घटनास्थल: दिल्ली का एक स्टेशन
समय: सुबह के सवा आठ(हापुड़ पैसेंजर के आने का समय)
घोषणा की गई कि हापुड़ से चलकर वाया गाजियाबाद तिलक ब्रिज जानेवाली हापुड़ पैसेंजर लगभग चालीस मिनट लेट आयेगी, रेलवे की इस घोषणा के जवाब में भीड़ में से कुछ लोगों ने मंत्रीजी के साथ(वाया उनकी माताजी व बहनजी) रिश्तेदारी स्थापित करने की घोषणा की, ताश पार्टी पूरी मुस्तैदी से अपने कर्म निष्पादन में जुट गई, अर्थलोभी शेयर बाजार की ऐसी तैसी करने लगे, भंवरे कलियों पर मंडराने लगे, खेल प्रेमी खेल समीक्षा में और फ़िल्म प्रेमी फ़िल्म समीक्षा में पूरी तन्मयता से लग गये। ये देश है वीर जवानों का, अलबेलों का मस्तानों का। ऐसे ऐसे लोग भी जिनसे अपना घर भी नहीं संभलता, बाजपेयी जीको कोसने लगे। कहने का तात्पर्य ये है कि एक छोटे से स्टेशन पर जैसे सारी ब्रह्मांड अपनी सारी विविधताओं के साथ सिमट आया था(स्नैप शाट शायद इसी को कहते हैं)। अब जी सारे अपने अपने कामों में तल्लीन थे, और हम भीड़ के बीच अकेले खड़े रेल की पटरियों को देख रहे थे। कितना लंबा साथ है इनका, लेकिन दूरी हमेशा बराबर, साथ साथ चलते रहो पर जहां मिल लिये समझो डिरेलमेंट होना पक्का है।
अचानक ध्यान साथ के बैंच पर गया। एक देहाती प्रौढ़ ने जेब से बीड़ी का बंडल निकाला, एक एक करके तीन चार बीड़ी निकाल कर कुछ जांच की और एक बीड़ी जलई ली, जिगर मां बड़ी आग है।
मैंने कहा, “भाई साहब, ये तो सारी आपकी ही हैं, फ़िर छांटने की क्या जरूरत थी? आंख मीच कर भी कोई एक बीड़ी निकाल सकते हैं।”
जवाब मिला, “कोई कोई बीड़ी निरी फ़ोकी होती है, स्वाद नहीं आता।”
मैंने फ़िर छेड़ा, “तो फ़िर वापिस क्यूं रख ली, फ़ेंक देते।”
वो बोला, "भैया, तुम ठहरे सिगरेट पीने वाले, तुम क्या समझोगे। सिगरेट वाला हो सकता है कि शर्म के कारण दूसरे से न मांगे, पर बीड़ी पीने वाला जरूरत होने पर दूसरे हमकश से बीड़ी मांग लेता है और वो भी ऐसे जैसे हफ़्ता वसूल रहा हो। तो ये जो हल्की बीड़ी है, ये उनके लिये रख लेते हैं।”
हमने कहा, “भाई जी, आप तो बहुत समझदार हैं।
इतने में साथ बैठे एक सूटेड-बूटेड सज्जन बोले(जरूर बैंक वाले रहे होंगे), “ये बीड़ी बंद करो।” और लगे हाथों मुझे भी कड़वा-कड़वा देखने लगे।
अब हमारा बीड़ीबाज बोला, "क्यूं बुझा दें यह बीड़ी?"
"धुंआ आ रहा है।"
इतने में उसने एक कश और भरा और मुंह दूसरी तरफ़ करके धुंआ छोड़ दिया और बोला, "ले भाई, इब न आयेगा धुंआ तेरी तरफ़।"
साहब बोले, "धुंआ क्या तेरा नौकर है जो तेरी बात मानेगा? देख फ़िर इधर आ रहा है, तूने बीड़ी पीनी है तो परे जाकर पी ले।"
जवाब आया, "तुझे धुंयें से परेसानी है तो तू परे चला जा। और मैं क्या तेरा नौकर हूं जो तेरी बात मानूं?
अब साहब ने नये नये बने धुम्रपान कानून का सहारा लेकर धमकाने की कोशिश की, “अभी सामने जी.आर.पी. की चौकी में जाकर रपट लिखवा दी तो फ़िर सजा मिलेगी। चल मेरे साथ।
देहाती भी खड़ा हो गया, "चल दिलवा सजा।"
अब हमारे जैसे बहुत से तमाशबीन आसपास इकट्ठे हो गये थे। थोड़ी सी गरमा गरमी के बाद दोनों सूरमे चल दिये जी आर पी चौकी में। सामने दूसरे प्लेटफ़ार्म पर चौकी थी। हम सोचने लगे कि एक की बीड़ी और दोनों की गाड़ी अब छूटी ही छूटी। अब साहब दोनों चौकी में घुसे और उल्टे पांव वापिस आ गये। लौटने पर मैंने साहब से पूछा, "क्या हुआ, रिपोर्ट नहीं लिखी उन्होंने?" वो बोले, मैंने विचार बदल दिया। बात ये है कि गया था बीड़ी की शिकायत लिखवाने, वो अंदर बैठे सिगरेट पी रहे हैं। मुझे समझ नहीं आता सरकार ऐसे कानून बनाती ही क्यूं है?"
एक अप्रैल से सभी के लिये अनिवार्य शिक्षा का कानून बनाकर सरकार ने अपनी जिम्मेदारी पूरी कर ली है। प्रजातंत्र में सरकार प्रजा से दूरी बनाकर कैसे रह सकती है, आखिर fore, buy and off the people का मोटो कैसे भूल सकती है। पब्लिक रोयेगी तो सरकार भी रोयेगी, पब्लिक हंसेगी तो सरकार भी हंसेगी। पब्लिक अप्रैल फ़ूल खेलेगी तो सरकार इतनी निर्मोही थोड़े ही न है कि अप्रैल फ़ूल-अप्रैल फ़ूल नहीं खिलायेगी। खिला दिया एक और अप्रैल फ़ूल। कागजों में कानून भी बन गये और देख लेना थोड़े ही दिनों में कैसी साक्षरता की महक फ़िज़ाओं में खिलेगी। और यदि असर अपेक्षानुसार न हुये तो नये उपाय, नई कमेटियां, नये पद सृजित होंगे, रोजगार के नये अवसर बढ़ेंगे(सेवानिवृत्त ब्यूरोक्रेट्स के लिये) और क्या बच्चे की जान लोगे? सरकार तो उन्नति, प्रगति, विकास करना चाहती है पर कोई करने भी दे।
हमारे गांव का एक बूढ़ा सारी उमर गांव में काटकर एक महीना दिल्ली में अपने लड़के के पास रहने गया। लौटकर आया तो एक नई आदत देखने को मिली। अब वो खड़े होकर पेशाब करता (मि. परफ़ेक्शनिस्ट की भाषा में बोले तो मूत्र विसर्जन)। गांव देहात में ये बात अच्छी नहीं समझी जाती तो लोगों ने उसे टोकना शुरू कर दिया। अब ताऊ(डिस्क्लेमर:- ये अपने वाला ताऊ बिल्कुल नहीं है, अच्छी तरह से जान लीजिये) बोला, "सुसरो, मैं तो थारे गाम नै दिल्ली बनाना चाहूं था पर कोई बनन भी दे।"
सरकार के इरादे बिल्कुल ठीक हैं जी, हमीं गलत थे, हैं और रहेंगे।
झेलो अब
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जवाब देंहटाएंबेहतरीन और रोचक!!
जवाब देंहटाएंसुसरो, मैं तो थारे गाम नै दिल्ली बनाना चाहूं था पर कोई बनन भी दे
:)
मैं तेरी रानी.....यही न दिल्ली है!! :) सुन लिए और झेल लिए जी!!
सॉलिड लिखते हो भाई!!
जवाब देंहटाएं@ कितना लंबा साथ है इनका, लेकिन दूरी हमेशा बराबर, साथ साथ चलते रहो पर जहां मिल लिये समझो डिरेलमेंट होना पक्का है। - बढ़िया ।
जवाब देंहटाएंज़िगर में आग वालों की खूब रही।
@ कागजों में कानून भी बन गये और देख लेना थोड़े ही दिनों में कैसी साक्षरता की महक फ़िज़ाओं में खिलेगी। और यदि असर अपेक्षानुसार न हुये तो नये उपाय, नई कमेटियां, नये पद सृजित होंगे, रोजगार के नये अवसर बढ़ेंगे(सेवानिवृत्त ब्यूरोक्रेट्स के लिये) और क्या बच्चे की जान लोगे? सरकार तो उन्नति, प्रगति, विकास करना चाहती है पर कोई करने भी दे।
मस्त कर दिया अल्लसुबह। रवानी देख रहा हूँ। गाना नहीं सुन पा रहा :( धीमा कनेक्सन है।
बहुत ही मस्त लिखा है भाई. एक दिन फ़ोन करता हूं आपको.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बेहतरीन पोस्ट है, संजय भाई.
जवाब देंहटाएंयह शिगूफा ही है. सालों से शिगूफा ही चला रहा है सबकुछ. कानून बना लो और उसकी ऐसी-तैसी करते रहो.
आप कोई लड़की होते तो अपने भीतर उमड़ रहे प्यार सम्मान और आदर को प्रदर्शित करने के लिए खुलकर आपका मुह चूम लेने का मन करता पर आप एक पुरुष हैं तो मर्यादित व्यव्हार करते हुए आपके गले लगने(पड़ने) का मन है। (ये मजाक है सच ना समझना । मेरा दर्द यह है की जब मैं मजाक करता हूँ लोग सीरियसली लेते हैं और जब मैं सीरियस होता हूँ लोग मजाक समझते है ।)
जवाब देंहटाएंto chalo अब सीरियस होता हूँ । fore, buy and off वाला जुमला शानदार है और पूरा लेख बहुत ही जानदार है।
@अदा जी
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ये मेरी कमी है जी,छोटी बातें ही मुझे बड़ी खुशी या बड़ा गम देती हैं।
सदैव आपका आभारी।
@समीर सर
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समीर साहब, यही नादिली है और बेदिली है:)
बिक गये जी हम तो।
शुक्रिया।
@गिरिजेश सर
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साहब, सबसे धीमे कनेक्शन हैं हम, और गाना आपके लिये थोड़े ही है। आप को तो मस्त देखकर हम मस्ता रहे हैं।
आपका धन्यवाद।
@ताऊ रामपुरिया
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फ़ोन? ताऊ कोई नई स्कीम तो न रचे है?
मैं गूंगा और बहरा हूं।
रामराम।
@शिव कुमार मिश्र जी
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शिव भैया, आभार आपका। अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखें।उत्साहवर्द्धन के लिये धन्यवाद।
@समाधिस्थ!!
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तुम्हें तो देख लूंगा!! वैसे पुरुष के साथ भी अमर्यादित व्यवहार करने की स्वतंत्रता माननीय कोर्ट दे चुकी है, अत: मायूस न हों।
@सुमन जी
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so nice of U, Sir
रे!भई मजा सा आ लिया पढ के!खूब लिख्या भाई!
जवाब देंहटाएंमस्त है भाई. यूं ही दिल खुश करते रहो - क़ानून के साथ समय भी बदलेगा और आदतें भी.
जवाब देंहटाएंअब आये हो पूरी फ़ार्म मे . अब सचिन बनने से तुम्हे कोइ नही रोक सकता . खुशदीप जी सावधान
जवाब देंहटाएं@KtheLeo;
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शुक्रिया जनाब।
@Smart Indian:
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अनुराग सर, धन्यवाद, पर हम भी बद्लेंगे क्या?
@dhiru singh:
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धीरू भैया, हमारे तो आदर्श कांबली जी हैं। पहले इम्प्रेशन मार लो, फ़िर गुड़ गोबर कर दो, यही फ़ंडा है जी अपना तो। और ये आपने अच्छा नहीं किया कि खुशदीप जी को सावधान कर दिया, उनकी ड्रामा कं. में परदा खींचने वाले की पोस्ट के लिये और ताऊ की मदारी पार्टी में रामप्यारे के ऐवज में नौकरी के लिये अप्लाई किया हुआ था। च्वाईस खत्म कर दी आपने, देखूं ताऊ कद जवाब देगा।
आभारी हूं आपका।
आज सुबह से शुरू कर लगा रहा और आपका अप्रैल 2010 पूरा किया. लगा कि कुछ ही ऐसे ब्लॉग हैं, जहां कोई भी पोस्ट हो, पहली बार हो दुबारा या बार-बार पढ़ें, बतरस का वही आनंद हर बार.
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