"दो महीने में दीवालिया हो जायेगा पाकिस्तान, सैलरी को भी नहीं पैसे"
1. ये मैं नहीं कहता जी, वहाँ के वित्त मंत्री अब्दुल हाफ़िज़ शेख ने कहा है। और मुझसे नहीं कहा है, ये आज के दैनिक भास्कर के एक समाचार का शीर्षक है। खबर में वही बढ़ता रक्षा खर्च और उसी अनुपात में बढ़ता कर्ज, आई.एस.आई. को दी जाने वाली भारी सरकारी मदद, भीषण बाढ़, राहत सामग्री का खुले बाजार में बिकना, कर्ज का पाकी जी.डी.पी. का आधे से अधिक होना और अंत में यह घोषणा कि हालात ऐसे ही रहे तो दो महीने के बाद पाकिस्तान के पास कर्मचारियों को तनख्वाह देने के पैसे नहीं रहेंगे।
.............
2. शुरू में खल वंदना हो गई, अब सुनो एक छोटा सा पुराना और बासी चुटकुला। अखबार में एक मशहूर बदमाश ने विज्ञापन दिया, "बीबी चाहिये।" तीन दिन में ही उसके पास तीन हजार से ज्यादा मेल आ गये, "हमारी वाली ले जा।"
आर्थिक परिदॄश्य पर आजकल मर्जर का जमाना है। बेशक हम अति साधारण इंसान हों, इरादे बहुत बुलंद हैं हमारे। हम भी मर्जर करेंगे, भले ही पोस्ट के स्तर पर। शेख साहब इतना तो जानते ही होंगे कि उनके देश की ये हालत क्यों हुई। कोई बात नहीं, आखिर पड़ौसी ही पड़ौसी के काम आता है। आपकी चिट्ठी को हम तार समझते हैं, और इस खबर को विज्ञापन, तो पैरा संख्या 1 और 2 का मर्जर करते हुये हमारी पेशकश है कि "हमारी वाली ले जा" मतलब हमारे वाले प्रधानजी को ले जा। बहुत शरीफ़, कर्मठ, ईमानदार, फ़र्माबरदार है। जहाँ तक हमारा अंदाजा है जरूरी काम करने से पहले भी "मैडम, मे आई गो टू......?" की आज्ञा ले लेते हैं। आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ और जी.डी.पी. के माहिर हैं। जब हालात सुधर जायें तो भेज देना वापिस, तब तक हमारी तो देखी जायेगी।
p.s. - पुरानी कहावत है, भैंस तो गई सो गई, काटड़ू को साथ ले गई - नया जमाना है तो काटड़ू के साथ भैंस भी लेकर जानी पड़ेगी नहीं तो वांछित परिणाम मिलने की कोई गारंटी नहीं है।
:) मेरे एक प्रिय ब्लॉगर सतीश पंचम जी ने एक पात्र परिचय करवाया था - जाहिली जी। उसी से प्रेरणा लेकर आज की डोज़।
एक चोरी के मामले में फ़त्तू धरा गया। पहली से तीसरी डिग्री तक सब फ़ेल हो गये, लेकिन फ़त्तू ने जुर्म नहीं कबूला। थानेदार ने रोटी पानी सब बंद कर दियाकि भूखा मरता तो कबूलेगा ही। तीसरे दिन तक तो फ़त्तू झेल गया, फ़िर गुहार लगाई कि मर जाऊंगा, कुछ दे दो खाने को, मैं कबूल कर लेता हूं। कस्टडी का एक दिन ही बचा था, थानेदार ने खुश होकर चाय-बिस्कुट खिलवाये। छककर खाकर जब फ़त्तू उठा तो थानेदार ने कहा कि चल अब कबूल कर चोरी तूने की थी।
फ़त्तू: कुण सी चोरी जी?
थानेदार: अबे साले, पांच दिन पहले की थी तूने, इब पूछै सै कुण सी चोरी? तेरे तो अच्छे भी कबूलेंगे।
फ़त्तू: थानेदार साहब, एक दिन और सूँ थारे धोरे, फ़ेर तो जमानत हो ही जायेगी। पन्द्रह मिनट पहले जो चाय-बिस्कुट खिलाये थे, वो तो कबूल करा लै पहलां, फ़ेर करियो पांच दिन पुरानी चोरी की बात। बड़े आये कबूल करवाने वाले......
गाना सुनो अज्ज पंजाबी दा, सुरजीत बिन्दरखिया दी अवाज विच्च
ये बात सौ फीसदी सही है की पड़ोसी ही पड़ोसी के काम आता है! बहुत सुन्दर और शानदार पोस्ट! उम्दा प्रस्तुती!
जवाब देंहटाएंबीमारी उन्नी पालनी चाइदी है जिन्नी अफ्फोर्ड हो जाय। अंतरसाब जद अपना सिंहनाद, आय मीन सिंहसाब जब अपना अंतर्नाद करना शुरू कर देंगे तो वहां के "कंगाल बैंक" वाले हर रोज़ पिछले महीने से अपनी एफडी के रेट बदलने और् ब्याज़ की पुनर्गणना कर-कर के या तो पागल हो जायेंगे या आत्महत्या कर लेंगे। न ब्याज़, न मूल, हम भूले तू भी भूल!
जवाब देंहटाएंडालर की फ़रियाद है ,बाकी तो मस्त लिखा ही है !
जवाब देंहटाएंवाह कमाल है व्यंग अच्छा लगा और चुटकुले भी। वैसे पाक मैडम को ही क्यों नही ले जाता? वहीं से दोनो तरफ हुक्म चलाने की क्षमता तो उसमे है---- शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंबढ़िया लिखा है आपने ....
जवाब देंहटाएंजनाब, एक ही पोस्ट में इतनी सारी बाते ..........
इसे भी पढ़े :-
(आप क्या चाहते है - गोल्ड मेडल या ज्ञान ? )
http://oshotheone.blogspot.com/2010/09/blog-post_16.html
रक्षा बजट ने कई देशों की अर्थव्यवस्था डंवाडोल कर दी है। पाकिस्तान तो और किसी मद पर काम कर भी नहीं रहा था।
जवाब देंहटाएंआजादी के समय से ही काम आ रहे है, कुछ समय तक पाकिस्तान की करेंसी भी अपन ने ही छाप के दी थी. ना दी होती तो बढ़िया रहता आज चैन से तो रहते.................... घर के अन्दर की आफतें तो सुलटती रहती
जवाब देंहटाएं"मैडम, मे आई गो टू......?"
जवाब देंहटाएंबढिया........
व्यंग का अंदाज़ बहुत ही अच्छा लगा.
हाँ फ़त्तू ने थानेदार ते कही होगी...... रे बावले ... तेरे तो देव भी आ जा तो भी चोरी कबूल न करवा सकें .
बड़ी मजेदार बात है, मैंने ब्लॉग जगत में अभी तक एक भी कांग्रेस का समर्थक नहीं देखा, पर जीतती हर बार वहीँ है ! मैं ज्यादा राजनीति तो नहीं समझता पर मनमोहन सिंह जी की जितनी जीवन शैली देखी है, उससे उनको भ्रष्ट कहना तो उचित नहीं समझूंगा, हाँ मजबूरियां तो होती है सभी की, हर कोई किसी न किसी के दबाव में तो रहता है, चाहे वो कितनी ही ऊंचे ओहदे पर क्यों न हो.. और देखा जाए तो मजाक भी तो केवल सत्ता पक्ष का ही उड़ाया जा सकता है, या फिर हमारे प्रिय पड़ोसी मुल्क का...... तो आप भी अपनी जगह तो सही ही है...
जवाब देंहटाएंपोस्ट पढ़ के ते गाना सुन के स्वाद आ गया बाउजी बल्ले बल्ले हो गयी...
जवाब देंहटाएंनीरज
बहुत खूब पोस्ट!
जवाब देंहटाएंहमारे प्रधानमंत्री लेजाकर जी डी पी बढवा लें. इन्होने हमारा भला कर दिया है. उनका भी कर दें.
@ अमित शर्मा:
जवाब देंहटाएंइस भलाई का बदला तो आई.एस.आई. के माध्यम से नकली भारतीय करेंसी छापकर दे ही रहा है हमारा पड़ौसी। जिसके पास जो है वही तो देगा। और दोस्त देश के अंदर की आफ़तों से सुलटने में अपना देश सक्षम है, अगर इसके चारों खंभे अपनी जिम्मेदारी ठीक से निभायें और इसके लिये जनता को सुधरना होगा क्योंकि इसी जनता से ये तंत्र बने हैं।
@ दीपक बाबा:
भाईजी, फ़त्तू ने हडजोड़ बूटी चाब राखी सै।
@ मज़ाल साहब:
एक और बड़ी मजेदार बात है जनाब, इस ब्लॉग जगत में सबसे ज्यादा सक्रिय लेफ़्टिस्ट्स, प्रगतिशील और सुधारवादी हैं जिनकी पार्टी सीटें शायद सबसे कम होती हैं।
और फ़िलहाल तो इस पोस्ट में कहीं भ्रष्ट होने का आरोप मुझे पाठक के नज़रिये से भी नहीं दिखा।
और मजाक की शुरूआत तो साहब हमसे यही करते हैं, जब खुद कमांडोज़ से घिरे रहकर देशवासियों को हिम्मत बनाय रखने का आश्वासन देते हैं, गरीबी दूर करने के वादे करते हैं, आतंकवाद के साथ पूरी कड़ाई से निबटने की बातें दोहराते हैं। अनंत बातें हैं, क्या क्या कहें?
बहरहाल आपने जो बात कही है, बहुत ही संतुलित और सुलझी हुई कही है। आपका हॄदय से आभारी हूँ। गलती लगे तो नि:संकोच बता भी दीजियेगा। इस बात का बुरा नहीं लगता मुझे, बुरा लगना छोड़ दिया है अब। विचारों में मतभेद अपनी जगह है, हठवादिता अपनी जगह।
@दो महीने में दीवालिया हो जायेगा पाकिस्तान, सैलरी को भी नहीं पैसे"
जवाब देंहटाएंये बयान हमें नहीं अमेरिका को सुनने के लिए था बेकार में आपने सुन कर सुन्दर ख्वाब सजाना सुरु कर दिया
@"मैडम, मे आई गो टू......?"
मजेदार जी काफी समय से परेशान थी की हमारे पी एम जी कुछ लम्बे दिख रहे है अब समझ में आया जिस इन्सान को रोज करोडो लोग खीचते हो उसकी लम्बाई तो बढ़नी ही है |
@नया जमाना है तो काटड़ू के साथ भैंस भी....................
ये भगवान आपने ये "भैस " किसको कहा है जिन्हें हम सोच रहे है उन्ही को तो नहीं स्पष्ट करे |
ओए आज तो फत्तू फस गया उसे जमानत नहीं मिलने वाली है वो भूल गया दुसरे दिन शुक्रवार ईद की शनिवार गणेश चतुर्थी की और फिर रविवार की कोर्ट में छुट्टी है अब तीन दिन और पिटेगा | हा हा हा
फत्तू को फड्डू समझ रखा है क्या?
जवाब देंहटाएंभई फत्तू तो फत्तू ही है, इतनी आसानी से थोडी ना हार माने था।
प्रणाम स्वीकार करें
sarcasm that entertains :)
जवाब देंहटाएंवाह भई फ़त्तू, छोरे नाम रोशन कर दिया ताऊ का, जीता रह.
जवाब देंहटाएंरामराम
सुपर फत्तू महाराज की जय... शेख साब को सबके सामने ये सब नहीं कहना था.. वैसे सेना पर ऐसे ही खर्च करते रहे तो एक दिन चिदंबरम भी ऐसा कुछ कह सकते हैं 'डान' के संवाददाता से.
जवाब देंहटाएंपंजाबी गाना दर्द भरा था लेकिन बढ़िया लगा.. :)
हा हा हा कित्ती .....न्यूट्रल पोस्ट लिख मारी आपणे...सुण्या है कि ...दुन्नो तरफ़ैं ...बोले तो हिंदुस्तान-पाकिस्तान...पसंद कर ली गई हैं ...वा इब बोलो ..परेम से ..रे भाया ..मो सम कौन ...
जवाब देंहटाएं@ अनुराग शर्मा जी, शिव कुमार मिश्र जी, अंशुमाला जी और वकील साहब:
जवाब देंहटाएंस्पेशल डिसक्लेमर है जी आपके लिये- मर्जर पोस्ट के पैरा १ और २ का करने का इरादा था जी। अपने व्लॉग के प्रधान हैं हम और हम हर काम अपनी मैडम से पूछ कर करते हैं। गलती ये हो गई कि अपने नाम की जगह प्रधानजी लिख दिया, आप लोग ले गये पता नहीं कहाँ कहाँ, प्रधानमंत्री और मैडम, मेरा सिम तो वो रेंज ही नहीं पकड़ पाता। उनकी भृकूटि टेढ़ी हो गई तो मुझ गरीब की अगली पोस्टिंग सीधे बार्डर पर ही हो जायेगी - संदेसे आते हैं - सुनवाकर ही मानोगे। खैर, कोई बात नहीं, टिप्पणी दी है आपने, निहाल किया है मुझे, इसलिये जो होगा देखा जायेगा।
अन्तर्विरोध उभर कर आयेंगे ही।
जवाब देंहटाएंरोचक प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
अलाउद्दीन के शासनकाल में सस्ता भारत-१, राजभाषा हिन्दी पर मनोज कुमार की प्रस्तुति, पधारें
अभिलाषा की तीव्रता एक समीक्षा आचार्य परशुराम राय, द्वारा “मनोज” पर, पढिए!
वाह भई फत्तू तू तो कतै छा लिया.
जवाब देंहटाएंमज़ा आ गया जी . है तो पुराना पर सुनाने में हर्ज भी नहीं है-
जवाब देंहटाएंपी० एम० आवास के बाहर नामपट्ट लगा था - सरदार मनमोहन सिंह . किसी सिरफिरे ने आगे लिख दिया ब्रेकेट में ( मैं ही हूँ ).
..ई बताइए..फत्तुआ से हमारी मुलाकात कहाँ हो सकती है..खाली आपही को इसके बारे मे पता रहता है!..जलन हो रही है।
जवाब देंहटाएंपाकिस्तानी हमारी तरह समझदार के विलोम नही है संजय जी, वे जान्ते है प्रधान जी को ले गये तो मैडम भी ले जानी पडेगी क्योन्कि रिमोट के बगैर तो.....
जवाब देंहटाएंमेरे ख्याल से उनके पास फिक्सिंग का विकल्प मौजूद है :)
जवाब देंहटाएंआज तो वो बेइंसाफी भई है हमारे साथ कि बेचारे कालिया के साथ भी न भई होगी... इत्ती छोटी सी पोस्ट… ये तो बंद लगी होने खुलते ही वाले इस्टाइल की हो गई... माना अच्छी है, माना मजेदार है, माना लिखने का अंदाज पहिले जैसा चकाचक है, माना फत्तू की गिरफ्तारी नाजयज है, माना कि गाना पंजाबी में है पर है स्वीट..मगर हम तो कमेंट तब करेंगे जब इसी पोस्ट को अपने नॉर्मल साइज में लेकर आएंगे. ..आए थे मिलने अमिताभ से, मिल गए गोविंदा!!
जवाब देंहटाएंdhaansu post ..manoranjan bhi hoi gawa ....aur thoda bahut padosi ki dasha se behtar parichay ho gaya ...badhiya baat ye ki aapne unki nidaan bhi bata diya " humari wali le ja"
जवाब देंहटाएंpar padosi humare fattu se kam nahi hain ...wo humare PM ko le bhi jayenge ...aur kaboolenge bhi nahi ki humenehsaan kiya ....:)
उम्दा पोस्ट!
जवाब देंहटाएंशानदार प्रस्तुती.......
@ बेचैन आत्मा:
जवाब देंहटाएंबनारस दर्शन करवाने की हाँ भरिये,फ़त्तू को वहीं भेज देंगे जी।
@ सम्वेदना के स्वर:
अब साहब, माना कि आपकी शिकायत जायज है, बेइंसाफ़ी भी भयंकर हुई है तो सजा भी तो हमें मिली है - कमेंट कहाँ मिला आपका? एक हाथ से लिखने की प्रैक्टिस कर रहा था जी, असुविधा के लिये खेद है। शायद अल्ताफ़ रज़ा थे - थोड़ा इंतेज़ार का मजा लीजिये।
@ स्वप्निल कुमार ’आतिश’:
शुक्रिया जी, आने का और फ़त्तू के सामने सुपर फ़त्तू की नज़ीर पेश करने का।
भई...गज़ब लिखते हो..मजा आ जाता है पढ़कर...जिओ!!!
जवाब देंहटाएंअच्छा व्यग्य है ...!
जवाब देंहटाएंमजा आ गया आपका पड़ोसी धर्म देखकर... सारे जहाँ का दर्द हमारे जिगर में है...मगर एक के साथ एक फ्री के जमाना में इनके साथ फ्री में का भेजिएगा... रिमोट त एहीं रखना होगा, काहे कि हमरे देस को सासन का अगिला पीढी भी त प्रदान करना है!!
जवाब देंहटाएं:-)
जवाब देंहटाएंबेहतरीन लिखा है.................... बहुत खूब!
इस बार की खुराक पूरी दी आपने.
जवाब देंहटाएंगुदगुदाने में जबरदस्त हो.
पहले बात कहते हो.
बात किसी को बुरी लग भी जाए तो जोक सुना देते हो.
जोक भी मोटी खाल वाले को गुदगुदा न पायें तो गाना सुना देते हो.
लाजवाब अंदाज है आपका.
इसी के कारण तो आज आप ब्लॉग जगत में 'अजातशत्रु' बनकर उभर रहे हैं.
अब तो बस फत्तू साहब आल इज वेल का फार्मूला है सर जी,
जवाब देंहटाएंकल रात "दबंग" देखी, और याद आए कौन?? ....फत्तू :)
बाकी पड़ोसियों का क्या कहें...
आर्सेनिक वाले पानी से बिसलेरी तक पहुँचते हड्डियाँ चरमरा जाती हैं...जय हो GDP की.
लेकिन इतने दिन बाद...बस इतना सा???
खैर अपनी व्यस्तताएँ हैं..जरुरी भी हैं.
शुक्रिया!
ये क्या? फत्तू साहब बनारस आयेंगे??
जवाब देंहटाएंरहम करिए संजय जी, जरा इंच-दो इंच इज्जत है अपनी वहां...अब कौन पूछेगा हमें अगर फत्तू साहब चले गए उधर भी?
bahut badhiya vyng likha hai aapne .
जवाब देंहटाएं@ प्रतुल जी:
जवाब देंहटाएंएक कहावत है, "If you don't have an enemy, it means you don't have a character'"
मित्र, ऐसी उपाधि मत दो, कुछ मित्र हैं वे बनें रहे, बस बहुत है। जोक, गाने वगैरह पर अपने विचारशून्य बन्धु ने जो पोस्ट निकाली थी नालायकों के बस्ते भारी, हम उसे व्यापक परिपेक्ष्य में देखते हैं। कई दिन से इस विषय पर एक पोस्ट लिखने की सोच रखी है, आपने चिंगारी दिखा दी है, प्रयास करूंगा।
@ अविनाश:
प्रिय अविनाश, होते हम कोई नामी गिरामी तो रिटर्न टिकट भी भेजते फ़त्तू के साथ हमारी भी, कोई बात नहीं।
अपने इंच-दो इंच में से सें.मी.-दो सें.मी. फ़त्तू के साथ शेयर कर लेना, तुम्हारा कुछ जायेगा नहीं और बंदा खुश हो जायेगा।
फ़तू दबंग? मजा आ गया सोचकर ही।
@ रंजना(रंजू भाटिया) जी:
पधारने का और प्रोत्साहन देने का धन्यवाद।
फत्तू द ग्रेट...:) हमारी मानिये तो आप मियाँ फत्तू से मिलने पर टिकट लगा दीजिए...चोखी कमाई हो जाया करेगी...कारण कि आपने फत्तू के किस्से सुना सुनाकर उसे इतना पापुलर बना दिया है कि कम से कम आधा ब्लागजगत तो उससे मिलने को उत्सुक दिखाई पडता है :)
जवाब देंहटाएंफत्तू द ग्रेट यानि भविष्य का सन्ता-बन्ता :)
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जवाब देंहटाएंपन्द्रह मिनट पहले जो चाय-बिस्कुट खिलाये थे, वो तो कबूल करा लै पहलां, फ़ेर करियो पांच दिन पुरानी चोरी की बात। बड़े आये कबूल करवाने वाले......
Great punch !
..
बहुत बढ़िया :)...हम तो फत्तू जी के फैन है ...
जवाब देंहटाएंपढके मज़ा आया !
मेरे लिए तो किसी ने कुछ कहने लायक ही नहीं छोड़ा.. लेट आने का यही नुक्सान है... ख़ैर... अभी जो पोस्ट छूट गयीं हैं उनको भी पढ़ लूं....
जवाब देंहटाएंआपकी टिपण्णी के लिए और मेरी गलती बताने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया! मैंने आपके कहने के मुताबिक की शब्द को सही कर दिया है! धन्यवाद! इसी तरह आप मुझे उत्साहवर्धन करते रहिएगा!
जवाब देंहटाएं@ पं. वत्स जी:
जवाब देंहटाएंअभी तो जी फ़त्तू मुझसे ले रहा है बहुत कुछ, कहता है अपना ब्लॉग बनाऊंगा। सरेआम ब्लैकमेलिंग हो रही है और आप सब हंसते हैं। उसकी मानता हूँ तो मेरी दुकान में कौन आयेगा? देखते हैं क्या करवट लेता है वक्त।
@ zeal:
आपको पसंद आया, शुक्रिया।
@ coral:
शुक्रिया मिसेज़ सैल।
@ महफ़ूज़ अली:
लेट कहाँ हो भाई, यू आर आलवेज़ इन टाईम, तुम्हारी टाईमिंग एकदम परफ़ैक्ट है। फ़िर लाठी बल्लम में तेल लगाना भी तो जरूरी है, वही कर रहे होगे। हा हा हा।
babli ji:
आप शर्मिन्दा मत करें जी। हिमाकत कर बैठता हूँ फ़िर पछताता हूँ। उत्साह मेरा बढ़ता है आप सम ब्लॉगर्स के आने से। पुन: शुक्रिया।
मुझे लगता है कि दो महीने भी ज्यादा हैं पाकिस्तान के दिवालिया होने को लेकर......वह तो अभी यहीं कहीं दिवालिया होने का फार्म खरीदने जा रहा था लेकिन क्या पता वह भी फत्तू की तरह बदल जाय.....ओ मुझे तो पढ़ना भी नहीं आता.....सारी आबादी अनपढ़ा दी जमात है.....अस्सी कद्दों नई फार्म भरिया जी....ये सब अमेरिका की साजिश है :)
जवाब देंहटाएंबढ़िया पोस्ट।
लिखने का ढँग बहुत पसंद आया...बात भी कह दी और किसी को बुरा भी नहीं लगा । सुंदर तारतम्य बठाया है आपने पड़ौसी देश ...चुटकुले...और राजनीति तथा झूठ के फित्तूर का ।
जवाब देंहटाएंपाकिस्तान दिवालिया या ऐसा ही कुछ..... पर हैं तो ये मुगेरी लाल के हसीन सपने । जब तक उनके आका हैं उन्हें क्या फिकर फिर झटक लेंगे दस मिलियन डालर ।
जवाब देंहटाएंफत्तू भाई के क्या कहने, थानेदार के पास कोई उनका तोड है ।
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएं@सतीश पंचम जी:
जवाब देंहटाएंडील ये है साहब कि वो हर बात में हिन्दुस्तान को दोषी ठहरायेंगे और हम पाकिस्तान को।
और जनाब आप ने टिप्पणी की है, आपका रेट सात रूपये है तो दो रूपये तो हमारे भी बनते हैं, फ़िर कर लेंगे हिसाब। आज आपका आना और भी अच्छा लगा।
@ मनोज भारती जी:
पधारने का और प्रोत्साहन देने का शुक्रिया।
@ Mrs. Asha Joglekar Ji:
है तो वही डालरों की माया, रंगदारी भी कह सकते हैं। धन्यवाद मैडम।
@ अदा जी:
सही कहती हैं आप, फ़त्तू मुकरने में माहिर है जी।
आपका आना ही बहुत बड़ी बात है जी हमारे लिये। आप निरंतर प्रोत्साहन देती रही हैं, भूल नहीं सकता। सच में आश्वस्त हुआ आपके आने से कि आपकी पोस्ट पर हुई गलतफ़हमी को इग्नोर कर दिया आपने। आभारी हूँ आपका।
घणे कम सबदां में घणी गज्जब की बात कर डाली
जवाब देंहटाएंन्यारी न्यारी टिप्पणिया पढवा रे बाद खाईं भी ना सूझ रयो म्हारे थाई तो
चोखी पोस्ट छे
@ गौरव अग्रवाल:
जवाब देंहटाएंसुस्वागतम तर्कशास्त्री जी,
भाई कंपलेंट कर रहे हो या कंपलीमेंट दे रहे हो?
दूसरी लाईन क्लियर नहीं हुई (रे बाद खाईं भी ना), म्हारी तो भाई हिन्दी भी माशाल्ला खैरसल्ला है, थम लिख गये मारवाड़ी, कोई न, शुक्रिया कबूल करो दोस्त(डबल)।
ऐसे मस्त लेख को पढने के बाद भे जो कंपलेंट करे तो तर्कशास्त्री नहीं कुतर्कशास्त्री कहलायेगा :)) [वो कंपलीमेंट ही है :) ]
जवाब देंहटाएंपहली लाइन का भाव है लेख की लम्बाई अधिक नहीं है फिर भी अपेक्षाकृत कम शब्दों में बड़ा गहरा अटेक किया
दूसरी लाइन कह रही है पहले ही इतनी सारी [ज्ञान और स्नेह से भरी ] टिप्पणिया आ चुकी है अब मुझे कुछ और कहने को नहीं सूझ रहा [वही बात जो महफूज भाई कह रहे हैं " लेट आने का नुक्सान" :)]
खैर अब तो चक्कर लगाता रहूँगा :)