मंगलवार, जून 29, 2010

good night till morning - पार्टी जो पूरी न हो सकी......

बड़ा लुत्फ़ था जब छड़े-छाकड़ थे हम। याराने निभाने में भी साला मज़ा बहुत आता था। और हम तो ऐसे किस्मत वाले थे कि ब्याह के डेढ़ साल बाद तक छड़े ही रहे। गलत मत समझना यारो, दो टकेयां दी नौकरी के कारण संडे वाले गृहस्थ थे और बाकी सप्ताह में छड़ा पार्टी के मेंबर।
मेरे घर पहले बेटे  का जन्म हुआ था, संयोग से मैं उन दिनों छुट्टी पर घर आया हुआ था।  जब वापिस पोस्टिंग वाले शहर पहुंचा, तो यार लोग पीछे पड़ गए कि पार्टी लेनी है। अब देने वाली चीज़ों से हम शुरू से ही  कभी भी इंकार नहीं कर सके(अब बदल चुके हैं), चाहे दिल देना हो,  दर्द देना हो,  प्यार देना हो या पार्टी देनी हो।  समस्या उठी मैन्यू  पर, हम ठहरे घासफ़ूस के भक्षक और याराने सब तरह के लोगों के साथ।  भाई लोग अड़ गये कि नॉन-वेज भी चलेगा और दारू भी। अड़ने में हम ही कहां पीछे रहने वाले थे, ये दोनों नहीं चलेंगे, हां पार्टी बेशक महंगे से महंगे होटल में ले लो।
अब भारत-पाकिस्तान की तरह दोनों पक्ष जब आमने-सामने डट गये तो रूस-अमेरिका की तरह के बड़े ठेकेदारों की तो चांदी होनी ही थी। ताशकंद समझौते की पुनरावृत्ति करते हुये कुछ मांगें उनकी मानी गईं, कुछ हमारी मानी गईं और रूस-अमेरिका फ़ोकट में हमारे मेहमान बने। तय हुआ कि दारू चलेगी, नॉन-वेज नहीं चलेगा। कुल मिलाकर दस लोगों को शार्टलिस्ट किया गया। दारू का कार्यक्रम घर पर और खाना बाहर होटल में होना निश्चित हुआ| अब हमने अपने पांच पांडव तैयार किये(खुद समेत), जो खुद न पीकर बाकी पांच पियेलों को ऐसे ही घेर कर रखेंगे जैसे फ़ुटबाल मैचों में रोनाल्डो, काका, चाचा वगैरह   को विरोधी टीम के खिलाड़ी, ताकि गोल न कर दें। सब कार्यक्र्म बढि़या से निबट गया।  पीने के साथ गाना बजाना भी हुआ।  रात ग्यारह बजे घर से निकलकर होटल पहुंचे, खाना वगैरह खाते साढे बारह बज गये।
अब प्रोग्राम ये बना कि जो पिये हुये हैं, उन्हें अपने अपने कमरे में पहुंचाकर जो शरीफ़ पार्टी है, वो सबसे बाद में अपने घर जायेगी। ये लाभ होता है शराफ़त का, पल्ले से खर्चा करो, बिगड़ों को संभालो, घर तक छोड़कर आओ और सबसे बाद में थक हारकर घर पहुंचो। पहले को उसके रूम में छोड़ा। दूसरा और तीसरा रूम पार्टनर थे, कुछ राहत मिली। चौथे को भी उसके कमरे में लैंड करके हम छ: चल पड़े। अब शराबी बचा एक, सुरेश  और शबाबी रह गये पांच। हंसी मजाक करते हुये उसकी गली के मोड़ तक पहुंचे और उसने सबसे गले मिलकर विदा ली, कि आप लोग जाईये और मैं अपने रूम में चला जाऊंगा, पास ही तो है। जवान लड़का था, हमने भी  कहा कि ठीक है और पांच छ बार गुड नाईट कह कर वो अपनी गली में मुड़ गया।  मेरे से उम्र में एकाध साल बड़ा और   नौकरी में दो साल जूनियर था लेकिन इज्जत बहुत करता था मेरी(यकीन नहीं होता न?)। हमेशा भैया कहकर बुलाता था। मैं बहुत मना करता लेकिन मानता ही नहीं था, हमेशा भैया जी, भैया जी।  वो तो उस दिन पीने के बाद बताया उसने कि शुरू से ही ऐसा नरम स्वभाव था उसका कि यदि डर से या किसी और लिहाज से किसी कारण से किसी अगले-पगले को कुछ कह नहीं पाता था तो  भैया जी कह देता था।
खैर, जब वो गली में मुड़ा तो एस.के. जो उसका बैचमेट और मेरा रूममेट था, उसने बताया कि इसकी गली में मेन सीवर का काम चल रहा है और सारी गली बारह चौदह फ़ुट गहरी खुदी हुई है, कहीं ये गिर ही न जाये।  हम सारे फ़टाफ़ट उसके पीछे लपके और धीरे धीरे उसे सहारा देते हुये उसके रूम तक पहुंच गये। बेचारे ने डगमगाते कदमों से ही सही, रसोई से लाकर सबको पानी पिलाया। एक बार फ़िर गुडनाईट गुडनाईट का खेल खेला गया और हम पांच वापिस चल दिये। आधी गली भी पार नहीं की थी कि सुरेश बाबू पीछे से भैया ध्यान से, भैया ध्यान से चिल्लाते हुये हमारी तरफ़ आया।  रुक कर आने का कारण पूछा तो वही कारण उसने बता दिया कि गली गहरी खुदी हुई है, कहीं हम में से कोई गिर न जाये, इसलिये आया है। अब लोकेशन ऐसी थी क्राईम वर्ल्ड की तरह कि वापिस मुड़ने की कोई गुंजाईश नहीं थी। पहुंच गये मेन रोड पर। सबने उसे समझाया कि देखो सुरेश, हम पांच हैं, सारे होश में हैं और अगर खुदा न खास्ता कोई गिर भी गया तो बाकी उसे बचा लेंगे, तुम्हें आने की कोई जरूरत नहीं थी। लेकिन हमारा सुरेश, आंखों में आंसू ले आया कि भैया हम इतने गये गुजरे हैं कि आप पांच जने हमारे लिये जान जोखिम में डालें और हम इस गली के रहने वाले होकर भी आराम से बिस्तर में सो जायें। फ़िर से जफ़्फ़ियां डाली गईं, पोशम्पा भई पोशम्पा की तरह गुड नाईटों का आदान प्रदान हुआ और सुरेश को वापिस भेजा गया। अब हम भी इमोशनल पूरे, ये बंदा शराब में धुत्त होकर भी ऐसा सोच सकता है और हम इसके बारे में न सोचें तो हम पर लानत है। उसे उसके रूम में पहूंचाया और लौटे। वो फ़िर हमें छोड़ने आया और हम फ़िर उसे छोड़ने गये और वो फ़िर……।
बात ये हुई जी कि हमारी गुड नाईट जो थी,  टिल गुड मार्निंग चलती रही, न वो रुका और न हम झुके।  सुबह पांच बज गये वो बीस तीस मीटर का रास्ता पार करने में, आखिर उसे रिक्शे पर लादकर अपने साथ ही अपने रूम में लाये और सुलाया। नौ बजे जबरन उठाया शेर को, पूछने लगा, “भैया, मैंने रात को तंग तो नहीं किया आप लोगों को, चढ़ तो नहीं गई थी मेरे को?”  मैंने कहा, “नहीं यार, बिल्कुल नहीं।” सुरेश कहने लगा, “भैया, दारू पार्टी का मज़ा तब तक नहीं आता जब तक चढ़े नहीं, एक बार और पार्टी देनी होगी आपको, दोगे न?”  बहुत प्यार आया अपने छोटू पर, लेकिन हमारा स्वभाव तो सब जानते ही हैं, न नहीं कह पाते हैं किसी अपने से।
सुरेश, एस.के और बाकी सब बिछड़ गये जिन्दगी की राह में, अपने अपने सलीब ढो रहे हैं।  कोई हंस कर और कोई रोकर। लेकिन मिलेंगे कभी न कभी, बताते हैं विद्वान लोग कि दुनिया गोल है। फ़ोन पर कभी कभार बात हो जाती है तो याद करते हैं अपनी पुरानी बेवकूफ़ियां, हंसते हैं थोड़ा बहुत और फ़िर तैयार नई हरकतों के लिये, जो आगे जाकर बेवकूफ़ियां लगेंगी लेकिन मज़ा बहुत देंगी।
:) बंदरों ने बहुत उत्पात मचा रखा था, पिछले कई दिनों से। घर का सब सामान बर्बाद करे दे रहे थे। एक बन्दर, जोकि इनका मठाधीश लगता है, उसने तो अति ही कर रखी थी। डरता तक नहीं, बल्कि डरा और देता था। फ़त्तू के आगे अपनी परेशानी रखी तो उसने समस्या हल करने का आश्वासन दिया। बाजार से बूंदी के लड्डू लाकर खुले में रख दिये। वो ढीठ बन्दर आया और गप्प से उठाकर खा गया। फ़त्तू फ़िर बाजार गया और अबके मोतीचूर के लड्डू लाकर सेम ट्रीटमेंट। अगली बार खसखस की पिन्नी लाया और उनके साथ भी यही हुआ। मैंने पूछा भी कि यारा, तू है किसकी तरफ़, मेरी तरफ़ या इस रैडिश बैक एंड फ़्रंट की तरफ़? लेकिन मेरी मान जाये, वो फ़त्तू कैसे हो सकता है? अगली बार अखरोट लाकर वैसे ही खुले में रख दिये। अब बन्दर की तो आदत खराब हो रही थी ब्लॉगर्स की तरह, खुद कुछ मेहनत करनी नहीं और दूसरों की मेहनत का बंटाधार करना।  आया और गप्प से अखरोट को निगल गया। हलक से होते हुये, फ़ूड पाईप से सरकते हुये वो अखरोट जाकर उसके exit gate पर ऐसा फ़ंसा कि वो ढीठ बस बेदम हो गया। पता नहीं कौन कौन से आसन करते देखा उसे उस अखरोट से निजात पाने के लिये, पर बेकार। खाना पीना भूलकर हर समय उसका ध्यान अपनी पोस्ट पर, सॉरी अपनी समस्या पर। पता नहीं कैसे तीन दिन तक उपवास रखने के बाद वो अखरोट कैद से आजाद हुआ या कह सकते हैं कि वो ब्लॉगरिया बन्दर उस अखरोट से आजाद हुआ।
वो दिन है और आज का दिन, बेफ़िक्र होकर सोते बैठते हैं हम। कोई चिन्ता नहीं कि खाने पीने का सामान बर्बाद कर देगा वो बन्दर।  और उसका ये हाल है कि जो भी चीज देखता है पहले उसे अपने गुदा द्वार तक ले जाता है, साईज़ मिलाता है और फ़िर अगला ऐक्शन लेता है(भागने का)।
यार वैसे ये सरकार ये अखरोट वाला फ़ार्मूला जानती नहीं है या किसी और वजह से इस्तेमाल नहीं करती नापाक इरादे वाले लोगों पर, कि कहीं हमारे देश की धर्मनिरपेक्ष, लोकतंत्र, सभ्य, शरीफ़ छवि पर दाग न लग जाये?
नो प्रोब्लम सरकार जी, तुम अपनी छवि, अपने वोट बैंक का ध्यान रखो, तुम आंच मत आने दियो अपनी छवि पर। निरीह और मजबूर जनता के साथ तो जो होगी, देखी जायेगी। वैसे ही आबादी बहुत बढ़ गई है।

14 टिप्‍पणियां:

  1. आप वाकयी मो सम कौन हैं। भैया आपके समान कोई नहीं। किस्‍से ही सुने थे सारी रात चक्‍कर लगाने के लेकिन अब तो सच में देख भी लिया। और वो बंदर वाली बात तो गजब है।

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  2. ...... ... अरे बाउजी क्या लिख डाला.....मेरी प्रिय पत्नी ने डिनर सजा कर रखा है पर आपकी पोस्ट पढ़ी तो लगा टिपण्णी तो करनी ही पड़ेगी. फत्तू की कारगुजारी पढ़ कर तो आपने पहले क्या लिखा था सब भूल गया और हँसता रहा...... वास्तव में ये तो हमेशा याद रहेगा....... लोग कुछ खाने से पहले मुह के साइज़ से मिलान करते थे और बेचारा बन्दर नीचे का साइज़ मिलाता हैं......और ये ब्लोगेरिया बन्दर कौन है?..... चलो कोई भी हो मेरा तो दो तीन किलो खून बड़ा ही गया.... अभी फिर से आता हूँ खाना खा कर.

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  3. हा हा....एकदम झकास पोस्ट है। छड़ा पार्टी का तो हाल और भी धुंआधार रहा....एकदम ढिंचाक। मजा आ गया।

    और फत्तू के कारनामे तो वाकई मजेदार हैं।

    BTW

    कहीं पढ़ रहा था कि किसी किसी ब्लॉगर को नये आए एग्रीगेटर से भी साजिश की बू आ रही है....। मुझे लग रहा है आपके इस बंदर और ढिढोरा पीटते ब्लॉगर में बहुत समानता है। अभी शायद पुराने एग्रीगेटर को बंद करवाने में बहुत बहुत मेहनत की है बंदर ने..... और नया आ रहा है तो उसका मिलान कर रहा है....कि फिट बैठेगा कि नहीं :)


    मस्त पोस्ट है।

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  4. दास्ताने-दारू पढ़कर मन प्रसन्न हुआ. किस्मत वाले हो जो ऐसे दोस्त मिले हैं

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  5. दास्तान और दोस्तों पर टिप्पणी वही जो स्मार्ट इन्डियन ने कही ! इससे आगे...ओह बेचारा वानर ब्लागर उसे दक्षिण दिशा में ज्ञान प्राप्त हुआ :)

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  6. मजा आ गया पढ़ कर...बहुत सन्नाट!! मस्त आप और मस्त आपके दोस्त!

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  7. @ Dr.Smt.Ajit Gupta:
    --------------------
    सहमत हूं दीदी, आपसे -
    कोई नहीं है ’मो सम कौन कुटिल, खल।’
    ये किस्सा सच है, अब वो सारे इज्जतदार लोग हो गये हैं,नहीं तो पहचान भी बता देता। आपका बहुत आभारी हूं, स्नेह मिलता रहता है आपका।

    @ दीप:
    -----
    बन्धु, खाना खाने में इतना समय? कल इंतज़ार करता रहा मैं। तुम्हें अपना खाने का स्टाईल बदलने की कोई जरूरत नहीं है :)

    @ सतीश पंचम जी:
    --------------
    भाई जी, आपकी BTW टिप्पणी has stolen the show of my post.
    मस्त कमेंट है, आपकी भाषा में ’एकदम ढिंचाक’

    @ अनुराग सर एवम अली साहब:
    -----------------------
    दोस्तों के कारण अपनी खुशकिस्मती पर कोई शक नहीं है।
    वाकई इस मामले में मैं बड़ा खुशकिस्मत रहा हूं, बदकिस्मत तो वो रहे जिनका मैं दोस्त था, हा हा हा।

    @ समीर सर:
    ---------
    धन्यवाद सर, अपन मस्त राम तो मस्ती में ही रहते हैं, लेकिन बस्ती में भी मस्ती हो तो और मजा आता है, वो बस्ती में आग लगने के बाद वाली मस्ती अपने को अपील महीं करती।
    आभारी हूं आपका।

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  8. बढ़िया है!

    थोडा सा इंतज़ार कीजिये, घूँघट बस उठने ही वाला है - हमारीवाणी.कॉम



    आपकी उत्सुकता के लिए बताते चलते हैं कि हमारीवाणी.कॉम जल्द ही अपने डोमेन नेम अर्थात http://hamarivani.com के सर्वर पर अपलोड हो जाएगा। आपको यह जानकार हर्ष होगा कि यह बहुत ही आसान और उपयोगकर्ताओं के अनुकूल बनाया जा रहा है। इसमें लेखकों को बार-बार फीड नहीं देनी पड़ेगी, एक बार किसी भी ब्लॉग के हमारीवाणी.कॉम के सर्वर से जुड़ने के बाद यह अपने आप ही लेख प्रकाशित करेगा। आप सभी की भावनाओं का ध्यान रखते हुए इसका स्वरुप आपका जाना पहचाना और पसंद किया हुआ ही बनाया जा रहा है। लेकिन धीरे-धीरे आपके सुझावों को मानते हुए इसके डिजाईन तथा टूल्स में आपकी पसंद के अनुरूप बदलाव किए जाएँगे।....

    अधिक पढने के लिए चटका लगाएँ:

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  9. बहुत मजेदार किस्सा. आपके पास जीए हुए किस्से हैं जी. एक दम मस्त.
    और फत्तू की तो जय ही जय.

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  10. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  11. बड़े किस्मत के धनि हो जी आप............... हमारी तो किस्मत का ही दिवाला निकला हुआ था जो यार पीते भी थे वोह हमारे सामने ही नहीं पड़ते थे कभी पीकर.............................. दो -एक को मेरे साथ रहने का ज्यादा चस्का लगा तो उनकी लबों की चस्की छूट गयी......................... कभी ऐसी गुड-नाईट करने का मज़ा ही नहीं ले पाए हम तो...................... कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन ......................
    बाकि इस फत्तू के चक्कर में हँस हँस कर मर जाऊंगा लोग समझेंगे उपरी फेंट में मर गया.................................

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  12. सर जी,
    एक शब्द में कहूँ तो--- गज़ब!!!
    हिंदी को एक नया मुहावरा दे दिया है फत्तू ने--- 'अखरोट का फटा नीम्बू भी नाप कर देखता है.'

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