(गूगल से साभार)
तुम हो जैसे अथाह जलराशि,
और मैं हूँ
एक बिना पतवार की नौका।
पूरी तरह से,
तेरी मौजों के सहारे।
रहने दे मेरा वज़ूद,
या मिटा दे मुझे,
सब अख्तियार हैं तुझे।
बल्कि खुश होता हूँ हमेशा,
जब भी ऐसा सोचा कि
मुझे मिटाकर देखना कभी,
तुझमें ही खो जाऊँगा,
औरतुझमें ही घुल जाऊँगा।
फ़िर कैसे अलग करोगे भला?
मुझे मुझ से, मुझे खुद से......
अब ये फ़ूट ही गई है तो आलोचनाओं से डरकर मैं भी फ़ूट लेता हूँ, काहे से कि अपना मानना है कि आलोचना सिर्फ़ की जानी चाहिये, ली नहीं जानी चाहिये। लौटकर देखता हूँ, आप सबको तो:)
यह पहला आलोचना तीर………
जवाब देंहटाएंमिट के मिलने के बहुत सपने सज़ा रखे है। शुभकामनाएँ
पहले तो लगा की गलत जगह आ गया, लेकिन जगह तो सही है
जवाब देंहटाएंअरे वाह आप तो कवि बन गए
मुझे मिटाकर देखना कभी,
तुझमें ही खो जाऊँगा,
और तुझमें ही घुल जाऊँगा।
फ़िर कैसे अलग करोगे भला
शुभकामनाएँ
पहली बार आपकी कविता पढ़ी
जवाब देंहटाएंअच्छी लगी
मुझ से ही तो तुझ है, वरना सब एकाकार.
जवाब देंहटाएंखतरनाक विचार ....जूनून कहते हैं इसे :-)
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें संजय भाई !
घट में जल है और जल में घट है
जवाब देंहटाएंफूटा घट जल जलहिं समाना (संत कबीर)
रंग बदलने के लक्षण तो तभी दिखने लगे थे जब ब्लॉग का रंग बदला था। यह यात्रा जारी रहे
कविवर भागा-दौड़ी की आवश्यकता नहीं... अच्छा तो लिखा है :)
जवाब देंहटाएंपरम से एक होने की इच्छा जागी है तो प्रयास जारी रखें, प्रसाद बरसेगा!!
जवाब देंहटाएंसंकेत : तुम हो जैसे अथाह जलराशि, ........ मुझे मुझ से, मुझे खुद से.
जवाब देंहटाएं@ आज तो सचमुच में आपके भीतर 'मो सम कौन कुटिल खल कामी' के रचयिता की आत्मा प्रविष्ट हो गयी है.
... प्रस्तुत कविता में कविवर सञ्जय अनेजा जी ने एक 'विचित्र दर्शन' को बड़े ही सीधे उपमान से समझाया है. कवि सञ्जय कहते हैं कि मैं तो बिना पतवार वाली नौका की तरह हूँ जो विशाल सागर में पड़ी है. विशाल सागर की इच्छा है कि वह नौका का स्वतंत्र अस्तित्व बनाए रखे अथवा उसे अपने में विलीन कर ले.
सब कुछ उसके हवाले है, मतलब उस परमात्मा के हवाले है वह चाहे तो मुझे मेरी आत्मा के साथ इस शरीर में रहने दे अथवा मेरे अंश का स्वयं में तादात्म्य कर ले. वह अंशी जो है. मैं उसी का अंश तो हूँ.
साहित्यिक सौन्दर्य :
१. 'नौका और अथाह जलराशि' का बिम्ब आध्यात्मिक दर्शन को व्याख्यायित करने के लिये सर्वोत्तम माना जाता है.
२. 'मुझे मुझ से, मुझे खुद से' पंक्ति में कवि द्वारा उलाहना के दर्शन तो होते ही हैं साथ में मजबूर करते हैं चिंतन को कि 'दुर्घटनाओं से क्या घबराना'
३. साधकों का मनोबल बढ़ाता काव्यमय विहार-प्रवाह.
प्रिय संजय भाई,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रस्तुति ने मन को मोह लिया.
'प्रतुल' जी की टिपण्णी ने आपकी अनुपम प्रस्तुति में और भी रस घोल दिया.
नौकाएँ तो हम सभी की है.अब देखे किसको प्रभु अपनाते हैं,किसे ठुकराते हैं और किसे अपने में मिलाते हैं.
आप जल्दी मेरे ब्लॉग पर आतें हैं,तो एक लाइन की टिपण्णी वर्ना लाइनों की संख्या दिनों के हिसाब से.
अब जैसी मर्जी हों कीजियेगा,नई पोस्ट आपका बेसब्री से इंतजार कर रही है मेरे प्रिय 'तो सम कौन चुटील ...'.
मै कही कवि ना बन जाऊ तेरे ---------
जवाब देंहटाएंये गाना कब से गुनगुनाने लगे |
कुछ सवाल
ये पहला प्रयास है
या पहले से ही डायरिया भर रखी है कविताओ से |
कविता में रूचि है
या बस इस विधा में हाथ आजमा रहे है
कविता लिखने में आज रूचि पैदा हुई
या पहले से ही महारत थी बस छुपा कर रखा था |
सिर्फ ब्लॉग पर लिखना है
या किताब भी छपवाने का इरादा है |
सिर्फ कविता लिखते है
या शायरी गजल भी लिखते है |
इसी ब्लॉग पर लिखेंगे
या इसके लिए एक अलग ब्लॉग बनाने वाले है |
तारीफ चाहिए
या आलोचना भी चलेगी |
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ये सब तो मजाक रहा :)))
कविता में तो अपनी समझ ज्यादा नहीं है पढ़ा और जितना समझ आया उस हिसाब से अच्छा लगा |
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जवाब देंहटाएंजो कुछ मैं कहना चाहता था अंशुमाला जी पहले ही कह गयी हैं.
जवाब देंहटाएंआलोचना -
जवाब देंहटाएंफीड पूरी नहीं आ रही है। आधी-अधूरी फीड से मोबाईल में पढने में परेशानी महसूस कर रहा हूँ।
प्रणाम
इतना तो इश्क-ए-यार में खो जाना चाहिये
जवाब देंहटाएंतस्वीर-ए-यार खुद में नजर आना चाहिये
प्रणाम
बिना पतवार की नौका बनते ही कविता पर उतर आये ...
जवाब देंहटाएंबढ़िया है !
नया पंगा..........कविता से......
जवाब देंहटाएंबहुत खूब! ....आज तो एक नए ही रंग में हो!
जवाब देंहटाएंKavita to bahut achhee hai!
जवाब देंहटाएंसंजय बाऊजी!
जवाब देंहटाएं"मो सम कौन कुटिल, खाल कामी" के बाद "मिथ्यावादी" भी जोड़ ही लो अब आप. याद है एक बार आपने ही कहा था कि ये कविताई मेरे बस की बात नहीं है...
अगर उस बात को सच मानूं तो आपकी यह "लघुकथा" बहुत अच्छी लगी, खासकर आध्यात्म और दर्शन के रस में पगी यह रचना सराहनीय है!!
सलिल जी, One up for this.
जवाब देंहटाएंमुझे भी 'अति-लघु कथा' और उसका 'दीर्घ चिंतन' अच्छा लगा।
गर्मी में 'गागर' खरीदी गई है, दिखने लगा है। :)
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जवाब देंहटाएंबह निकली न धारा काव्य रस की, कविता चीज़ ही वो है जिसे आप बहने से रोक नहीं सकते! बधाई सुन्दर अभिव्यक्ति के लिये!
जवाब देंहटाएंबिना पतवार के हम व्यक्तित्वों के सागर में ऐसे ही डोलते हैं।
जवाब देंहटाएंये नाव मैं बैठकर आप नहाने गए थे। वहां जाकर कविता करने लगे। संभलकर रहना पड़ेगा।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबल्कि खुश होता हूँ हमेशा,
जवाब देंहटाएंजब भी ऐसा सोचा कि
मुझे मिटाकर देखना कभी,
तुझमें ही खो जाऊँगा,
और तुझमें ही घुल जाऊँगा।
ऐसी दशा में ‘अद्वैत‘ हो जाना अच्छा संकेत है।
रचना में दार्शनिकता के तत्व मौजूद हैं।
sahi kaha mitane ki koshish bhi hogi to milna to usi me hai
जवाब देंहटाएंरचना में दार्शनिकता के तत्व मौजूद हैं। धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंबढ़िया. पहले मुझे डाउट हो गया कि कविता भी तो साभार नहीं है :)
जवाब देंहटाएं[सीरियसली मत लीजियेगा. मजाक में कह रहा हूँ.]
ब्लागिग जो ना कराये थोडा है . कभी लेखक कभी शायर
जवाब देंहटाएंएक कविता पढ़ाने के लिए इतने सारे लेख लिखे!
जवाब देंहटाएंबुढ़ौती में ऐसने विचार न आई ..
सबकुछ तेरा
जैसे चाहे वैसे रख
क्या लागे है मेरा
ब्लॉग रंगीन, दिल संगीन या इलाही ये माज़रा क्या है!
...वैसे कविता अच्छी लगी और हो तो छाप दीजिए, ना हो तो.. लिखते क्यों नहीं..?
आप तो गद्य से पद्य मैं आ गये हमें तो इसकी समझ ही नहीं । क्या टिप्पणी दैं सिवाय इसके कि-
जवाब देंहटाएंबेहतरीन...
मुझे मिटाकर देखना कभी,
जवाब देंहटाएंतुझमें ही खो जाऊँगा,
औरतुझमें ही घुल जाऊँगा।
फ़िर कैसे अलग करोगे भला?
मुझे मुझ से, मुझे खुद से......
ये अलोचना से डर कर नही भागे बल्कि मिठाई खिलाने के डर से भागे हो। वाह क्या खूबसूरत एहसास हैं। बधाई।
बड़ी देर भई नंदलाला..................
जवाब देंहटाएंअभी तक लौटे नहीं हो क्या ?
बहुत खूब... अच्छा लगा ये अन्दाजे बयाँ।
जवाब देंहटाएं@ सुज्ञ जी:
जवाब देंहटाएंपहला तीर ही आपकी तरफ़ से:) मंजूर है। शुभकामनाओं के लिये धन्यवाद।
@ Deepak Saini:
मौसम है प्यारे खरबूजों का,हमने भी रंग बदल लिया:)
@ Rahul Singh ji:
द्वैत-अद्वैत का द्वन्द्व सनातन है सर।
@ सतीश सक्सेना जी:
डरा रहे हो भाई साहब? ओके, डर गया:)
@ Smart Indian - स्मार्ट इंडियन:
जवाब देंहटाएंआप तो सर्वज्ञ हैं जी, रोग, लक्षण, उपचार सब जानते हैं:)
@ Kajal Kumar ji:
काश, आपके कमेंट का इंतज़ार किया होता:)
@ सम्वेदना के स्वर:
आपकी शुभेच्छाओं के लिये आभारी हूँ।
@ प्रतुल वशिष्ठ:
प्रतुल भाई, बने रहना साथ। आगे भी जरूरत पड़ेगी जब कालिदास वाली कहानी दोहराई जायेगी:) सच में अर्श से फ़र्श पर पहुंचा दिया है आपने, ऐसे ऐसे शानदार अर्थ निकालकर।
@ Rakesh Kumar ji:
आप जो सजा देंगे, मान लेंगे सर। हाजिर होता हूँ दरबार में।
chupe rustum kah saktee hoo na mai...... ?
जवाब देंहटाएंbehatreen ....
shubhkamnae ....
@ anshumala ji:
जवाब देंहटाएंइत्ते सवाल तो कसाब से भी न पूछे गये होंगे। प्रयास पहला तो नहीं ही है और ’कविता’ में रुचि बहुत पुरानी है:) यदा कदा यहीं झेलना होगा, काहे से कि प्रकाशकों का अभी इतना बुरा समय नहीं आया कि हमारा लिखा छापें। और ब्लॉग से मेरी और मेरे बाप दादा की तौबा। आलोचना दौड़ेगी, सफ़ाई का मौका मिलना चाहिये बस। सीरियसली।
अच्छा लगा आपको प्रयास, यह समझ आया। धनबाद आपका।
@ VICHAAR SHOONYA:
भाई, जो कुछ अंशुमाला जी को कहा है, वही तुम भी समझ लो(धनबाद के बिना) । अपना तो पुराना नाता है यारी दोस्ती वाला:)
@ अन्तर सोहिल:
ले लो यार अब नया मोबाईल।
उसके इश्क में खोने के बाद इतने-उतने की कहाँ समझ रहती है यार। देखो, कहाँ तक खोना पाना होता है...
@ वाणी गीत:
जवाब देंहटाएंमौका ही अब लगा है।
@ Archana:
कविता तो पुरानी है..
@ SKT:
शुक्रिया त्यागी साहब।
@ kshama ji:
आपका विशेष आभार।
@ चला बिहारी ब्लॉगर बनने:
एक उपाधि ’रहस्यमयी’ की दी थी आपने, प्रवाल भित्ति की तरह जम गई है मुझ पर। अब ’मिथ्यावादी,’ अनुज-वधू चरण-स्पर्श करके मानेगी। कोई तो दिग्गज मिला हाँ में हाँ मिलाने वाला:)
@ Avinash Chandra:
जवाब देंहटाएंवाह राज्जा, तुम भी सेंक लो गरम तवे पर रोटी। और अब कुछ भी खरीदने की आदत छूट गई है, हैं कुछ ऐसे भोले से प्यारे से लोग जो गागर, सागर, छिटकी बूंदें वगैरह सब भेंट में दे देते हैं:)
@ ktheLeo:
आशा नहीं थी कि आप जैसे सुधीजनों से तारीफ़ मिलेगी। शुक्रिया सर।
@ प्रवीण पाण्डेय जी:
मंज़िल मिले तब तो डोलना सार्थक हो।
@ राजेश उत्साही जी:
बिल्कुल संभल कर रहना होगा जी, सुरक्षा में ही सुरक्षा है।
@ अदा जी:
जवाब देंहटाएंहाँ हमें मंजूर है, आपका ये कमेंटवा..(रिमिक्स है आपके ही गाये गाने का)
हम कब्जा क्या खाक करेंगे, हम तो खुद कब्जाये गये हैं। यूँ भी कब्जा वो करे जिसे खुद पर, खुदा पर और अपने नाखुदा पर भरोसा न हो,...हाँ नहीं तो..!
ज्यादा इंटैलीजैंट होने से हम बुद्धू ही भले हैं। एक नया विज्ञापन आयेगा कुछ दिन में, ’बुद्धू’ अच्छे हैं, देख लेना आप।
@ mahendra verma ji:
आपकी नजर से होकर गुजरी रचना तो मूल्य बढ़ गया इसका, शुक्रिया वर्मा जी।
@ somali:
सहमति के स्वर के लिये आभार स्वीकारें।
@ Patali-The-Village:
धन्यवाद आपका भी।
@ Abhishek Ojha:
सच में लिखना रह गया था, अब देखी जायेगी:)
@ dhiru singh {धीरू सिंह}:
जवाब देंहटाएंयही तो मजा है भाईजी, कोई ’सखेद वापिस’ का नोट नही:)
@ देवेन्द्र पाण्डेय:
बुढ़ौती में ही तो ऐसे विचार आते है कविशिरोमणि:)
@ सुशील बाकलीवाल जी:
इससे बेहतरीन टिप्पणी क्या होगी जी? धन्यवाद।
@ निर्मला कपिला जी:
भागा थोड़ी ही था, सरकारी ड्यूटी बजा रहा था। दिल्ली आना हो कभी तो इस नाचीज को दर्शन का मौका दीजियेगा, फ़िर कहियेगा मिठाई से कौन डरता है:)
@ Deepak Saini:
लो प्यारे, तुमने पुकारा और हम चले आए(एक दिन पहले ही) :)
गूगल बाबा की असीम अनुकम्पा से हमारी पिछली पोस्ट दो दिनों से आधी ही नजर आ रही है आधे से गूगल बाबा को पत्ता नहीं का दुश्मनी हो गई है जो पोस्ट पर दिखने के लिए तैयार ही नहीं है पिछले दो दिनों से कम्बखत को बार बार ठीक करती हूँ वो फिर से आधी हो जाती है, सोचा जाने दो अब न करुँगी अब पढ़ने के लिए कौन आएगा पर कसम से आप की मिसिज टाइम बड़ी अच्छी रही हर बार की तरह | इतने दिन बाद भी पोस्ट पढ़ने के लिए पटना आप का हुआ धनबाद भी आप को लौटा दूंगी जो संभव हो तो एक बार फिर से पढ़ ले ( यदि फिर से आधी नहीं हो गई हो तो ) शायद आप की टिपण्णी बदल जाये अभी तो उसका अगला भाग भी लिखना है |
जवाब देंहटाएंहा एक बात कहना भूल गई थी अब तो ब्लोगरो के साथ ही अखबार वाले भी आप की पोस्टे चुराने लगे है बधाई हो हम लोगो की पार्टी तो बनती है | पर एक बार ठीक से पढ़ लीजियेगा की पूरा माल आप का ही उठाया है या कुछ अपना जोड़ दिया है क्योकि हम लोगो के माल के साथ आपना कुछ जोड़ देने की इन लोगो को बड़ी बुरी बीमारी है |
जवाब देंहटाएंhttp://blogsinmedia.com/2011/05/%E0%A4%AA%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%BE-%E0%A4%A8-%E0%A4%B2%E0%A5%88-%E0%A4%A6%E0%A5%88%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%95-%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%97%E0%A4%B0%E0%A4%A3-%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82-%E0%A4%AE/
@ उपेन्द्र ' उपेन ':
जवाब देंहटाएंधन्यवाद उपेन्द्र भाई।
@ Apanatva:
सरिता दी, कह चुकी हैं आप:) और अधिकार है आपका, इसमें पूछना क्या?
@ anshumala ji:
धनबाद, पटना लेकर क्या करेंगे हम तो दिल्ली ही छोड़ने को बैठे हैं:) मि.टाईमिंग का स्पष्टीकरण आपके ब्लॉग पर दे चुका।
मेरा सामान चोरी हो गया और लोग पार्टी मांग रहे हैं। कैसे कैसे शुभचिंतक मिले हैं:)) इसीलिये तो साहिर ने कहा था, "ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो..." खैर, आप, आपके साहब और प्रिंसैस ब्यूटीफ़ुल 'पार्थवि’@’अनामित्रा’का एक डिनर ड्यू रहा। अखबार वाली खबर से मुझे कैसा लग रहा है, इसे जाने देते हैं लेकिन मेरे पेरेंट्स को जरूर अच्छा लगेगा। परसों घर था तो माँ कह रही थीं कि पहले लैपटाप था तो पढ़ लेते थे और अब नहीं पढ़ पा रहे हैं। शुक्रिया ये खबर देने के लिये।
मीरा बाई वाला समर्पण दिख रहा है
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