आज यह पोस्ट लिखते हुये मन बहुत भारी हो रहा है। मैं जानता हूं कि कोई सीरियसली नहीं लेगा, मत लो यारो, मुझे जो कहना है कहूंगा ही। कई दिन से ये नाटक चल रहा था, कल कहीं जाकर पर्दा गिरा है।चलो, मामला एक तरफ़ तो लगा। पिछले दो तीन महीने से रोज दिन में कई बार फ़ोन पर मैसेज आ रहे थे ’इन्विटेशन’ के। सोनू निगम से शुरू हुये थे, फ़िर मीका का नंबर आया। जब देखो एक ही बात, ’आपको …. ने इन्वाईट किया है अपने ब्लॉग पर।’ शुरू में तो हम समझे कि भाई कुछ गलतफ़हमी सी हो गई है, हमने तो अपनी ब्लॉग यात्रा जिन ब्लॉग्स से शुरू की थी, वहीं से बेआबरू होकर निकाले गये थे और ये सितारे हमें काहे को इन्वाईट करने लगे? कुछ तो स्टैंडर्ड होगा ही इनका? वो रोज के रोज इन्वाईट करते रहे और हम इग्नोर करते रहे। महीना भर मैसेज भेजने के बाद कंपनी वालों को यकीन हुआ कि हम ’दोस्ताना’ टाईप के आदमी नहीं हैं, तब कहीं जाकर मैसेज आने बंद हुये। मन में थोड़ी सी शांति आई लेकिन पूरा इत्मीनान नहीं आया। इतना ज्ञान हमें बहुत पहले से प्राप्त हो चुका था कि पुरानी बीमारी, पुरानी यादें और पुरानी महबूबा अगर अचानक से ही सताना बंद कर दें तो यह कोई अच्छे लक्षण नहीं हैं बल्कि ये मुसीबतें अपने से बड़ी मुसीबतों को रास्ता देने के लिये जमीन तैयार कर रही हैं।
तो जी, हम तो एवररेडी थे नया पंगा झेलने को। दो दिन के बाद फ़िर से मैसेज आया, अबकी बार लारा के ब्लॉग का इन्विटेशन था। ले लो भैया, कर लो खेती और भर लो दंड। पता होता कि कलयुग के बाबाजी की तपस्या भंग करने के लिये ऐसी ऐसी अप्सरायें न्यौते भेजेंगी तो भैया हम तो सोनू निगम या मीका का ही आमंत्रण स्वीकार कर लेते। वक्त जरूरत पर बहस कर लेते उनके साथ, लड़ भिड़ भी लेते मौका देखकर लेकिन अब लारा के साथ तो झगड़ा भी नहीं कर सकते। दिल को मजबूत करके डिलीट कर दिया मैसेज। कहीं गृह-मंत्रालय के हत्थे चढ़ जाता ऐसा मैसेज तो हमारा नारको टेस्ट ही हो जाना था। लो जी, फ़िर से पुरानी कहानी शुरू हो गई, रोज वही संदेसा और रोज वही हमारा दिल को मजबूत करके डिलीट करना। पन्द्रह दिन तक लड़ाई चलती रही और एकबार फ़िर हम विजेता बने। दो दिन बिना मैसेज के निकल गये और तीसरे दिन फ़िर वही मैसेज की ट्यून सुनकर फ़ोन देखा तो अबकी बार विपाशा थी। नहीं जीने देंगे भाई ये मोबाईल कंपनी वाले। अबे यार, हम तो इसकी फ़िल्म भी नहीं देखते कभी, ऐसा नहीं कि अच्छी नहीं लगती, बहुत अच्छी लगती है पर हम ठहरे वो जिन्होंने बचपन में ही lufthansa का विज्ञापन देख रखा है, ’we check the people, who check the craft you travel’. वो उसका जॉन है न, उसकी बाडी देखकर हौल सा पड़ जाता है| कहीं उस एथलीट को पता चल गया तो हम भाग भी नहीं सकेंगे। है तो बाईक भी अपने पास, पर वो भी अपने जैसी ही है, चालीस की रेंज वाली और वो ठहरा ’धूम मचा दे।’ कई दिनों तक मन पर काबू रखे रखा, लेकिन कल पता नहीं मौसम बेईमान था या क्या था, कल मैसेज आया तो फ़ैसला कर लिया कि आज विपाशा का न्यौता स्वीकार कर ही लेना है, जो होगा देखा जायेगा। इरादा पक्का करके शाम को बैंक से अपनी बाईक उठाई और चल दिये घर की ओर जैसे चंगेज़ खान इस शस्य श्यामला धरती पर कब्जा करने के लिये पता नहीं कितने सौ मील से घोड़े पर सवार होकर आया था। गांव से बाहर निकले ही थे अभी, एक मोड़ सा है वहां, जैसे ही मोड़ पार किया एक काला कुत्ता एकदम से बाईक के आगे आ गया। अमां, हम खोये हुये थे सांवले से ख्यालों में और सामने आ गया ब्लैक एंड ब्यूटीफ़ुल। मुश्किल से बचाया उसे और वो सड़क के दूसरी तरफ़ जाकर हमें ही घूर रहा था। ये समय आ गया है आजकल। अब काली बिल्ली के रास्ता काटने पर अपशगुन होता है, ये तो सुना था लेकिन काला कुत्ता रास्ता काट जाये तो क्या होता है? और फ़िर याद आ गई तीन साल पहले की एक घटना। सुबह के समय बस स्टैंड से बैंक की तरफ़ जा रहा था कि अचानक सड़क की दूसरी तरफ़ से अपनी तरफ़ भागकर आते एक पिलूरे पर नजर पड़ी। बिना जैब्रा क्रॉसिंग के ही सड़क पार कर रहा था और उसके गतिमान शरीर को देखकर मैं अचंभित रह गया था। ऐसा लगा मुझे कि वो मेरी तरफ़ आते हुये जैसे गाना गा रहा हो -
तेरा मुझसे है पहले का नाता कोई, यूं ही नहीं दिल लुभाता कोई,जाने तू या जाने ना, माने तू या माने ना।
पहले भी मैं तुझे दांतों में लेकर, चाटा किया और काटा किया,
जाने तू या जाने ना, माने तू या माने ना।
और मैं उसे देख ही रहा था कि उसने आकर मेरी बाईं पिंडली अपने मुंह में भर ली थी। मुझे तो पता ही बाद में चला जैसे हमारी सरकार को बहुत बाद में पता चला था कि कारगिल में आकर पाकिस्तान ने अड्डा जमा लिया है। तो जी, जब हमारे कारगिल पर उस पिलूरे ने दांत गड़ा लिये उसके बाद ही हम एक्शन में आये। वो वाली टांग नब्बे डिग्री तक उठा दी थी और वो पिलूरा भी ऐसा जिद्दी अपने पडौसियों की तरह कि लटक ही गया पर छोड़ा नहीं। हाथ में जो बैग था उससे मारकर उसे भगाया, लेकिन तबतक वो चाटे, काटे, दोऊ भाँति विपरीत वाला काम कर चुका था। बाद में देखा तो पेंट में उसके दांतों से कट लग गया था। पिंडली सुरक्षित थी लेकिन उस दिन के बाद से मुझे भी चाटने और काटने की आदत सी हो गई है। वो पेंट अब तक संभालकर रखी है, आदमी को निराशावादी नहीं होना चाहिये। जब सचिन का पैड, एल्विस प्रैस्ले की गिटार, सलमान की शर्ट और ….. के अंतर्वस्त्र नीलाम हो सकते हैं तो क्या पता जी दस बीस साल में हमारी उस पेंट का भी नंबर लग ही जाये।
खैर, बात अभी की चल रही थी और दिमाग पहुंच गया तीन साल पहले की बात पर। कल की बात पर लौटते हैं, उस कुत्ते को बचाने में लड़खड़ा गये थे और निहारने में तो ऐसा डगमगाये कि बाईक को संभाला सड़क के किनारे खड़े एक पेड़ ने। बहुत नुकसान हो गया जी हमारा तो, और हमारे से ज्यादा गृह-मंत्रालय का। जिसकी इन्श्योरेंस एक्सपायर्ड थी, हमारी बाईक, वो ज्यादा डैमेज हो गई और जिसकी इन्श्योरेंस इंटैक्ट थी एकदम टन्न, यानि हम, वो सिर्फ़ टूट फ़ूट कर रह गये। वहीं पर बैठे बैठे मन ही मन विपाशा से माफ़ी मांग ली और लारा से भी। सॉरी लारा, सॉरी बिप्स – हमारे भरोसे मत रहना। मत करना हमारा इंतजार, तुम जाओ अपने परफ़ैक्ट मैच के पास, हमारी तो देखी जायेगी। यूँ भी बड़े नाखूनों वाली और लिपस्टिक लगाने वाली सुंदरियों को हम दूर से ही प्रणाम करते रहे हैं।
देश की शायद सबसे बड़ी मोबाईल सेवा प्रदाता कंपनी के मालिक लोगों, पिछले दिनों आपने साऊथ अफ़्रीका में एक बड़ा टेक ओवर किया है, बहुत बहुत बधाई हो। अगले दिन अखबार में पढ़ी थी स्टेटमेंट कि पचास हजार से काम शुरू किया था, और अब संभवत: पचास हजार करोड़ की डील की है आपकी कंपनी ने। सच में बहुत तरक्की की है आपने। अब आपने इतना योगदान दिया है देश की अर्थव्यवस्था में, बहुत कुर्बानी दी है आपने लेकिन यार ये उलटे सीधे तरीके से अपने उपभोक्ताओं को चूना लगाकर पैसा कमाना सीखा कहां से है? महीने के तीस-पैंतीस रुपये हमारे जैसे हर उपभोक्ता के ख्वाम्ख्वाह में लग भी जायेंगे तो वो मरने वाला नहीं है, तुम्हारा पेट जब भर जाये तो बता देना। हम तो बिना मोबाईल के भी जी लेंगे, तुम्हारा काम कैसे चलेगा?
:) फ़त्तू और उसका चेला गली के बीच में अपनी अपनी चारपाई बिछाकर सो रहे थे। एक ट्रैक्टर वाले को वहां से होकर गुजरना था, कई बार हार्न बजाने पर भी कोई हरकत न हुई तो वो और उसके साथी ट्रैक्टर से उतर कर चारपाई के नजदीक आकर उन्हें आवाज देने लगे। फ़त्तू ने मुंह से चादर हटाई और कहने लगा, “भाई, कितना ही दुखी हो ले, यो तो सै महा आलसी, कोई फ़ायदा न होगा। तमनै जाण की जल्दी सै तो एक काम करो, मेरी चारपाई ने उठाकर साईड में कर दो, मैं तो इतना ए कर सकूं सूं थारी खातिर।"
बिना जैब्रा क्रॉसिंग के ही सड़क पार कर रहा था और उसके गतिमान शरीर को देखकर मैं अचंभित रह गया था। यह पंक्ति बहुत अच्छी लगी... अच्छा एक बात है ... सिस्टम पर कटाक्ष करना कोई आपसे सीखे... कितनी सफाई से... आप हालातों को बता जाते हैं... आप व्यंग्य किंग हैं.... अरे! फत्तू आजकल आलसी कैसे हो गया.... लगता है खेतों में नहीं जा रहा है आजकल....
जवाब देंहटाएंUffo..us pant ka ek photo to laga dete post pe!
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंपास में मोबाइल होना वरदान कम अभिशाप ज्यादा हो चला है जिसे देखो जब चाहे घुस आता है हमारी जाती जिंदगी में ,बेधडक , पूरी अशिष्टता के साथ बिना दरवाजा खटखटाए ! कोई टाइमिंग नहीं ! ना काल्स की और ना ही एस एम एस की ! आप शव यात्रा में हों या बीबी के साथ आलिंगन करते हुए , क्या फर्क पड़ता है ?
जवाब देंहटाएंअब टेली मार्केटिंग कहिये या कुछ और ...मुझे तो पहली नज़र की बदतमीजी ही लगती है !...खैर एक खूबसूरत आलेख ,सुचिंतित आलेख !
टिप्पणी अगर फत्तू की खटिया सी लगे तो साइड में उठा के रख दीजियेगा ,आप के लिए इससे ज्यादा क्या किया जा सकता है :)
हा हा!! बहुत सटीक लेखन!!
जवाब देंहटाएंफत्तू को आलसी महाधिराज की उपाधि से नवाज़ा जाये.
वाह!
जवाब देंहटाएंकुत्ते के भेस में वह पडोसी देश का (या भ्रष्ट अंग्रेज़ों का) जासूस रहा होगा। वे भी जलते रहते हैं कि उनके पास न तो ताजमहल है, न लता मंगेश्कर और न मो-सम-कौन. वैसे अफवाहें यह हैंकि ब्रिटेन में कोन वाली एक आइस्क्रीम का नाम मोसमकोन रखने पर विचार चल रहा है।
जवाब देंहटाएंभाभीजी, आप और फत्तू ठीक हैं, यह खुशी की बात है।
यह वी आई पी काल सिर्फ आपको आ रही हैं ...हमें तो नहीं आती कभी सोचा है कि नाम में क्या है ??
जवाब देंहटाएंमो सम कम को बदल लो काल आनी बंद हो जायेंगी :-)
दिन में दो बार करोड़ो-अरबों की लॉटरी निकाल देते हैं ये ईमेल वाले, कुछ इस पर भी लिख ही मारो। सुबह जैसे ही नेट खोलते हैं एक-दो मेल मिल जाती है बधाई देती हुई कि आप को पता नहीं कितने जीरो लगाकर इनाम मिला है। वैसे बढिया व्यंग्य है, बधाई।
जवाब देंहटाएंजनाब ये बहुत अच्छी आदत है कि you check the people who check the craft you wish to travel. ये वाली लाइन मुझे पसंद आयी. मैंने अपनी तरफ से सिर्फ wish शब्द को जोड़ा है. भैया हम तो wish ही कर सकते हैं कि आपके लेखन में ये comedy content बना रहे. व्यंग रस से भरपूर लेखन. पढने में बहुत मजा आया.
जवाब देंहटाएंआज तक कोई बिप्स हमारे ई मेल मे क्यो नही आई . पता भी नही चल पायेगा क्योकि फ़त्तू आलसी जो हो गया
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर गीत है। लारा और बिप्स, हाँ वो भी।
जवाब देंहटाएंजितना समय सारा दिन फोन पर बात करने में खर्च करते है उससे ज्यादा समय ऐसे मैसेज को डिलीट करने में लग जाता है | अच्छा व्यंग |
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक...
जवाब देंहटाएंबहुते मजेदार.
जवाब देंहटाएंरामराम.
पढ़ तो कल रात ही लिया था लेकिन टिप्पणी करने के लिए अभी आया हूँ.. चेक करना चाहता था कि आपकी पोस्टों का कितना प्रभाव रहता है दिमाग पर.. और सच है अभी भी ताज़ी ही लग रही है.. :P वैसे आइडिया वालों ने मेरा भी हजारों का चूना लगाया था इसी तरह जब मैं भारत में था.. एक तो नंबर अपने आप ही मेरे नाम से चालू कर उसका बिल भेजते रहे और जब मैंने साकेत ऑफिस में आइडिया का वो नंबर बंद करने की अर्जी दी तो उसे भी गायब कर दिया.. बाद में गुंडों को लगा दिया वसूली के लिए.. वो तो उनमे से एक बंदा जो शरीफ सा था उसे मेरी बात में असलियत जान पड़ी तब उसी ने आइडिया वालों के बजाय मेरी मदद की.. और इस तरह निपटारा हो पाया..
जवाब देंहटाएंपता नहीं इतने लोगों की बददुआ ले के कहाँ जाएगा ये बिड़ला..
बहुत सटीक व्यंग और सुन्दर गीत
जवाब देंहटाएं@महफ़ूज़ अली:
जवाब देंहटाएंमहफ़ूज़ मियां,आपके कमेंट से तो व्यंग्य किंग आप ही दिखते हैं,ले लो मजे:)
@Kshama Ji:
हां जी, ये गलती हो गई. नीलामी से पहले फ़ोटो जरूर छापेंगे।
@अदा जी:
क्या मज़ाक करती हैं आप, सच में।
सदैव आभारी।
@Ali Sahab:
हम तो खुदै महा आलसी हैं, जिसका रास्ता रुकेगा खुद ही हटायेगा, तब तक तो मजे से रहो साहब।
@Sameer Sahab:
सरजी, धन्यवाद।
@ktheLeo:
आभार आपका।
@Anurag Sharma Ji:
तो सरजी, अब गोरे भी भकोसेंगे मोसमकोन को? देखी जायेगी।
@सतीश सक्सेना जी:
सतीश साहब, ये कंपनियां नाम नहीं देखती हैं इन्हें सिर्फ़ दाम से मतलब है। मैसेज आते हैं, काल आयी कभी तो आपका रेफ़रेंस जरूर देंगे सर।
@Ajit Gupta Ji:
मैडम, सच कहती हैं आप। जरा देखियेगा, एकदम शुरूआती दौर था मेरा, तबकी पोस्ट है।
http://mosamkaun.blogspot.com/2010/01/blog-post_22.html
@Vichaar Shoonya:
दीप, ऐसी विश के बाद कुछ और भी रह गया क्या?
@Dhiru Singh Ji:
आयेंगी जी, ये नहीं तो कोई और आयेंगी। उम्मीद मत छोड़ियेगा।
@प्रवीण पाण्डेय जी:
सरजी, प्रेफ़रेंस आगे पीछे नहीं हो गई कुछ?
@anshumala:
धन्यवाद आपका।
@sajid:
वैलकम साजिद, शुक्रिया।
@ताऊ रामपुरिया:
ताऊ, घणे दिन में संभाल्या बालक को?
अच्छा लगा आपका आना।
रामराम।
@दीपक ’मशाल’:
दीपक, रंज मत करो, यार। तरस खाओ इन पर। कितनी भूख है इनकी, ये सोचो।
@deepajchaubey:
स्वागत है दीपक जी आपका।
सर जी, अच्छा है.
जवाब देंहटाएंसुना है, आज मोबाइल सेवा को हिंदुस्तान में १५ साल पूरे हो रहे हैं . अभी तो लड़कपन था , देखते जाइए जवानी में क्या गुल खिलाती है यह सेवा.
lekhan shailee bahut hee mazedaar.......baandhe rakhane me saksham........
जवाब देंहटाएंaur aapke blog ka naam .........mo sum koun?
..........KOI NAHEE .
वाह!
जवाब देंहटाएंगज़ब का लिखा है, मैं पहली बार आया हूँ .. जरा इत्मीनान से सब पढूँगा..अभी तो वो पैंट कल्पना में है :)
सच में आप सम कौन? :)
@prkant:
जवाब देंहटाएं-------
कांत साहब, कौन सा ये जवानी के गुल पहली बार देखने हैं, देखेंगे इसे भी।
@Apnatva:
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सरिता मैडम, आपका बहुत आभार। आने का भी, कमेंट करने का भी और मेरे इस दावे को समर्थन देने के लिये भी ’मो सम कौन कुटिल खल कामी’ - कोई नहीं।
@Avinash Chandra:
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धन्यवाद अविनाश, आपकी क्षत्रियता वाली कविता पढ़कर, अभिभूत होकर मैं पहले ही आपके ब्लॉग से होकर आ चुका हूं। (कमेंट शायद नहीं किया था, कुछ देने में बहुत कंजूस हूं:)।
thanx again.