’पाँव चादर के हिसाब से ही पसारने चाहियें’ जब ये पहली बार सुना तो शायद इस मुहावरे का अर्थ भी नहीं समझ आया होगा। लेकिन जो चीज अच्छी लग गई तो लग गई, ये मुहावरा भी अच्छा लग गया और इस तरह से हमारी किलर्स इंस्टिंक्ट बहुत शुरू में ही kill कर दी गई। विवेक, तृष्णा, कामना, कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फ़लेषु कदाचन: जैसे भारी भरकम शब्दों ने बहुत पहले ही हमारी नियति तय कर दी थी। जब भी हाथ-पाँव फ़ैलाने का मौका दिखता, हम पहले अपनी चादर चैक कर लेते और हर बार अपनी चादर छोटी मिलती। धीरे धीरे अपनी आदत ही ऐसी हो गई कि जो आराम से मिल गया, उसी में गुजारा करना अच्छा लगने लगा। जवानी फ़ूटी तो हमारी सोच को और बल दिया फ़िल्म ’हम दोनों’ के गीत ने, ’जो मिल गया उसी को मुकद्दर समझ लिया।’ नतीजा बहुत सुखद रहा कि हमें किसी से ’न’ नहीं सुननी पड़ी। किसी से कुछ चाहा ही नहीं, माँगा ही नहीं तो अगला\अगली ’न’ भी क्यूँ देते?
जवानी फ़ूटने तक सब ठीक रहा, किस्मत फ़ूटी तो पता चला कि ’दिल्लगी(या शायद दिल लगी, not sure) क्या चीज है।’ यानि कि दिक्कत तब शुरू हुई जब ये मोटी मोटी किताबों के माध्यम से हमें मैनेजमेंट, प्लानिंग वगैरह वगैरह सिखाने की कोशिश की गई। उसी दौरान पता चला कि हमारी पर्सनैल्टी का डेवलपमेंट तो हुआ ही नहीं। आत्म-विश्लेषण किया तो पाया कि ’fear of rejection’ तमाम उम्र हम पर तारी\भारी रहा है। मनोचिकित्सकों की सलाहें मिलीं कि जिस काम से डर लगता हो, उसे अवायड करने की बजाय उसे बार बार करना चाहिये। अपने reflexes भी, अपने नेटवर्क कनेक्शन की तरह बहुत स्लो हैं, चुटकुले, शिक्षायें, सबक भी हमें मौके पर कम और बेमौके पर ज्यादा समझ आते हैं। ताजातरीन मामला इसी ’fear of rejection’ से संबंधित है।
इस बार दिल्ली न जाकर जरूरी काम से सहारनपुर जाना था तो कमरे से निकलते समय ही फ़ैसला कर लिया था कि पर्सनल्टी डेवलप करके ही लौटना है। क्या पता लोग हम पर सबकुछ लुटाने, वारने को तैयार बैठे हों और हमारे प्रोपोज़ न करने के कारण ही उनकी बात मन की मन में रह जाती हो, let us give it a try:).
सबसे पहले नंबर लगाया पार्किंग वाले का। बाईक पार्किंग में लगाकर पार्किंग स्लिप लेने गया तो उससे पूछा. “वीरे, इससे पहले जहाँ मैं नौकरी करता था, रेलवे पार्किंग वाला स्कूटर खड़ा करने के पैसे भी नहीं लेता था और चाय पिलाकर ही भेजता था(सच है ये), जब बाईक उठाने आऊँगा तो तू भी चाय पिलायेगा न?”
पार्किंग ब्वाय, “पागल कुत्ते ने मेरे को नहीं काट रखा है, आपको काटा होगा।”
बड़ा तगड़ा झटका सा लगा, लेकिन सहन कर लिया। आखिर पर्सनल्टी डेवलप करनी थी।
बस तैयार खड़ी थी, आवाजें लगा रहे थे, ’लुधियाना, लुधियाना। आ जा बई, बैठ जा, तैयार है गड्डी।”
मुझे याद आ गया मेरा डीटीसी वाला दोस्त, बोनट पर बिठा लेता था मुझे और टिकट नहीं लेने देता था। मैंने पूछा, “बैठ जाता हूँ, किराया तो नहीं माँगेगा?”
कंडक्टर, “रैण दे बई, दूजी बस विच आईयो। गर्मी नाल पैल्ले ही मेरा दिमाग भन्नया(दिमाग खराब होना) होया है।” झटका ये भी जोर का ही था।
लुधियाना पहुँचकर ट्रेन में चढ़ा। आज तक किसी से सीट नहीं माँगी थी, उस दिन एक सिंगल सीट पर दो लड़के बैठे थे, उनसे कहा, “यार, सीट दे दो।”
दोनों भड़क गये, “अंकल जी, एक इंच भी जगह दिख रही है आपको? पता नहीं कहाँ-कहाँ से चले आते हैं….”अबके जोर का झटका धीरे से लगा। याने कि, याने कि धीरे धीरे डेवलपमेंट होने लगी थी।
अब सारी कहानी सुनाने बैठूंगा तो आप कमेंट देने से मना कर दोगे। पर्सनल्टी डेवलप हो गई है, लेकिन अभी इतनी नहीं कि रिजैक्शन का डर बिल्कुल ही खत्म हो गया हो। हाँ, अब उतना डर नहीं लगता। दुनिया नहीं बदल सकती, अब हम ही अपना नजरिया बदल रहे हैं। नैरो-गेज़ से ब्रॉड-गेज़ में conversion करने की कोशिश जारी है। जीटी रोड पर लगे caution-signboards की तर्ज पर मैं भी caution-mark लगा ही देता हूँ,
CAUTION, BROADENING OF MIND IS IN PROGRESS, KINDLY WINE\WHISKY\SCOTCH WITH US(BEAR IS SO OLD FASHIONED NOWADAYS)
सबक ये है कि कामयाब होने के लिये आदमी का ढीठ होना बहुत जरूरी है, (ये सबक कुछ दिन पहले हमारे मैनेजर साहब ने दिया था, इस वाक्य में उनके थोड़ा को मैंने बहुत किया है, बस्स),
और सवाल ये है कि कामयाब कौन है?
अवि, तीन शब्दों का ही है, आज तो मुश्किल नहीं है न सवाल:))
गाना वैसा ही, पुराना सा, भीनी भीनी सी महक लिये:-
महक क्या ऐसी-तैसी करवायेगी, यूट्यूब ने भी रिजैक्ट कर दिया है:)
यहाँ दुनिया आलमोस्ट समाप्त हो चुकी थी और एक आप हैं कि बच्चों के मामूली रिएक्शन्स की शिकायतें कर रहे हैं।
जवाब देंहटाएं(अब ये मत कहना कि मैंने भी अपेक्षित व्यवहार नहीं किया)
;)
जीने के लिए ढीठ होना ज़रूरी है , जीवन का यह सबक हमने देर से सीखा , मगर जब से सीखा ,जीवन सरल हो गया ...और अब तो यह फार्मूला ब्लॉगिंग में बने रहने के लिए भी बहुत ज़रूरी है!
जवाब देंहटाएंरोचक !
सवाल अवि से पूछा गया है , वही देगा जवाब भी , मगर ये अवि है कौन ??
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंकामयाब वो है, जो वास्तव में ना कहने भी सीख ले। लिहाज में मरने वाला कभी भी कामयाब नहीं होता। यह "अवि" क्या है, समझ नहीं आया। अल्प-ज्ञानी हूँ।
जवाब देंहटाएंबची खुची पर्सनालिटी ब्लोगिंग में डेवलप हो जायेगी संजय भाई !
जवाब देंहटाएं:-)
शुभकामनायें !!
छोटी छोटी जगह पर वीरता दिखाने के बाद बड़ी जगह पर शान्त बैठ राजा और रानियों को देखते रहते हैं हम।
जवाब देंहटाएंआपके सवाल का जवाब तो बाद में
जवाब देंहटाएंपहले ये बताइए की मेरे साथ नाइंसाफी क्यों की
सहारनपुर आये ओर मुझे बताया तक नहीं
इस खौफ़-ए-इंकार की बीमारी से तो आज तक नहीं बच पाया
जवाब देंहटाएंकामयाबी का राज तो कामयाब लोग ही बता सकते है
apne hi soch aur jajbat pe banda kya tippani de....
जवाब देंहटाएंaur sawal ka jawaw......'ap to jante hain' hum
baron ko jawaw kaise den.......................
pranam.
अगर ये सवाल अवि से है तो मै जानती हूँ वही दे सकता है जबाब ...सही व्यक्ति से पूछा है .......
जवाब देंहटाएंऔर हां अब ब्लॉग के नाम के खाली स्थान .को भर सकते है ---
मो सम कौन कुटिल खल पर्सनल डेवलप ...
post acchchi lagii
जवाब देंहटाएंaur
reh gayee baat personality ki
toh uski hi devlop hogi jiski hogii
yae prayaas kabhie kiyae nahin
personality nahin haen naa jii !!
ऐसा थोड़े होगा की कुछ भी लिख दिया और मिल गई लम्बी लम्बी टिप्पणिया | हमारा सक तो दूर हो गया अब अपना शक भी दूर कर लीजिये, इस पोस्ट पर कोई टिपण्णी मेरी तरफ से नहीं है | इस टिपण्णी को कोई टिपण्णी न माना जाये |
जवाब देंहटाएंहम तो अब उसी पोस्ट पर टिपण्णी करेंगे जिसका आप दफना कर आये है भले आप को उसे कब्र खोद कर निकालनी पड़े | ये कोई बात हुई की मेल को मेल कर बस पोस्टे पढाई जाये |
आप की पर्सनल्टी डेवलप करने में हमारी तरफ से छोटा सा योगदान जब पर्सनल्टी अच्छे से डेवलप हो जाये तो हमारे सहयोग को याद रखियेगा |
जीने के बारे में तो पता नहीं, पर ब्लॉग्गिंग करने के लिए ढीठ, बेशरम पता नहीं क्या क्या बनना पड़ता है ... आखिर ब्लॉग भी तो अपने व्यक्तित्व का एक्सटेंशन ही है ...
जवाब देंहटाएंआजकल तो ढीठ लोग ही सफल होते हैं।
जवाब देंहटाएंबकौल हरिशंकर परसाई, लम्बी नाक वाले भी...।
बढ़िया हास्य, उम्दा व्यंग्य।
Fear of rejection अगर लोगो में ना होता....तो कई जिंदगियों की कहानी कुछ और ही होती.
जवाब देंहटाएंरोचक पोस्ट..
तो ये थी दास्ताँ-ए-खौफ-ए-इनकार (दो बार -ए- लगाने से कोई नियम टूटा हो तो गुणीजन माफ़ करेंगे)।
जवाब देंहटाएंजाने कौन (या क्या?) है ये 'अवि', जब आए जवाब देने तब की तब देखी जायेगी, अभी मैं ही अपनी अल्प-बुद्धि लगाता हूँ।
वैसे 'अवि' के लिए तो एक ही सवाल था,
"आज तो मुश्किल नहीं ना सवाल?"
जवाब है,
"मुश्किल ही लग रहा है।" :)
Intelligent सवाल जो सबके लिए था, उसका जवाब तो दे दिया है अदा जी ने।
तुक्कड़ बता दिए आपने सारे, जहाँ तक personality develop नहीं हुई थी, और असल development का नुस्खा गोल कर गए। खैर, सीख के तो रहूँगा आपसे। :)
हाँ, ये 8 PM के बाद वाला caution, precaution अधिक लग रहा है। :)
@वाणी जी, मिले कहीं ये 'अवि' नामक संज्ञा तो खबर करता हूँ। ढूंढते हैं सभी जन। :)
PS:
एक दोस्त था (बचपन में दोस्त के अलावा कोई संबोधन नहीं हुआ करता था, आज भी ठीक से नहीं सीखा है) जो साथ में क्रिकेट खेलता था। तगड़ा था, और हम सबको सिखाता था "Captain की बात हमेशा मानो"।
एक बार बाल-सुलभ जिज्ञासा हुई, पूछ बैठा, "भैया! हम सब तो ठीक हैं, तुम क्यूँ नहीं मानते बात captain की?"
"सब मानने ही लगे नवाब साहब, तो अगला captain कौन बनेगा?" ये था जवाब।
तब से सोचते यही आयें हैं, कि जो 'कामयाबी' और 'ढीठ' जैसे शब्दों से खुद को 8 गज दूर रखता है (जुमलों में allowed है :) ), कामयाब वही है। बाकी जीवन तो perception का नाम है, कब बदले कौन जाने। अभी फिलवक्त तो चैप्टर एक पर ही हूँ।
आपकी प्रगति राष्ट्र की प्रगति है, आगे बढ़ते चलें.
जवाब देंहटाएं''जवानी फ़ूटने तक सब ठीक रहा, किस्मत फ़ूटी...'', जिसने की शरम, उसके फूटे करम.
एक अविस्मरणीय और कतई अविश्वसनीय लगने वाली पोस्ट नहीं है..अविरल गति है आपकी पोस्ट की..
जवाब देंहटाएंबियर विद अस का मॉडर्नीकरण नोट्नीय है... सवाल का जवाब एक शेर में चलेगा:
बुलंदी कब तलक इक शख्स के हिस्से में रहती है,
बड़ी ऊंची इमारत हर समय खतरे में रहती है!
ह्म्म्म…… तो एक आप हैं कि पर्सनालिटी डेवेलपमेंट के कनेक्शन में करन्ट दिखा के फ्यूज निकाल गये…… और एक अवि महाशय हैं कि जो पूछा गया था उसको छोड़ सारी दुनिया के जवाब दे गये…। आप दोनों धन्य हैं ;) :P
जवाब देंहटाएंखूब पोस्ट चेंपी है हुकुम……।
देखिए सब गड़बड़ मत कर दीजिये..ढीठ कहां होना है, कहां शर्म करनी है, सब निर्धारित है।
जवाब देंहटाएंपांव खूब पसारिये। चादर छोटी पड़े तो लम्बी चादर की खोज में जाइये।
मांगने वाले को उतना नहीं मिलता जितना मांगा है लेकिन न मांगने वाले को उम्मीद से ज्यादा मिलने की पूरी संभावना रहती है।
बाउजी टिप्पणी सिप्पनी तो होती रहेगी , सबसे पहले 'अवि' वाला फड्डा क्या है इस बात साफ़ करो. पहली नज़र में तो मुझे लगा था की कोई सपेलिंग मिस्टेक है. पर बांकी के टिप्पणीकर्ताओं से पता चला की ये मिस्टेक नहीं कोई दूसरी टेक है. गुरुवर मुझे तो समझ नहीं आया. कृपया मार्गदर्शन करें.
जवाब देंहटाएंएक और चीज पूछनी छुट गयी थी. लोग बाग़ खौफ- ए- इंकार की वजह से असफल होते हैं पर अगर किसी व्यक्ति को खौफ- ए- इकरार हो तो क्या होगा.
जवाब देंहटाएंजाते-जाते आप भारी सवाल दाग गए न. अभी इस पर काम चालु आहे :) तब तक निर्माणाधीन परिभाषा:
जवाब देंहटाएंYou are successful [my incomplete definition]:
1. If given a chance to retake the decisions/choices made in past, You change nothing.
2. Once you leave a place, people say nice things behind your back.
हमे भी अपना पर्सनालटा डब्लप करना है .अभी तो नैनीताल जा रहे है लौट के आपसे मार्ग दर्शन प्राप्त करेंगे
जवाब देंहटाएंvery true !!!
जवाब देंहटाएंsince the beginning we are taught that things are limited and we need satisfy our thirst of desires in that only, but those who think beyond are the ones whose names we see in books and texts.
I believe in aim high, dream high.
Nice post
are mere dwara chodee tippanee kanha gayab ho gayee ?
जवाब देंहटाएंkya jamee nahee ? ye hee jwalant prashn hai abhee to dimag me......
:(
खौफ़-ए-इंकार kee bali to nahee chad gayee .
जवाब देंहटाएं:)
shubhkamnae....
रोचक पोस्ट...
जवाब देंहटाएंभाई ऐसे भारी-भारी धांसू वाक्य बोल-बोल कर पर्सनैल्टी डैवलप करोगे तो ...पर्सनैल्टी का तो पता नहीं पर हां, यहां-वहां और न जाने कहां-कहां गूमड़ डैवलप होने के चांस पूरे-पूरे बनते हैं :)
जवाब देंहटाएंसंजय भाई,आप के सार्थक आलेख पढ़ कर यह पता नहीं चलता कि बन्दे को क्या करना चाहिए. पर यह जरूर पता चल जाता है कि क्या नहीं करना चाहिए.
जवाब देंहटाएंमतलब हमारी personality डेवलप होने से कोई नहीं रोक सकता.
देरी के लिए मुआफी कबूल करें.
लेट के हम लतीफ़ हैं यारो
अक्ल भी वक़्त पर नहीं आती.
ओ भैये फालतू समझ रखा है क्या। हम भी टिप्पणी नहीं देंगे।
जवाब देंहटाएं*
आपकी पर्सनेलटी डेवलपमेंट में थोड़ा सा योगदान हमारा भी स्वीकारें।
डवलपमेन्ट पहुंचा कहां तक..... :D
जवाब देंहटाएंआपको पर्सनल्टी डेवलपमेंट की क्या जरुरत है.आप खुद कोचिंग खोल लीजियेगा औरों की पर्सनल्टी डेवलप करने की.फिर देखिएगा कितनों का बेडा पार हो जायेगा. आपको 'तो सम कौन चुटील गल ज्ञानी' का
जवाब देंहटाएंखिताब मैने दे ही रक्खा है.और दो चार सर्टिफिकेट लगा लीजियेगा बस. फिर देर किस बात की प्यारे.