गुरुवार, नवंबर 11, 2010

मजा नहीं आया यार.....

उस दिन एक दोस्त से बात चल रही थी, कहने लगा कि यार इस बार तुम्हारी पोस्ट में मजा नहीं आया। शिकायत सुनकर अपने को मजा आ गया। जब तारीफ़ में उससे ये बात कही तो  उसे भी  मजा आ गया। अब साहब, क्या बतायें, इस मजे की कहानी?   इसकी थाह नहीं पायी किसी ने।
एक बार कालेज में अपने दोस्तों को अंग्रेजी फ़िल्मों के अपने अनुभव सुना रहे थे(ये पहले ही किलियर करे दे रिया हूं कि अपना अनुभव सिरिफ़ देखने तक का है कहीं बाद में कहो कि अनुभव तो ऐसे लिखा है जैसे बड़े वो कौन सा वाशिंगटन है डैज्ली या बैज्ली हों),  तो यारों ने चढ़ा दिया कि अबकी बारी इंगलिश फ़िल्म देखी जाये। प्रोग्राम बनाने की जिम्मेदारी हमपर ही डाल दी गई। नेकी और पूछ पूछ, हमने अपनी टोली को लिया और चल  दिये अपने फ़ेवरेट  सिनेमा की ओर।  खुद से ज्यादा उस सिनेमा पर भरोसा था, न अखबार देखी न कुछ और, कौन सी फ़िल्म है, कुछ नहीं मालूम किया। तीन चार बसें बदल कर पहुंचे तो शो शुरू हो चुका था। हमारे दोस्तों को तो फ़िल्म का नाम ही समझ नहीं आया omar mokhtar  ऐसा ही था कुछ। एक दो ने उसे बांग्ला मूवी समझा और दो तीन ने कोई चैक मूवी। जाकर बैठे तो थोड़ी देर के बाद पता चला कि फ़िल्म के हीरो का नाम है उमर मुख्तार, अरब की कोई कहानी थी। कहां तो यार लोग ऊह आह आऊच टाईप कुछ सुनने देखने गये थे, वहां तो सारी फ़िल्म में लड़ाई होती रही। बस तलवारों की आवाज और हिनहिनाहट, वो भी ऊँट-घोड़ों की। सारी फ़िल्म खत्म हो गई, नायिका तो क्या कोई घोड़ी भी नहीं आई पर्दे पर। लौटते में सारे रास्ते वही सुनते रहे कि जरा सा भी मजा नहीं आया, दि खराब कर दिया, पैसे खराब कर दिये। हमने तो कभी किसी से नहीं कहा कि हमारी जिंदगी खराब कर दी, कैरियर खराब कर दिया। देख लो जी, कैसे  दोस्त थे हमारे... एक तो उनका चरित्र एकदम  ठीक रखते थे हम, ऊपर से बातें सुनते थे। कितने तो डालर पौंड लग गये होंगे, कितने घोड़े जख्मी हलाक हुये होंगे, पूरी यूनिट ने कितनी मेहनत की होगी और हमारे दोस्तों ने फ़टाक से सर्टिफ़िकेट दे दिया कि मजा नहीं आया।
तो बात चल रही थी उस दोस्त से मजे के बारे में। हमने बताया कि हमारा मजा तो बड़े और मशहूर लोगों ने लूट लिया है, आईडिया हमारे होते थे और चुरा लेता था कोई और। और ये जबरदस्ती हमारे साथ हमेशा से होती रही है।  पहले मैमोरी लॉस वाली कहानी हो गई, अब लेटेस्ट किस्सा ’मूत्र विसर्जन’ से संबंधित है।  थ्री ईडियट्स में इस सिच्युऐशन में बहुत मजे ले रहे हैं सब, हमने ये मजे लेकर छोड़ दिये।
लगभग दो दशक पहले की बात है, बैचलर लाईफ़ चल रही थी अपनी। मैं, जीतू, राजीव, राजा और जैन साहब इकट्ठे रहा करते थे। जीतू, राजीव और राजा का जिक्र तो सिल्वर स्पीच वाली पोस्ट में कर ही चुका हूँ, बचे जैन साहब, तो  उम्र में हम सबसे बड़े थे जनाब। एक अदद बीबी और एक बालक के पिता थे, नौकरी नई नई होने के कारण फ़िलवक्त फ़ोर्स्ड बैचलर बनकर हमारे साथ रहते थे। एकदम शरीफ़ इंसान,  हमारी हरकतें देखकर मुस्कुराते रहते, खुलकर हंसते भी नहीं थे। पांच साल हम इकट्ठे रहे, उनकी आंखों में चमक सिर्फ़ तब देखी जब बेटा फ़िल्म में  माधुरी को धक धक करते हुये देखा उन्होंने। अकेली फ़िल्म थी जो उन्हें पसंद आई, वो भी सिर्फ़ सात आठ मिनट की।  साथ कभी नहीं छोड़ते थे हमारा, फ़िल्म देखने जाना हो या नुमाईश देखने जाना हो। बड़े  होने के नाते  एक बार हतोत्साहित करते थे जरूर, हम उनका बड़े होने का फ़र्ज मान लेते थे और उनकी नाफ़रमानी करके खुद को चे-ग्वेरा से कम नहीं समझते थे।
अब जो हमें जानते हैं तो इतना इतिहास उन्हें पता है कि रात को सोने की हमें कभी जल्दी नहीं रही। अब तो     वैसे एक जगह पढ़ा था कि राक्षसों को निशाचर भी कहा जाता है, तो क्या हम भी…?  तो जी हमारा रूटीन रहता था रात देर से  मकान पर लौटने का। मकान ले रखा था शहर से दूर, antisocial (जो सामाजिक न हो, उसे अंग्रेजी में यही कहते हैं न?) थे शुरू से ही। स्टेशन के एक तरफ़ शहर था और दूसरी तरफ़ थी वो कालोनी जिसे हमने गुलजार कर रखा था। स्टेशन और कालोनी के बीच एक लंबा सा, सुनसान सा, वीरान सा गलियारा था जिसके एक तरफ़ पेड़ लगे थे और एक तरफ़ थी रेलिंग जो एक मैदान के किनारे लगी थी। जिन दिनों की बात बताने जा रहा हूँ उन दिनों में हम तीन जने ही थे - मैं जीतू और जैन साहब। अब जैन साहब निखालिस शरीफ़ आदमी, ताश वो न खेलें, दम वो न लगायें, ताकझांक वो नहीं करते थे कहीं तो शुरू में तो हमें उलझन होती थी कि यार ये कमरे में ही क्यों नहीं बैठते? फ़िर धीरे धीरे समझ आई कि अकेलेपन से डरते थे सो मन मसोसकर भी हमारे साथ घूमते रहना उनकी मजबूरी थी। एकाध बार कहा भी उन्होंने कि मजा नहीं आता लेकिन क्या करें, साथ नहीं छोड़ा जाता। मजा, मजा इतनी बार सुन चुके थे कि जीतू तो कई बार झल्ला ही जाता कि अबे, हम क्या मजे लेने की चीज रह गये हैं तेरे लिये? फ़िर सब हंस देते थे।
उस दिन लौटते समय ठंड बढ़ गई थी मौसम में भी और कुछ आपसी रिश्तों में भी। किसी बात पर जीतू और जैन साहब की बहस हो गई थी। जैन साहब जिद पर थे कि लौटॊ जल्दी कमरे पर सो वापसी हो रही थी। रेलिंग के पास से गुजर रहे थे कि जीतू ने हाँक लगाई, “रुको यार, एक मिनट, सू-सू कर लूँ।” जैन साहब भड़क गये, “घर जाकर कर लेता! जानबूझकर देर कर रहा है।” जीतू के शायद जोर से लगी हुई थी, कहने लगा कि “तू जा फ़िर, तेरे को ज्यादा जल्दी है तो।” अब जैन साहब अकेले कैसे जायें, कहने लगे, “चल जल्दी कर।” और जीतू भी कभी टांग को किसी मुद्रा में ले जाये और कभी किसी मुद्रा में, ताकि प्रैशर पर काबू पा सके और जानबूझकर बहस किये गया। मैं कभी इसे समझाता कभी उसे, और हंसी थी कि रुकती नहीं थी। आखिर जैन साहब ने बड़प्पन दिखाते हुये समझाया कि असल में रात के समय ऐसे खुले में MV(चलेगा न?) करना बहुत खतरनाक होता है, ऊपरी हवा, आदि आदि का डर दिखाया। बात हो गई अब प्रेस्टीज की। दोनों बहस किये जा रहे थे और आखिर में हार जीत तय करने की जिम्मेदारी आई इस गैर जिम्मेदार पर।
महात्मा गांधी ने कहा था कि कोई काम भी करने से पहले यह सोचो कि लघुत्तम इकाई पर आपकी क्रिया का क्या असर होगा? अपन अपने मतलब की बात पकड़ते हैं बस, देखा कि इन दोनों में छोटा कौन है? जीतू!!    हमारा वोट जीतू की तरफ़। अगल बगल में खड़े होकर दोनों ने MV करना शुरू किया। बाद में जो झुरझुरी सी छूटी दोनों की, दोनों के मुंह से एकसाथ ये शब्द निकले, “मजा आ गया।” जैन साहब गुस्साये रहे। उस रात के बाद हमारा रोज एक काम और बढ़ गया, जब नाईट पैट्रोलिंग करके उस स्थान के पास से निकलते, MV जरूर करते। एकाध बार तो ऐसा हुआ कि बातें करते करते उस जगह से आगे निकल आये, फ़िर ध्यान आने पर लौटकर वहीं जाते और जैन साहब, मजबूरी में ही सही हमारे साथ घिसटते हुये to & fro होते रहते। फ़िर तो उन्हें भी मजा आने लगा। एक दिन बोल ही पड़े, “जितना मजा तुम्हारी हरकतों में आता है, उतना तो माधुरी की धक धक में भी नहीं आता।” सही फ़ार्मूला था जैन साहब का, बस न चले तो नजरिया बदल लो।
बात पते की है जी, मजे का कुछ तय नहीं है कि किसे, कब और क्यों  आ जाये। आना हो तो MV में ही आ जाये और न आना हो तो एंजेलिना के साथ डेट पर जाकर भी न आये। मजा आना हो तो मिट्टी के खिलौने को पाकर ही आ जाये, न आना हो तो कोहिनूर पाकर भी न आये। आना हो मजा तो तसव्वुर में ही आ जाये, न आना हो तो ताउम्र के लिये हासिल कर लेने में भी न आये। किसी को जलने में मजा आ जाये है तो किसी को जलाने में मजा आ जाये। किसी को आ जाता है मजा दूसरों को सताने में तो ऐसे भी हैं जिन्हें अपनों के द्वारा सताये जाने में मजा आ जाये। किसी को दूसरे के हिस्से की रोटी भी छीनने में मजा आ जाता है और संत नामदेव जैसे ऐसे भी हुये हैं जिनकी रोटी छीनकर कुत्ता भागा तो उसके पीछे वे भी भागने लगे कि दोस्त, ये घी तो ले ले, रूखी रोटी में तुझे मजा नहीं आयेगा? कभी चढ़ाई पर ठेला खींचते किसी मजदूर के बिना कहे भी ठेली को पीछे से धकेलने में भी मजा आता है, लिया है कभी?  औरों को मजा आता होगा वाटर रिसोर्ट में जाकर, कुछ को साधारण बारिश में भीगने में मजा आ जाता है। बड़े महंगे डियो सर में चढ़ जाते हैं, लेकिन मिट्टी की सोंधी खुशबू में, गर्मियों में कोरी सुराही या मटके से जो महक आती है, उसमें भी मजा आ जाता है किसी को। ऐसे ऐसे आतताई हुये जिन्हें नवजात बच्चों को नेजे पर टांगने में मजा आता था, ऐसे शौदाई भी हैं जिन्हें किसी गरीब, बिना नहाये  बच्चे  के घुंघराले बालों में हाथ फ़ेरने में ही मजा आ जाये। विलक्षण दुनिया है जी, छोटी सी जिन्दगी, जिसे मजा जिस चीज में आये और जैसे आये ले ले, अपन भी अभी तो फ़ुल्ल मजा ले रहे हैं, आगे जो होगा देखी जायेगी।
:) फ़त्तू ने सड़क किनारे बिकते जामुन देखे तो पाव भर खरीद लिये। चल दिया मस्ती में। लिफ़ाफ़े से निकालकर मुंह में डाले जाता था जामुन और चुभलाता जाता। ऐसे ही एक बार मुंह में जामुन डाला तो साथ में एक भौंरा
भी, जो जामुनों की चमक, महक, रूप-रंग  से मोहित-मस्त था, मुंह में चला गया। जब उसने संकट में देखकर भिन भिन करनी शुरू की तो फ़त्तू महाराज बोले, “बेट्टे, कितनी ही कर ले भिन भिन, अस्सी रुपये किलो में तुलकर आया है। इब आया सै जाढ़ तले, छोड्डू कोनी तन्नै”
फ़त्तू बेचारा ये नहीं जानता कि हम सब बेभाव में तुलकर आये हैं, आखिर में तो जबाड़े तले आना ही है। जब तक  बचे हुये हैं,  जैसे हैं और जिस हाल में हैं, मजा मानकर रहें तो वक्त बढि़या कट जायेगा।

42 टिप्‍पणियां:

  1. हा हा हा भाई फ़त्तु नै तो कमाल ही कर दिया।
    वो जाड़ कै तळे भींचे बिना छोडडेगा कोनी।

    थारी धमा चौकड़ी पसंद आई

    राम राम

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  2. हाय ! वे भी क्या दिन थे .......हम भी कभी ऐसे ही थे ! मस्त शुभकामनायें ( ईमानदारी के साथ ) संजय सर !
    :-))

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  3. फत्तू तो कमाल के हैं .... रोचक प्रस्तुति...आभार

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  4. Antisocial पर आपत्ति दर्ज करें सर जी, Asocial सही(politically correct) शब्द है. आखिर हम भी इसी जमात में आत़े हैं, ऐसे कैसे सुन लें गलत बात अपने लिए? बिरादरी की नाक कैसे कटा दें?
    और मज़ा तो सच में कभी भी आ जाता है, कहीं भी. :)
    फत्तू साहब को भी है मजे लेने का हक...उन्हें यहीं आया सो ये भी ठीक!!

    ख़ूबसूरत सुबह का शुक्रिया सर जी.

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  5. कभी आसमाँ , कभी जमीं में है,
    कभी पूरे, और कभी कमीं में है,
    हुनर निकालने का आए जिसे,
    तो मज़ा तो प्यारे सभी में है ...

    और आपके चिट्ठे में भी .. लिखते रहिये ....

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  6. जिसे तुम्हारी पोस्ट पर मज़ा नहीं आया उसे मज़े की परिभाषा नहीं पता। जैन साब तक ने मज़ ले लिये और ये भाई बेमज़ा ही रह गये - सकल पदारथ हैं जग माहीं करमहीन नर पावत नाहीं।

    फत्तू ने तो आज गीता का ज्ञान ही दे डाला - द्ंष्ट्राकरालानि च ...

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  7. फ्त्तू का कहा लाजवाब है। गीत मेरी पसंद का। बधाई।

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  8. भाई साहब, मजा तो ले गया मौहम्मद रज़ा और बचा - खुचा आप और जैन साहब।

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  9. बहुत मजा आया पोस्ट पढकर, जिन्हे न आया हो उन्हे षायद कभी आ ही नही सकता

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  10. अब आप लिखें और हम पढ़ें तो मजा तो आना ही था। बिलकुल माधुरी की धकधक वाला।

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  11. आज समझ में आया ,हमारे एक जैन साहब टाइप के जानने वाले थे, उनको चाहे कितनी भी मज़ेदार बात या घटना क्यों न हो कभी भी मज़ा नहीं आता था। जब भी मज़ेदार वाकया होता तो उनके उद्दगार होते थे,

    "मज़ा सा आ गया भाई!"

    तो जी, आपकी पोस्ट पढके, हमें भी ,’मज़ा सा आ गया’ !

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  12. मुझे तो आपकी हरेक पोस्ट में मजा आता है जी

    प्रणाम

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  13. ८० रूपये किलो में में भवरा भी अन्दर मतलब आप को फत्तू की इज्जत की ऐसी की तैसी करने में बड़ा मजा आता है उसकी बैंड बजाने की काफी लिबर्टी ले रखी है अरे "लिबर्टी" क्या मुझे तो लगता है "बाटा" "एक्सन" और "पैरागौन" भी ले रखा है |:-))

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  14. मजा आ गया यार.....!
    मजेदार पोस्ट देख के ई फत्तुआ भी कमाल करता है।

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  15. 80 रुपये किलो में खरीद कर कैसे छोड़ दे बेचारा फत्तु!! :)

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  16. मैं स्मार्ट इंडियन जी की बात से सहमत हूँ की वो व्यक्ति जिसने ये कहा की आपके लेख मजेदार नहीं होते उसे मजे की परिभाषा ही नहीं पता.

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  17. मज़ा आ गया और फ़त्तु ने तो और बढा दिया .
    याद आ जाती है पढकर ......... एक बार हम १० दोस्त दिल्ली घूमने गये और लाख मशक्कत के बाद चाणक्य सिनेमा मे फ़िल्म देखने पहुचे लेकिन जो आपको फ़ील हुआ वह हमे भी फ़ील हुआ था .

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  18. @ ललित शर्मा जी:
    आपनै पसंद आई, मन्नै मजा आ गया।
    .. राम राम।

    @ सतीश सक्सेना जी:
    छोटा भाई बनाकर मजे ले रहे हो आप,ले लो।
    सर की तरफ़ से मस्त धन्यवाद(ईमानदारी वाला)स्वीकारें, बड़े भाई:)

    @ महेन्द्र मिश्र जी:
    आभार आपका सर।

    @ Avinash Chandra:
    बिरादर, all that is politically correct, is very often incorrect. नाक नहीं कटेगी, बेफ़िक्र रहो।

    @ मज़ाल साहब:
    भाई का आशीर्वाद बना रहे, मजे तो निकाल लेंगे।

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  19. MV - इसे किसी कॉलेज के हॉस्टल में प्रेषित कर दें मय अर्थ। रातो रात हिट हो जाएगा और फिर जवानों के लिंग्वा फ्रैंका का पार्ट भी जैसे KLPD, GPL वगैरह हो गए हैं। क्या कहा? इनके मायने नहीं पता? अमाँ इत्ते भी न बनो।
    वो जो फत्तू के आने के पहले ह्यूमर को आप दार्शनिक गम्भीरता दे देते हैं और फिर फत्तू का हास्य प्रस्तुत कर देते हैं; कमाल करते हैं।

    किसी ने पहले किसी पोस्ट पर चौड़ाई को लेकर पढ़ने में कठिनाई की बात कही थी। मैं दुहरा रहा हूँ, ऐसा शायद चौड़ाई नहीं बल्कि फॉंट और बैकग्राउंड चित्र के कारण होता है। फॉंन्ट बड़ा कीजिए या बदलिए और ये पिछवाड़े का चित्र हटाइए। अनुरोध है बस। कोई और बात नहीं।
    वैसे हो सकता है कि कुछ लोगों की आँखों में ही दोष हो क्यों कि ऐसी शिकायत केवल दो ही जन किए हैं।
    पोस्ट बहुत धाँसू लगी। ऐसे किस्से बहुतेरे दोस्तों के साथ होते हैं और आप जिस तरह से प्रस्तुत करते हैं उससे सभी जुड़ाव महसूस करते हैं।

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  20. @ स्मार्ट इंडियन:
    आपके प्यार और विश्वास पर मेरा हक है, लेकिन सर, उस दोस्त का भी मुझे अपनी निष्पक्ष राय बताने का हक है। हो सकता है वो मुझसे कुछ ज्यादा ही उम्मीद कर रहा हो, या फ़िर वो पार्टिकूलर पोस्ट वाकई उसे मजा न दे पाई हो। आपसे अनुरोध नहीं, हक से उस दोस्त की भावना की कदर करने की आशा कर रहा हूं।

    @ निर्मला कपिला जी:
    शुक्रिया मैडम जी।

    @ दीपक सैनी:
    मजे पर ये कहावत शायद सहारनपुर में खासी लोकप्रिय है, हमारे जैन साहब भी बहुत फ़रमाया करते थे ये(जिला सहारनपुर से ही हैं वे भी)।

    @ साकेत शर्मा:
    शुक्रिया मेरे हमपेशा दोस्त।

    @ राजेश उत्साही जी:
    क्या तुलना की है राजेश जी:) कहां नेने और कहां हाहाहा।

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  21. @ ktheLeo:
    चलिये साहब, कोई तो हुआ जिसे पोस्ट की टाईटल से इत्तेफ़ाक हुआ। आपने कहा न कि मजा सा आया, इसका मतलब मजा नहीं आया यार, हा हा हा। शुक्रिया।

    @ अन्तर सोहिल:
    शुक्रिया अमित।

    @ anshumala ji:
    आप क्या जानें 80 रुपये की कीमत? जन्मदिन की इतनी शानदार पार्टी की थी तो कैटरर्स, डेकोरेटर्स को शिकायत मिलने पर भुगतान नहीं करने की धमकी दी थी, भूल गईं आप? फ़त्तू के 80 रुपये की कीमत आप क्या जानो अंशुमाला जी?:))

    @ अरविन्द जी:
    धन्यवाद।

    @ देवेन्द्र पाण्डेय जी:
    यारों के मजे आते रहें, फ़तुआ खुश ही खुश है।

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  22. @ अपूर्ण:
    पहली बार आये हैं आप, स्वागत एवम धन्यवाद।

    @ poorviya:
    अरे मिसिर जी, आप अपनी पोस्ट के लिये इत्ते इत्ते गंभीर मुद्दे छांट लेते हैं, आपकी सामर्थ्य है। बचा खुचा हम बटोर लाते हैं।

    @ Udan Tashtari:
    सही बात है जी, हाड़ तोड़ कर रूपये कमाये जाते हैं, ऐसे कैसे जाने देगा फ़त्तू?

    @ विचार शून्य:
    दीप, जो अनुरोध स्मार्ट इंडियन जी से किया है, वही तुमसे करता हूँ। सबको राय रखने का हक है।

    @ धीरू सिंह जी:
    हमें फ़ीला फ़ाला कुछ नहीं था जी, जो हुआ हमारे दोस्तों को हुआ था। एक तो हम इस मामले में काने राजा थे, दूसरे ’जीरो एक्स्पैक्टेशन थ्योरी’ के मानने वाले। आपका वाकया और भी मजेदार रहा होगा यकीनन, हम बस कह देते हैं:)

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  23. lekin fatu ki baat pe to maja aa gaya..kaun kahta hai..maja nahi aaya yaar..hahaaaaa

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  24. मजा वाला भाग गजब का है. वैसे कहते हैं न की चिड़िया की जान जाती है और खाने वाले को मजा ही नहीं आता है. बाकी MV को MD भी कहा जा सकता है... "MD:महा दान" :) उन्हीं KLPD और GPL वाले दिनों से याद आया जिन दिनों में आप ले गए.

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  25. लगता है आपके इस फत्तू से अब मुलाकात करनी ही पडेगी :)

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  26. @ गिरिजेश राव जी:
    सुप्रभात। हमने कब कहा जी कि इनके मायने नहीं पता? वैकबलरी ठीक ठाक है जी अपनी:)
    चित्र हटा दिया है, फ़ोन्ट का जुगाड़ भी करूंगा कुछ न कुछ।

    @ Anand:
    Thanx Anand.

    @ अभिषेक ओझा:
    और ज्यादा ज्ञानवर्धन करने के लिये शुक्रिया।

    @ Shah Nawaj:
    (..)

    @ "वत्स महाराज"
    इसे लेकर हाजिर होता हूँ जी किसी दिन लुधियाना में।

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  27. @उस दोस्त का भी मुझे अपनी निष्पक्ष राय बताने का हक है।
    निष्कर्ष 1: हम दोस्त नहीं हैं।
    निष्कर्ष 2: हमारी राय निष्पक्ष नहीं है।
    निष्कर्ष 3: हमें अपनी (निष्पक्ष) राय बताने का हक़ नहीं है।
    निष्कर्ष 4: हम दोस्त नहीं हैं।
    निष्कर्ष 5: ऊपर लिखे सभी निष्कर्ष सही हैं।
    निष्कर्ष 6: निष्कर्ष 1+2 सही हैं।
    निष्कर्ष 7: .....
    निष्कर्ष....

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  28. मज़े की बात करके आपने गिरिजेश जी से बहुत कुछ कहलवा डाला हम तो उन्हें नेक बंदा ही समझ रहे थे अब तक :)

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  29. @ Smart Indian:
    निष्कर्ष:सारे निष्कर्ष व्यर्थ हैं।
    दोस्त का कद आपसे बहुत छोटा है, इसलिये अर्ज किया था कि ’क्षमा बड़न को चाहिये और छोटन को उत्पात।’ फ़िर मैं खुद कई जगह पर जाकर अपनी राय(मेरी नजर में निष्पक्ष ही) रख देता हूँ, तो मुझे भी कविता की, धर्म की, या किसी बात की परिभाषा नहीं मालूम। सीख जायेंगे धीरे धीरे, यही सोचकर जो मन में आता है, कह देते हैं।
    पोस्ट पर आपके कमेंट में मेरे प्रति तो प्यार ही झलकता है लेकिन वो दोस्त कहीं ये न समझ बैठे कि मैंने उसकी इस बात को शिकायत के तौर पर लिया है।
    हमेशा की तरह शायद मैं गलत समझ लिया गया।
    आपकी राय को पक्षपातपूर्ण मानना, आपको राय देने का हक न समझना आदि आदि - ऐसा सोचना भी असंभव है। उन गिने चुने लोगों में से आप हैं जिनका साथ, मार्गदर्शन न मिलता तो शायद मुझे कोई नहीं जानता।
    हक आपको बहुत ज्यादा है, ’वक्त आने पर बता देंगे तुझे ऐ आसमां’
    प्रभु,कुपित न हों:)

    @ अली साहब:
    हम तो नेक बंदा ही समझते हैं उन्हें, अब भी (और आपको भी):)

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  30. भाई साहब,
    आज नये लुक मे पोस्ट पढने का मजा डबल हो गया
    अभी तक तीन बार पढ चुका हूँ

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  31. एक बात : मज़ा किसी का गुलाम नहीं.......


    हा हा हा - सोचते रहिये.........
    या फिर बोलिए.

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  32. बात तो सही है सर जी.
    और ये नया टेम्पलेट अच्छा लगा..

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  33. अरे वाह ....कमाल कर दिया ..शुभकामनायें

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  34. हम भी पहली अंग्रेजी पिक्चर देखने गये जेम्स बांड की। उससे अच्छी फाइटिंग तो मिथुन दा करते हैं।

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  35. हमारे जीवन से हास्य का लोप किस क़दर हो गया है,हमने कभी ध्यान ही नहीं दिया। मज़ा,मौज और मज़ाक के इस मजमे में मैंने ख़ुद को भी शरीक पाया।

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  36. @ Deepak Saini & Avinash Chandra:
    शुर्किया दोस्तों, अच्छे लोगों की संगति और सलाह मानने का फ़ल है ये।

    @ दीपक बाबा:
    हम बोलेगा तो बोलोगे कि..
    गुरू, ये बताओ ’मजा आया कि नहीं’?

    @ केवल राम:
    धन्यवाद मित्र।

    @ प्रवीण पाण्डेय जी:
    पाण्डेय जी, घर की मुर्गी...।

    @ कुमार राधारमण जी:
    आपके शामिल होने से हमारी महफ़िल में चार चांद लग गये, शुक्रिया।

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  37. फत्तू तो कमाल के हैं .....
    मजा आ गया !!!

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