पटरी बदल हो गई जी बहुत, और इस बात पर चर्चा, परिचर्चा, वाद, विवाद करने वाले और बहुत से पढ़े लिखे, आलिम फ़ाजिल बैठे हैं, हम किसी खेत की मूली नहीं हैं। मूली तो फ़िर बड़ी होती है, हम तो टमाटर भी नहीं है और इस बात का ज्ञान अपने को है। लेकिन आज वाहेगुरू का शुक्रिया जरूर अदा करते हैं नहीं तो हम से बड़ा कृतघ्न शायद कोई और नहीं होगा। बात समझने के लिये ये चित्र देखना पड़ेगा।
(चित्र साभार दैनिक भास्कर)
कल एक बहुत बड़ा हादसा होते होते बच गया। कबड्डी कप के एक मैच के दौरान एक पूरे सात फ़ुट का मानव रहित विमान मैदान में गिरा। मुख्य अतिथि महोदय विमान गिरने की जगह से महज सत्तर मीटर की दूरी पर विराजमान थे। इसे कहते हैं ’बाल बाल बचना’(बोल्डनेस के आने तक इसी उदाहरण से काम चलाना पड़ेगा)।
लोग कहते हैं कि मैं पत्थरदिल इंसान हूं। मैंने तो जब से यह अखबार में पढ़ी है, मेरे दिल का चैन और सुकून सा छिन गया है। और क्या सुबूत चाहिये लोगों को मेरी संवेदनशीलता का?
आज पूरे एक दिन की छुट्टी लेकर घटनास्थल का दौरा भी किया। वहां जाने पर पता चला कि कुछ सिपाहियों को चोटें भी लगीं। कोई बात नहीं, पुलिस और फ़ौज वालों को चोट लग भी जाये तो क्या है, हैं किसलिये? यहां तो शहीद होने के बाद भी पता नहीं बाकी घरवालों को क्या क्या झेलना पड़ता है। हमने अपने स्टिंग आपरेशन के दौरान स्थानीय निवासियों से बात करनी चाही तो वहां खड़े एक स्थानीय बंदे ने एक बात और बताई कि कुछ दिन पहले भी एक मिलती जुलती भीषण घटना हो चुकी है। विवरण नीचे पढ़े:-
कुछ दिन पहले एक टू सीटर हैलीकॉप्टर दुर्घटनाग्रस्त होकर साथ के एक गांव के कब्रिस्तान में गिर गया। जैसा कि हमारे देशवासियों की खासियत है, साधारण समय में ’डिवाईडिड वी फ़ाल’ संकट के समय सभी मतभेद भुलाकर ’युनाईटिड वी स्टैंड’ हो जाते हैं। गांव के लोग सारे काम छोड़कर दुर्घटनास्थल की और भागे और राहत कार्य में जुट गये। पुलिस हमेशा की तरह वारदात के लगभग डेढ़ घंटे के बाद वहां पर पहुंची तब तक गांववासियों ने संकटस्थिति में विकट साहस, सूझबूझ दिखाते हुये हालात पर लगभग काबू पा लिया था। तब तक घटनास्थल(कब्रिस्तान) से लगभग 138 शव बरामद किये जा चुके थे और राहत कार्य जारी थे।
अब भी अगर कोई यह कहे कि अखबार में छपी हुई इस खबर के लिये ईश्वर को शुक्रिया कहकर तंग करने की कोई जरूरत नहीं थी तो पत्थरदिल वही है। अब कितनी लाशें बरामद होतीं यदि यह महज सत्तर मीटर का फ़ासला न होता? हमारी तो रूह कांप रही है जी यह सोच सोच कर।
वैसे ये खंभा नं. चार बहुत ताकतवर है और हम बहुत आशावादी हैं। आयेगा वो दिन भी जब ऐसी घटना किसी भी नागरिक के साथ होगी और सभी राष्ट्रीय स्तर के अखबार इस खबर को प्रमुखता से छापेंगे।
’हम होंगे कामयाब, हम होंगे कामयाब।
हमको है विश्वास, पूरा है विश्वास,
हम होंगे कामयाब एक दिन॥’
“जाने भी दो यारो” संभालो तुम वड्डे लोगों को, हमारी तो देखी जायेगी। हमारे ऊपर से रोज इत्ते बड़े बड़े जहाज गुजर जाते हैं, हमारी तो किसी ने न खबर छापी।
रिपोर्ट द्वारा:- खंभा सं. 90,46, 37,420वां(1970 में शायद जनसंख्या इसके आसपास ही रही होगी| नंदन नीलकेनी साहब से अनुरोध करेंगे कि यही हमारा यूनीक आईडेंटीफ़िकेशन नंबर अलाट किया जाये)।
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंईश्वर का लाख शुक्र है जी.
जवाब देंहटाएंगाना वाकई बहुत दिन बाद सुना..आनन्द आया. तो मूड ठीक हुआ!!
ईश्वर का लाख शुक्र है जी.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति। सादर अभिवादन।
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रविष्टि ! आभार ।
जवाब देंहटाएंआज पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ.... बहुत अच्छा लगा..... बहुत तारीफ़ सुनी थी आपकी....आज देख भी लिया.... आपका गानों का कलेक्शन बहुत अच्छा है..... एक गाना लूटेरे फिल्म का "मैं तेरी रानी.... तू राजा मेरा..." को मैंने अपने esnips अकाउंट में जोड़ लिया है.... और डाउनलोड भी कर लिया है..... आपका हर कलेक्शन लाजवाब है..... अब से उपस्थिति रहेगी आपके हर पोस्ट पर.....
जवाब देंहटाएंवाह, वाह. मुझे अपनी ताजी (अलिंकित)पोस्ट अब सार्थक जान पड़ रही है, जिसमें आपकी टिप्पणी देखकर यहां आया और यह जबरदस्त पोस्ट पढ़ पाया. अजय झा जी की खबरों की खबर भी याद आई. शुरुआत से आखीर तक सधा है, एक-एक शब्द, बहुत खूब.
जवाब देंहटाएंचकाचक पोस्ट है। महज ७० मीटर की दूरी पर बाल-बाल बचना। जय हो! :)
जवाब देंहटाएं