फ़िल्म ’वक्त’ का डायलॉग ’जो देखा वो ख्वाब था और जो सोचा वो अफ़साना| चलो राजा, हटाओ ये सब और अपनी दुनिया में लौट आओ’ सुनकर मजा आ जाता था। अपन को तो जो चीज पसन्द आ जाती है, उसे अपने मदारी वाले थैले में भर लेते हैं और वक्त जरूरत पर निकाल लेते हैं। पिछली सीरियल्ड पोस्ट के ड्रामे को समेटने के लिये निकाल लिया जी थैले में से ये डायलॉग, अरसे से दबा पड़ा था इसलिए हो सकता है कुछ मुड़ तुड़ गया हो लेकिन अपन ही कौन से सीधे और संपूर्ण हैं जो मुड़े-तुड़े लोगों से और ऐसी बातों से परहेज करेंगे? जैसा भी है, चलेगा बल्कि दौड़ेगा। तो जी वो डिरामा खत्म और अपना पुराना ट्रेंड चालू।
पिछले दिनों आप सबकी सप्ताह भर की छुट्टी मंजूर करके हम गये थे एक प्रशिक्षण कार्यक्रम में प्रशिक्षित होने। बल्कि गये नहीं थे भेजे गये थे, जबरन। शायद हमारे नियोक्ता की नजर में हम ही सबसे मिसफ़िट थे जिन्हें प्रशिक्षण की जरूरत थी। जब जाना जरूरी हो ही गया तो हमने भी खुद को समझाया कि यहाँ भी कौन से तीर चला रहे हैं, ऐसी तैसी ही करवानी है तो यहाँ नहीं करवायेंगे, राजधानी में ही सही। आखिर तो भेड़ को बाल उतरवाने ही हैं। बांध लिया बैग और लिख मारा अपनी पोस्ट पर कि जा रहे हैं एक और घाट का पानी पीने। भूल गये थे उस समय अपना एक पसंदीदा गाना, आदमी जो कहता है, आदमी जो सुनता है….। पानी पीने की बात क्या लिख दी, ऊपरवाले ने जैसे सारे परनाले खोल दिये। जिस दिन यहाँ से निकले, पानी बरसना शुरू हुआ और बरसता ही गया। जिधर नजर जाती थी पानी ही पानी। रिमझिम के तराने लेकर आई बरखा से शुरू हुआ अपना सफ़र रिमझिम गिरे सावन और आय हाय ये मजबूरी होते हुये लगी आज सावन की फ़िर वो झड़ी है तक परवान हुआ।
खैर, बस स्टैंड पहुंचे तो बारिश के कारण अफ़रातफ़री का माहौल मचा हुआ था। हमें तो वैसे भी बड़े शहरों की सभी बसें, सड़कें, कोठियां, दुकानें यानि कि स्त्रियों सहित सभी स्त्रीलिंगी चीजें एक जैसी ही लगती हैं। सारी एक जैसी दिखती हैं, एक ही तरीके से fascinate करती हैं और एक ही तरीके से दूर दूर रहने की चेतावनी सी देती दिखती हैं। थोड़ी देर तक इधर उधर टुकर टुकर देखते रहे, लेकिन कुछ पल्ले न पड़ा कि कौन सी पकड़ें ताकि सही मंज़िल तक पहुंच जायें, शायद बस लिखना रह गया बीच में कहीं। झक मारकर पूछताछ कार्यालय की तरफ़ गये तो देखा कि अंदर कोई नहीं बैठा था। एक सज्जन बाहर ही खड़े थे, बड़ी सीरियस मुद्रा में, हाथ में एक छोटा सा रूल पक्ड़े हुये जैसे अंग्रेजों के जमाने के जेलर के पास था। मैंने पास जाकर नमस्ते की, फ़िर पूछा, “भाई साहब, चंडीगढ़ जाने..”, उसने मेरी तरफ़ देखने की भी जहमत नहीं उठाई और बेरुखी से अपना अंग्रेजों के जमाने का रूल बगल में दीवार पर लिखे हुये मुगलों के जमाने के टाईम टेबल पर एक जगह टिका दिया। देख लिया जी टाईम, आयेगा कभी हमारा भी।
मैं अभी वहीं खड़ा था कि दो लड़कियां आकर टाईम टेबल के पास खड़ी हुयीं, देख ही रही थीं कि जेलर साहब पूछने लगे, “हाँ जी, कित्थे जाना है?” और बड़े प्यार से उन्हें सारी जानकारी देते रहे। इतने में एक नया ब्याहा जोड़ा भी वहां पहुंचा और आधुनिक पतियों की उच्च परंपरा का पालन करते हुये साहब तो अटैची और बैग उठाकर पीछे खड़े रहे और मेम साहब पूछताछ करने के लिये आगे बढ़ रही थीं कि रूलधारी जेलर दो कदम आगे बढ़कर उनका इस्तकबाल करने पहुंच गया और झुक झुककर सारी जानकारी दे रहा था और निहाल हो रहा था जैसे बस की जानकारी देने पर ही वो सुन्दरी अपने फ़ेरे उलटकर उसके गले में जयमाला डाल देगी। वो जनाब आकर अपनी जगह पर खड़े हुये और मैंने फ़िर पूछा, “भाई साहब, किराया कितना..” जालिम ने बात भी पूरी नहीं करने दी और रुल एक और जगह पर रख दिया। मैंने पूछा, “गल सुण, जेकर मैंनूं परमात्मा ने आदमी बना दित्ता है ते कि इस विच मेरा कसूर है ?” अबके कहने लगा, “मैं की आख्या है जी त्वानूं?” समझाया थोड़ा बहुत उसे पंजाबी और हिन्दी में, फ़िर धमकाया भी कि बेटे ऐरा गैरा न समझ लियो, ब्लॉगर हैं हम। एक संसद और बन गई है हमारे यहाँ, तेरी शिकायत कर दी न तो ‘rule is rule’ का पता चल जायेगा। धमकी से तो शायद नहीं धमका लेकिन ब्लॉगर होने की हूल काम कर गई, उसने भी सोचा होगा कि कुछ बड़ी ही चीज होंगे, बड़े तरीके से बस का समय और किराया और कई चीजें बताईं। हम भी अपना url और ब्लॉग का पता लिखा विज़िटिंग कार्ड उसे थमाकर और सदैव आभारी वाला डायलाग मारकर अपना कारवां बढ़ा गये।
जा पहुंचे अपने ट्रैनिंग सेंटर और देखा कि कुल जमा नौ प्रतिभागी उपस्थित हैं, हम बन गये दस नंबरी। देख लो जी, यहाँ भी दस नंबरी। संयोग नाम की चीज है अभी दुनिया में। ट्रेनिंग शुरू हुई तो पता चला कि हमीं सबसे जूनियर हैं। अब बारिश का तो आपको बता ही रहे हैं ऐसे झड़ी लगी थी कि जैसे सरकारी पाईप लाईन में लीकेज हो गई है और जिसकी ड्यूटी थी रिपेयर करने की, वो लगा हैं कहीं ब्लॉग्स पर टिप्पणियँ करने में। अब जिसे देखें, सब ऊपर से नीचे तक गीले। एक साहब ने कहना शुरू किया कि मौसम बड़ा खराब है। मेरे तो जी आग लग गई, सावन में लग गई आग। लेकिन लिहाज कर गया। दूसरे साहब कहने लगे कि कौन सा आज का बिगड़ा है मौसम, हमेशा से ही दुखी करता रहा है। मेरे तो कुछ मामला ही समझ नहीं आ रहा था जैसे आप भी कन्फ़्यूज़ हो रहे होंगे। और वहाँ सारे के सारे जैसे एक सुर में लग गये बेचारे मौसम के पीछे। आखिर मैं भिड़ ही गया उनसे, कि भाई लोगों, तुम्हारे कौन सा चुटकी काट ली है ’मो सम’ ने?अब सारे हैरान होकर मुझे देखने लगे कि इसे हुआ क्या है? कहने लगे कि यार इतनी बारिश, न कहीं आ सकते हैं न जा सकते हैं, कितनी तबाही मची हुई है हर तरफ़। कई दिन हो गये धूप निकली नहीं है, कपड़े सब गीले हो गये हैं। इस बारिश के मौसम को थोड़ा सा कोस लिया तो तुम्हें पता नहीं क्यों परेशानी हो रही है? अबे यार, ये मौसम को कोस रहे थे और मैं सोच रहा था कि ये सब ’मो सम’ को कोस रहे हैं। सच में अब तो सपना भी देखते हैं तो ब्लॉगिंग का ही दिखता है। गनीमत हुई कि अपनी जवानी के दौर में ये रोग नहीं था वरना अपना हनीमून और हनीसन वगैरह की सफ़लता कमेंट्स की मात्रा पर निर्भर होती। ईश्वरम यत्करोति शोभनमैव करोति।
तो साहब, ये जूनियर प्रशिक्षु हमेशा की तरफ़ बैकबेंचर बन गया। सबसे बड़ी सुविधा ये है कि इंटर एक्शन करना अपने हाथ में रहता है। प्रशिक्षक महोदय/महोदया बारी बारी से आते रहे जाते रहे और हम पूरी तन्मयता से ’स्पाईडर सोलिटेयर’ में नित नये रिकार्ड बनाते रहे। कक्षा में ध्यान सिर्फ़ तभी दिया जब पढ़ाई से अलग कुछ बातचीत हुई। बताने वाली बात है हमारी हिन्दी की सेवा करने की भावना। ट्रेनिंग के दौरान एक वरिष्ठ प्रतिभागी बार बार प्रैक्टिकल तथा थ्योरोटिकल परेशानियों का ज़िक्र कर रहे थे कि ये परेशानी है, वो परेशानी है। परेशानियों के जितने प्रकार हो सकते हैं, तीनों काल के उन्होंने गिनवा दिये। प्रशिक्षक बेचारे हमारी तरह ही जूनियर श्रेणी से थे, खुलकर कुछ कह नहीं पा रहे थे। ’बिटवीन द लाईन्स’ समझाने के लिये उन्होंने चचा का सहारा लेने की सोची और बोले, “आपकी परेशानियों को देखते हुये एक शेर याद आ रहा है,
’न था कुछ तो खुदा था, न कुछ होता खुदा होता,
……….
दूसरी पंक्ति में अटक गये, और सब सांस रोके इन्तज़ार कर रहे थे कि इस था न था के बाद क्या होगा, और हमने लपक लिया मौका। दूसरी पंक्ति पूरी कर दी
’डुबोया मुझको होने ने, न होता मैं तो क्या होता।”
बल्ले बल्ले हो गई जी, शावा शावा हो गई हमारी। जब सारे हैरान होकर देख रहे थे हमने भी बम चला ही दिया कि ये तो हमारे ब्लॉग प्रोफ़ाईल में भी हमने लगा रखा है। अब और झोल खा गये सारे, तो इसका मतलब आप ब्लॉगर हैं? बड़ा अहसान सा जताते हुये कह दिया कि हाँ, लिखते हैं थोड़ा बहुत। दो चार तो हमारे सीनियर्स ऐसे थे जिनकी नजर में ब्लॉग लिखने के लिये आदमी की शख्सियत कम से कम अमिताभ बच्चन, मनोज बाजपेयी, अमर सिंह, नीतिश कुमार के बराबर तो होनी ही चाहिये। तो जी हम भी छा गये उस महफ़िल में, सबको प्रेरणा दे डाली हिन्दी में ब्लॉग लिखने की। और कोई दिक्कत होने की सूरत में चार पांच ब्लॉगर्स के नाम नोट करवा दिये हैं, तो जिसके ब्लॉग पर भी पूछताछ वाला ट्रैफ़िक बढ़ता दिखाई दे, उस से अनुरोध है कि हमारे ऊपर वर्णित रूल वाले जेलर साहब की तरफ़ जेंडरबेस्ड पक्षपात न करे, नये लोगों की मदद करे और मन ही मन हमारा धन्यवाद करे। आखिरी सत्र में हमारे एक सीनियर ने जो शेरो शायरी वगैरह में भी रूचि रखते थे, एक गज़ल पढ़ कर सुनाई और आखिरी शेर कहने से पहले मेरी तरफ़ इशारा करके कहा, “ये आखिरी शेर आपके नाम पर, आपको समर्पित।” मैं डूब गया वहाँ भी, शेर तक याद नहीं कर पाया कि क्या था।
ठीक है भाई साहब, मैं शक्ल से ही ऐसा लुटा पिटा दिखता हूं शायद कि वरिष्ठ और बराबर वाले जब मौका लग जाये, उठाकर समर्पित कर दें। मुझे हो जाने दो थोड़ा सा सीनियर, देख लूंगा सबको – a से शुरू करूंगा और z तक सब ब्लॉगर्स को रोज एक पोस्ट समर्पित करूंगा। कल्लो, क्या करोगे?
:) फ़त्तू बाहर से लौटा तो उस दिन उसका मूड खराब था। अपनी माँ से पूछने लगा, “ मां मां, सब मुझे बावली बूच क्यों कहते हैं?”
माँ ने समझाया, “बेटा, इसमें लोगों का कोई कसूर नहीं है, तेरी शक्ल ही ऐसी है।
बरसात का यात्रा संस्मरण और ब्लॉगर की धमकी -मजेदार ललित निबंध स्टाईल की पोस्ट !
जवाब देंहटाएंबावली बूच की एक ठो फोटो लगा देते तो हम भी देख लेते कि शकल कैसी होती है. :)
जवाब देंहटाएंबहुत मस्त!
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जवाब देंहटाएंजीयो, रजा! वाह! मज़ा सा आ गया!
जवाब देंहटाएंवाह जी वाह! जेलर ने घर जाके बेटे से पूछा होगा, " अज मैनू दूजे दर्जे दा ए-लागर मिल्या सी"
जवाब देंहटाएंलेकिन एक गल समझ नहीं आयी, 10 लोगों को टि-रेन करने के लिये रेन कराने की क्या ज़रूरत थी?
वैसे खुशी तो इस बात की है कि बे-मो-सम बरसात में भी बस आराम से चली गयी क्योंकि रास्ता खुदा न था. ज़रा सोचिये, अगर खुदा होता तो क्या होता?
मो सम मतलब मौसम?
जवाब देंहटाएंकिन-किन ब्लॉगरों के नाम लिखवाये थे जी?
जैसे दुनिया का मौसम बदलता हुआ अच्छा लगता है वैसे ही मो सम का बदला हुआ या सही कहू तो वही पुराना मौसम अच्छा लग रहा है पर पिछले भावनाओं के तूफान ने आपके ब्लॉग का ज्योग्राफिया ही बदल दिया है. पहाड़ हैं उन पर सुबह कि धुंध छाई हुई है. सब कुछ गजब लग रहा है. अब आपकी यात्रा कि बात करें तो भा...ई साहब लोग fair sex के साथ unfair नहीं हो सकते. आप तो समझते होंगे ही कि पुरुष कभी कभी doggy style पसंद करते हैं. doggy style से जनाब मेरा मंतव्य है कि जैसे एक कुत्ता दुसरे कुत्ते को देखकर भोंकता है पर अपनी मालकिन के चरणों में लोट जाता है. वैसे ही कुछ ये doggy style पसंद करने वाले पुरुष करते हैं... समझ रहे हैं ना... मेरा घटिया व्यंग.
जवाब देंहटाएंआज कुल जमा तीन टिप्पणियां ...जो तुझ भावे ...
जवाब देंहटाएं(१) बोले तो सीनियर लोग ए से शुरू करते हैं ? :)
(२) अरे सीनियर नहीं हुए आप अभी तक ! हमें तो लगा कि बुज़ुर्गवार हुए होंगे जो ख्यालात इतने रंगीन हैं :)
(३) ना था कुछ तो खुदा था ...शेर मुकम्मल करके आपने आफत मोल ले ली ! अब ऐसा ना हो कि खास ब्लागर बंदे ,ये समझ कर टिप्पणी किया करें कि , मो सम के ? बाद वाला बोलने से आप खुश होयेंगे :)
सचमुच आपने पानी पानी कर दिया।
जवाब देंहटाएं--------
ये साहस के पुतले ब्लॉगर।
व्यायाम द्वारा बढ़ाएँ शारीरिक क्षमता।
सचमुच तुम-सम कौन?
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट पढकर लगता है कि ये है असली ब्लागिंग
यह मजेदार पोस्ट पढाने के लिये धन्यवाद
प्रणाम
प्रशिक्षण कार्यक्रम तो सफल लगता हुआ दिख रहा है।
जवाब देंहटाएंफत्तू तो फत्तू, फत्तू की अम्मा माश्शाअल्लाह :)
जवाब देंहटाएंयहाँ भी थोड़ी बहुत बारिश शुरू हो गई है ...
जवाब देंहटाएंये बावली बुच क्या बला है ?
@ अरविन्द मिश्र जी:
जवाब देंहटाएंडा. साहब, कर्ज बढ़ता जा रहा है| आपका धन्यवाद|
@ उड़न तश्तरी :
सर, फोटो का क्या देखना, साक्षात् देखकर ही बावली बूच कह लेना आप दिसंबर में|
@अदा जी:
अरे बाबा, ओट्टावा में भी बरस गया मौसम, खुदा खैर करे|
@ktheLeo:
शुक्रिया आपका.
@स्मार्ट इंडियन:
सरजी,सुना है कभी टिटहरी के अण्डों को बचाने के लिए समुद्र तक को पीछे धकेल दिया गया था, फिर ये दस लोग ऐसे भी गए गुजरे नहीं कि बारिश न हो जाए:)
बाकी कमेन्ट का जवाब देने के चक्कर में दही की लस्सी हो गयी जी, कुछ नहीं सूझा जवाब| कमेन्ट लाजवाब|
@नीरज जाट जी:
बडडे ब्वाय, हैप्पी बर्थ डे, थैन्कयू।
@विचारशून्य:
बंधु, हिस्ट्री बदलती है तो जुगराफिया कहाँ बचता है?
और भाई इस्टाईल तो वही जो सू्ट कर जाए|
@अली साहब:
मौत से क्या उसे डराओगे, जिसको मरना भी जिन्दगी सा लगे|
मैं खुद हांक लगाकर कहता हूँ 'पापी कौन बड़ो है मो ते, सब पतितन में नामी, मो सम कौन कुटिल खल कमी'
फिर भी कोइ पिलाए तो मैं क्या करून?
@जाकिर अली रजनीश जी:
मैं तो पानी पानी हो रहा हूँ, शुक्रिया जाकिर भाई
@अंतर सोहिल, प्रवीण पाण्डेय जी, काजल कुमार जी:
आभार आप सबका|
जबरदस्त । ब्लॉगर होना इतना काम आता है ? वैसे आपको तो शेरो शायरी ने भी काफी बूस्ट किया ।
जवाब देंहटाएं@ इन्द्रनील जी:
जवाब देंहटाएंसैल जी, क्या पूछ लिया भाई जी? ’बावली बूच’ हरियाणवी भाषा का एक शब्द है जिसका अर्थ कम से कम मुझ बावली बूच से तो वर्णन ही नहीं किया जा सकता। इसके लिये आपको ताऊ रामपुरिया, ललित शर्मा जी, योगेन्द्र मोद्गिल जी और अन्तर सोहिल जी से मदद मिल सकती है। करता हूं कुछ समाधान का जुगाड़।
संस्मरणात्मक रूप से तो आज की पोस्ट बहुत लगी.... बावली बूच बहुत दिनों के बाद सुना.... मज़ा गया.... फत्तू अपना तो ग्रेट है....
जवाब देंहटाएंमजेदार शैली, रोचक पोस्ट.
जवाब देंहटाएं@ और कोई दिक्कत होने की सूरत में चार पांच ब्लॉगर्स के नाम नोट करवा दिये हैं, तो जिसके ब्लॉग पर भी पूछताछ वाला ट्रैफ़िक बढ़ता दिखाई दे, उस से अनुरोध है कि हमारे ऊपर वर्णित रूल वाले जेलर साहब की तरफ़ जेंडरबेस्ड पक्षपात न करे, नये लोगों की मदद करे और मन ही मन हमारा धन्यवाद करे।
जवाब देंहटाएंबात गठिया ली है। वैसे मेरा नाम दिए भी थे कि नहीं?
लगे हाथ यह भी बता देना था कि प्रतिभागियों में कितने मेल थे और कितने फी-मेल? इससे जेंडरबेस्ड पक्षपात की स्ट्रेटेजी बनाने में सहूलियत होती।
न तो बावली बूच पता है न फ़त्तू को कभी देखा.............
जवाब देंहटाएं@ Asha Madam:
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मैडम, आभारी हूं आपका।
@ Mahfooz Ali:
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Hi, 'Talk of the town' बने हैं जनाब। मुश्किल दौर में भी इधर आने के लिये शुक्रिया, दोस्त।
@ Girijesh Ji:
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सर जी, आप तो वैसे ही संभाल लोगे नये लोगों को(वर्तनी स्पेशलिस्ट), हमें ही किसने रेफ़रेंस दिया था आपका? और सारे मेल ही थे जी और सारे ही फ़ीमेल जैसे।
@ Archana Ji:
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बधाई हो आपको, दोनों ही बातें खुश होने लायक हैं।
मजेदार चुटकी. मजेदार पोस्ट.
जवाब देंहटाएंAaj pahlee var aana huaa aapkee lekhan shailee se koi bhee prabhavit hue bina nahee rah sakta .......fir hum kis khet kee moolee hai.................
जवाब देंहटाएंare ek arase baad ye kahavat use karne ka mouka mila...............
blog par kya aae soe hue bhav shavd kahavte sabhee jagrut ho gaye hai.....
ब्लॉगर होना इतना काम आ रहा है ...
जवाब देंहटाएंहम तो आजकल यहाँ का माहौल देखकर खुद को ब्लॉगर बताने से कतराने लगे हैं ...:)
जैसा मौसम की वैसी पोस्ट ...!
वैसे से ज तक अलग अलग पोस्ट लिखने की क्या जरुरत है ...
जवाब देंहटाएंहमारी तरह एक पोस्ट में मामला ख़तम कीजिए ...
@हेम पाण्डेय:
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आपका आभार।
@अपनत्व:
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मैडम, पहली बार पधारी हैं आप, प्रोत्साहन देने के लिये आभारी हूं।
@वाणी गीत:
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हम तो जी यहाँ का माहौल देखकर ही खुद को ब्लॉगर मान रहे हैं। आपकी तरह थोड़े में सब समेटना अपने से तो होगा नहीं जी, काश कि इतने सक्षम होते। बहुत बहुत धन्यवाद आपका।
Aapse request hai krishna Adeeb jee kee koi rachana padwaaiyega.............
जवाब देंहटाएंAabhar in advance . Jab post kare khabar kariyega .
barsaat ki kuch boondein ..man par pad gayi hai :)
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