रविवार, मई 30, 2010

रोशनी और मनमोहनी जी.डी.पी.

जब मैं छोटा बच्चा था, बड़ी शरारत करता था,
मेरी चोरी पकड़ी जाती, जब रोशन होता बजाज।             ये विज्ञापन तो सबको याद होगा ही, नहीं क्या? फ़िर रंगीन जवानी आई, अब संगीन बुढ़ापा आने की दस्तक दे रहा है।  बजाज, अम्बानी, टाटा, रुईया, माल्या जैसे खूब रोशन होते जा रहे हैं और मैं और मेरी चोरी फ़िर पकड़ी जा रही है।  अखबारों में छपता रहता है कि फ़ोर्ब्स की सूची में भारतीयों की संख्या बढ़ती जा रही है, जाने कितने करोड़्पति हो गये और कितने अरबपति बढ़ गये हैं। बताते रहते हैं पी.एम. साहब  बीच बीच में कि जी.डी.पी. पता नहीं कितने प्रतिशत की रफ़्तार से बढ़ रही है और हम पढ़ सुनकर धन्य होते रहते हैं। दुष्यंत कुमार जी की याद आती है इस आर्थिक विकास को देखकर, ’मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही, हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिये।’ मेरे घर में नहीं तो न सही, लेकिन औरों के घर में तो आर्थिक विकास की बयार पहुंच ही रही है। इससे क्या फ़र्क पड़ेगा अगर सवा अरब के आसपास की जनसंख्या के देश में से कुछ सौ या हजार लोग करोड़पतियों की श्रेणी में शामिल हैं, आधी से ज्यादा जनता के पास पीने का पानी, खाने को रोटी और सर पर पक्की छत नहीं है, देश के नाम को बट्टा तो नहीं लगने दिया इन समर्थ तपस्वियों ने। ये भी अगर इतना त्याग न करते  तो बताओ हम क्या कर लेते?  हम सबको इनका शुक्रगुज़ार होना चाहिये कि ये अपने मिशन के प्रति कितने ईमानदार और समर्पित हैं, खून के रिश्तों में चाहे मुकदमेबाजी करनी पड़े लेकिन देश का नाम ऊंचा रखने के लिये इतना त्याग क्या हम आप जैसे लोग कर सकते हैं? शायद नहीं, तो अपन तो इस बात में खुश हैं कि हमारी चोरी पकड़ी जाती रहे, बेशक हमारे साथी और गरीब होते जायें और कुछ लोग रोशन होते रहें।

अब आ जाते हैं कि अपने असली इस्टाईल में, ज्यादा सीरियस बातें, सीरियस लोग, सीरियस बातें अपने ऊपर से निकल जाती हैं। अपन ठहरे छोटे आदमी, छोटी बातें ही बहुत हैं हमारे लिये।  जिन्हें अच्छी लगे  पढ़ लें, नापसन्द आये तो भैया हमका माफ़ी दई दो।

हम कालेज में पढ़ा करते थे और हमारे एक मित्र के बड़े भैया का विवाह तय हो गया। पता चला कि विवाह समारोह एक पांच सितारा होटल में होगा।  मित्र मंडली में बहुत क्रेज था कि फ़ाईव-स्टार होटल में जाने का मौका मिलेगा। मैं शुरू से ही अभिशप्त आत्मा, मैं कहता भी उनसे कि यार क्या फ़र्क है वहां और कहीं और?  कौन सा हम परमानेंट वहीं रह जायेंगे। लेकिन वो तो सारे सावन के अन्धे हो रहे थे, हर तरफ़ हरा ही हरा दिख रहा था।  जब आया वो तय दिन, तो जो ’जल ही जीवन है’ वाली बात को मानते हुए महीना महीना भर नहीं नहाते थे,वो भी मलमलकर नहाये।  क्लियोपेट्रा की खूबसूरती का राज तो हमें नेट पर ही आकर पता चला है नहीं तो उस दिन गधी का दूध भी सौ रुपये किलो बिकता।  अरे हम नहीं नहाते उससे, हम तो बस प्रेरक का काम करते थे अपने दोस्तों के लिये, रास्ता बताते थे सिर्फ़।  खैर साहब, बाबू बनकर और किराये की कार लेकर बड़ी शान से पहुंचे सीधे पांच सितारा। दीदे फ़ाड़ फ़ाड़कर एक एक चीज का मुआयना किया। बारात तो आम बारात से भी गई गुजरी थी, सारे बाराती एक्स्ट्रा प्रीकाशियस होने के कारण बारात का स्वाभाविक रंग जम ही नहीं पा रहा था।  आखिर में जब खाने का नंबर आया तो देखा कि होटल वालों ने हर डिश बाक्स पर एक पर्ची लगा रखी थी जिस पर डिश का नाम लिखा था। अब हमारा सरदार दोस्त चन्ना कहता है,  “भैन*  पागल समझते हैं हमें, ओये जब फ़ाईव स्टार में आये हैं तो क्या हमें ये नहीं पता कि ये कौन सी सब्जी है?”  खाना शुरू किया तो वही चन्ना कहने लगा, “नईं यार, बन्दे स्याने हैगे।  सब्जियां सारियां इको जीयां हैं, उबली हुई ते फ़ीक्की फ़ीक्की बस्स।  जेकर नाम  न लिखया होये तो साला पता ई नईं चलना सी कि केड़ी सब्जी खाके आये हां। ऐ साली सब्जियां हैगियां, न कोई मसाले ते न कोई घयो मक्खन? जिवें बीमारां दा खाना होये। यार, ऐस नाल स्वाद सब्जियां तां मेरी बेबे रोज बनांदी है ते हरबंस दे ढाबे दी दाल दा मुकाबला ऐ दाल  किवें कर सकदी ऐ?”  लो जी सबने अपनी प्लेटें पटकीं और टूट पड़े मिठाईयों वाले स्टाल पर।  यहां भी वही बात, नाम मिठाई का और मीठा ऐसा कि पता भी न चले।  चन्ना क्योंकि दोपहर से ही व्रत पर था, सारा गुस्सा होटल वालों पर गालियों के माध्यम से उतार रहा था। मेरे सालेयां ने रोटी ऐहोजी बनवाई है जिवें बराती नहीं बल्कि मरीजां नूं खिलाना होये। बड़ी मुश्किल से समझाया उसे कि भाई इन होटलों में आने वाले सारे बन्दे शूगर, बी.पी., हार्ट अटैक और पता नहीं क्या क्या से डरे हुये होते हैं, इसलिये इन स्टैंडर्ड की जगहों पर खाने में चिकनाई, मसाले और मीठा कम से  कम इस्तेमाल किया जाता है। बड़े बेआबरू होकर उस कूचे से हम निकले जी, रास्ते में एक ढाबे पर गाड़ी रोककर दाल मखनी के साथ तन्दूरी रोटियां खींची, तोड़े हुये प्याज के साथ और लौट कर बुद्धू मंडली घर को आई।

अब हमारा कहना ये है जी, कि हम तो ठहरे आम आदमी।  रोडसाईड ढाबे पर भी और जरूरत पड़ने पर मोबाईल ठेलियों से भी लेकर खा पी लेंगे।  लेकिन फ़ोर्ब्स सूची में और मनमोहन-मोंटेक-चिदम्बरम की लिस्ट में स्थान पाने वाले करोड़पतियों, अरबपतियों जरा सोचो,  बड़े बड़े  काम करके तुम्हारा पेट नहीं भरा, तो ये आलू-प्याज-टमाटर-किराना जैसा सामान बेचकर तुम्हारी तसल्ली हो जायेगी?  और ये हमारे कर्णधार, जिस देश में चाणक्य-चन्द्र्गुप्त, अष्टावक्र-जनक जैसे चरित्र इतिहास में दर्ज हों,  इन्डिया शाईनिंग, नरेगा, जी.डी.पी. जैसे सब्ज बाग दिखाकर तुम्हें रातों को नींद अच्छे से आ जाती है?पहले जमाने में राजा भेष बदल कर घूमा करते थे, आज अगर तुम्हें कहीं जाना हो तो घंटों पहले ट्रैफ़िक रोक दिया जाता है। और ऐसी ही हमारी जनता जनार्दन, चार साल तक रोती रहती है, चुनाव वाले साल में पेट्रोल के दाम घटे, जनता का गुस्सा भी घट गया। आओ सरकार, फ़िर रगड़ो हमें।  लेकिन फ़िर वही कन्फ़यूजन भारी हो जाता है मुझपर, ये ऐसे हैं तो दूसरे कौन सा कम हैं?  हम सब ठहरीं लोकतंत्र की भेड़ें, हमें तो ऊन उतरवानी ही है, उतरवायेंगे।  वैसे ये मेरा कन्फ़यूजन मेरे मित्रों के लिये अच्छा ही है, ये आता है तो मैं चला जाता हूं।  चलता हूं जी……….

:) फ़त्तू की रेलवे में टीटीई की नौकरी लग गई। सर्दियों की रात थी, भोपाल् से एक सरदार जी ट्रेन में चढ़े। फ़त्तू को उन्होंने सौ रुपये दिये और कहा कि मेरी नींद बहुत पक्की है, मुझे सुबह पलवल स्टेशन पर उतार देना। ट्रेन जब सुबह पांच बजे के करीब दिल्ली पहुंच गई तो सरदार जी की नींद खुली। पता चलते ही कि अब दिल्ली पहुंच गये हैं, उन्होंने ढाई तीन सौ भारी भरकम गालियां फ़त्तू को सुनाईं और चले गये।  फ़त्तू को गुमसुम खड़े देख्रकर दूसरे यात्रियों ने समझाया कि छोड़ो यार अब तो सरदार जी चले गये, उनकी गालियों के बारे में क्या सोचना।  फ़त्तू बोला, “नहीं यारों, मैं इसकी गालियों के बारे में नहीं सोच रहा हूं, मैं तो उस सरदार जी की गालियों के बारे में सोच रहा हूं जिसे मैंने सुबह चार बजे इतनी ठंड में जबरदस्ती पलवल स्टेशन पर उतार दिया था।”
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14 टिप्‍पणियां:

  1. ..जिस देश में चाणक्य-चन्द्र्गुप्त, अष्टावक्र-जनक जैसे चरित्र इतिहास में दर्ज हों, इन्डिया शाईनिंग, नरेगा, जी.डी.पी. जैसे सब्ज बाग दिखाकर तुम्हें रातों को नींद अच्छे से आ जाती है?
    ...वाह ! आपकी व्यंग्यात्मक शैली लाजवाब है. फत्तू के किस्से मजेदार हैं. शानदार पोस्ट के लिए बधाई.

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  2. Chaliy, loktantr ko itna to maan dehee deejiye..man kee bhadaas nikalne par rok nahi! Zara sochen gar yah bhi nahi kar pate to kya hota!

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  3. अरे वाह,

    क्या फाईव स्टार यात्रा कराई।

    अपणा भी एहो जिहा हाल होइआ जद असी ग्रैड मराठा ते गए सी। सश्शी नां दा इक आईटम सोया सॉस ते वसाबी नाल खाण दो बाद तां असी आपणे समोसे वाले नूं ही बेस्ट कुक मणदें हां, भैंच* पांवे सडे आलूआं दा समोसा बणांदा होए पर फेर वी फाईव स्टार दे सशी उशी नाल तां लक्ख दर्जा वधिया।

    इस पर मैंने एक पोस्ट भी लिखी थी, मेरी फाईव स्टार की पहली यात्रा । ये रहा लिंक -

    http://safedghar.blogspot.com/2009/09/blog-post_16.html

    उसी दौरान पता चला कि बडे बडे लोग टॉयलेट में पोछा मार कर आते हैं और अपन बिन पानी सब सून :)

    मस्त पोस्ट लिखा है। और आपकी बात पढके मुझे अपने स्कली दिनों में पढा वो राजा वाली कहानी याद आ गई जो जिस चीज को छूता सोना हो जाता और यहां तक की खाना भी छूने पर सोना हो गया और वह खा नहीं पाया।

    यही हाल अपने इन नव राजाओ का है। पैसा तो खूब है लेकिन बीपी, हार्ट वगैरह के चक्कर में ढंग का खाना भी नहीं खा पाते। टॉयलेट में टिश्यू पेपर से काम चलाएं सो अलग और उपर से आवाज भी लगाते हैं - सेव पेपर :)

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  4. रोचक संस्मरण, फत्तू जी का कमाल, विचारणीय बातें और सुन्दर गीत... सब कुछ एक साथ.. ये तो थाल भर के माल हो गया जी..

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  5. @ kshama
    सही कहती हैं मैडम, आप। उस दिन टी वी पर देखा कि बाबा रामदेव से रजत शर्मा पूछ रहे थे कि आपको सरकार की तरफ़ से कोई सहयोग मिला है? उन्होंने बताया कि यही बहुत बड़ा सहयोग है कि MNCs और सरकार कि खिलाफ़ इतना बोलने के बावजूद वे अभी तक जेल से बाहर हैं।
    कैसे उतारेंगे अहसान सरकार का, कि लब आजाद छोड़ रखे हैं?
    आप उत्साह बढ़ाती रहती हैं, आपका आभार व्यक्त करना ज्यादा जरूरी है जी, सरकार की तो देखी जायेगी।

    @ सतीश पंचम
    ----------
    आपकी तो सारी पोस्ट्स बांच रखी हैं सतीश भाई। वहीं से चुराया है बीच वाला हिस्सा, पर किसी को बताना मत, अपनी दुकान पे शटर गिर जायेगा। और बिन पानी सब सून! गजबै हो आप तो बस्स। कभी फ़त्तू का हाऊ डू यू डू बतायेंगे आपको। हा हा हा

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  6. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  7. भईये...शरू में तो लगा खूब पका रहे हो .....पर आगे चलकर ... गरमाई पकड़ ली ....चलते रहो ...सही जा रहे हो :~})

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  8. हम भी बहुत बार शादियों में खाना छोडकर ढाबे पर खाकर ही तृप्त होते रहे हैं।
    इस घटना के अलावा बाकी कुछ नहीं पढा है।

    प्रणाम

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  9. ओ जी,
    सरदारा दे देस विच बैठ के सरदारा दी मजाक बणा रे ओ।

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  10. आपकी लेखनी में जादू है जी ... एकबार शुरू करते हैं तो खतम करके ही सांस लेते हैं ...

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  11. पहले जमाने में राजा भेष बदल कर घूमा करते थे
    आज के नेताओं के बारे में भी यही लिखा जाएगा - वर्तमान को इतिहास होने तो दो ज़रा.

    सरकार की तो देखी जायेगी।
    हमारी सरकार बनेगी तो विकास तब तक नहीं करेंगे जब तक विदेशी सरकारें देश का सारा काला धन जहाज़ों में भरकर भिजवा नहीं देंगी. तब तक यूरोप में एक आध टापू ही खरीद लिया जाए तो कैसा रहे?

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  12. भाई, माफ़ी तो कोई और साहब को दे दी है सो अब आपको नहीं दे सकते।
    समझदार लोग महंगे होटलों में नमक मिर्च साथ लेकर जाते हैं।
    फ़त्तू जी का कारनामा गजब रहा।
    घुघूती बासूती

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