सोमवार, अक्तूबर 11, 2010

बारात, ब्लॉगिंग और प्रेरणा।

- आप को पढ़कर लगता है कि आप पक्के बिगड़े हुये हो, वो भी पुराने।
- जितनी भी कहानियों के नाम पर पोस्ट हैं, सब एकदम असली संस्मरण हैं।
- आपको कमेंट देने से पहले दस बार सोचना पड़ता है।
- बहुत अच्छा लिखा है, सीरियस में।
- आप अपने स्वभाववश गले मिलोगे, फ़िर मुझे डर है कि कहीं मैं ही गायब न हो जाऊँ।
- आपका फ़त्तू अश्लील होता जा रहा है।
- कभी कभी आदरणीय संजय जी अच्छी बात भी कह देते हैं।

ये उनमें से कुछ उदगार हैं जो अपने कीमती समय में से टाईम मैनेजमेंट करके, रातों की नींद खराब करके, बचे दिमाग में से खुरच खुरच कर चिपकी हुई सोचों को भी बाहर निकालकर, अपनी उंगलियों को तोड़कर और कहीं से ईंट और कहीं से पत्थर जोड़कर हम जो हिन्दी साहित्य, ब्लॉग, भाषा, देश, समाज और दुनिया की सेवा करने में लगे हुये हैं, उसके बदले में हासिल हुये हैं।  भलाई का जमाना नहीं रहा जी। पहले से पता होता तो हम ये पंगा लेते ही नहीं। फ़िर ले लिया था तो शुरू में ही टिप्पणी बाक्स बंद रखते, जैसे हथकढ़ भाई ने किया था। फ़िर भी थोड़ी सी अक्ल होती तो सतीश पंचम जी की तरह या गिरिजेश साहब की तरह बाद में कमेंट बाक्स बंद कर देते।
फ़िर भी  हम सोचते रहे कि आप सुधर जायेंगे(अपना तो हमें पक्का पता है, सुधरने वाले जीव नहीं है) लेकिन आप भी नहीं सुधरे हैं। सबको मिला हुआ है एक खिलौना, कितना आसान उपाय है कि बन जाओ समर्थक और हमारी ही गोभी खोदे जाओ। एक हम थे कि गिनती बढ़ते देखकर खुश हो रहे थे कि हमारी फ़ौज तैयार हो रही है। ये नहीं पता था कि सारे दुश्मन हैं हमारे।
बहुत झेल लिया। और नहीं, बस और नहीं। हमारे सब्र का पैमाना भी अब छलक गया है जी।   बिगड़ा हुआ अतीत देखते हो, सुधरा हुआ वर्तमान नहीं दिखता? हाँ, कहानियाँ नहीं असली किस्से हैं सारे, कल्लो जिसे जो करना है।  कमेंट देने से पहले दस बार क्यों सोचते हो जी, हम तो नहीं सोचते पांच बार से ज्यादा ये सब लिखने से पहले भी। भाई साहब, सीरियसली  तो हमने जिन्दगी को नहीं लिया तो हमारी पोस्ट पर आप क्यों सीरियस होते हो? पकड़े जाने से किसे डराते हो जी, यहाँ तो छूटने से डरते हैं हम। मुझे वो गुंडा, मवाली मुन्नाभाई समझ रखा है कि सबके जाकर जादू की जफ़्फ़ियाँ डालता रहता हूँ। फ़त्तू को न लाऊँ तो नहीं बख्श्ते और ले आऊँ तो बेचारे को नहीं छोड़ते। और ये कभी कभी अच्छा लिखने वाला आरोप तो बस शर्म से गर्दन झुका रहा है मेरी। बाकी सब अच्छा लिखने वाले क्या सारे किसी ब्लॉगर्स मीट में चले गये हैं जो मैं करूंगा ये काम? मेरी किसी पोस्ट में या कमेंट में आपको लगा हो कि अच्छा लिखा है तो ये आपकी कमी है जी। ऐसे घॄणित काम करने से पहले हम ये दुनिया छोड़ देना ज्यादा पसंद करेंगे जी। अच्छा लिखते हो,  ये कहकर सारी मेहनत पर पानी फ़ेर दिया। हद हो गई यार। बहुत गुस्सा आ रहा है मुझे।
चलो, कुछ और बात करते हैं। परसों बहुत दिनों के बाद एक टिपिकल इंडियन बारात में जाने का मौका मिला। कई सालों से ये प्रैक्टिस चल रही थी कि सीधा टाईम के टाईम ही मैरिज प्लेस पर जाते थे। अमूमन बारात आई नहीं होती थी, हम खा पीकर पंडाल के बाहर ही घूमते रहते थे। बारात आई तो जाकर परिचितों से  मिलते, गिला करते कि देख लो हम कब से आये हुये हैं और आप ही लेट हो। लिफ़ाफ़ा पकड़ाते जबरदस्ती और बारात अंदर होती और हम घर की राह पकड़ लेते।
लेटेस्ट बारात में जाने का मौका मिला तो साथ जाने वाले ने बाईक से जाने से मना कर दिया कि घर से चालीस किलोमीटर जानी है बारात और लौटते में रात ज्यादा होगी, रास्ता ठीक नहीं है। मान ली उसकी बात। तैयार होकर इंतजार कर रहे थे कि कब चलेगी बारात। समय का सदुपयोग करने के लिये, तैयार होकर आकर कंप्यूटर के सामने बैठ गये। बाहर से बैंड की आवाज सुनाई दी तो लॉग-ऑफ़ करके बाहर भागे। एक दो गाने पर पीं-पां-पूं-पां करके वो चुप हो गये, हम समझ गये कि हमें फ़िर से मामू बना दिया गया है। फ़िर से आ गये नैट पर। फ़िर दो तीन बार वही बात हुई। साढ़े नौ बजा दिये ये सब करते करते। एक बार तो मन में आई कि दूल्हे मियाँ को जाकर कोंच दें, फ़िर सोचा कि बेचारे की आजादी जबतक अक्षुण्ण रह सके तो रहने दें। आखिर तो छुरी तले आ ही जाना है मुर्गे ने, हम क्यों इल्जाम लें अपने सर। खैर, बड़ी मुश्किल से निकले तो आगे जाकर एक मिनी बस और पांच छह बोलैरो, क्वलिस वगैरह खड़ी थीं। अब सब को बस में बैठने में आती थी शर्म और सब इस जुगाड़ में कि गाड़ी में ही बैठने को मिले। हमें तो अपनी औकात पता ही थी, जाकर चुपचाप बस में बैकबेंचर बन गये। पुरानी आदतें जाती नहीं हैं। सारी कारों को निकालकर, बचे खुचे बारातियों को लेकर जब बस निकली तो घड़ी में पौने दस बज गये थे।
घर से एक किलोमीटर गई होगी बस कि एक के मोबाईल पर कोई फ़ोन आया और उसने चिल्लाकर बस रोकने को कहा, “राजू और उसके बच्चे तो रह ही गये हैं।” बस को साईड में लगवाकर इंतज़ार का मजा लेने लगे। दस पंद्रह मिनट में राजू साहब  भागते, दौड़ते, हांफ़ते हुये  बीबी बच्चे समेत मौके पर पहुंच गये। बीबी बच्चों को बस में चढ़ाकर अब राजू चाचा खुद टंकी पर चढ़ गये। “हमें छोड़कर आ गये, हमारी कोई इज्जत नहीं है क्या? जाओ, हमें नहीं जाना।” अब जिनके घर में शादी थी वो सब लगे हैं उसे मनाने में और उन जनाब ने एक ही जिद पकड़ रखी थी कि मैंने जाना ही नहीं। पहले छोड़कर आ गये, अब मिन्नतें कर रहे हैं। काफ़ी देर तक ड्रामा चलता रहा। आखिर में हमें ही जाना पड़ा। “यार गजेन्द्र, जो कहना सुनना है बस में ही बैठकर कह लेना, पहले ही लेट हो गये हैं।” वो फ़िर से गुस्से में बोला, “हमने जाना ही नहीं है और श्रीमान जी हमारा नाम गजेन्द्र नहीं है”
मैंने कहा, “अगर जाना नहीं तो फ़ोन करके बस क्यों रुकवाई तूने, ये तो तुझे छोड़ ही आये थे। फ़िर एक किलोमीटर की दौड़ लगाकर यहाँ तक आये हो, बीबी बच्चों को बस में बिठा दिया है और ड्रामा कर रहे हो कि हमें नहीं जाना। ऐसा तो हमारे ब्लॉगजगत में  कर रहे हैं लोग बाग। पहले कुछ लिखकर जगह जगह जाकर न्यौते बांटते हैं कि आओ, ले लो ……मजे मेरे ब्लॉग पर। और फ़िर कभी अपने ब्लॉग पर वोट करवाकर अपनी बात को जस्टीफ़ाईड करते हैं, कभी लोगों को सैंटीमेंटल करते हैं कि शायद मेरे ब्लॉग की आखिरी पोस्ट है, जरूर देखें। कभी किसी का कमेंट तोड़ मरोड़ कर अपने हिसाब से प्रस्तुत करते हैं। और भैया, हमने तो ऐसे महान कलाकारों को भी कह दिया था कि कहीं नहीं जाना है तुम्हें, निरा ड्रामा है ये। इशारे में मैसेज दिया भी कि कम से कम हमारे यहाँ लिंक वगैरह बिखेरकर न जाये, कुछ फ़ायदा नहीं है,  लेकिन वो पक्के कर्मयोद्धा हैं ,नहीं मानते।    अब तुम एक आम आदमी होकर  महान ब्लॉगरों का मुकाबला कर रहे हो? नहीं जाना तो उतार अपनी बीबी बच्चों को और बस को जाने दे।” दूल्हे के परिवार वाले डर रहे थे कि बात बिगड़ी अब, लेकिन राजू बन गया जैंटलमैन। टंकी से उतरा और बस में चढ़ा और बैठा भी हमारी सीट के पास ही। रास्ते में कह रहा था, “भाई साहब थोड़ा सा ड्रामा करना जरूरी होता है।”
तो जी, साहब लोगों, हमने भी उस खरबूजे को देखकर रंग बदल लिया था जो शुरू में ऊपर लिख दिया है। थोड़ा सा ड्रामा करना जरूरी बताते हैं आजकल, सोशल बनने के लिये। हम खुद को एंटी सोशल एलीमेंट मानते रहे अब तक, तो थोड़ा सा सुधार करने की सीख दी है मेरे दोस्त ने, कर दिया ड्रामा। फ़िर से कह रहा हूँ सीरियसली लेने की चीज नहीं हम। टेक इट इज़ी पालिसी, जीत का ये मंत्र है, टेक इट ईज़ी पालिसी।
अगर आप सब समझ रहे थे कि सच में कहीं भाग रहा हूँ तो आप गलत थे। हम तो जब भागने भगाने की उम्र थी, तब नहीं भागे तो अब क्या खाक भागेंगे? ऐसे खुश नहीं होने दूंगा अभी। जब जायेंगे तो अपनी वजह से ही जायेंगे।
एक जरूरी काम से कुछ दिन के लिये एकाध दिन में जाना पड़ रहा है। वापिसी में दो दिन से दो सप्ताह तक लग सकते हैं। नैट शायद उपलब्ध हो भी जाये, लेकिन समय की अनुपलब्धता रहेगी। वैसे भी बहुत से  बड़े लेखकों की तरह अपन तो किसी खास मुद्रा और माहौल में ही कम्प्यूटर के सामने बैठ सकते हैं, जो हर जगह संभव नहीं होता।   मालूम है कि फ़र्क नहीं पड़ता किसी को, लेकिन इतने समय से आप लोगों के साथ हैं तो बताना फ़र्ज समझा। वैसे भी एक कहावत है कि ’कुछ सीखो तो ऐसे कि जैसे तुम्हें हमेशा जिन्दा रहना है और जब कुछ करने का समय आये तो ऐसे करें कि आज आपकी जिन्दगी का आखिरी दिन है’  अपन उसमें ये और जोड़ लेते हैं कि जाने का टाईम हो तो एक बार सब से कह सुन कर ही जाया जाये, फ़िर क्या हो या न हो।
जब तक हैं, काम चलाईये हम से। जब नहीं होंगे तो मो से बेहतर ढेर हैं, लौटेंगे तो फ़िर से अपनी ढफ़ली अपना राग शुरू करेंगे, कोई सुनेगा तो बढ़िया नहीं तो  और भी बढ़िया।
जाते जाते एक रिक्वेस्ट, हमारी बेमतलब की बातें सुनकर आप ने जो तालियां बजाई हैं, उस पाप का प्रायश्चित करने  का उपाय है किसी सार्थक लेखन वाले  ब्लॉग पर जाकर अपनी राय देना। अपनी नजर में एक ब्लॉग ऐसा है, कि अगर मेरी सोच परिपक्व होती तो मैं वैसा लिखता। ब्लॉग का नाम है, ’सम्वेदना के स्वर’ और एड्रैस  है         http://samvedanakeswar.blogspot.com/    अगर आप समय निकालकर नजर मारें तो हो सकता है चीजों को देखने का एक नया नजरिया दिखे। ऐसा ही एक नया ब्लॉग है ’भारत भारती वैभवं’ ‘ @  http://bharatbhartivaibhavam.blogspot.com/.   आप कह सकते हैं कि आये थे नमाज पढ़ने और रोज़े गले पड़ गये। साड्डे नाल रहोगे तो ऐश करोगे – ऐवें ही।
पिछली पोस्ट पर मेरे प्रतिभाशाली मित्र प्रतुल को मेरे कमेंट से शायद कुछ गलतफ़हमी हो गई। दोस्त, बड़े लोगों की नाराजगी झेल लेंगे लेकिन मिडल क्लास का आदमी हूँ, अपनों की नाराजगी भारी पड़ती है। सार्वजनिक रूप से खेद प्रकट करता हूँ, अगर मैं कुछ गलत कह गया। वैसे,      रह लोगे गुस्सा मुझसे?  रहा जा सके तो रह लेना भाई, हमारी तो ……देखी जायेगी।
:)फ़तू हो गया रेलवे में भर्ती।  बन गया केबिन मैन।   घर पर जब उसकी बीबी पूछती कि क्या काम करते हो वहां पर, तो वो बड़ी बड़ी बातें बताता।  बीबी सब बीबियों की तरह उसकी कदर नहीं करती थी।  आखिर एक दिन फ़त्तू ने उसे कहा कि आज दोपहर को रोटी देने आ जाये, वो उसे अपनी पावर दिखा देगा।
दोपहर में खाना पहुंच गया।  मेल गाड़ी के आने का सिग्नल मिला तो फ़त्तू ने अपनी बीबी से कहा, "देख, आज मैं अपनी पावर से गाड़ी रोककर दिखाता हूं।"  बीबी हैरान, फ़त्तू ने लाल झंडी उठाई और उसी पटरी पर खड़ा होकर लाल झंडी हिलाने लगा।  ड्राईवर साहिब ने इमरजेंसी देखकर गाड़ी रोक दी और उतर कर उसके पास आकर बात पूछने लगे।  कोई वजह न पता चलने पर ड्राईवर ने गुस्से में फ़त्तू को जोर का तमाचा जड़ दिया और गाड़ी लेकर चल दिये। 
फ़त्तू अपनी बीबी के पास पहुंचा, "देख ली मेरी पावर, रोक दी न गाड़ी?"  
बीबी ने पूछा, "तुम्हारी पावर तो देख ली, पर वो जो ड्राईवर ने तुम्हें थप्पड़ मारा, उसका क्या?"  
फ़त्तू, "वो उसकी पावर थी।"
चलो जी, अब थोड़ा सा सीरियस टच भी हो जाये, मेरा आलटाईम फ़ेवरेट गाना, किसका फ़ेवरेट नहीं होगा भला?  ऐसा हो नहीं सकता …  लेकिन हो  भी सकता है वैसे, क्या बड़ी बात है !!


45 टिप्‍पणियां:

  1. बड़ा ही सुन्दर लेख और गीत। दोनों ही पसन्द आये।

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  2. ...भाई साहब थोड़ा सा ड्रामा करना जरूरी होता है।..
    ..धत्त तेरे की..ऊपर लिखी लाइन कट पेस्ट की और सोचा कि लिख मारूं..इसीलिए आप ऊपर इतना ड्रामा लिखे हो! लेकिन दूसरी ही पंक्ति में यही बात आपने ही लिख मारी है..गजब करते हो यार।
    .आपकी लेखन शैली कमाल की है..जितनी तेजी से यहाँ पढ़ता हूं..शायद ही और कहीं...बिना रूके..एकदम चौथे गेयर में गाड़ी भागती है पढ़ने की..अंत में फत्तुआ ऐसे ब्रेक लगात है कि पूछो मत. मन करता है....

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  3. यह बात लाख रुपये के स्टाम्प पर लिखकर दे सकता हूँ की आप अपने स्वाभाव को छोड़कर कभी अपने संस्मरणों में कोई गंभीर संस्मरण भी लिखोगे तो वह भी हम लोगो को आपके मज़े लेने की जगह देता जायेगा :))))))........................अजी साहब आपका नाटक तो ठीक है, पर उन नकटों का क्या किया जाये ???????

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  4. Out of station hun,to geet sunneki suvidha nahi..lekin geet pasand bahut hai!
    Aur barat shabd padhke,poora aalekh padh liya....jald hi ek barat me shamil hone jana hai! Ab dekhte hain wahan ke tewar kahin aapwaali barat jaise to nahi honge? Aapne dara diya hai!

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  5. सबसे पहली बात की जो सुधर जाये समझिये की वो ठीक से बिगड़ा नहीं था | जब एक दिन सुधर ही जाये तो बिगड़ने से फायदा क्या | और आप तो जी बिगड़े ही रहो जो बिगड़ा आदमी ऐसा लिखता है तो सुधरों की जरुरत किसको है |

    @अच्छा लिखते हो, ये कहकर सारी मेहनत पर पानी फ़ेर दिया |

    किसने कहा की आप अच्छा लिखते है आप को क्या लगा की हम क्या यहाँ कुछ अच्छा पढ़ने आते है अच्छा पढ़ना और अच्छा लिखना इन घॄणित कामों से तो हम भी दूर रहते है |

    @जाने का टाईम हो तो एक बार सब से कह सुन कर ही जाया जाये, फ़िर क्या हो या न हो।

    आप भी कम नौटंकी बाज नहीं हो इमोसनल ड्रामा कोशीस बेकार है कोई असर होने वाला नहीं है किसी पर | फटा फट वापस आइये और ये बेकार का पढ़ने की जो आदत डाली है उसे वापस शुरू करे |

    अक्सर जो बाते हम शब्दों में नहीं कहा पाते वो सभी को गानों में बता देते है ये गाना कही आपके दिल से तो नहीं आ रही है |

    और आखिर में संजय जी पिछली पोस्ट में मैंने ये नहीं कहा था की मैंने पूरी पोस्ट नहीं पढ़ी मेरे कहने का अर्थ था की टिप्पणी देने के उतावले पन में सभी छोटी बातो पर ध्यान नहीं दिया | आधी पोस्ट पढ़ कर "अच्छा लिखा" वाली टिप्पणी देने की अच्छी आदत मुझमे नहीं है |

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  6. संजय बाबू,
    सबसे पहले तो हम यह डिस्क्लेमर ठोंक दें तमाम पाठकों से (वैसे सिर्फ पाठक ही क्यों, चौबे दूबे, त्रिपाठी, वर्मा, शर्मा, रवीजा, असीजा, अनेजा सब से) कि हमारे ब्लॉग का जो विज्ञापन यहाँ किया गया है हमने इसके लिए संजय बाऊ जी को कोई पैसे नहीं दिए. बेचारे प्रेम के दो चार बोल बचन सुनकर हमारे प्रेमजाल में फँस गए लगते हैं.
    वैसे एक और अनुरोध है कि भैया ये सार्थक और परिपक्व शब्द का अर्थ स्पष्ट करें. हमने तो सोचा था कि ब्लॉग लिख रहे हैं, ये सार्थक और परिपक्व लिखना क्या होता है! फिर भी अपना नाम देखकर लगा कि कोई है जो हमको भी देखता है. कॉलर ऊँचा कर लिया हमने.
    संजय भाई, फत्तू बेचारा पावर गेम में फँस गया. मगर एक्सेप्ट कर लिया उसने यही क्या कम है. अमानुष का गीत और उत्तम दा को देखकर दिल खुश हुआ. मेरा चचेरा भाइ एक भले मानुष को बनमानुष बनाकर छोड़ा गाता था.
    ब्लॉग चरित्र की झाँकी और भाई प्रतुल की नाराज़गी पर माफी, यार इस सदगी पर कौन न मर जाए ऐ ख़ुदा.. प्रतुल बाबू की क्या मजाल कि ज्यादा देर नाराज़ रह सकें. पिछले एपिसोड में हम भी हो गए थे नाराज़. लेकिन इन्होंने कह दिया मो सम कौन और हमार दिल तो वैसे ही दोस्तों की पुकार पर मोम हो जाता है. बस पिघल गए. छा गए संजय बाउजी!!

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  7. फ़त्तू के लिये एक सीख है!
    "आमद कम और खरचा ज्यादा लक्छन है मिट जाने के,
    ताकत कम और गुस्सा ज्यादा लक्छ्न है पिट जाने के!"

    वैसे मैने भी पूरी पोस्ट पढी नहीं है!

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  8. लिखा तो आपने ठीक-ठाक सा ही है..वो भी आखिरी पैराग्राफ पढकर कुछ तसल्ली सी हुई कि चलो पूरी तरह से टाईमखोटी नहीं हुआ...वर्ना तो पोस्ट ऎंवें ही है..हमारी मानिये तो कुछ दिन आप किसी अच्छे से ब्लागर की शागिर्दी कर लीजिए.....कम से कम हम पाठकों का टाईम खोटी तो न हुआ करेगा.
    एक बात, ये कि ऊपर लिखी सारी बातें हमने बिल्कुल दिल से कहीं हैं. कहीं इसे मजाक-मजूक न समझ लीजिएगा :)

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  9. टाइम मेनेजमेंट के चलते सिर्फ टिप्पणी ही दी है लेख लम्बा होने के चलते पूरा पढ़ नहीं पाए

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  10. अमाँ, हमें काहें बदनाम कर रहे हो? एक पोस्ट में ही तो टिप्पणी बन्द की थी। पहली ही लाइन में युवतियों की चर्चा थी सो सोचा कि कहीं कोई ऐं वैं न कर जाय। कोई मुझे भी ऐसा वैसा न कह जाय। इस मामले में अपना बैड इम्प्रेशन तो खराब है ही। ब्लॉगर होते हुए भी आज कल थेथरई से डर लगने लगा है।
    मामला चल गया। कुछ तारीफ के मेल भी आ गए :) मैं मनबढ़ू तो हूँ ही। उसके बाद वाले में भी टिप्पणी बन्द जारी रखा तो दुपहर तक हड़काने वाले मेल आने लगे, सो टिप्पणी विकल्प देना पड़ा। जमाना इतना खराब हो गया है कि चुपचाप गुनाह करना भी मुहाल हो गया है! मैं समझता था कि बस नंग नंगई वालों को ही पब्लिक बर्दाश्त करती है।
    सम्वेदना के स्वर सुने जाएँगे और भारत भारती वैभव का दर्शन भी किया जाएगा। आखिर पावर वाले फत्तू की रिकमेंडेशन है! कोई भौंड़े मजनू को भी ऐसे प्रमोट करता तो क्या बात होती!
    वैसे आप की अदा की तारीफ करनी पड़ेगी। मुझसे उगलवा ही लिया।

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  11. @ सही कहा, नामराशि। बड़ा ही विचारणीय लेख था। लोग समझते ही नहीं है बस।

    @ प्रवीण पाण्डेय जी:
    आप भी ठीक कह रहे हो जी, वैसे लेख ज्यादा सुन्दर है ना?

    @ देवेन्द्र पांडेय जी:
    भाई साहब, लैपटाप की बधाई लो पहले तो। और यार, ये मन की मत बताओ, पहले ही पता नहीं क्या क्या कर गुजरा है ये...।
    आपका उधार चुकाना है, बढ़ता ही जा रहा है। हा हा हा।

    @ अमित शर्मा:
    प्यारे, तुम ले लो मजे, हमारी तो देखी जायेगी। नकटों की भली कही, हम तो खुद अब नाक कटाकर इनसे प्रेरणा लेंगे। अपनी अदालत बनायेंगे, खुद ही मुंसिफ़ बनेंगे। एक कहानी है, तुमने भी जरूर सुनी होगी मां दादी नानी से, चेत रे चेत, ओ गन्ने के खेत वाली। न सुनी हो तो जयपुर आयेंगे तो तुम अपना ज्ञान झिलाना, हम ऐसी कथा सुनायेंगे। लेकिन, अब गले नहीं मिलेंगे यार।

    @ kshama ji:
    आप क्यों डरती हैं जी?
    और हमारे वाली बारात, हमें तो मत डराईये जी। झुरझुरी छूट जाती है अब भी याद करके।

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  12. फत्तू दा जवाब नईं...
    ठीक अपनी अपनी पावर की बात है

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  13. @ anshumala ji:
    लावारिस फ़िल्म में एक सीन है जिसमें अमिताभ सूट वूट उतारकर वही मवाली वाली ड्रैस में आ जाता है, अपनी भी वो पोटली हमेशा साथ रहती है जी। बेफ़िक्र रहिये, नहीं सुधरेंगे। कभी ऐसा लगे भी तो आंख का धोखा समझियेगा।
    अच्छा लिखने का आरोप गोदियाल जी ने लगाया था जी हम पर, अदा जी के ब्लॉग पर। लाख बिगड़ैल हों, झूठ नहीं बोलते हम।
    नौटंकीबाज तो हम हैं, बस लोग सच समझ लेते हैं।
    गाना जरूर मेरे दिल का है, हमेशा से। एक ये, एक ’कोरा कागज’ और एक और है।

    @ सम्वेदना के स्वर:
    का जुल्म कर गये भैया जी? हमारे हितू होते तो ये कहते कि मोटी रकम खर्च की है विज्ञापन के लिये, हमारी फ़ुटुरे की दुकान खुलने से पहले बंद करवा दी।
    आपके कालर पहले से ऊंचे हैं जी, हमें बस क्रेडिट मिलना है(फ़ीस चुकानी याद रखियेगा। देखिये गिरिजेश साहब ने हाँ भर दी है।

    @ ktheLeo:
    अच्छा जी, मिटने से तो बहुत डर लगता है जी हमें, सीख पर ध्यान देंगे फ़िर तो।
    यो अच्छा करया जी कि पूरी पोस्ट न पढ़ी आपने, और फ़ेर बता भी दिया यो और बढ़िया करया। डबल धन्यवाद।

    @ पं. डी.के. वत्स साहब:
    आज तुसी सिद्ध कर दित्ता जी ’पड़ौसी ही पड़ौसी के काम आता है।’ मैं तो सबकी शागिर्दी करने को तैयार हूँ, सवाल तो ये है कि मुझे शागिर्द बनाने को कौन तैयार होगा, आप तैयार हो? भेजूं रजिस्ट्रेशन फ़ार्म भरकर?

    @ रतन सिंह शेखावत जी:
    बुढा मरे या जवान, हत्या सेती काम। टिप्पणी मिल गई हमें, हो गया हमारा काम चाहे आप पढ़ो या न पढ़ो। पधारने का शुक्रिया, शेखावत साहब।

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  14. @ गिरिजेश राव जी:
    आप खुद को मुन्नी बदनाम तो नहीं समझे बैठे हैं?
    एक का महत्व बताऊं? - जाने दीजिये, मैंने भी एक एक बार ही बहुत से काम किये, लेकिन दाग तो लग गया न?
    हड़काने वाले और तारीफ़ करने वालों की तो सब ही सुनते हैं, आप क्या अलग हैं? नंगई करने वाले हिटलिस्ट में होते हैं जी, और चुप्प छिछोरे हियलिस्ट में(दिल के भीतर)। जिसकी जैसी चाह, उसकी वैसी राह।
    दोनों ब्लॉग मुझे अच्छे लगे, अगर आप सरीखे दो चार लोगों को भी कुछ पसंद आया तो समझिये अपनी पसंद की दाद दे देंगे।
    और भगवन, आपके कमेंट की ये आखिरी पंक्ति - तारीफ़ के काबिल है तो तारीफ़ करनी ही होगी आपको। क्या गिरिजेश साहब, आप भी कभी कभी क्या क्या कह जाते हैं, हा हा हा।

    @ Umra Quaidi:
    भाई, कमेंट में लिखा अगर सच है, तो समझ लो हम आ ही गये।

    @ काजल कुमार जी:
    काजल साहब, पहले भी शिकायत कर चुका हूँ, आपका ब्लॉग नहीं खुलता है, क्या करूँ।

    @ सुरेश चिपलूनकर जी:
    चिपलूनकर जी, मेरे यहाँ, सच है क्या?

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  15. उ पोस्ट- वोस्ट, टिप्पणी- विप्पणी सब ठीक ठाक है ...
    मगर गाना ...
    ये अच्छी बात है ...अमानुष बनने की अच्छी सफाई ...मटका दूसरों के सर पर फोड़ा ...!

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  16. प्रवीण पाण्डेय ने कहा
    देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा
    अमित शर्मा ने कहा
    kshama ने कहा
    anshumala ने कहा
    सम्वेदना के स्वर ने कहा
    ktheLeo ने कहा
    पं.डी.के.शर्मा"वत्स" ने कहा
    Ratan Singh Shekhawat ने कहा
    गिरिजेश राव ने कहा
    Umra Quaidi ने कहा
    काजल कुमार Kajal Kumar ने कहा
    Suresh Chiplunkar ने कहा
    वाणी गीत ने कहा

    सभी ने कुछ न कुछ कहा.........
    कुछ तो लोग कहेंगे......
    पर हम क्या कहें.....
    हमरे दिमाग में आज दही जमा हुवा है......

    इत्ता ही कह सकते है......
    सभी लोग अच्छा कहते है....

    सभी को जय राम जी की.

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  17. भगाने की उम्र थी, तब नहीं भागे तो अब क्या खाक भागेंगे?
    पिछ्ले दिनों कहीं किसी बुज़ुर्ग का निम्न कथन पढा था:
    “जैसे सांसे गिनती की हैं, दाना पानी भी गिनती का है। अगर तेरी किस्मत में ऐसा लिखा है कि तुझे पचास किलो आटा जेल का खाना है तो बेटा, खाना ही पड़ेगा। अब ये तुझ पर है कि उसे पचास दिन में खत्म करता है या पांच सौ दिन में, निबटाये बिना गुजारा नहीं है।”

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  18. अगर इसे बिगड़ना कहते हैं ना सर जी, तो बिगड़े रहिये. कौन सा तने बाँसों से जंगल का भला हुआ है आज तक?
    "मो से बेहतर ढेर हैं"... स्ट्रॉंग वाला disagreement है इस पर हमारा...दाल दाल होती है और पापड़ पापड़...गणित के कुशल अगर बहुतेरे भी हों, पर हर चीज को integer scale पर नहीं रखा जाता.
    बाकि जिस भी काम से जाएँ, सफल हो.

    Happy Journey!!

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  19. आये थे नमाज पढ़ने और रोज़े गले पड़ गये...सच में...


    लौट आओ तब एक साथ हिसाब करेंगे. :)

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  20. @ वाणी गीत:
    गलती हो गई जी।
    सजा भुगतने को तैयार हूँ।

    @ दीपक बाबा:
    अरे महाराज, लोगों का काम है कहना। थम अपनी दही लस्सी का ध्यान रखो, म्हारी तो..।

    @ स्मार्ट इंडियन:
    हम तो अपनी तरफ़ से पांच दिन में निबटने को तैयार हैं, पांच घंटे में निबट जायें तो और अच्छा। हम तो सोच रहे थे कि आप भी नाराज हो गये, बिना बताये? दूसरे तो जाहिर करके होते हैं नाराज।

    @ अविनाश:
    जिस दिन आमना सामना हो गया तो राज्जा सारे भरम धुल जायेंगे। पता नहीं क्या आईटम समझ रहे हो मुझे। अपन तो अब तक तुम्हारे जैसे दोस्तों के सहारे ऐश करते रहे हैं।
    शुक्रिया अविनाश।

    @ उड़न तश्तरी:
    समीर सर, पेंडिंग मत रखिये, बट्टे खाते में डाल दीजिये। बाद में भी यही होना है।

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  21. आपके ब्लॉग की हर बात शानदार है क्या लुकिंग,क्या पोस्ट,क्या फत्तू..हर एक चीज शानदार..

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  22. गौर कीजियेगा.... मानवता के प्रतीकों की मजाक उड़ाने वाले और उनके समर्थकों में अमानवीय गुण [आसुरी -> जिद और मशीनी -> वोटिंग ] आने लगते हैं, वो रिश्तों का सम्मान और सहयोग सब भूलने लगते हैं , निर्णय शक्ति वोटिंग पर निर्भर होने लगती है क्योंकि चुनाव में एक ओर "राम" तो दूसरी ओर " मन " प्रत्याशी बन जाते हैं , पर एक बात है .... राम के नाम से कईं लोगों के नेचर का टेस्ट हो गया , मेरी तो पोस्ट पर जब कोई धार्मिक नाम या घटना का उल्लेख होता है लोग आगे का लेख आपने आप ही समझ[?] लेते हैं ..... "बिना पढ़े" और वही बातें कमेन्ट में लिख देते हैं जो लेख में पहले से लिखी हैं , आप भी पाठकों का टेस्ट लिया करो , बहुत से नए नए ज्ञान[?] और जानकरियां [?] होते हैं इन के पास ..... जो अपने आप में एक चुटकुले से प्रतीत होते हैं और सबसे बड़ी बात तो ये बड़े कोन्फीडेंस से चुटकुले सुनाते हैं [मैं प्रश्न पूछने वालों की बात नहीं कर रहा , नया ज्ञान [?] देने वाले नए ज्ञानियों [?] की बात कर रहा हूँ ] :))

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  23. भाया पोस्ट तो पिछली भी पढ़ ली। टिप्पणी करके वक्य के जाया करुं। भाई लोगो ने ढेर सारी सही खरी बातें कह दी हैं कि कुछ कहने को बचा ही न कुछ। बारात तो हम भी एक अटेंड कर आए आपने देख ही लिया से। खैर फत्तू की बहादूरी के हम भी कायल हैं। बेकार की काफी पढ़ ली औऱ लिख भी बेकार की। बेकार ही तो लिखते हैं हम सभी लोग। सही कह रहे हो यार। नक्कारखाने में आवाज गूंजने की तरह ही है ब्लॉग का लेखन फिलहाल। वैसे भी हम लोग अपने मन की डायरी ही तो लिख रहे हैं यहां और क्या।

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  24. इतनी सही खरी बातें भी ठीक नहीं। लेकिन गीत बहुत अच्छा लगा। धन्यवाद।

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  25. आप जाइये ज़रुरी काम निपटा कर आइये ! बारातों का क्या ? वो तो बैंडो बाजे वालों की दम पे भी आगे बढ़ लेंगी :)

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  26. पहली बार आया हूँ तो पहले स्वागत कीजिये :) यहाँ आने का घाटा ये हुआ कि एक के साथ दो फ्री मिल गए.
    वैसे राजू बड़ा धांसू कैरेक्टर निकला बिल्कुल फिट होके बैठ गया फ्रेम में.

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  27. हमेशा कि तरह बढ़िया लेख, और हाँ आप तो हमें बहुते सीरिअस लेखक लगते हो जी ...
    वापसी का इंतज़ार रहेगा !

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  28. गजेन्द्रभाई तो हमेशा मुस्कुराने का आमंत्रण देते हैं वे क्यूं गुस्सा करने लगे गलत नाम लेना खतरनाक हो सकता है । तो उन राजू महाशय से सीख लेके आप भी ड्रामा किंग हो गये हैं । अजी टिप्पणियां तो ब्लॉगर की जान हैं उनके बिना क्या जीना,। चाहे तारीफ करें या गाली दें ।

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  29. और फत्तू और उसका पॉवर...................बढिया लगा ।

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  30. @ साकेत शर्मा:
    साकेत, हमें तो यार, तुम्हारा कमेंट सबसे शानदार लगा। इतनी शान है हमारी, यकीन ही नहीं होता। शुक्रिया दोस्त।

    @ गौरव:
    गौरव, हम तो खुद को जज नहीं समझ सकते। हम औरों का क्या टैस्ट लेंगे प्यारे, हम तो खुद सदा के फ़ेलियर हैं। मस्त रहा करो।

    @ boletobindas:
    रोहित, सही कह रहे हो बिल्कुल। सहमत एकदम। वाहवाही वाले कमेंट ही चाहियें यहाँ सब को। दिल मत तोड़ो यार,ऐसे ही चलते हैं अबसे हम, क्या ख्याल है?

    @ निर्मला कपिला जी:
    गाना तो पसंद आया जी आपको, धन्यवाद।

    @ अली साहब:
    मशविरे के लिये शुक्रिया अली साहब, वैसे अभी आया नहीं हूँ:)

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  31. @ अभिषेक ओझा:
    देर से कर रहा हूँ स्वागत, स्वीकार कर लीजियेगा। धन्यवाद भी साथ में है। गणित के आदमी हैं आप, आपके कमेंट को गणितीय भाषा में ऐसे लिख सकते हैं क्या? 1722 - एक सात(साथ) दो दो।

    @ Indranil Bhattacharjee:
    हम और सीरियस? ले लो सैल साहब, आप भी ले लो मजे।

    @ Poorviya:
    कौशल जी, सुझाने के लिये शुक्रिया। अगली बार हनीमून खत्म होने तक का विवरण दे देंगे, आपको नाराज थोड़े ही करेंगे।

    @ Mrs. Asha Joglekar Ji:
    मैडम, मैं किस मुंह से गलत नाम लूंगा? अब तो वैसे भी उन भाई साहब को चुनाव में जीत मिल चुकी है। हम तो शुभकामनायें ही दे सकते हैं जी,दे देते हैं। आपका बहुत बहुत शुक्रिया।

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  32. guru kahe sabki khinchayi kar rahe ho...lagta hai ab aapke comment dhoondh dhoondh ke padhna padega aur tab poochenge sawal...hahaha

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  33. ''कभी बेकशी ने मारा.. कभी बेबसी ने मारा... गिला मौत से नहीं है.. मुझे जिन्दगी ने मारा..'' :)

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  34. पेज का आकार यानि चौड़ाई कुछ कम कर दें तो पढना अधिक सुविधाजनक और आसान होगा. (बढि़या पोस्‍ट- पेस्‍ट नहीं फीड किया है)

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  35. @ आनंद राठौड़:
    भाई जी, खिंचाई तो सब मेरी करते हैं और अब आप भी आ गये, स्वागत है। आपके प्रोफ़ाईल से बहुत प्रभावित हुआ था और वो पोस्ट भी बहुत अपनी सी लगी थी। अब इस सुसरी छवि का क्या करूँ, सीरियसली भी कुछ कहूँ तो लोग सीरियसली नहीं लेते।
    यहाँ तक आने का शुक्रिया, दोस्त।

    @ दीपक:
    सिर्फ़ तुम्हारी पोस्ट्स की गुणवत्ता की बात नहीं करता दीपक, मेरी एक पुरानी पोस्ट ’स्टोरी ओफ़ कालीदास रिविज़िटिड’ पर तुम्हारा कमेंट और फ़िर आज का कमेंट मुझे चकित कर देते हैं, बॉस। ’अलग अलग’ फ़िल्म का ये गाना कम से कम दस बार तो मैं सैलैक्ट करके हटा देता हूँ, ये सोचकर कि फ़िर कभी लगाऊंगा, बहुत अजीज है मुझे ये गाना भी और छोटे भाई, तुम्हारा तो मैं फ़ैन से ज्यादा अब ए.सी.बन गया हूँ।

    @ राहुल सिंह जी:
    सर पहले चौड़ाई कम ही थी पेज की, लेकिन फ़िर पोस्ट की लंबाई महंगाई डायन की तरह बहुत बढ़ जाती थी।
    पहली बार जब आप आये थे तो पलटकर मैं आपके ब्लॉग पर गया था, हीन भावना से भर गया था सर। आपके आने का बहुत शुक्रिया।

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  36. तूसी तोप हो, ब्लागरो की होप हो
    सच कहूँ आज आप से मिलकर मज़ा आ गया। आपका लेखन एक दम बिंदास है।
    मै आपकी बगिया की नई कली हूँ हो सके तो ध्यान रखियेगा

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  37. आपका यह विचारणीय लेख अच्छा भी है और प्रेरणाप्रद भी । साधुवाद ।

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  38. @ दीपक सैनी:
    दोस्त, एक मुलाकात में इतना फ़्लैट हो जाना ठीक नहीं, सोच लो!
    रही बात ध्यान रखने की, तो इतना है कि डूबेंगे तो इकट्ठे,पार जायेंगे तो इकट्ठे।
    इतना विश्वास, इतना प्यार दिखाने का शुक्रिया।

    @ दिनेश शर्मा जी:
    दिनेश जी, आपका बहुत आभारी हूँ। चुपचाप सार्थक काम करने वालों में आपको गिनता हूँ, गुल गपाड़ा करने को हम जैसे हैं ही। फ़िर से धन्यवाद।

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  39. भाई जान किसी शादी बारात में और वह भी घर से कई घंटे की दूरी पर जाना होतो बीमा करवा कर ही निकलना चाहिये । हो सकता है आप घर वापस आ भी जायें पर वक्त पर पहुंचेगे इसकी गारंटी नहीं होती है ।
    आपका आल टाईम फेवरेट गाना मेरा भी फेवरेट गाना है । किशोरावस्था में हमें भी किशोर कुमार बनने का शौक था (शांकिग दूसरों के लिये) । यह गाना मेरा पहला गाना था जिसे मैंने कराओके पर गाना सीखा था और हर महफिल में इसके दम पर लूट पाट शुरू कर देते थे । अब गाना गाने का मूड बन गया है इसलिये जय किशोर दा की ।

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  40. @ कृष्ण मोहन मिश्र जी:
    धन्य हो गये सरकार, आपके सुदर्शन ब्लॉग के हम मुरीद हैं बहुत पुराने। सुषमा रानी और जोखू वाले प्रेम पत्र वाली पोस्ट तो मैंने खुद कई दोस्तों को रैफ़र की है, पढ़ने के लिये। बहुत कुछ पाया है आपके ब्लॉग से। महफ़िलें लूटने वाली बात हमारे लिये भी बहुत शाकिंग है जी। गायन के बारे में आपने बता दिया. और कोई फ़न रह गया हो तो लगे हाथ वो भी बता देते। वैसे हम अब भी नहीं मानते कि आप गाते होंगे - आप वकील हैं तो हम भी बड़े बड़े वकीलों के फ़ैन हैं, बिना सुबूत के नहीं मानेंगे। आपका गाना कैसे सुनने को मिलेगा?
    बहुत बहुत आभारी हूँ आपका।

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  41. मनोरंजक आलेख और मनभावन गीत के लिए बधाई स्वीकार करें।

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  42. फ़त्तू अपनी बीबी के पास पहुंचा, "देख ली मेरी पावर, रोक दी न गाड़ी?"
    बीबी ने पूछा, "तुम्हारी पावर तो देख ली, पर वो जो ड्राईवर ने तुम्हें थप्पड़ मारा, उसका क्या?"
    फ़त्तू, "वो उसकी पावर थी।"
    हा हा हा

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