स्वीकारोक्ति: कुछ बातें न लिखूं तो बात बनती नहीं, अब बीच में छोड़ दूं तो भी ठीक नहीं। मुझे शायद ये पोस्ट लिखनी ही नहीं चाहिये थी| अब रिक्त स्थान की पूर्ति अपनी सोच और हमारी उस समय की मानसिकता के हिसाब से स्वविवेकानुसार भर लें और पढ़ें।
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हमारी गेम अगले दिन से शुरू होनी तय हुई थी, चुनांचे रात में हर वो गाना, हर वो शब्द जिसमें ’ल’ वर्ण का इस्तेमाल होता है, गाया गया, बोला गया और दोहराया गया। हंस रहे थे कि प्यास बुझा लो सारी, कल का दिन तो इस वर्ण पर बैन हो ही जाना है। सुबह जब हरि ओम शरण की आवाज में ’स्वीकारो मेरे प्रणाम’ ने जब नींद खोली तो पांचों पांडव जैसे पवित्रता की नदी में गोते लगाने को तैयार थे। कुछ बात करने से पहले ही सारा हिसाब रखते कि कहीं वर्जित वर्ण तो नहीं आ रहा है? आ रहा हो तो पहले उसका सब्स्टीच्यूट सोचते, फ़िर बोलते। ऐसे धीमी गति से सब बात कर रहे थे जैसे रेडियो में कभी धीमी गति के समाचार आया करते थे। सबसे ज्यादा मजे हमारा राजीव ले रहा था। वैसे ही कम बोलने का आदी, जब बोले तो ऐसी फ़ुलझड़ी सी छोड़ने वाला कि पूछिये मत। हिसाब किताब रखने की जिम्मेदारी सबसे जूनियर एस.के. को सौंप दी गई थी, लिहाजा सबसे संजीदा वही था। जैसे रमी में देखा होगा आपने ताशेडि़यों को, प्वाईंट्स याद रखते हैं, हमारा एस.के. ऐसे ही सबके स्कोर याद कर रहा था। अब अपने से तो बंधन में रहना होता नहीं था, ऑफ़िस के लिये निकलते तक अपन की रैंकिंग(डिफ़ाल्ट्स में) सबसे ऊंची थी। बाकी हर जगह पर लाईन में सबसे पीछे रहने वाले अपन शुरू से ही पेनल्टी, जुर्माने वगैरह में सबसे आगे रहा करते हैं। लेकिन जो भी हो, मजा बहुत आ रहा था। कभी बेध्यानी में कोई ऐसा शब्द मुंह से निकलता तो सारे शोर मचा मचाकर स्कोर अपडेट करवा देते। बोले गये शब्दों की मात्रा आधी से भी कम रह गई थी।
दोपहर तक भी प्रोग्राम ठीक ठाक ही चलता रहा। प्रशासनिक कार्यालय था, हम सब अलग अलग विभाग में थे, लेकिन एक ही फ़्लोर पर एक ही हॉल में बैठते थे हम सब, तो स्कोर अपडेशन भी चलता रहा। फ़िर आया हमारा अघोषित टी ब्रेक का समय। सारे बैठ गये एस.के. की सीट के आस पास। चाय का आर्डर दे दिया गया, जीतू और मैंने अपनी हर फ़िक्र को धुंये में उड़ाना शुरू किया। मेरा यार जीतू, ताल फ़िल्म तो बहुत बाद में आई थी, नहीं तो उसका गाना ’ताल से ताल मिला’ जैसे हमारी ट्यूनिंग की कहानी कहता है। बातें करते करते मेरे से गलती हुई और एस.के. ने फ़ौरन स्कोर बताया, बाईस। मैं अपनी रौ में फ़िर कुछ कह गया, आवाज आई ’तेईस।’ उधर से जीतू ने भी कुछ बोला, एस.के.बोला, आठ। साथ की सीट पर बैठा उसके बॉस, मि.सिंह थोड़ा सा हैरान होकर अपने असिस्टैंट की तरफ़ देखने लगे। अब अपना दिमाग सरक गया, ’मत चूके चौहान।’ एस.के. के सरनेम में ही ’ल’ वर्ण आता था, मैंने पूछा, “………., यार तूझे अभी आराम नहीं आया क्या? चल डॉक्टर के पास होकर आते हैं।” भाई एक्दम से बोला. ’छब्बीस।’ उसका बॉस मुंह बाये देखे उसे। जीतू ने ताल से ताल मिलाई, “सिंह साहब, आपके चेले को” यहीं तक बोला था कि एस.के. कूद पड़ा उसकी तरफ़ इशारा करते हुये, ’नौ’। लो जी बाद्शाहो, ताल से ताल मिल गई हम दो बेफ़िक्रों की। बड़े सीरियस होकर सिंह साहब से कहने लगे कि पता नहीं लड़की-वड़की का चक्कर है या क्या है, ये कल रात से बहकी बहकी बातें कर रहा है। कभी चार बोलता है कभी सत्रह, उधर एस.के. पूरी संजीदगी से अपनी स्कोरिंग में बिज़ी। सिंह साहब ने बड़े प्यार से उससे पूछा, “क्या दिक्कत है, बताओ?” मुस्कुरा कर एस.के. ने सिर हिला दिया, ’ नथिंग।’ मैंने पूछा, “अच्छा, अपना नाम बताओ?” बोला, “एस,के।” मैंने कहा पूरा नाम बताओ। कैसे बोलता, सरनेम में ’ल’ आता था। कहने लगा “जस्ट एस.के.।” जीतू ने ट्यूबलाईट की तरफ़ इशारा किया और पूछा, “ये क्या है?” जवाब आया, “ट्यूब।’ मैंने कहा, “अबे यार, ट्यूब तो साईकिल, स्कूटर के पहिये में भी होती है, इसका पूरा नाम बता। ये जो लाईट देती है, सतर्क एस.के. ने फ़ौरन मेरा ताजा स्कोर बोल दिया। मैंने कूलर की तरफ़ इशारा करके पूछा कि ये क्या है तो उसने कंधे उचका दिये कि पता नहीं। राजीव तो हमारा था ’चुप्प छिनाल’ जैसा, हंसता गया और शोलों को और हवा देता गया बीच बीच में, अब वो भी जान बूझकर अपना स्कोर बढ़्वाने लगा। एस.के. अकेला, सामने हम तीन चार लुच्चे, जैसे वो मुहावरा कहते हैं कि ’रजिया फ़ंस गई गुंडों में’, अपने बोलने पर भी उसका ध्यान, हमारे बढ़ते स्कोर पर भी उसकी तेज नजर। देखते देखते महफ़िल रंग पकड़ती गई, आसपास की सीटों से भी स्टाफ़ उठकर पास आ गया और माजरा समझने की कोशिश करने लगा। अब एस.के. कभी मेरी तरफ़ देखकर कहे उनतीस, उधर जीतू भी इक्कीस, बाईस पर पहुंच गया, उधर से राजीव भी बारह-तेरह की रेंज में और खरबूजों को देखकर राजा खरबूजा भी डबल फ़िगर में पहुंच गया। एस.के. का स्कोर अभी भी चार पर ही रुका हुआ था। बीच बीच में एस.के. को लगा भी कि शायद बात कुछ बिगड़ रही है, तो मैं सीरियस होकर कह देता कि जो बात हुई है, वो बात तो कायम रहेगी।
तो साहब लोगों, हमारा टी ब्रेक उस दिन पौन घंटे का चला। राजीव और राजा हंस हंसकर, मैं और जीतू जानबूझकर फ़ंस फ़ंसकर एस.के.को नचा रहे थे लट्टू की तरह। हमारी गलतियों की स्पीड बढ़ती जा रही थी और उसी स्पीड से एस.के. की स्कोरिंग। हॉल के लगभग सभी स्टाफ़ सदस्य भौचक्के होकर हमारे स्कोरर की तरफ़ देख रहे थे। हम भी कब तक अपनी हंसी रोकते, ठठाकर हंस ही पड़े। और हमारा जूनियर एस.के., अपनी सीट से उठ खड़ा हुआ और चिल्लाकर बोला, “अपनी ….….. गई तुम्हारी ये गेम, मेरा *** बनाकर रख दिया तुम सब ने। आज के बाद किसी ने मेरे से बात भी की तो, मुझसे बुरा कोई नहीं होगा। दोस्त नहीं हो, तुम मेरे दुश्मन हो सालों।” मैंने फ़ट से टोका, तेरा स्कोर पांच हो गया।" ’गुस्से में आगबबूला होते हुये वो चीखकर बोला, “पांच हो या पचास, आई एम आऊट फ़्रॉम युअर गेम, और सुनो, सालो मैं बोलूंगा और बार बार बोलूंगा, ल ल ल ल ल ल ल ल ल ल ल ल ल ल ल ल। जाओ, कर लो जो करना है।” हम चारों पागलों की तरह हंस रहे थे, वो गुस्से में ल ल ल ल ल ल ल ल ल करे जा रहा था और स्टाफ़ के सभी जने पूछ रहे थे कि यार कहानी क्या है? अब कहानी कुछ होती तो बताते। आप ही बताओ है कुछ हमारे बताने लायक और आपके सुनने लायक बात? खामख्वाह में उंगलियां तुड़वा दीं मेरी आप सबने भी, तारीफ़ कर कर के।
बस एक शंका का समाधान कर दो, जब मैं लंबे लेख लिखता हूं तब भी नाराजगी, पार्ट में लिखा तब भी गिला। तभी तो कहता हूं कि मुझपर तो आरोप लगते ही रहे हैं, कुछ न कुछ। मुझे कैसे चैन से जीने दोगे मेरे मीठे दुश्मनों? बुरा मत मानना, जितना प्यार दोगे, उतना सर चढूंगा मैं, और सबको झेलना ही होगा मुझे। आज की मेरी परेशानी और फ़त्तू की बात एक जैसी ही है।
:) फ़त्तू की तबियत खराब थी। सबने उसे चारपाई पर लिटाकर घर के अंदर वाले कमरे में लिटा दिया। फ़त्तू चिल्लाने लगा कि गरमी में मार दिया। चारपाई उठाकर बाहर आंगन में रख दी गई। थोड़ी देर में फ़त्तू फ़िर शोर मचाने लगा कि सर्दी से जान निकाल कर मानेंगे सब। फ़िर अंदर लिटाया तो फ़िर गर्मी का रोना और बाहर लिटाया तो थोड़ी देर के बाद फ़िर सर्दी का कलेश। गुस्से में आकर चारपाई दहलीज के बीच में रख दी गई, आधी अंदर और आधी बाहर कि अब कर शिकायत, कौन सी करेगा? पांच सात मिनट के बाद फ़त्तू ने फ़िर चिल्लाना शुरू किया, “सालों, सब मेरे दुश्मन हो, मुझे मारकर ही दम लोगे, सर्द-गरम हो गई मेरे को, तो?
सबक – खुद कुछ न भी कर पायें तो कोई गम नहीं, दूसरों के दोष जरूर निकालते रहें ताकि लोगों के जेहन में जिन्दा रह सकें। और ये फ़ार्मूला यहाँ, इस ब्लॉगजगत में तो बहुत ही कामयाब है।
p.s. – अब एक खुशखबरी। आप सबकी एक सप्ताह की छूट्टी हमने मंजूर कर ली है। एक और घाट का पानी पीने कि लिये शायद 4 से 11 तक बेघर हो रहा हूं, तो कुछ और झेलने से बच गये न सब? लेकिन कब तक बकरे की मां, भाई, चाचा, भतीजे खैर मनायेंगे? मैं फ़िर आऊंगा। चलो अब ताली बजाओ सब बच्चा लोग।
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जवाब देंहटाएंवाह रे फत्तू तेरी मया
जवाब देंहटाएंवाह....एकदम धाँसू-हाँसू-फाँसू पोस्ट है जी......बोले तो डबल रापचीक विथ तड़का।
जवाब देंहटाएंहम तो एस के के हालत पर सोच सोच कर हंस रहे हैं कि वह किस मनस्थिति में होगा जब बाकीयो का स्कोर बढ रहा हो और वह चाहकर भी कुछ कह न पाता हो :)
और फत्तू....उसको तो एक पैग पिलाना था ... मौसम विभाग बन गये थे फत्तू महाराज तो :)
जवाब देंहटाएंरोचक प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंबच्चे पर इतना जुल्म? हंसी रोके नहीं रुकी.
जवाब देंहटाएंपढ़कर आनन्दिया गये ।
जवाब देंहटाएंहा हा हा
जवाब देंहटाएंबहुत मज़ा आया । मान गए वस्ताद !
हॉस्टल में इस तरह के प्रकरण आम हैं लेकिन ऐसे विषय पर इतनी सशक्त पोस्ट तो गुणी जन ही लिख सकते हैं
।
फत्तू तो ग़जबे है।
दूसरों के दोष निकालने की अपनी आदत पर अब लगाम लगा रहा हूँ लेकिन मुई छूटती ही नहीं ;)
मार ही डालोगे सरजी, बिचारे फत्तू का तो हाल ही ख़राब कर दिया इस सर्द गर्म ने............. इस ल के बाद दूसरों का क्या हुआ.................
जवाब देंहटाएं@ गिरिजेश राव जी:
जवाब देंहटाएं--------------
सरकार, ये मतलब निकालोगे हमारे सबक का? होता पहले का समय तो हम चुल्लू भर पानी में डूब ही गये होते अब तक, सीरियसली कह रहा हूं।
आप जैसों की टोका टाकी ही हम जैसों को जिलाये रखती है, मान सकें तो मान लीजिये, नहीं तो हम तो आदी हैं ही हर इल्ज़ाम अपने सर लेने के, हम मान लेंगे कि हमारे कारण औरों का सुधार होने से रह गया।
हमें छोड़ देना पर इस आदत को मत छूटने देना, सरजी।
मैंने सुना था तालियां बजाने की कोई उम्र होती है :)
जवाब देंहटाएं( आइये लौट कर आइये )
गिरिजेश जी,
जवाब देंहटाएंहा हा हा
बहुत मज़ा आया । मान गए वस्ताद !
हा हा हा ..
अब आया है 'उस्ताद' पहाड़ के नीचे.....:):):)
ओये होय ओये होय.....ओये होय ओये होय....
हा हा हा ...
ल ल ल ल ल ल ल ल ल ......... मेरे कितने पाइन्ट हुये .
जवाब देंहटाएंतालियां
जवाब देंहटाएंमजा आया ये वाक्या पढकर
राम-राम
बहुत मस्त पोस्ट है दोनों...गजब ज़िंदगी जिए हैं आप भी. अनुभव से निकलने वाले मामले अलग ही है. फिक्शन उनका मुकाबला नहीं कर सकता.
जवाब देंहटाएंबढ़िया खेल है ... try करना पड़ेगा !
जवाब देंहटाएंshaandar post hai..badhai.
जवाब देंहटाएंvaah - aap bhi great hain :)
जवाब देंहटाएंarey ??? moderation ??
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