आज जाकर मूड कुछ ठीक हुआ है जी हमारा। उस दिन शायद महीने भर के बाद अखबार पढ़ी तो लेख देखा, ’जवानी में वाईन तो बुढ़ापा फ़ाईन।’। वैरी गुड, बचपन और जवानी तो जैसे तैसे निकाल दी, कभी बहक कर और कभी ठिठक कर, एक बुढ़ापे का सहारा था कि आराम से कट जायेगा, इस पर भी पानी फ़ेर दिया विद्वान लोगों ने।
अमां जो पीते हैं, वो जवानी भी फ़ाईन गुजारें और बुढ़ापा भी, और हम जैसे बहार में भी सूखे रहे और जब चैन से बैठने का समय आये, उस समय भी बेचैन रहें। सही है तुम्हारा इंसाफ़।
आप कह सकते हैं कि हमें किसने रोका है, हम भी तो ये सब कर सकते थे और वैसे भी मलिका पुखराज का गाना ’अभी तो मैं जवान हूँ’ मुफ़ीद बैठता है हम पर तो अभी क्यों न कर लें यह शुभ काम? फ़ायदा ही फ़ायदा, जो मन में आये वो कर सकेंगे। किसी से प्यार का इजहार, किसी को गाली-गुफ़्तार, किसी की च्ररण-वंदना और किसी की इज्जत का फ़लूदा, कुछ भी कर देंगे और अगर बाद में बात बिगड़ गई तो माँग लेंगे माफ़ी कि यार खा-पी रखा था, कह दिया होगा कुछ, जाने दो। वैसे भी यहाँ जबसे पधारे हैं हम, टिप्पणी, सलाह, मार्गदर्शन, माफ़ी, कॉफ़ी कुछ भी माँगने में शर्म नहीं आती। और फ़िर हमें शर्म आई तो कोई तो होगा कहीं मसीहा, जो हमारे लिये सफ़ाई दे देगा? इत्ते सारे बड़े भाई, छोटे भाई, उस्ताद जी, वस्ताद जी, यार-दोस्त, मित्र-बन्धु बनाये हैं, हमारे गाढ़े हल्के में काम न आये तो फ़िर क्या फ़ायदा इतना वजन उठाने का हमारा?
अब करें क्या, शुरुआत खराब हो गई थी अपनी। बचपन से ही पहले तो टीचर ऐसे मिले, जिनकी किताबें पढ़ीं शुरू में वो लेखक ऐसे मिले, फ़िल्में पसंद आईं तो ऐसे निर्देशकों की जिन्होने हमें बिगाड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी। शराफ़त, नैतिकता, ईमानदारी, शालीनता जैसी विलुप्त प्रजाति की चिडि़याओं का बसेरा करवा दिया हमारी खोपड़ी में। इन्हें जेहन में बसाकर उम्र भर के लिये बरबाद कर दिया हमें। ये सब चीजें न ओढने की, न बिछाने की। न इधर के रहे न उधर के। न खुदा ही मिला न विसाले सनम। जमाने को देखें तो सरपट भागता दिखता है और हम ताल से ताल मिलाने की असफ़ल सी कोशिश करते हुये। हमने बिगड़ने और बिगाड़ने का फ़ैसला कर लिया है, मसौदा बना रहे हैं और जल्दी ही पेश करेंगे।
अब मूड ठीक कैसे हुआ, ये बकवास सुनो। सुबह सुबह यह पोस्ट देखी और कमेंट्स पढ़े। किसी को उल्टी आ रही है, किसी के साथ कुछ हो रहा है, कोई उसे जायज ठहरा रहा है तो कोई और बाल की खाल निकाल रहा है। हमने तो देखे जी दोनों वीडियो कई बार, दोनों के लिये धर्मनिरपेक्ष होकर कह रहे हैं कि प्रेम, करुणा, सौहार्द, अलाना, फ़लाना आदि का सागर और जोरों से ठाठें मारने लगा है।
इतने लोगों को पुण्य-सबाब मिलेगा, ये सोचकर मूड सही हो गया। इन बेजुबान बेचारों ने तो मरना ही था और फ़िर तुम ताकतवर हो इनसे, तो तुम्हारा हक भी है। वैसे शायद तुम से ताकतवर कोई और भी हो कहीं....... तुम ले लो यारों पुण्य-सबाब, वहाँ जाकर पीने को मिल जायेगी तुम्हें और तुम हो लेना खुश उसमें, हमारी और हम जैसों की जवानी जैसी गुजरी, गुजर गई और बुढ़ापा फ़ाईन न गुजरेगा तो न गुजरे, वो भी देखी जायेगी।
हम तो यहीं गा गुनगुना लेंगे – ये आठ के ठाठ है बंधु…..
:) फ़त्तू के बाल वाल रूखे से बिखरे से थे, वरिष्ठ…. ने समझाया, “रै, बालों में तेल गेर लया कर माड़ा सा।”
फ़त्तू बोल्या, “जी तो म्हारा भी बोत करे सै जी, पर आड़े तो हाल इसे हैं कि छौंक लगाती हाण भी पानी का इस्तेमाल करना पड़ रया सै, आप बात करो सो बालां में तेल गेरन की।”
आयेगा सही टाईम भी फ़त्तू का, देख लेना
बात कुछ तो जरूर होगी आपने कही है,तो!
जवाब देंहटाएंपर गाने में ’मज़ा सा’ आ गया!
फ़त्तू अगर सब्जी खाके हाथ सर पे फ़ेर ले तो भी काम चलेगा!
वहाँ कुछ टीपे थे, शायद जल्दबाजी कर गए थे. पता चला पोस्ट ही अधूरी थी, अभी मात्र ऊंट की कुर्बानी दिखाई गयी थी, मंदिर की नहीं, तो ब्लॉग लेखक ने टीप डिलीट कर दी; और सही किया. नहीं तो अर्थ का अनर्थ हो जाता.
जवाब देंहटाएंअब यहाँ भी टीप करने से घबरा रहे हैं.. पता चला अभी पोस्ट एडिटिंग में है और हम टीप बैठे....
..... कुछ भी नहीं कहा जा सकता .....
अपना भी बुढापा फ़ाईन नही गुजरेगा अफ़्सोस है लेकिन इस उम्र मे खाक मुसलमां होंगे
जवाब देंहटाएंek aacchha lekhak bahut aacchha likhne ki koshish karta hai.
जवाब देंहटाएंसंजय बाऊजी आज मौन! लिंक देकर मेरा मन और खराब कर दिया… सिर्फ एक बार बुल फ़ाइटिंग का खेल देखा था… तलवार के प्रहार और रक्तपात तक तो बर्दाश्त किया पर आख़िर में जब वो तलवार जानवर के गले के अर पार कर दी गई तो बस उल्टी पर उल्टी...
जवाब देंहटाएंफत्तू का दर्द दिल को झकझोर गया और सुकुन मिला रब्बी को सुनकर... एक बार और!!
सोचा टिप्पणी छ्प जाएगी तुरत..पर ये तो छिप गई.. ख़ैर कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी!!
जवाब देंहटाएंअमित की वह पोस्ट निर्मम हत्याओं के विरुद्ध थी, अमित का मैंने पूरा समर्थन किया.. गाना बहुत अच्छा लगाया है...
जवाब देंहटाएंसबको स्वस्थ बुढ़ापा मिले।
जवाब देंहटाएंChain se budhapa katne ke din kahan rahe??Wine piyo na piyo!Ab to budhape me kisi aashram ka sahara lena padega!!
जवाब देंहटाएंभाई साहब दो दिन से आपकी पोस्ट का इन्तजार कर रहा था (पता नही क्यो)
जवाब देंहटाएंआज जब पोस्ट पढी तो मजा आ गया वैसे तो हमारा जीवन भी आप ही के आदर्शो पर चल रहा है (शराब न पीना) और आप की तरह आज की कुछ बुराईयाँ (इमानदारी वगैरह) हमारे अन्दर भी घर कर गयी है अब घर कर ही गयी तो क्या किया जाये। जवानी तो मस्त कट रही है बुढापे मे जो होगा देखा जायेगा।
पता नही क्यो मेरी समझ ये नही हर आदमी धर्म की बुराईयों को ही क्यों देखता है अच्छाईयो को क्यो नही। जीवो पर दया करना भी तो सभी धर्मो मे लिखा है
इस तरह की विडियो को देखने से मुझ पर तो कोई फर्क नही पडता।
बारह साल मे तो कुरडी के भी दिन बदल जाते है तो फत्तू को क्यो ना बदलेंगें
अच्छी खिंचाई की है।
जवाब देंहटाएंक्यों ये आठ के ठाठ वालो के ब्रांड राजदूत नहीं नहीं अंग्रजी ही ठीक है ब्रांड अम्बेसडर ( क्या करे अंग्रेजी बोलते ही औकात बढ़ जाती है सीधे दू पहिया से चार पहिये पर आ जाते है) बन गये है क्या जो ये पोस्ट लिख डाली | इतनी अच्छी खबर पढ़ कर अब ना जाने कौन कौन अपना बुढ़ापा फाईन करने निकाल जायेगा आज सन्डे के दिन |
जवाब देंहटाएंलो जी फत्तू के पास इतना बड़ा हुनर है फिर भी फाके के दिन गुजार रहा है | बोलिये की किसी बड़े शहर में डाईटिशीयन बन जाये और सबको पानी से छौंक और पानी में सब्जी पकाने तरीका बताये मोटापे और दिल के मरीजो की लाइन लग जाएगी |
... bahut khoob .... shaandaar post !!!
जवाब देंहटाएंहा हा हा सेंसरशिप पर आप को इसकी की जरुरत पड़ गई | वैसे अच्छा किया कई दिनों से मेरा भी कुछ पोस्टो पर कुछ लोगों की टिप्पणिया पढ़ पढ़ कर दिमाग ख़राब हो रहा था कल तक जो लोग कुछ लोगों के खिलाफ हाय हाय के नारे लगा रहे थे वो आज उन्ही के पोस्ट पर इंसानियत की बात कर रहे है | और कुछ लोग लगे है हर पोस्ट पर एक ही टिप्पणी कट पेस्ट करने में अब कम से कम आप की पोस्ट पर वो नहीं दिखेंगी |
जवाब देंहटाएंसंजय जी मैं स्पष्ट कहूँगा की मांस और मदिरा से मुझे कभी परहेज नहीं रहा तो शायद ईमानदारी, शराफत, शालीनता और नैतिकता नाम की चिड़ियाएँ तो मुझसे दूर ही रहती होंगी. क्या कहते हैं?
जवाब देंहटाएं.....
जवाब देंहटाएं@ ktheLeo:
जवाब देंहटाएंभाई कहकर बुला लूँ आपको?
हमारे दफ़तर में आकर जब कोई फ़ार्म-सा माँगता है,त्तो आपका मजा-सा याद आ जाता है।
सब्जी में कौन सा तेल है जी?
@ सबसे बढि़या कमेंट ऐसे ही होते हैं दीपक, क्या कहें कुछ नहीं कहा जा सकता(यानि कि स्सा,., कहा तो बहुत कुछ जा सकता है, पर छवि खराब हो जायेगी, हा हा हा:)
@ धीरू सिंह जी:
चलो एक से भले दो।
@ poorviya:
मिश्रा जी, आपकी पोस्ट्स से यह स्पष्ट होता ही है, और आप लिखते भी हैं एकदम सारगर्भित। हमारी तरह नहीं कि भर दिया पूरा पेज, नतीजा सिफ़र।
@
@ चला बिहारी...
जवाब देंहटाएंसलिल भाईजी, आपका मन खराब हुआ उसके लिये क्षमाप्रार्थी। वही ज्यादा भावुक, ज्यादा संवेदनशील वाली बात...। सॉरी अगेन। आगे से कोशिश रहेगी सिर्फ़ हरा हरा(अच्छा अच्छा) दिखाने की लिखने की।
और ये छुपने वाली कब तक छुपेगी कैरी की आड़ में? आ गई न?
@ भारतीय नागरिक:
गाना पसंद आया आपको, शुक्रिया।
@ प्रवीण पाण्डेय जी:
शुभकामना के लिये धन्यवाद।
@ kshama ji:
हमें कौन आश्रम वाला रखेगा जी? वो मठ ही उजाड़ हो जायेगा, हम पहुंच गये तो:)
@ deepak saini:
बालक, एक सलाह दूँ? सारी उम्र दुख पायेगा इन बीमारियों को बढ़ने दिया तो। आगे एक पोस्ट सोच रखी है, तुम्हारे जैसों का भविष्य सुधारने की, फ़िर पूछूंगा राय:)
इन बेजुबान बेचारों ने तो मरना ही था और फ़िर तुम ताकतवर हो इनसे, तो तुम्हारा हक भी है। वैसे शायद तुम से ताकतवर कोई और भी हो कहीं...
जवाब देंहटाएंकेवल शक्ति से कहाँ समझ आयेगी, इतना ही ज़ालिम और वहशी होना चाहिये! सुन्दर पोस्ट, सुन्दर शिक्षा!
@ राजेश उत्साही जी:
जवाब देंहटाएंखिंचाई तो जी सब मेरी करते हैं, आप अभी जानते नहीं हो इन सबको।
@ anshumala ji:
खा कमा लेने दो जी आठ के ठाठ वालों को, क्यों बेचारों का भट्ठा बैठाना:) वो तो पोस्ट पब्लिश करी तो समय देखा तो8 p.m., हा हा हा।
सेंसरशिप पर आप जिनकी बात कह रही हैं, मैं उन्हें किलर्स इंस्टिंक्ट वाले मानता हूँ जिन्हें हर हाल में जीतना है। हम ठहरे हार में जीत समझने वाले तो..
@ उदय जी:
शुक्रिया।
@ विचार शून्य:
दीप, मैंने कहीं ऐसा नहीं लिखा कि माँस मदिरा वाले ईमानदार, शरीफ़,शालीन और नैतिक नहीं हो सकते। मैं व्यक्तिगत रूप से क्या करता हूँ,यह अलग बात है लेकिन कोई भी चीज किसी पर थोपना मुझे खुद पसंद नहीं है। अगर ऐसा लगा तो भाई, कमी है लिखने में।
भाई कोई बुलाये कोई बात नहीं,
जवाब देंहटाएंदिल जरा घबरता है, भाई-’चारे’ से!
@ देवेन्द्र पाण्डेय:
जवाब देंहटाएंपाण्डेय जी, फ़त्तू को तो बताना है तो सीधे से बताना होता है, न तो कालिदास वाली गलतफ़ैमिली की गुंजाईश रहेगी:)
@ स्मार्ट इंडियन:
दुनिया में हर चीज से बड़ी चीज है उस्ताद जी।
@ ktheLeo:
दिल को नहीं घबराने देना है सर। बिना भाई-’चारे’ से! भी चलेगा, बल्कि सरपट दौड़ेगा।
maine na kabhi pi hai aur na hi peena hai
जवाब देंहटाएंye bhi meri hasarat hai, iske vagair mujhe jeena hai..
intezaar kijiye ..aapke jaise bigde shahzadon ki zindagi pe ek post aa rahi hai..Zahrila...
hahaha ...
वाह, क्या बात है
जवाब देंहटाएंफ़त्तू का ही दिन आयेगा देख लेना आप !
@ मो सम कौन ? जी,
जवाब देंहटाएंदया / माया , शाकाहार / मांसाहार , तेरा धर्म / मेरा धर्म वगैरह वगैरह पे तो जैसे उपदेशकों की बाढ़ सी आ गयी है ! जो लिख रहे हैं टापिक उन्हें मुफीद होंगे , जो टिपिया रहे है उनकी अपनी पसंद ! हमें कोई एतराज नहीं ! एतराज का हक भी नहीं ! हक भी हो तो औकात नहीं ! निवेदन ये कि दुतरफा हाहाकार होता है ! होता रहे ! हुआ करे !
मैं खुश हूं मेरे आं...
इन्हें जेहन में बसाकर उम्र भर के लिये बरबाद कर दिया हमें।
जवाब देंहटाएंअब बुढापा सही बीत जाए।
इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआयेगा सही टाईम भी फ़त्तू का, देख लेना
जवाब देंहटाएंआशा पे आसमान टिका है?
वैसे, मेरे विचार में, फत्तू जो है जैसा है, जिस हाल में है, बढ़िया है और उसके लिए सारा टाइम एक है - बढ़िया :)
नहीं ?
रहा सवाल बुढ़ापा का तो हमारा भी सत्यानाश होना है समझो :(
मुझे उस पोस्ट का इन्तजार रहेगा।
जवाब देंहटाएंसंजय बाऊजी!
जवाब देंहटाएंसलिल भाईजी, आपका मन खराब हुआ उसके लिये क्षमाप्रार्थी।
इसकी आवश्यकता नहीं.. सच होता ही है मन ख़राब करने के लिए!!
वही ज्यादा भावुक, ज्यादा संवेदनशील वाली बात...।
सो तो है!!
सॉरी अगेन।
सॉरी किसलिए!!
आगे से कोशिश रहेगी सिर्फ़ हरा हरा(अच्छा अच्छा) दिखाने की लिखने की।
मैंने ऐसा तो नहीं कहा... आप ही तो कहते थे ये लाल रंग कब मुझे छोड़ेगा... फिर अपुन को क्यों हरे में घसीट लिया.. बाऊजी, जितने रंग हैं ज़िंदगी के सब देखने का हौसला रखना चाहिए. मुझमें है... उल्टियाँ बीमारी नहीं, सम्वेदनशील होने का एक सच्चा और घिनौना एक्स्प्रेसन है!!
और ये छुपने वाली कब तक छुपेगी कैरी की आड़ में? आ गई न?
इश्क़ और मुश्क़ के बाद सच्चे कमेंट भी लगता है छुपाए नहीं छुपते!!
"कुछ भी नहीं कहा जा सकता......."
जवाब देंहटाएंयक्ष प्रश्न : किस पर टीप करें.....?
दारू की बोतले पर
दारू पीने वाले पर
बुदापे पर
इमानदारी और शराफत जैसे शब्दों पर
या 'यह पोस्ट' पर
@ आनंद राठौड़:
जवाब देंहटाएंहम इंतज़ार करेंगे(जहरीला ही सही) हा हा हा..
@ विवेक रस्तोगी:
जरूर देखेंगे जी।
@ अली साहब:
हमारा दुख भी दुतरफ़ा ही है जी। और दोनों तरफ़ के सही अल्पसंख्यक ही हैं जो पिसते हैं। ऐतराज, हक, औकात वगैरह पर अपने विचार ऐसे ही रख देखिये शायद हालात ठीक हो जायें? क्या ख्याल है? @ मैं खुश हूँ, मेरे आं........., सहमत हैं जी, आप मेरी हाहा हीही पर जा सकेंगे ना?
@ मनोज कुमार:
कोई चांस नहीं है, सर। इतना जरूर है कि तब तक आदत पक चुकी होगी:)
@ मज़ाल:
सिर मुंडाते ही ओले पड़े। पहली बार माडरेशन लगाई, और आपके कमेंट को पढ़े बिना ही पब्लिश कर दिया था(गुडविल है आपकी), अब देखा तो एक जगह ’एक नुक्ते के कारण खुदा से जुदा’ वाली कहानी फ़िट बैठती है आपके कमेंट पर। पहली बलि आपके कमेंट की, ये मानकर कि टाईपिंग मिस्टेक ही हुई होगी। टिप्पणी सेव्ड है, चाहें तो देख लीजियेगा।
बहरहाल आपके कमेंट से सहमत, न हम किसी को मजबूर करें न कोई हमें मजबूर करे।
@ Raviratlami Ji:
जवाब देंहटाएंरवि साहब, आपका बहुत बहुत शुक्रिया। फ़त्तू आलवेज़ एवरग्रीन ही रहेगा जी। इस बुढापे के सत्यानाश होने वाली बात पर बधाई भी तो नहीं दी जा सकती कमबख्त, बैठेंगे कई दीवाने एक साथ, दीवान-ए-सत्यानाश सजाकर:)
@ दीपक सैनी:
दीपक, अब दो पोस्ट का इंतजार करना। एज आनंद भाई भी लिख रहे हैं, हम पर। वाह रे हम तुम:)
@ दीपक डुडेजा:
इतने दीपक जिसके साथ हों, उसको उजालों की कमी नहीं होने की यार, कमेंट का क्या है? और मौके आयेंगे, मज़ा लेने के।
@ सम्वेदना के स्वर:
ओ पता है जी सारी सच्चाई आपकी, थोड़ा सा ड्रामा तो कर लेने दिया करो:)
ये हमारे आपके रंग हैं, कोई राजनैतिक पार्टियों की टोपियाँ नहीं कि आनन फ़ानन में बदल ली जायें।
इश्क-मुश्क पर तो जी हमारा रिकार्ड वहीं पहुंच जाता है फ़िर - ’वो दिन हवा हुये कि कब पसीना गुलाब था........’
@ एक बुढ़ापे का सहारा था कि आराम से कट जायेगा, इस पर भी पानी फ़ेर दिया विद्वान लोगों ने।
जवाब देंहटाएं:)
ये विद्वानी बौत वाहियात चीज होती है। फिकर नईं करने का। इस संसार में आज तलक कोई बात ऐसी नईं हुई जिसके पक्ष में सॉलिड, लिक्विड या गैस टाइप के तर्क न हों। ठीक ऐसा ही विपक्ष के केस में भी है।
तो शिक्षा जे मिलती है कि:
बहुत हुए गुनाह बेखुदी में,अब क़यामत का आगाज़ हो
पढें अपनी अपनी हम तुम,जब शर्मनाक कोई बात हो।
आपकी पोस्ट नें तो हमें गम्भीर सोच में डाल दिया...अब ये तो जैसे तैसे समझिए कि कट ही जाएगा..बस ऊपर वाले(अगर वो है तो) से प्रार्थना है कि अगले जनम मोहे ब्राह्मण न कीजो :)
जवाब देंहटाएं@ गिरिजेश राव जी:
जवाब देंहटाएंहम ठहरे जी अशिक्षित, शिक्षा-भिक्षा से डर लगता है। एक बार हां भर कर दी तो पता नहीं कौन कौन से लिंक थमा देंगे आप।
कयामत से कौन डरे है जी, रोज आती है हम पर
उसको राजी करेंगे या नाराज करेंगे, करेंगे अपने दम पर।
(म्हारी रच ना है जी, प्रेरणा आपकी है)
@ पं. डी.के.शर्मा वत्स जी:
महाराज, हमीं गंभीर न हुये लेखक होकर इसके, आप क्यों जहमत उठाते हैं। ऊपर वाला(जो है जरूर) क्यों सुनने लगा आपकी, किया क्या है आपने ऐसा?
सामयिक औा सारगर्भित आलेख। गीत सुन कर अच्छा लगा...शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंपढ़ तो परसों ही लिया था सर जी, लेकिन जरा व्यस्त था और वो लिंक नहीं देख पाया।
जवाब देंहटाएंइसीलिए पहले टिप्पणी नहीं की। वैसे अब भी उस पर क्या कह लूँगा?
जिन दीवारों पर असर होना है वो यूँ भी रोशन हैं...
"शराफ़त, नैतिकता, ईमानदारी, शालीनता जैसी विलुप्त प्रजाति की चिडि़याओं का बसेरा करवा दिया हमारी खोपड़ी में।" .... इसके बाद कुछ फ़ाईन न भी हो तो अपनी बला से, ये क्या कम फ़ाईन है?
आज फत्तू साहब के साथ हाथ उठा के कहना है, आमीन!
गाना मेरे ऑल टाईम फेवरिट में से है। इसका बहुत बहुत शुक्रिया सर जी...
देर से आया, उसकी माफी अलग से..
बचपन से ही गलत संगती लग जाए तो बड़ी समस्या होती है. कुछ नहीं हो सकता ऐसे लोगों का :)
जवाब देंहटाएंमै तो गीत सुन रही हूँ बस। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंचलिए अच्छा हुआ मूड सही हो गया ...
जवाब देंहटाएंजिस दिन फट्टू का दिन आयेगा उसदिन हमारा भी आयेगा ...
आपकी चींटी चिड़िया और बिल्ली नहीं दिख रही हैं ..
जवाब देंहटाएंbahut khub
जवाब देंहटाएंachhi post
kabhi yaha bhi aaye
www.deepti09sharma.blogspot.com
bahot zor se nasha chadhaa hai sir.aanya!!!!
जवाब देंहटाएंmaza aa gaya.
चींटी चढ़ गयी पहाड़ पर, चिड़िया चुग गयी खेत
जवाब देंहटाएंबिल्ली भड़ीयाये दूध पर ,पोस्ट उड़ गयी बन रेत
@ mahendra verma ji:
जवाब देंहटाएंधन्यवाद, सर।
@ Avinash Chandra:
छोटे भाई, तुम शर्मिंदा मत किया करो,बस्स।
@ अभिषेक ओझा:
हे भगवान, कैसे इन्वैस्टमेंट बैंकर हैं जी आप? लारा-लप्पा तो देने की आदत होनी चाहिये थी यारा:)
@ निर्मला कपिला जी:
मैडम जी, मेहरबानी।
@ Indranil Bhattacharjee:
जवाब देंहटाएंइतनी सोलिडैरिटी फ़त्तू के साथ? बदनाम हो जाओगे दादा:)
चींटी, चिडि़या और बिल्ली दिख रही है बॉस, गौर से देखो जरा:)
@ दीप्ति शर्मा:
आपका शुक्रिया जी।
@ CS Devendra K Sharma:
लो यार, तुम लो मजे, हमारी तो देखी जायेगी...
@ अमित शर्मा:
सही है भगत जी, हमपे ही फ़िकरे कसने शुरू कर दिये? कर लो, दोस्त हो ना:)