वैसे तो जी हमारी किस्मत में अब टी.वी. देखना है नहीं, पर जब कभी बिल्ली के हाथों छींका टूट जाता है तो क्लोरमिंट वाला विज्ञापन देखना बहुत अच्छा लगता है। कितनी मासूमियत से प्रश्न पूछा जाता है, “पर हम क्लोरमिंट क्यूं खाते हैं?” उतनी ही मासूमियत से झन्नाटेदार हाथ पड़ता है, “दुबारा मत पूछना।” माई-बाप, पूछेंगे नहीं तो आपकी मासूमियत का कैसे पता चलेगा?
हम जैसों को तो विज्ञापन ही सबसे रोचक लगते हैं और ज्ञानवर्द्धक भी। ट्रेंड पता चल जाता है जी आजकल टोईंग क्या है, मैको किसे कहते हैं, बिना टिकट यात्रा करनी हो तो कौन सा डियोडेरेंट प्रयोग करना चाहिये आदि आदि। वैसे भी पहले कार्यक्रमों के बीच विज्ञापन आते थे, अब विज्ञापनों के बीच फ़िलर्स के रूप में कार्यक्रम आते हैं। और फ़िर जो कार्यक्रम आते भी हैं तो जैसे हमें नीचा दिखाने के लिये ही सभी चरित्र मेकअप-शेकअप करके, डेंटिंग-पेंटिंग करवाके एक दूसरे से होड़ कर रहे हैं कि इस बंदे को नीचा दिखाना ही हमारे जीवन का उद्देश्य है।
टी.वी. की दुनिया की मानें तो दुनिया में नारी शक्ति का राज आ चुका है। ये जो घरों में काम करती बाईयां, निर्माण स्थल पर मजदूरी करती औरतें, सड़कों पर कूड़ा बीनते बच्चे और औरतें, चंद रुपयों के लिये पता नहीं क्या-क्या सहने के लिये मजबूर सी दिखती औरतें – ये सब शायद माया है, असली सच तो वही है जो चैनल्स पर धारावाहिकों और विज्ञापनों में दिख रहा है।सभी धारावाहिकों में देखेंगे तो सिच्युएशन कंट्रोल पूरी तरह से स्त्रियों के हाथ में है। डिज़ाईनर ज्वैलरी, साडि़यों से लदी, कान्फ़ीडेंस के इत्र से सरोबार पात्रायें जब डिलीवरी पर उतारू होती है(अमां डायलाग्स डिलीवरी की बात कह रहे हैं) तो कयामत जैसे आ ही जाती है, “हम ये कभी बर्दाश्त नहीं कर सकते”, “हम सब संभाल लेंगे”, “अब वही होगा जो हम चाहेंगी” वगैरह वगैरह। हम स्क्रीन के इधर बैठे हुये भी सूखे पत्तों की तरह कांपने लगते हैं। बात बात पर पर्स से चैक निकालकर दो करोड़, पांच करोड, बीस करोड़ यहां तक कि सौ करोड़ भी भरते हैं और ब्लैकमेलर या जिसको कुछ कीमत देनी हो, उसके मुंह पर मारती हैं। दस बीस लाख के चैक तो गिफ़्ट में ही या शोपिंग के लिये ही लुटा दिये जाते हैं। हम ये हिसाब लगाते रहते हैं कि कितनी ज़ीरो लिखी जाती होंगी इतनी रकम में।
एक दिन तो गजब ही हो गया, एक मॉड-मॉम ने शायद बेटी के बर्थडे पर दस लाख का चेक पकड़ाया तो हमारा छोटा साहबजादा, जिसे कार्टून चैनल्स देखते रहने पर हमारी मासूमियत से दो चार होना पड़ता है, पूछने लगा, “पापा, आपकी सेलरी कितनी है”? हम तो सन्न रह गये। झूठ बोलें तो कौए के काटने का डर और सच बोलें तो इज्जत के सेन्सेक्स की तरह गोता खाने का अंदेशा। उठे, मोटरसाईकिल की चाबी उठाई और उससे कहा कि अभी आता हूं। गये बाजार, खाने पीने का सामान खरीदा(रिश्वत ली नहीं है, पर देनी पड़ती है बहुत बार) और दो घंटे के बाद घर लौटे। अब इतने से काम में दो घंटे कैसे लग गये, ये कहानी फ़िर सही – मेरे साथ ऐसा पता नहीं क्यूं होता है, जाना होता है और कहीं, कहीं ओर चला जाता हूं।
खैर, लौटा तो उसकी आईसक्रीम उसे दिखाकर फ़्रिज़ में रखी और सामने बिठाकर उससे कहा, “अब बोल”।
बेटे ने मासूमियत से पूछा, “पापा, आपकी सेलरी कितनी है”?
मैंने जेब से क्लोरमिंट निकालीं, अपने मुंह में डाली और अपनी मासूमियत जाहिर करी और फ़िर कहा, “दुबारा मत पूछना”।
अब पता था कि रोयेगा, इसीलिये तो आईसक्रीम पहले ही ला कर रख दी थी।
बड़े-बड़े चैनल्स के प्रोड्यूसर्स, डायरेक्टर्स, प्रोग्राम मैनेजर और दूसरे जिम्मेदार लोगों, हमारी तरफ़ से तुम्हें पूरी छूट है कि हमारे जैसों के लिये कोई ढंग का कार्यक्रम बनाने के कठोर फ़ैसले लेकर अपनी अंतरात्मा को कष्ट न दो।
इजाजत है तुम्हें कि फ़ैलाते रहो जितनी गन्दगी फ़ैलानी है। तुम्हारे लिये जरूरी है कि अपना लाभ देखो और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का फ़ायदा उठाओ।
हमारा क्या है, हमारी तो कट ही जायेगी जैसे-तैसे।
:) फ़त्तू पहली बार अपनी ससुराल गया था। चाय नाश्ता करने के बाद उसने जेब से पचास का नोट निकाला और अपने छोटे साले से कहा, "जाकर बाईस का बीड़ी का बंडल और सत्ताईस की माचिस ले आ"। सासू ने सुना तो सोच उठी कि जमाई तो बहुत पैसे लुटाने वाला है। हैरान होकर पूछने लगी, "इत्ते इत्ते रूपये तुम फ़ूंक देते हो, बीड़ी वीड़ी में"? फ़त्तू के मौका हाथ आ गया, बढ़ाई चढ़ाई का, बोला, "सासू मां, ये तो ससुराल हल्की मिल गई हमें जो बाईस सत्ताईस से काम चला रहे हैं, न तो हम तो 501 या 502 से कम की बीड़ी फ़ूंका ही नहीं करते थे कभी भी"।
फत्तू बेचारा-कैसे ससुराल में जाकर फंस गया.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसर जी पिछले कुछ दिनों आपकी लेखनी से मरहूम रहा क्या करूँ नेट ही नहीं आ रहा था। आज आपकी dono पोस्टें पढ़ी। dono बेहतरीन हैं। आज की पोस्ट पर इतना कहूँगा की एक बार मैंने भी ५५५ बीडी पी और बस तभी मन भर गया और इसके बाद कभी भी एक और बीडी नहीं पी पाया।
जवाब देंहटाएंare ye kya ho gaya marhom nahi mehrum.
जवाब देंहटाएंबेटे ने मासूमियत से पूछा, “पापा, आपकी सेलरी कितनी है”?
जवाब देंहटाएंमैंने जेब से क्लोरमिंट निकालीं, अपने मुंह में डाली और अपनी मासूमियत जाहिर करी और फ़िर कहा, “दुबारा मत पूछना”
आप की लेखन शैली अद्भुत है...बहुत रोचक, और प्रेरक ...एक बार पोस्ट पढना शुरू करने पर उसे ख़तम एक सांस में ही ख़तम करने का जी करता है...और आपकी ऊपर वाली बात पर तो कसम से पिछले आधे घंटे से हंस रहा हूँ और लगता है ये सिलसिला लम्बा चलने वाला है...मेरी बधाई स्वीकारें..
Ha,ha,ha...kya pravahmayi shaili hai! Wah!
जवाब देंहटाएंबहुत सही कटाक्ष के साथ.... बहुत अच्छा लगा यह व्यंग्य....अच्छा....मैं सही बताऊँ.....तो.... मैं टी.वी. अब देखता ही नहीं.... सिर्फ न्यूज़ सुन लेता हूँ.... सुबह...आधा घंटा.....और रात में १ घंटा.... और कार्टून चैनल ज़रूर देखता हूँ.... टॉम एंड जेरी...सारी थकान मिटा देते हैं......फत्तू.... को अब हमेशा रखियेगा..... फत्तू से मिलकर बहुत अच्छा लगा.....और आपका कलेक्शन तो हमेश की तरह लाजवाब है.... मैंने एक अलग फोल्डर बना लिया है ... आपके कलेक्शंस का....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर व्यंग्य रचना है ... एक ज़माना था बहुत टीवी देखा करता था ....आजकल समय नहीं मिलता है ... और थोडा सा समय मिल भी जाये तो न्यूज़ देखते हैं या फिर कोई फिल्म । सीरियल देखना तो कबका छोड़ चुके हैं । कभी दूरदर्शन पर रविवार को अच्छे अच्छे सीरियल आते थे आजकल सारे चैनल में केवल सास-बहु, करोडपति परिवारों में साजिश, रिअलिटी टीवी, और बकवास कॉमेडी के अलावा और कुछ भी नहीं है । फिर भी हर घर में औरतें, मर्द, बच्चें सब बैठकर देखे जा रहे हैं । क्यूँ ? क्यूंकि सबको ये लगता है कि च्लोर्मिंत क्यूँ खाते हैं ये पूछना नहीं चाहिए ।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया!
जवाब देंहटाएंलेख तो अद्भुत है ही, साथ में फत्तू एक्स्ट्रा शॉट भी अद्बुत रहा\
जवाब देंहटाएंआपका असहमत होना रास आया कोई तो है जो हसीं इत्तेफ़ाकों से इत्तेफ़ाक नहीं रखता.
जवाब देंहटाएंये प्रस्तुति बढिया लगी, इस दुनिया में ये करोबारी लोग हैं,(धन्धे वाला कहना अशोभनीय हो जाता है)इंसान को शैतानियत बेच देगें,ताकि तिज़ोरी भरी रहे!
बहुत जोरदार पोस्ट है. हमेशा की तरह शानदार पोस्ट!!!.
जवाब देंहटाएंव्यंगात्मक शैली में लिखी अच्छी पोस्ट ... आपके लिखने का अंदाज़ दिलचस्प है ...
जवाब देंहटाएंये तो मार कन्याएं हैं, इन्हीं की भीड़ के बीच संकरा रास्ता है, लेकिन आपके हमराही भी हैं.
जवाब देंहटाएं:) vaah ji
जवाब देंहटाएंhamari salary bhi mat poochhiyega, masterny ji hain, to masterny ji kee salary hai :)
:)
जवाब देंहटाएं