कहते हैं आज के दिन चाँद को देखें तो चोरी का दाग लगता है। जिस चाँद ने इतना दूर होकर भी अपना माना, उसे इस डर से न देखूँ कि मुझ पर चोरी का दाग लगेगा? हा हा हा........। इल्ज़ाम कुछ छोटा नहीं लग रहा है यारों, कोई भारी सा इल्ज़ाम सोचना था? आज तो जरूर देखूँगा कि आज और बहुत सारों से मुकाबला नहीं करना होगा मुझे। सिर्फ़ मैं और मेरा चाँद होंगे, बहुत दूर लेकिन बहुत पास।
और धर्म और समाज के ठेकेदारों, मुझ जैसे को बरजना था तो यह कहा होता कि आज चाँद को देखोगे तो चाँद को छींक आ जायेगी, फ़िर नहीं देखता मैं।
ये लिखा था आज से डेढ़ महीना पहले, जाने क्यों पोस्ट नहीं किया था उस दिन। आज कर रहा हूँ, है न भरी बरसात में दीपक राग वाली बात, झूठ नहीं बोलता मैं। तीन पखवाड़े में ही कितना अंतर आ गया है? उस दिन चाँद को कोई नहीं देखना चाहता था और आज वही चाँद जाने कितनी सुहागिनों और उनके सुहाग के अमिट और अटूट बंधन का गवाह भी है और साझीदार भी। कितनी शिद्दत से इंतज़ार हुआ आज चाँद का?
:) फ़त्तू ऒफ़िस से आया तो आज चाय नहीं मिली। रोटी के समय रोटी नहीं आई। गुस्से में फ़त्तू अपनी श्रीमती से कुछ कहने लगा तो आ गई अपने असली रंग में, "मर जाने, एक दिन चाय रोटी नहीं मिली तो क्या हो गया? आज तेरे ही स्यापे(मरने पर होने वाला रोना पीटना) में लगी हुई हूँ, पता है न आज क्या है?"
चाँद को देखकर आहें तो बहुत भरते हैं लेकिन कभी चाँद भी आहें भरता होगा, किसी और चाँद को देखकर, क्या ख्याल है?
Geet to bahut sundar hai,par pata nahi kyon sunayi nahi diya!
जवाब देंहटाएंमूर्खतामय मान्यताओं पर मारक प्रहार!
जवाब देंहटाएंफतुआइन तो फत्तू को फतुआ दीं!
जाने व्रत कैसे बीतेगा :(
शब्दकोश में 'क्याल' नहीं मिला। प्लीज!...
बहुत अच्छा लिखा आप ने, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंजो मर्जी हो जाये पर चाँद तो देखना ही है
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही किया जी. स्यापा :)
जवाब देंहटाएंचाँद पर लगे इलज़ाम के जवाब मेंः
जवाब देंहटाएं.
दाग़ पहले से लगा हो जिसके चेहरे पे
भला क्या दाग़ लग जाएगा उसको देखने से
और वो भी दाग़ चोरी का
चलो मत देखो मुझको
पर ज़रा चुपके से जाकर देख लेना शक्ल अपनी
आईने में
देखकर जिसको छिपा था बादलों की ओट में मैं
ताकि लग जाए न मुझको पाप कोई.
.
यह रचना तो बस सीधा प्रसूति गृह से आपके टिप्पणी बॉक्स में अवतरित हुई है, उस झूठे इलज़म के जवाब में जो चाँद के ख़िलाफ़ किसी साज़िश के तहत इंसान ने लगाया है... रही बात फत्तू की तो यही कम्बख़्त संता बनकर दीपक बाबा के यहाँ चिपका है... तसल्ली कर लें. और गाना तो बस चाँद की तरह ख़ूबसूरत!!
@ गिरिजेश राव जी:
जवाब देंहटाएंदो मिनट और लेट हो जाता तो तारीख बदल जानी थी, इसलिये शब्दकोष खंगाल नहीं पाया था। ऐसी गलतियों का लाभ ये है कि आप जैसों की टिप्पणी तुरंत मिल गई। हा हा हा।
आपको बुलाने का एक फ़ार्मूला हाथ लग गया अब ओ, ’ख्याल’ मत कीजियेगा, सुधार कर दिया है। अतिरिक्त धन्यवाद!!
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंअरेरेरे... क्या कह रहे हैं दादा... वो चौथ का चाँद होता है.. कलंकित होता है ये भी सही है.. लेकिन वो गणेश चौथ का चाँद होता है ना कि करवा चौथ का.... :(
जवाब देंहटाएंअंधविश्वास ही रहता होगा गणेश चतुर्थी को चाँद देखना ...
जवाब देंहटाएंरोकते -रोकते भी नजर जरुर पड़ जाती है उस दिन ...कभी -कभी इससे जुडी भ्रान्ति भी सच लगती है ...शायद बहुत कुछ मन की अवस्था पर निर्भर करता है ...
गीत तो मधुरं मधुरं है ही ...
फत्तू की करवा चौथ का भगवान् मालिक ...!
सिर्फ़ मैं और मेरा चाँद होंगे, बहुत दूर लेकिन बहुत पास।
जवाब देंहटाएं-बड़ा शायराना अंदाज रहा...
बकिया तो फत्तु समझ गया.
@ चला बिहारी:
जवाब देंहटाएंसलिल जी, नवजात रचना के लिये बधाई। चैक कर लिया दीपक बाबाजी के यहाँ, एक ही हैं दोनों। उनकी पोस्ट पहले की है, मैं नहीं पढ़ पाया था तो संता की बल्ले बल्ले ते साड्डा फ़त्तू थल्ले थल्ले, मंजूर है। वैसे भी आजकल टाईम ठीक नहीं दिखता, हा हा हा। आशा है कि आपको इस टिप्पणी में कोई अपमान नहीं झलकेगा।
@ दीपक:
सही बताया दीपक। जाने दो अब तो हो गया जो होना था।
आज के दिन चाँद को देखें तो चोरी का दाग लगता है।
जवाब देंहटाएं1. दिन के वक्त चान्द/तारे देखने का मतलब...
2. चोरी तो चोरी ही है, किसी दिन भी हो ...
चाँद के दाग दिखते हैं, मन का स्याह नहीं दिखता लोगों को।
जवाब देंहटाएं"मर जाने, एक दिन चाय रोटी नहीं मिली तो क्या हो गया? आज तेरे ही स्यापे(मरने पर होने वाला रोना पीटना) में लगी हुई हूँ, पता है न आज क्या है?"
जवाब देंहटाएंयह क्या सिर्फ फत्तू के लिए है ?
hamesha kee tarah mazedar.
जवाब देंहटाएं@ smart indian:
जवाब देंहटाएंसही कह रहे हैं आप उस्ताद्जी(मेरे वाले)
@ सतीश सक्सेना जी:
सक्सेना साहब, है तो खुद पर बीती लेकिन फ़त्तू जैसे और कब काम आयेंगे? आभारी हूँ कि अभी स्नेह बना हुआ है आपका।
भाई साहब, पन्द्रह दिन पहले इस पोस्ट मे उतना मजा न आता जो आज आया है
जवाब देंहटाएंफत्तू का भी जवाब नही, पेट मे गुदगुदी कर देता है
हमे तो चाँद कल भी न दिखा।
chaand jaisa bhi hai .. chand to chand hai ... sabka pyaara... chahe bacche hon ... aashiq hon ... shayar hon ... koi bhi ... post padh ke achha laga ...aabhaar
जवाब देंहटाएंदेखा कितना सही कहते है लोग वो दूज का चाँद होता जो कुछ देर के लिए निकालता है और उसे देखने पर चोरी का दाग नहीं चरित्र पर इल्जाम लगता है पुरुषो के लिए चोरी बड़ी बात होगी पर नारिया तो बहुत डरती है उस चाँद से क्योकि उनके चरित्र पर लगा दाग बड़ा भयानक होता है | जरुर आप ने उसे चोरी छुपे देखा होगा इसीलिए मेरी पोस्ट के बाद आप ने खुद से खुद पर ही इल्जाम लगाया है | आप की टिप्पणी पढ़ कर मै तो खूब हँस ली आप भी जवाब पढ़ कर हँस ले | अच्छी खासी मेरी ट्रेजडी पोस्ट को कामेडी बना डाला |
जवाब देंहटाएं"अभी स्नेह बना हुआ है आपका..."
जवाब देंहटाएंपहली बार पढ़ा था जबसे ही अच्छे लगते हो सो जब भी मौका मिलेगा पढना चाहूँगा बशर्ते कि तुम मेरा आना रोक न दो ...तानाशाही के जरिये :-))
मुझे ख़ुशी है कि दोस्त लोग जल्दी पहचान गए मुझे , यहाँ कईयों को पहचानने में तो उम्र बीत जायेगी संजय ! मैं अनाड़ी खिलाडी हूँ सो जल्दी पकड़ा जाता हूँ ! बढ़िया शब्द लच्छेदार बाते सब बेकार ...
चाँद के बहाने ही सही,
जवाब देंहटाएंमित्रों का स्नेह सदा बना रहे......
यही कामना है मेरी.
सटीक व्यंग!
जवाब देंहटाएंचादँ भी घूम घूम कर रोज़ मुआयना करता है इस धरती का,
सोचता होगा क्या इलाज़ है इन लोगों का?
जो मेरे साथ हुआ वही फत्तू के साथ भी हुआ :)
जवाब देंहटाएंचलो अच्छा हुआ, हम अकेले नहीं हैं।
आपके दर्शन की अभिलाषा है जी
प्रणाम
गज़ब का अन्दाज़-ए-बयाँ है…………मज़ा आ गया।
जवाब देंहटाएंshaayaranaa andaaj...behad rochak post...vaah chaan.
जवाब देंहटाएंthanks for your nice comments
जवाब देंहटाएंफत्तू दिन रात रहें रंगरोगन, ताम-झाम के साथ...पूरे फॉर्म में.
जवाब देंहटाएंऔर एक दिन मिसेज फत्तू से अखबार पट जाएँ तो हाय स्यापा!!
अरे फत्तू लौटेंगे सर जी, चाय पानी ले कर लौटेंगे, कुछ लोग तो उम्मीद करते ही हैं .... :)
बहुत सुन्दर आपका लिखने का अंदाज़ है !
जवाब देंहटाएंहा हा हा मज़ा आ गया !
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फिर से हरियाली की ओर........support Nuclear Power
चांद ...क्या वो भी किसी पान डब्बे पर सिगरेट फूंकता अपनी चांदनी की राह ...? कहीं किसी मयखानें में दोस्तों के संग चांदनी का ख्याल... करीने से रखी डायरी के वर्क दर वर्क रोशनाई में उसे तलाशते हुए ज़िन्दगी के मायने खोजता होगा या फिर उसने ...
जवाब देंहटाएंचांदनी के हिस्से सौंप दी होगी सारी दुआओं की विरासत और सारी तपस्याओं का जिम्मा ?
[ अपनी टिप्पणी यही तमाम कर रहा हूं वर्ना उसके हाथों पिटती हुई चांदनी पर लिखने का मूड बनने लगा है ]
सिर्फ़ मैं और मेरा चाँद होंगे, बहुत दूर लेकिन बहुत पास। ....
जवाब देंहटाएंSuch a romantic way of thinking... :)
और धर्म और समाज के ठेकेदारों, मुझ जैसे को बरजना था तो यह कहा होता कि आज चाँद को देखोगे तो चाँद को छींक आ जायेगी, फ़िर नहीं देखता मैं।....
ahaa........ Mahboob chaand ! bahut khoob post,Sanjay ji ! Vyang, haasya aur roomaniyat sab ka put liye hue !
Aur mere pasandeeda geet ke liye aabhaar ! :)
मैं कन्फ्यूज गया पहले... ये भादो का चाँद अभी कहाँ से आ गया चोरी लगाने :)
जवाब देंहटाएं@ Deepak Saini:
जवाब देंहटाएंतुम ले लो मजे, हमारी तो देखी जायेगी।
चांद नहीं दिखा? हिरण कस्तूरी को बाहर ढूँढेगा तो निराशा ही होगी। आंखें बंद करके देखना सीख लोगे तो दोस्त कोई शिकवा नहीं रहेगा, कोई नहीं।
@ क्षितिजा जी:
आभार।
@ anshumala:
जवाबी हमला झेलने के लिये तैयार रहियेगा:)
@ सतीश सक्सेना जी:
क्या कह रहे हैं सक्सेना साहब आप? आप भी बस्स....
@ सम्वेदना के स्वर:
हा हा हा, लाईलाज हैं जी एकदम।
@ अन्तर सोहिल:
जवाब देंहटाएंअमित, छुट्टी नहीं मिल रही है। हाँ, ’समाल’ गांव में हमारा एक पुराना स्टाफ़ है, अपना प्रेमी है। उसका उधार बाकी है, जिसदिन भी उधर आना हुआ, दर्शन हम करेंगे तुम्हारे।
@ वन्दना जी, अरविन्द जी,
शुक्रिया आप का।
@ जयकृष्ण राय तुषार जी:
ठीक है जी, पिछला हिसाब बराबर। हा हा हा।
@ Avinash Chandra:
राज्जा, उम्मीद से ही दुनिया है, फ़त्तू कमबैक करेगा जरूर।
साधे कई निशाने...फत्तू के बहाने...
जवाब देंहटाएं@ Coral:
जवाब देंहटाएंआपको अच्छा लगा, शुक्रिया।
@ अली साहब:
सिगरेट, मयखाना, और तो और करीने से रखी डायरी - सब गुजरे वक्त की बात हैं साहब।
क्या अली साहब, जब लिखने लायक मुद्दा आया तो आप खिसक लिये? इंतजार करते हैं आपकी पोस्ट का.....
@ रवि शंकर जी:
कमेंट के लिये शुक्रिया जी, आपका ब्लॉग बहुत सुंदर है। आभार स्वीकारें।
@ अभिषेक ओझा:
इज्जत सम्मान अपनी जगह है जी, ये कन्फ़्यूजियाने का मोनोपोलिस्टिक अधिकार हमारा है। आप नहीं कन्फ़्युजियाईये।
@ देवेन्द्र पाण्डेय:
फ़त्तू के जबरदस्त फ़ैन लगते हैं आप, शुक्रिया कह रहा था आपको।
हा हा हा...आज समझ आगया फ़त्तू कौन है?:)
जवाब देंहटाएंरामराम.
@ताऊ!
जवाब देंहटाएंहा हा हा...आज समझ आगया फ़त्तू कौन है?
हा हा हा!
बहुत बढिया जी। करवा चौथ का महत्तम सुनाया बहुत बढिया बेचारा फ़त्तू...:)
जवाब देंहटाएंसिर्फ़ मैं और मेरा चाँद होंगे, बहुत दूर लेकिन बहुत पास।
जवाब देंहटाएंक्या बात है बॉस ! वैसे फत्तू जी से सहानुभूति है ...
काश ऎसा ही एक फत्तू हमारे पास भी होता...तो हम भी उसकी आड में खुद का हाल-ए-दिल कह पाते :)
जवाब देंहटाएंये फत्तूवाह और उसकी घरवाली सोने पर सुहागा। हम तो रोज़ ही चाँद देखते हैं हमारे घर मे जो रहता है। शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएं@ ताऊ रामपुरिया:
जवाब देंहटाएंताऊ, थम तो हो ही घाघेस्ट ऑफ़ ऑल महाघाघ्स!
हमनै बी समझा दियो, कुण सै यो फ़त्तू!
@ Smart Indian:
उस्ताद जी(हमारे वाले), आप भी मिला लो ताल से ताल ताऊ के साथ, हमारी तो देखी जायेगी..
@ NK Pandey ji:
स्वागत है आपका। फ़त्तू ने भी साड़ी देकर ही बीमा करवाया आखिर, औरों की तरह। शुक्रिया आपका।
@ Indranil Bhaattacharjee:
सैल साहब, दरकार थी भी फ़त्तू को सहानुभूति की। मेहरबानी।
@ पं. डी.के. शर्मा, वत्स जी:
त्वाडे नेड़े तेड़े ही हैगा जी फ़त्तू, हाले दिल सब का एक ही है जी, कोई रो देता है कोई हंस कर उड़ा देता है।
क्या खूब कहा! चांद की हैसियत भी हम जब चाहे बढ़ाते-घटाते रहते हैं। यही एक रात थी जब हमने चांद का इंतज़ार नहीं किया। बेचारा कितने-कितने टुकड़ों में बंटकर बिखरा होगा सबकी थालियों/जालियों में!
जवाब देंहटाएंये चांद भी ना...बोले तो एकदम पीतल वीतल, जस्ता फिस्ता के थाली का माफिक होता है...समय समय पर बराबर कलई नहीं कराने की वजह से ही पीला वीला दिखते रहता है।
जवाब देंहटाएंबोले तो बिना नहाया धोया चांद और उसे देख लोग आहें भरते हैं :)
बढिया पोस्ट।
@ निर्मला कपिला जी:
जवाब देंहटाएंहम भी रोज देखते हैं जी, बिना नागा। आभार आपका।
@ अनु सिंह चौधरी:
अनु जी, अभी ही तो ज्यादा जरूरत थी इंतज़ार की।
@ सतीश पंचम:
भाईजी, ऐसेईच ठीक है। नहा धो लेता तो हम आह भरने लायक भी नहीं रहते:)
अब ये कन्फ्यूजन हो रहा है की किसकी तारीफ़ करूँ ?? :)
जवाब देंहटाएंआपके जज्बे की ,फत्तू के किस्से की, या गाने की ? :)
[तीनो ही तारीफ़ के काबिल हैं ]
थ्री इन वन काम है ..... आपकी तारीफ
"बहुत अच्छा लिखते हैं आप"
[ब्लॉगजगत आज थोड़ा शांत दिखा तो मैंने कहा कमेन्ट करने शुरू कर दूँ ]
जानते हैं अजीब बात क्या है... के साल भर तो हम उनसे झगड़ा किया करते हैं, मगर एक दिन भूखे प्यासे रहकर, तन्हा बैठे सोचते है..खुदा, सारे झगडे माफ़ करना, जो हैं, जैसे है, उन्हें सलामत रखना...
जवाब देंहटाएंand the besst part is...के उनके घर आते ही, गाहे बगाहे कोई अनबन वाली बात निकल जाए...तो फिर झगड़ा होता है...!! औरों का पता नहीं...मगर मेरा झगड़ा तो होकर ही मानता है ;)
हाँ, चाँद उस दिन भी उतना ही खूबसूरत लगता है जितना हर रोज, मगर उस दिन भाव बोहोत खाने लगता है चाँद...गला जब तक पूरी तरह सूख न जाए...नज़र नहीं आता
aapka blog bohot hi intresting hai...so glad to find its way...aap kamaal ka likhte hain :)
जवाब देंहटाएं@ Gourav Agrawal:
जवाब देंहटाएंगौरव, अपनी जगह सही हैं हम तो शांति\अशांति की कोई दिक्कत नहीं। मर्यादित बने रहें हम,बहुत है। और फ़िर तुम्हें सराहने वाले कम हैं क्या? असहमतियों को दिल पर मत लो।
@ saanjh:
आपको अच्छा लगा, धन्यवाद।
मै और मेरा चाँद....
जवाब देंहटाएंबहुत दूर पर बहुत पास....
वाह भी और आह भी.....
कभी मैं नहीं तो कभी चाँद नहीं....
इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबेचारा चाँद! वैसे गाना मैंने २-३ बार सुन लिया. अब इतने पुराने गाने तो कभी सुनने को भी नहीं मिलते है. पहले विविध भारती में सुना करते थे.
जवाब देंहटाएं@ Archana Ji:
जवाब देंहटाएंबहुत गौर से पढ़ती है आप, शुक्रिया।
@ बेनामी:
महाशय जी, कमेंट बॉक्स के ऊपर लिखी मेरी बात आपने नहीं पढ़ी, मुझसे आशा है आपको कि मैं ये सब पढूंगा या देखूंगा?
@ वन्दना:
पुरानी चीजें तो सब हैं अब भी, हम जरा माडर्न टाईप के हो गये हैं। thankx Vandana ji.
ka pattu ji ekdin tea nahi milti to sabra kar lete , kahe apni bhadd pitwa li ek din madam ko bhi to sher ban jane dete.......... puri prastuti bahoot achchhi lagi.......
जवाब देंहटाएंshaandar hasye vyag he
जवाब देंहटाएंachhi pakad he aapki