(गूगल से साभार)
तुम हो जैसे अथाह जलराशि,
और मैं हूँ
एक बिना पतवार की नौका।
पूरी तरह से,
तेरी मौजों के सहारे।
रहने दे मेरा वज़ूद,
या मिटा दे मुझे,
सब अख्तियार हैं तुझे।
बल्कि खुश होता हूँ हमेशा,
जब भी ऐसा सोचा कि
मुझे मिटाकर देखना कभी,
तुझमें ही खो जाऊँगा,
औरतुझमें ही घुल जाऊँगा।
फ़िर कैसे अलग करोगे भला?
मुझे मुझ से, मुझे खुद से......
अब ये फ़ूट ही गई है तो आलोचनाओं से डरकर मैं भी फ़ूट लेता हूँ, काहे से कि अपना मानना है कि आलोचना सिर्फ़ की जानी चाहिये, ली नहीं जानी चाहिये। लौटकर देखता हूँ, आप सबको तो:)