गुरुवार, सितंबर 15, 2011

पीयू पीटू - P U P 2



इस पोस्ट का टाईटिल सोचा था ’पाले उस्ताद – पाट्टू (पार्ट टू)’ फ़िर सोचा कि विद्वान जन आऊ, माऊ चाऊ टाईप की ब्लॉगिंग के बारे में फ़िक्र करके वैसे ही हलकान हुये जा रहे हैं, ऐसा शीर्षक देखकर कहीं उन्हें मौका न मिल जाये कि ऐसा भड़काऊ टाईटिल देकर पाठकों के साथ धोखाधड़ी की गई है। वैसे ये टाईटिल भी कैची सा तो है ही:)

अब हम सीरियस टाईप के बंदे होते जा रहे हैं, सोचा है कभी कभार आपसे काम की बात भी शेयर कर लेंगे। बेशक मात्रा में थोड़ी हो, असर में मामूली हो लेकिन हमें तसल्ली रहेगी कि हाँ जी, हमने भी ज्ञान बाँटा है। अब हम अपनी कथा कहानी आगे बढ़ाते हैं, काम की बात  आप ढूँढ लीजियेगा। मिल जाये तो खुद की पारखी नजर की बलैयां उतार लीजिये और न मिले तो हौंसला न छोड़ियेगा, कभी कभी हमसे  मिसफ़ायर भी हो जाता है।
बैंकों के बारे में एक पोस्ट पहले लिखी थी, आज आपको थोड़ा सा अंदरूनी कामकाज के बारे में बताते हैं, सिर्फ़ थोड़ा सा, क्योंकि ज्यादा अपने को भी नहीं पता है। 

जमा के खातों में सबसे ज्यादा प्रचलित खाते हैं सेविंग खाते, करेंट खाते, आवर्ती खाते, सावधि खाते आदि आदि। सेविंग खातों को हमारे यहाँ घरेलु बचत खाता और करेंट खातों को चालू खाता के नाम से जाना जाता है।

बैंक में ड्यूटी करने वाले हम लोग कार्यविभाजन के मामले में बहुत सतर्क होते हैं। संयुक्त परिवार में देवरानी-जेठानी वाला मामला समझ लीजिये, मेरी ड्यूटी उसकी ड्यूटी से ज्यादा क्यों?   तरह तरह के खट्टे मीठे तर्क देकर हर कर्मी की  कोशिश यह दिखाने की रहती है कि सब से ज्यादा काम, सबसे ज्यादा जिम्मेदारी का काम, सबसे ज्यादा जोखिम का काम उसके सर मढ़ा जा चुका है।  अपना सौभाग्य यह रहा कि अधिकतर जगह अपन उम्र में सबसे छोटे रहे। माँगकर तो हमने कभी टिप्पणी नहीं ली तो ड्यूटी में कौन सा विभाग मांग कर लेते? बड़े बुजुर्ग अपने हिसाब से अपनी पसंद से सीट चुन लेते हैं और बचा खुचा प्रसाद रूप में हमें मिल जाता था। ये और बात है कि कभी कभी पूँछ भैंस से ज्यादा लंबी होती है।

तो जी हुआ ये कि नई जगह पर आये तो दो तीन जगह हमारी चाल-चरित्र और चेहरा जांचा परखा गया और रिजैक्शन लेते लेते हम इस शाखा में आधा दिन देर से  पहुंचे। उस्ताद जी सेविंग डिपार्टमेंट, लॉकर, पेंशन और सैलरी सँभाल चुके  थे और सिर्फ़ बचा खुचा ही बचा था वो हमें मिल गया जैसे क्लियरिंग, एफ़.डी. डिपार्टमेंट, ड्राफ़्ट्स, टैक्स, आवर्ती जमा, वगैरह वगैरह। 

कार्य विभाजन के अनुसार सेविंग विभाग उस्तादजी के पास और करेंट विभाग हमारे पास थे।   सितंबर का महीना शुरू ही हुआ था कि हमने हिन्दी शब्दावली का प्रयोग   ज्यादा करने के लिये उस्ताद जी को मना लिया। थोड़ी हील हुज्जत के बाद उस्ताद जी मान गये। त्वरित संदर्भ के लिये प्रचलित शब्दों की हिंदी आपको बता दें 

सेविंग खाता   -  घरेलु बचत खाता
करेंट खाता     -   चालू खाता
क्लियरिंग       -  किलेरिंग (समाशोधन शब्द  उस्तादजी को बड़ा अटपटा लगा)

कुछ दिन तो पूरा नाम  लेते रहे  और फ़िर धीरे धीरे छोटे नाम पर  आ गये।     अब जो भी ग्राहक आता\आती और काम  कहाँ होगा ये पूछा जाता तो उस्तादजी फ़ट से कहते, “घरेलु है तो इधर आ जाओ, चालू है तो उधर संजय जी के पास जाओ।”  सावन भादों के महीने और हम हैं कि सूखे में ही जीवन बिता रहे हैं। चालू खाते में लेनदेन करने तो सिर्फ़ ’आता’ श्रेणी के ग्राहकगण ही आते हैं। रोना इस बात का  नहीं था बल्कि उनके शब्द प्रयोग का है कि घरेलु है तो इधर आ जाओ और चालू टाईप के हैं तो उधर चले जाओ। अब कौन है जो खुद को चालू बताये? दिन में दस बीस बार ये डायलाग मारकर उस्ताद जी हमारी खिल्ली  उडा रहे थे और स्टाफ़ के भी सारे बंदे मजे ले रहे थे। खैर, सब्र का टोकरा है अपने पास – खुद को कोसते रहे कि काहे हिंदी वाला पंगा ले लिया लेकिन अब क्या हो सकता था? तो जी,   ’आता’ सब इधर है और ’आती’ उस्तादजी के पास। मैं भी कह देता, “उस्तादजी, मजे ले लो मुझसे। कोई बात नहीं, देखेंगे।”

अब बात क्लियरिंग की। जब कोई ग्राहक अपने खाते में किसी दूसरी शाखा या दूसरे बैंक का चैक जमा करवाता है तो  जिस प्रक्रिया के द्वारा उस चैक के पैसे मंगाये जाते हैं, उसे क्लियरिंग या समाशोधन कहते हैं। अब लगभग सभी बैंक केन्द्रीयकृत हो चुके हैं तो दिल्ली जैसे शहर में क्लियरिंग का काम बहुत ज्यादा है। इस बात को सभी मानते हैं। मुर्दे का सिर मूडने से उसका वजन कम नहीं होता लेकिन उस्तादजी ने दयानतदारी दिखाते हुये  काम का बंटवारा किया कि होम क्लियरिंग(अपने बैंक की दूसरी शाखा के चैकों की क्लियरिंग) वो किया करेंगे। क्लियरिंग में होम क्लियरिंग का चैक सप्ताह में एकाध आता है तो ये उनका कसूर थोड़े ही है?  अब क्लियरिंग आने पर जब पियन पूछता है कि इन्हें कहाँ ले जाऊँ?   उस्ताद जी कहिन, “घरवाली इधर ले आ, बाहर वाली संजय जी के पास।”  खून तो बहुत जलता है लेकिन हिन्दी सेवा का व्रत मैंने ही दिलवाया था नहीं तो पहले तो यही कहते थे कि होम क्लियरिंग इधर ले आ, अदर बैंक वाली उधर ले जा। खून के घुँट पी रहा था रोज।
उस दिन हैड ऑफ़िस से चिट्ठी आई, उस्तादजी को प्रशिक्षण के लिये जाना था। मैंने आवाज लगाई, “ओ उस्ताद जी!”  और मेरी आजमाई हुई बात है कि जिस दिन मेरी ऐसी आवाज सुन लेते हैं, उस्तादजी कुरुक्षेत्र में किंकर्तव्यमूढ़ अर्जुन की मुद्रा में आ जाते हैं। पेशानी पर बल, हाथ पैर शिथिल,  होंठ कंपकंपाने लगते हैं कि आज कुछ सुनने को मिलेगा:)


आये उस्तादजी, बैठे। “बोलो जी?”

मैंने चिट्ठी दिखाई, मन में लड्डू फ़ूटे उनके लेकिन उम्मीद के मुताबिक बोले कि यार, मैं तो जाना ही नहीं चाहता ट्रेनिंग पर, लेकिन जाना तो पड़ेगा।

सब बैठे थे।  मैंने पूछा, “एक बात बताओ जी, आप तो जी चले जाओगे ट्रेनिंग पर। पीछे से जी वो घरवाली और बाहर वाली जो होती है जी, किलैरिंग,  उसका क्या होगा?

उस्ताद जी, “घरवाली भी आप ही देखोगे और बाहरवाली भी।”

सब हँस रहे थे, मैं भी, उस्तादजी भी और बाकी स्टाफ़ के लोग भी। मरे जाते हैं काम के बोझ से, दुख के और तकलीफ़ के तो बिन बुलाये, बिन चाहे हजार मौके आते हैं हँसी के  बहाने खोजने पड़ते हैं। ऊपर वाले की कृपा है कि कैसी भी तपती लू हो, ठंडी बयार अपना पता खोज ही लेती है।

हिन्दी दिवस हो चुका,  बैनर वगैरह लपेट कर रख दिये गये हैं। अगले साल फ़िर से जोर शोर से ड्रामा किया जायेगा और जैसे हमने आज काजू वाली मिक्सचर, बिस्कुट, लिम्का वगैरह भकोसकर हिन्दी दिवस मनाया है, अगले साल और जोर शोर से,  बोले तो एकाध मिठाई भी मेन्यू में जुड़वाकर हिन्दी सेवा का व्रत लेने की शपथ लेंगे। कल से फ़िर वही सेविंग, करेंट, होम क्लियरिंग, वही हम और वही उस्तादजी – वहीं बहू का पीसना और वहीं सास की खाट।

अब आज की बेगार लेते जाओ  - अपने घर के, आस पास के,  परिचय के सभी पात्र लोगों के बैंक खाते खुलवायें। विशेष तौर पर बच्चों को सेविंग की आदत जितना जल्दी डालेंगे, उतना ही उन्हें आत्मनिर्भर होने में  मदद मिलेगी। जैसे बच्चों को मॉल्स, सिनेमाघर वगैरह लेकर जाते हैं, कभी कभी उन्हें बैंकों में भी लेकर जायें ताकि वो बैंकिंग  हैबिट्स सीख सकें और आने वाले समय में शिक्षा ऋण आदि सुविधाओं के बारे में आत्मविश्वास से निर्णय ले सकें।

उस्तादजी की छत्रछाया बनी रहेगी अपने पर तो मिलवाते रहेंगे आपको  :)

56 टिप्‍पणियां:

  1. हर नए ब्लोग के साथ एक बैंक खाता मुफ्त करा दो न. जिसके 2 ब्लॉग उसके २ खाते, जिनके सम्मिलित ब्लॉग उनके जोइंट खाते, जिनकी कवितायें चोरी की वे "आप जी दी सेवा लई", कभी-कभार पोस्ट लिखने वालों को नॉन-रोजी-दन्त खाता, बेनामी टिप्पणीकारों को ऊपर-ज़ब्ती (ओवरसीज़), जिनकी रोज़ तू-तू-मैं-मैं, उनका समाशोधन ... आदि. अपने प्रधानजी तो एक्स बैंकर ही हैं, वो भी "आरक्षित किनारे" (रिज़र्व बैंक) वाले, सिफारिश चल जायेगी.

    इस पोस्ट से याद आया कि कई महीनों से असली-नकली दोनों उस्ताद जी की कोई पोस्ट नहीं आयी, सुना था कि उनके दुश्मनों की तबियत भी ढीली चल रही थी.

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  2. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  3. बड़ी रोचक जानकारी छनकर आने वाली है, उस्ताद जी से मिलवाते रहियेगा।

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  4. आज पता चला कि आपके पास चालू लोग ज्यादा आते है?
    यहाँ भी घरवाली बाहरवाली का चक्कर।

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  5. चलिये आप आये तो सही और आये भी तो क्या खूब आये. जब तक उस्ताद जी नहीं आते तब तक दोनों को सम्भालिये :)

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  6. सही ज्ञान बाँट रहे हो गुरु !

    महीने में एक पोस्ट.... ऐसी भी क्या कंजूसी ?
    गज़ब अभिव्यक्ति है ...एकदम खालिस स्वदेशी ! सुबह सुबह आनंद आ गया यार !

    और हम जैसे कस्टमर का क्या करोगे जो चालू भरपूर है मगर वैसे घरेलू है ! हम तो अपने संजय के पास ही जायेंगे !

    तुम्हारी आपबीती पढ़कर, एक दिन तुम्हारे बैंक में चुपचाप बैठकर देखने का मन हो रहा है यार !

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  7. बगिया में पीयू पीयू करे रे कोयलिया
    बैंकिया में पीयू पीयू कुटिल खल कामी

    ...मस्त लिखले हौवा गुरू..! घर वाली बाहर वाली बतिया जे पढ़ली तs पनवां घुलउले रहली, पच्च से पीक लैपटपवे पे छलक गइल। का कही हौवा बहुते जालिम।

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  8. उस्ताद जी के वचनों की जो टीका आपने की है, उससे ‘किनारा कर लेना‘ यानी बैंकिंग अच्छी तरह समझ में आ गया है।
    हिंदी की दशा सुधारने वाले ऐसे उस्ताद सभी सरकारी विभागों में मिलेंगे।

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  9. बहुत दिनों बाद फिर से मिला वही पुराना तेवर, वही आथेन्टिक (रस) स्‍वाद.

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  10. घ्ररेलू ओर चालू का फन्डा मजेदार है, गुरू मजा आ गया हंसी 2 मे ग्यान बाट दिया ।

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  11. खाता तो खुलवा लेंगे पर ये बताइये की क्या ब्लोगरो को कुछ ज्यादा ब्याज सहूलियत आदि मिर्चा मिलेगा और जो आप के ब्लॉग के नियमित पाठक/पाठिका और टिप्पणी करता/ करती है उसे कुछ और सुविधाए मिलेंगी जैसे की आप के ब्लॉग पर टिप्पणी दे कर ही बैंक के सारे काम करवा लिए |
    घरवाले - जो ब्लॉग लिखते और पढ़ते दोनों है
    बाहरवाले - जो सिर्फ पढ़ते और टिपियाते है या जो सिर्फ लिखते है किसी और को ना पढ़ते है ना टिपियाते है
    चालू - वो ब्लोगर जो बस टिप्पणी लेने के लिए एक लाइन वाली टिप्पणी दे कर या उसके नीचे अपने ब्लॉग का लिंक दे कर गिनती बढ़ा कर आगे बढ़ जाते है
    घरेलु - जो ब्लॉग के नियमित पाठक बन हर पोस्ट ध्यान से पढ़ विचार विमर्स करते है पोस्ट के हिसाब की टिप्पणिया देते है |
    सेविंग - उन सभी लोगों का समय सेव हो जाता है जी जिनको ब्लॉग आने पहले ब्लोगर अपनी कविता गजल कहानी और विचार सुना सुना कर पकाते थे |

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  12. टाईटल से लेकर आखिरी शब्द तक मजा आ गया। बहुत दिनों बाद ऐसी पोस्ट मिली है। वर्ना हिन्दी ब्लॉग्स पढना ही छूट रहा था। अभी भी हंसी रुक नहीं रही है और संदेश भी बढिया दिया आखिर में।
    इस बेहतरीन पोस्ट के लिये आभार

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  13. और उस्तादजी का सान्निध्य आपको बना रहे ताकि ये ठंडी बयार ऐसे ही बहती रहे

    प्रणाम स्वीकार करें

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  14. अब संभालिए घर और बाहर वालियों को :)
    बढ़िया है जी. ऐसा चलता रहे तो काम का बोझ कम लगने लगे.

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  15. आपकी यह बात तो सच है कि बैंक के कार्य की जानकारी सभी को होनी चाहिए। बच्‍चों को भी एक बार अवश्‍य बैंक के बारे में बताना ही चाहिए।

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  16. kass ye gyan hame sahi time pe mila hota to aaj hamara bhi bank a/c hota
    nice post, hamesha ki tarah

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  17. मैं जब पहली बार आपके ब्‍लॉग पर आया था तभी से आपके ब्‍लॉग लेखन का कायल हो गया था। हास्‍य के फुहार छोड़ती आपकी पोस्‍ट का सदैव इंतजार रहता है। यह पोस्‍ट भी हास्‍य से भरपूर थी और पोस्‍ट के अन्‍त में आपने जो नसीहत दी है, वह भी बड़े काम की है।

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  18. bare bhaijee thora tarening-urening deven to
    apka ye 'namrashi' anuj bhi pu-p2 ban sakta hai
    ..............

    pranam.

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  19. नसीब वालों को ऐसे उस्ताद मिलते हैं..... नहीं तो कौशल मिश्र (पूर्विया) से पूछ लो .....

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  20. बाऊ जी , बडे दिनो बाद ’स्वाद सा’ आया है!

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  21. लिखा जो है वो तो है ही बढ़िया, हमेशा की तरह।
    मैं तो शीर्षक और उसके नामकरण के मोहपाश में बंधा हूँ। :)

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  22. भैया कोनो एडवांस लोन वगैरह की स्कीम भी है या नही?:) हम भी लाईन में लगे हैं.

    रामराम.

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  23. सुन्दर प्रस्तुति...
    हम अपनी बुद्धि की नहीं आपकी अभिव्यक्ति की दाद देते हैं आपका यह फायर मिस नहीं रहा। बधाई

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  24. @ स्मार्ट इंडियन:
    बड़ी खुशगवार, खुशबहार, खुशबूदार सलाह दी है जी:) बेनामी ब्लॉगर्स के लिये कौन स खाता तजवीज करते हैं?
    ऊपर वाला सबको दुरस्त रखे, असली नकली, दोस्त दुश्मन।

    @ अदा जी:
    ये ब्बात!! ये हुई न मिलियन डॉलर वाली बात। इंसान गुड़ न दे, गुड़ जैसी बात कर दे तब भी अच्छा:)


    @ सतीश सक्सेना जी:
    सतीश सेठ, जिनके अपने घर शीशे के होते हैं....:) खुद तो आपने बीस अगस्त के बाद कुछ लिखा नहीं, हम कई बार जाकर लौट आये।
    देखिये, कब मुलाकात होती है आपसे।

    @ देवेन्द्र पाण्डेय:
    का गुरू, पान की याद दिला दिये हो। बनारस की सड़कें ठीक हों, कोई हीला बने और हम भी देखें कि पीक गिरने से लैपटाप कैसा दिखता है:)

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  25. @ राम स्वरूप वर्मा जी:
    शुक्रिया सर, पसंद आया आपको।

    @ अंशुमाला जी:
    बारगेन करने में नारी का मुकाबला शायद ही कोई आदमी कर सके।
    हमारे पाठक\पाठिका हमें सेवा का मौका ही नहीं देते:)
    आपके द्वारा प्रतिपादित क्लासिफ़िकेशन बहुत जोरदार लगा। विश्लेषण करते हैं कि अपौन किस कैटेगरी में आते हैं।

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  26. देखी रचना ताज़ी ताज़ी --
    भूल गया मैं कविताबाजी |

    चर्चा मंच बढाए हिम्मत-- -
    और जिता दे हारी बाजी |

    लेखक-कवि पाठक आलोचक
    आ जाओ अब राजी-राजी |

    क्षमा करें टिपियायें आकर
    छोड़-छाड़ अपनी नाराजी ||
    Friday
    http://charchamanch.blogspot.com/

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  27. "घरेलु हो तो इधर आ जाओ चालू है तो उधर जाओ" हिंदी दिवस पर विशेष! हा हा हा. क्यों आपके यहाँ सिंगल विंडो कांसेप्ट लागू नहीं है?

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  28. तपती लू हो या ठंढी बयार...हंसी अपना रास्ता ऐसे ही ढूँढती रहे..चाहे आपको घर वाली और बाहर वाली दोनों दोनों को संभालने में पसीने बहाने पड़ें..

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  29. @ अन्तर सोहिल:
    क्यों भाई, हिन्दी ब्लॉगिंग पढ़नी क्यों कम हो गई? इत्ता तो गर्दमगर्दा होता रहता है, और क्या चाहिये? :) अकेली चाय वाला ऑफ़र पसंद नहीं आया तो भाई बिस्किट और बढ़ा देते हैं मीनू में, अब तो हाँ कर दे मेरे यार:)

    @ अभिषेक ओझा:
    क्यों भद्द पिटवा रहे हो मेरी, देखने का परमिट मिला है सिर्फ़ अपने को:) यूँ भी हम कोसलाधिपति के चेले हैं।

    @ अजीत गुप्ता जी:
    असली उद्देश्य यही था जी, और अपना अनुभव है कि अच्छी सलाह हर कोई बेशक न माने लेकिन जिस किसी ने भी मान ली वो इसे आगे फ़ारवर्ड करेगा\करेगी और सिलसिला चलता रहेगा।

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  30. @ दीपक सैनी:
    लगता है फ़िर से एक्सचेंज बैठ गया है:) बैंक एकाऊंट नहीं है तो जरूर खोलो, अपना भी और परिवार के सदस्यों का भी। एक बात मशहूर है कि forced saving is real but easy saving. बच्चे छोटे हैं, महीने दर महीने वाला खाता खोलो उनका। सस्नेह।

    @ घनश्याम मौर्य:
    धन्यवाद घनश्याम जी।
    समय मिलने पर आपके ब्लॉग पर ’बन्दर का पंजा’ वाली पोस्ट पर मेरी शंका का निवारण करियेगा कभी।

    @ नामराशि:
    हमें ट्रेन्ड हो लेने दो, तुम्हारी ट्रेनिंग फ़िर सही। लेकिन बदले में हमें अपनी विनम्रता और बात को सलीके से कहने की कला सिखानी पड़ेगी। डील पक्की?

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  31. @ दीपक बाबा:
    नसीब वाले हो हम हैं ही, इसमें कोई शक नहीं। कौशल भाई से क्या पूछना, ’जय बाबा बनारस’ कह देना हमारी तरफ़ से।

    @ ktheLeo:
    हम भी लगे हैं बंधु, स्वाद-सा को स्वाद में कन्वर्ट करके ही रहेंगे:)

    @ अविनाश:
    काम की चीज ढूँढ ही लेते हो:) इस पोस्ट पर मौन की उम्मीद(आशंका) थी वैसे।

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  32. @ ताऊ रामपुरिया:
    है न ताऊ, लोन की स्कीम है लेकिन समीर जी से और भाटिया जी से ’आल क्लियर’ ’एन.ओ.सी’ वगैरह वगैरह लाने पड़ेंगे:)

    @ P.N. Subramanian ji:
    है सर सिंगल विंडो कंसेप्ट भी, आधा अधूरा सा।

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  34. जिस अंदाज़ में तेवर के साथ रचना प्रस्तुत की है आपने ... मज़ा आ गया ....

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  35. हिन्दी दिवस पर अपना ईमानदार योगदान देने को हम दो रोज गायब क्या हुए चुप्पे से एक पोस्ट डाल दी और वो भी हमारे विभाग की.. अपनी तो और बुरी हालत है संजय बाउजी, अपने लिए तो न घरवाली, न बाहरवाली, न समाशोधन, न आशोधन (रेकोन)... मज़ा तो तब आया जब मुझे प्रथम पुरस्कार दिए जाने की घोषणा के लिए मेरे विभाग का नाम पूछा गया तो जनाब उच्चारण भी नहीं कर पाए. हारकर १४ सितम्बर के पहले ही मेरे विभाग का नाम अंग्रेज़ी में ही लिखा गया उर मुझे भी सख्त हिदायत दी गयी कि अंग्रेज़ी ही में ही नाम बोलना है!!
    धन्य हैं उस्ताद जी! देकेहें कब उनके दर्शन हो पाते हैं.. आई मीन आपके दर्शन के साथ बोनस में!!

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  36. सर जी,
    धाँसू पोस्ट.
    मज़ा आ गया.
    उस्ताद जी को देखने दिल्ली आना ही पड़ेगा.

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  37. @ रश्मि रविजा:
    हम तो खून-पसीना बहाने के बहाने ढूँढ़ते ही रहते हैं जी:)

    @ ojaswi kaushal & uljheshabd:
    बहुत बहुत धन्यवाद जी।

    @ चला बिहारी...:
    सलिल भैया, ईनाम की बधाई और हमारा इन्विटेशन इज़ विदाऊट लिमिटेशन क्लॉज़। किसी भी दिन आईये पोस्ट लंच सैशन में, स्वागत है।

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  38. ओह तो ये चालू का चक्कर था जो कम पोस्टें लिख रहे हैं.....चालू लोगो के साथ अब घरेलू भी आपके जिम्मे आ गई है सो मन खिला रहेगा और उम्मीद करता हूं कि पोस्टें भी बढ़ेंगी.....

    पर अपनी एक मुसीबत है खाता तो है पर चालू नहीं.....बचत खाता तो है पर बचत नहीं, वैसे भी सैलरी जो पूरी न खर्च करे वो इंसान क्या.....अब बातइए कैसे बचत की जाए।

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  39. आप कमाल हो जी घरवाली बाहरवाली दोनों संभाल रहे हो ... यहाँ एक घरवाली नहीं संभली जाती ...

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  40. एक बात तो है.... आपकी अदा ही निराली है.... बधाई हो....

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  41. संजय भाई, कई दिनों से नेट देवता कुपित थे...सो अफ़सोस है कि उस्ताद जी से मुलाक़ात देर से हो पायी! बड़े घुटे हुए हैं आपके उस्ताद जी! विभाजन की कहानी भी क्या खूब है!!

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  42. ओह! गजब ढहा दे रहे हो संजय भाई.
    आपके रोचक धाराप्रवाह लेखन को नमन.
    आपके चुटीले व्यंग्यों को नमन.
    अंत में आपकी बच्चों को बैंक की जानकारी देना
    व उन्हें बैंकिंग में रूचि लिवाने की सलाह देना
    तो बहुत बहुत अच्छा लगा.

    मैं आपका अपने ब्लॉग पर इंतजार करता रहता हूँ.
    आपका प्रेम और स्नेह मेरी पूँजी है.

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  43. टाइटल से कन्फ्यूजन तो हुआ , दोनों अंदाजे गलत निकले

    पहला : हिंदी में पीयू पीटू ऐसा लगता है जैसे "पीयूं और पीटूं" हो :))
    दूसरा : अंगेजी में PUP एक एक्रोनिम भी है [ potentially unwanted program जैसे Trojans, spyware and adware.]

    लेकिन मेरे लिए जानकारी पूर्ण पोस्ट तो है ... सच्ची :)

    अंशुमाला जी ने गजब का वर्गीकरण किया :)

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  44. संजय जी,
    बहुत रोचक पोस्ट.
    चालू और घरेलु,घर वाली और बाहर वाली,बहुत सुन्दर शब्दों का प्रयोग किया है आपने.
    मज़ा आ गया.

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  45. लगता है आप आजकल बहुत व्यस्त चल रहें हैं शायद.
    मेरे ब्लॉग पर आपका इंतजार है.
    नवरात्रि पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ.

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  46. रोचक अंदाज में किया गया व्यंग्य , हिंदी की स्थिति को भी बता दिया ।

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  47. पूरी छुट्टी बीत गई कुछ लिखा नहीं..!

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  48. संजय @ मो सम कौन ? जी...आज पहली दफा आपको पढ़ने का अवसर प्राप्त हुआ...बैंकिंग प्रणाली से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियों का समावेश बेहतरीन शब्दों की चाशनी में डूबा सा नज़र आया....
    साधूवाद है आपको......

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  49. bakhia udhed jaankari bina R.T.I.ke....

    jai baba banaras......

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