं की चल दिए अपना लव लश्कर उठा कर
जवाब देंहटाएंसही है पूर्ण होने के बाद तो जय श्री राम है जी। सही चिंतन है। एकदम सटीक।
जवाब देंहटाएंसही कहा है पूरा तो मरने के बाद ही होता है
जवाब देंहटाएंसभी अपूर्ण है
मेरे एक परिचित कहने लगे की चलिए चार धाम यात्रा कर आते है मैंने कहा की जो चार धाम अभी कर लिया तो बुढ़ापे में क्या करेंगे तब क्या गोवा कश्मीर घूमना अच्छा लगेगा ये सब चीजे तो बुढ़ापे के लिए रख रखी है | वैसे ही इन विषयों पर अभी सोच लिया तो रिटायर्मेंट के बाद किन विषयों पर सोचेंगे :) इसलिए फ़िलहाल तो हम अधूरे ही भले अभी पुरे होने की कोई इच्छा नहीं है |
जवाब देंहटाएंजहा तक बात अकेले रहने की है तो वो तो आदत पर निर्भर है जब जिसको जिस चीज की आदत लग जाये दूसरी चीज बुरी लगने लगती है |
एक चुटकुला याद आया आप की टिप्पणी से, फरहाद शिरी के प्यार में पागल हो कर पहाड़ पर चढ़ गया और वहा जा कर शिरी शिरी चिल्लाने लगा निचे खड़ा आदमी बोला, कम्बखत जब ऊपर चढ़ा था तब नहीं सोचा की नीचे कैसे उतरेगा अब ऊपर चढ़ कर सीढ़ी मांग रहा है :)))
जवाब देंहटाएंबड़के ब्लोगर के ठाठ है स्कुल गये और कह दिया की ट्रांसफर केस है बच्चो को एडमिशन दे दीजिये और तुर्रा ये की आज ही हो जाये सारे काम कल काम पर वापस जाना है , और मिल गया एडमिशन | पर बेचारे आम आदमी के बच्चो को न तो इतने आसानी से एडमिशन मिलता है और मिल भी गया तो महिना लगेगा बच्चे को स्कुल में सेटेल करने में उसकी किताबे कापी और सेलेबस न जाने क्या क्या , अब आप के जैसे सभी के ठाठ थोड़े ही है चाहे ८pm वाले या १०pm वाले :))
आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
जवाब देंहटाएंकृपया पधारें
चर्चा मंच{16-6-2011}
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसंजय बाउजी! इन दिनों बस इसी को जानने में लगा हूँ.. सीख रहा हूँ "पूरा होने" की कला!!शायद कुछ अधूरापन मिटे!!
जवाब देंहटाएंFantastic post !!
जवाब देंहटाएंपूर्णतया (ठीक है इस जगह ऐसा शब्द?) सहमत!
जवाब देंहटाएंअलावा इसके, jigsaw puzzle के टुकड़े आपस में बहुत गहरे मित्र होते हैं, इसमें संशय तो कभी रहा ही नहीं है।
अब तो अधूरापन अच्छा ही लग रहा है !
जवाब देंहटाएंअभी के हालात में तो अपने इस छुटके को भी "पूरा-हुआ" ही मान लीजिये :)
जवाब देंहटाएंहमने प्रतिक्रिया दी तो थी पर वो बेचारी आधी अधूरी भी नज़र नहीं आई :)
जवाब देंहटाएंऔर हमें अपनों से यूँ ही कुछ बात करने का मौका नहीं मिलता। और खुद अपने से बात करने की तो फ़ुर्सत ही किसे है?
जवाब देंहटाएंशायद आपके इसी कथन के लिए स्वामी विवेकानंद ने कहा है,
"Talk to yourself once in a day otherwise you may miss to meet An Excellent person in this world "
सर जी,पूरा हो जाने के बारे में पढ्कर लगा अधूरा होना कितनी बडी नियामत है.
जवाब देंहटाएंबहुत कम लोग हैं जिन्हें पता है कि अकेला होना कितना दुर्लभ है आज..
जवाब देंहटाएंअकेलेपन में मनुष्य अपने वास्तविक शक्तियों को केन्द्रित कर अभीष्ट तक पहुच सकता है ..
जवाब देंहटाएंफिर घबराना कैसा अकेलेपन से..
कुछ लोग तो कहते हैं मर कर फिर जनम लेते हैं याने पता नहीं, कभी पूरे होते हैं भी या नहीं ।
जवाब देंहटाएंसंजय भाई,आपका आलेख कुछ दिन पहले पढ़ा था.
जवाब देंहटाएंलेकिन तब लगता था कि चार्ज लेने और देने में ही मैं पूरा हो जाऊंगा.
लेकिन मैं अधूरा ही रहा और आपको टिप्पणी कर रहा हूँ.
आप जैसे मेरे एक बड़े भाई एक प्रयोग बतलाते हैं कि कभी कभी बन्दे को खुद को पूरा हुआ समझना लेना चाहिए.ज़िन्दगी की सारी फिलासफी समझ आ जायेगी.
किसी ने कहा है....
जवाब देंहटाएंलाश थी
इसलिये तैरती रह गयी
डूबने के लिए
ज़िंदगी चाहिए।
पडौसी भाई
जवाब देंहटाएंनैनीताल गया था, आज पढी है ये पोस्ट
एकदम ठीक फरमाया....
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