पढ़ा-लिखा कुछ खास नहीं था, शुरू से ही डील डौल वगैरह का काफ़ी अच्छा था। शरारती एक नंबर का, मारपीट जब तक एकाध बार कर न ले, खाया पिया हजम ही नहीं होता था। शायद सातवीं या आठवीं तक स्कूल गया फ़िर कहीं किसी दुकान पर नौकर लग गया। ट्रेन से डेली पैसेंजरी करता था। आदतें आसानी से जाती नहीं, अंदर सीटें खाली हों तो गेट पर लटकना और भीड़ हो तो जबरदस्ती सीट के लिये धक्कामुक्की करना उसका शगल था। जल्दी ही ट्रेन में मशहूर हो गया था, कुछ जगह ऐसी होती हैं और कुछ बंदे ऐसे, जिनके लिये बदनामी ही मशहूरी होती है।
समय बीतता गया, उसकी प्रतिभा नित निखार पा रही थी। अब उसने नया शौक पाल लिया, चलती गाड़ी में दरवाजे से हाथ बढ़ाकर टायलेट की खिड़की की सलाखें पकड़कर डिब्बे के पिछले हिस्से में पहुंचता और फ़िर दूसरे डिब्बे की खिड़की की सलाखें पकड़कर उस डिब्बे में घुस जाता। तालियाँ बजाने वालों का मनोरंजन हो रहा था मुफ़्त में, और वो खुद को हीरो समझता था। एक दिन हाथ फ़िसल गया और वो चलती गाड़ी से नीचे गिर गया। जान बच गई लेकिन एक टाँग घुटने के पास से काटनी पड़ी। वही तालियाँ बजाने वाले अब उसे बेवकूफ़ बता रहे थे।
कुछ दिन के बाद वो लाठी का सहारा लेकर चलता दिखाई दिया। स्वभाव वैसा ही, वही यारों दोस्तों के साथ धौल धप्पा और हो हल्ला। कुछ महीनों के बाद नकली पैर लगवा लिया उसने। अब बिना सहारे के भी चल लेता था, हाँ थोड़ी सी लंगड़ाहट(मौके के हिसाब से कभी कभी ज्यादा भी) जरूर बाकी थी। घरवालों ने शादी भी कर दी उसकी। दूसरे बहुत से सरकारी आँकड़ों की तरह ये लिंगानुपात वाले आँकड़े भी आज तक मेरी समझ में नहीं बैठे। बताते हैं कि हजार के पीछे आठ सौ के करीब लड़कियाँ हैं यानि उस हिसाब से लगभग हर पांचवा आदमी कुँवारा रहना चाहिये जबकि मुझे शायद ही कोई लड़का ऐसा दिखता हो जो लड़की के अभाव में कुँवारा रह गया हो। दूर क्यों जाया जाये, मुझ जैसे तक को(थोड़ा कन्फ़्यूज़न है, ही लिखा जायेगा या भी?) गौरवर्णीय, सुंदर, सुशील और गृहकार्य में दक्ष, जैसी कि हर भारतीय विवाहयोग्य कन्या होती ही है, मिल गईं:)) गरज ये कि कैसा भी बंदा हो, उसके लिये ऊपर वाले ने कहीं न कहीं कोई उसका जोड़ बना ही रखा है तो जी हमारा हीरो भी अब तक शादीशुदा हो गया था। जल्दी ही राशनकार्ड में तीन नाम और जुड़ गये।
भारत का रहने वाला हूँ भारत की बात सुनाता हूँ, हमारे भारत में परंपरा चली आ रही है कि जो कुछ न करता हो उसका ब्याह कर दो कुछ तो करता रहेगा स्साला, कुछ तो करेगा:) जो किसी काम में लगे हुये हैं वे बेशक कुँआरे रह जायें, जैसे हमारे राहुल बाबा बेचारे जनसेवा में लगे हैं तो अब तक…, लेकिन जिसके पास कोई काम नहीं, वे सब खूँटे से बांध दिये जाते हैं। दरअसल हँसते-खेलते, आजाद किस्म के लोगों को देखकर इन चीजों को खो चुके लोगों को बड़ी टीस उठती होगी कि हमारी आजादी छिन गई और ये है कि अब तक सर उठाकर घूम रहा है। शुभचिंतक होने का ड्रामा सा रचकर उम्रकैद दिलवाकर ही मानते हैं। यकीन न हो तो किसी शादी में देख लीजिये, दूल्हा बेचारा कसा बंधा सा कसमसाता रहता है और दूसरे नाच नाच कर खुशियां मनाते हैं। ये खुशी वैसी ही होती है जैसे अपनी कालोनी की लाईट गायब होने के बाद पड़ौसी कालोनी की जलती बत्तियों को हसरत भरी निगाह से देखने के बाद उन्हें भी गुल होते देखकर हमें अतुलनीय खुशी का अहसास होता है। शेरवानी, सेहरा इत्यादि इत्यादि पहनाकर दूल्हे को सजाया नहीं जाता बल्कि मार्निंग शो में प्रिंसीपल साहब के द्वारा छापा मारकर स्कूल के बच्चों को यूनीफ़ोर्म के जरिये पहचानने वाली बात से इसे जोड़ा जा सकता है। ऐन वक्त पर अगर दूल्हा भागने की कोशिश करे तो भीड़ में अलग से पहचान लिया जाये, इसीलिये ये सब नौटंकी की जाती है।
फ़िर से बहक गया मैं, हीरो की शादी भी हो गई और घर बच्चों से गुलजार भी हो गया। परिवार बढ़ा तो जिम्मेदारियां भी बढ़ीं। श्रीमानजी ने अब कुछ कमाई वगैरह करने की सोची और जल्दी ही फ़ाईनैंस का धंधा शुरू कर दिया। भारत सरकार ने तो अब financial inclusion जैसे काम शुरू किये हैं, हमारे ये मित्र अरसा पहले से ’जिसका कोई नहीं, उसका तो खुदा है यारो’ की स्टाईल में खुदाई दिखा रहे हैं। नजदीक ही एक सब्जी मंडी उनका कार्यक्षेत्र है, गरीब(तर) लोगों को पांच हजार देते हैं और दो महीने तक सौ रुपया रोज की किस्त। हिसाब सीधा है लेकिन ब्याज की दर निकालना इतना सीधा नहीं क्योंकि जिन दस बीस लोगों से उनका व्यवहार है, उनके यहाँ से पैसों के अलावा फ़ल, सब्जी वगैरह प्यार मोहब्बत में ले ही ली जाती है। शाम को जब रिक्शा में बैठकर घर लौटता है तो जेब नोटों से और रिक्शा दस बारह थैलियों से भरी होती है। हालचाल पूछने पर ऊपर वाले का शुक्रिया देते हैं और नम्रता से बताते हैं कि गरीबों की मदद करते हैं तो उनकी दुआयें काम आ ही जाती हैं।
आदत मेरी भी खराब है, जो बात कोई खुद से बता दे उसपर बेशक ध्यान न जाये लेकिन जो पर्दे में है वहां ताक झांक जरूर करनी है। खलनायक फ़िल्म का गाना याद आ रहा है, ’नायक नहीं…’ वाला। कहीं उल्टा सीधा सोचने लगो सब, हमारे जयपुर नरेश तो जरूर इसमें भी कोई प्वाईंट ढूंढ लेंगे, अगर इसे पढ़ा तो। कित्ती खराब सोच है यार तुम्हारी, छवि मेरी खराब करते हो:) तो एक शाम मैंने अपने दोस्तों से जानना चाहा कि यार सरकारी बैंकों को तो अपने ऋण वसूलने में इतनी दिक्कत आती है और ये बंदा कई गुना ज्यादा की दर पर कैसे कारोबार चला रहा है? जवाब में पहले तो बैंकों की कार्यप्रणाली की माँ-बहन एक की गई फ़िर हमारे हीरो की कार्यप्रणाली की तारीफ़ें की गईं। मालूम चला कि दिक्कतें तो उसे भी आती हैं लेकिन उनसे निपटने के उसके फ़ार्मूले भी अलग हैं। हर लोन का जमानती तो होता ही है, इसके अलावा इस धंधे में आदमी का थोड़ा सा रफ़-टफ़ होना भी लाजिमी है। जरूरत पड़ने पर डिफ़ाल्टिंग पार्टी से गाली-गलौज करना पड़ता है। कई बार मार पीट भी करनी पड़ती है। मेरी शंकायें बढ़ने लगीं थी। माना कि ये इस लाईन में शुरू से है, डील डौल भी अच्छा है लेकिन कभी सामने वाला भारी पड़ जाये तो? अब तो ये बेचारा भाग भी नहीं सकता, एक टांग नकली है उसकी। या फ़िर बात चौकी-थाने पर पहुंच जाये तो? बताया गया कि ऐसी स्थिति में नकली टांग ही तो उसका ट्रंप कार्ड बन जाती है। जब तक खुद हावी है तब तक तो कोई दिक्कत है ही नहीं, जब खुद पर बात आये तो पुलिस के आने से पहले उसकी लकड़ी वाली टांग उसके हाथ में आ जाती है। सी.एम.ओ. द्वारा जारी विकलांगता सर्टिफ़िकेट और पहचान पत्र हमेशा पास रहते ही हैं। दुहाई दे देता है, “आप ही करो जी फ़ैसला, मैं हैंडिकैप्ड आदमी हूँ। एक कदम बेख्याली में रखा जाये तो मेरी टाँग निकल जाती है, मैं क्या खाकर इस ’रेमंड्स’ से लड़ूंगा?”
मैंने तो उसे हमेशा ही हँसते, खिलखिलाते देखा है लेकिन सुना है कि मौका देखकर आँसू भी निकल जाते हैं उसके। फ़िर पुलिस वाले बेचारे भी उसे क्यों मेहमान बनायेंगे, उससे तो कुछ हासिल होना नहीं। उल्टे उसकी सेवा पानी करनी पड़ेगी, नहीं तो रिक्शा मौका-ए-वारदात से थाने की तरफ़ और जरूरत पड़ने पर एसीपी ओफ़िस, डीसीपी ओफ़िस, हैडक्वार्टर की तरफ़। रास्ते सब मालूम हैं उसे, ये भी और वो भी, आर.टी.आई, समाज कल्याण विभाग, मानवाधिकार वगैरह-वगैरह। मैंने कहा, फ़िर तो गनीमत है कि ये अल्पसंख्यक वर्ग से नहीं है, वरना एक और प्वाईंट जुड़ जाता उसके हक में।
तो मित्रों, आज के प्रवचन से ये शिक्षा ग्रहण करनी चाहिये कि अपनी खामियों, कमजोरियों, दुखों, तकलीफ़ों को सही अवसर पर इस्तेमाल करने वाला प्राय: कामयाब होता है, जितना ज्यादा दुखी दिखाई दे सकने की कला में निपुण होगा, वह भीतर से उतना ही सुखी होगा। जिस तरह आजकल चैन में लगा परिचय-पत्र गले में टांगकर जेब में रखा जाता है और वक्त जरूरत दिखाकर अपना कार्य सिद्ध किया जाता है, इसी भाँति अपनी वास्तविक, काल्पनिक तकलीफ़ों का सर्टिफ़िकेट हमेशा अपने साथ रखें और मौके पर उसका प्रदर्शन करके चिरकाल तक अनंत सुख के भागी हों। सर्वे भवन्तु सुखिन:, सर्वे सन्तु ........
p.s. - एक बिटिया की तरफ़ से एक शिकायत दर्ज हुई थी, उसके पापा कहते तो न भी मानता लेकिन बिटिया का कहना है तो सर-माथे पर:) आशा है, अब ठीक लग रहा होगा। दोबारा कुछ कहना हो तो पापा को बीच में डालने की बजाय सीधे दो लाईनें मेल कर देना। मुझ लापरवाह को जिम्मेवारी का अहसास करवाने के लिये शुक्रिया।
p.s. - एक बिटिया की तरफ़ से एक शिकायत दर्ज हुई थी, उसके पापा कहते तो न भी मानता लेकिन बिटिया का कहना है तो सर-माथे पर:) आशा है, अब ठीक लग रहा होगा। दोबारा कुछ कहना हो तो पापा को बीच में डालने की बजाय सीधे दो लाईनें मेल कर देना। मुझ लापरवाह को जिम्मेवारी का अहसास करवाने के लिये शुक्रिया।
http://youtu.be/zmzSnJmB7QQ
यह हुई न अपनी कमजोरी को अपनी ताकत में बदलने की बात....
जवाब देंहटाएंहर कमजोरी को शक्ति का स्रोत माने।
जवाब देंहटाएंबढ़िया है ....शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंsunder .bas ek baat hai jo akharti hai aap ki post mai ek kahani ki kaie kahani ho jaati tab ..samajh sakte ho yahi aap ki kala hai......
जवाब देंहटाएंjai baba banaras.......
संजय बाऊजी!
जवाब देंहटाएंमजेदार किस्सा और और उससे भी ज़्यादा मज़ा आया पोस्ट की ट्रेन सी भागती रफ़्तार को देखकर.. दिल खुश हो गया.
याद आया.. गाँव की पोस्टिंग के दौरान एक परिचित सेन्ट्रल बैंक ऑफ इंडिया में काम करता था और उसने अपनी बाईक की नंबर प्लेट पर लिखवा रखा था "सी बी आई".. कई छोटे मोटे हवलदार तो बिना लाइसेंस के होने पर भी उसे छूते तक नहीं थे..
संजय अंकल!
जवाब देंहटाएंमैं जब छोटी थी तो एक बार कलकत्ता में एक मॉल में मुझे अकेले देखकर दूकान में काम करने वाले किसी आदमी ने कहा,"बेटा तुम्हारे पापा उस तरफ हैं." और मेरा जवाब था,"वो मेरे डैडी हैं,पापा तो पटना में रहते हैं मेरे."
आगे से डैडी को कहने की ज़रूरत नहीं.. सीधा आपको कहूंगी. सच्ची अब बहुत सुन्दर लग रहा है आपका ब्लॉग और पढ़ने में भी कोइ प्रॉब्लम नहीं!! सो नैस ऑफ यूं!!!:)
आँखों में आंसू आ गए आपकी पोस्ट पढ़. आप कहेंगे ऐसा तो कुछ नहीं लिखा? तो फिर तनिक रंग हल्का कीजिये बैकग्राउंड का. आँखें झेल नहीं पा रही इस रंग को.
जवाब देंहटाएंऔर जीवन के बेजोड़ सत्य जो आप सिखा रहे हैं, गजब है. अप्प्लाई करता हूँ यहीं: "बहुत काम है, बहुत बीजी हूँ, एकदम फुर्सत नहीं है'. अब चला :)
लोगों की एक-इकलौती स्ट्रैंग्थ को कमज़ोरी बता के पंगा तो थमने ले ही लिया है भाई जी। यो कमज़ोरी न सै, मेडल सै यो मेडल ...
जवाब देंहटाएंयो छोरा जवान सै, गोली ताईं डरता कोन्नी, इसनै बणा दे सिपाही, अरे यो ताऊ सै, इसनै हिला न जात्ता, सिपाही ना चाल्ता, जनरल मैं चलैगा यो।
नाक कटी पर मूह बन गया .
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रसंग है ...अपनी कमियों को खूबियों में इसी तरह बदलते हैं लोग ...
जवाब देंहटाएंबेचारे दो टांग वाले !
बीच-बीच में मुद्दे से भटकना खलता है।
जवाब देंहटाएंसंजय भाई,कमजोरियां तो हम में बहुत है,पर फायदे की जगह नुक्सान में ही रहते हैं.
जवाब देंहटाएंसमाज की गाड़ी में पहिए, अक्सर पहिए ही रहते हैं, चालक, चालक ही और पांवदान वही के वही.
जवाब देंहटाएंजीना इसीका नाम है.
कहानी में ख़म से जान है.
"आदत मेरी भी खराब है, जो बात कोई खुद से बता दे उसपर बेशक ध्यान न जाये लेकिन जो पर्दे में है वहां ताक झांक जरूर करनी है।"
जवाब देंहटाएंइसे कहते हैं "चोली के पीछे क्या है" वाली मानसिकता और ये थोड़ी बहुत सभी में पाई जाती है अतः वो क्या कहते हैं "अह्सासे कमतरी" न पालें बल्कि ये सोचें की आपकी थाली में भी तरी कम नहीं है. आपकी शिक्षाप्रद कथा बेहतरीन है.
रोचक प्रसंग । मेरी कमजोरी मेरी लापरवाही है वो आपने देख ही ली नही देखी तो सलिल जी से पूछ लें। बाकी उनकी पोस्ट पर कमेन्ट मे देख लें। आपसे भी क्षमा चाहती हूँ। बस इतना ही कह सकती हूँ। शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंहौसला चाहिए जी, फिर शरीर कैसा भी हो। अपनी कमजोरी की ही अपनी ढाल बनाने वाले अक्सर सफल ही होते हैं। बिंदास लिखा है।
जवाब देंहटाएंकहते है नक़ल के लिए भी अकल चाहिए ,मतलब ये की अपनी कमजोरियों के अपने फायदे के लिए प्रयोग करने के लिए भी बड़ी अक्ल और हिम्मत की जरुरत होती है ये करना भी कोई हलुवा नहीं है जो कोई भी कर ले इसलिए ऐसा करने वालो को किसी बड़े विद्वान से कम न समझे और दुसरे बिना दिमाग लगाये उनकी नक़ल करने कोशिश न करे |
जवाब देंहटाएंरही बात हर लडके की शादी हो जाने की बात तो इसे आप ऐसे समझे की जो बचे दो सौ लडके है वो अपने छोटे भाई के लायक लड़की से शादी कर लेते है उनके छोटे भाई अपने छोटे भाई के लायक लड़की से और अंत में होता ये है की जिस लड़की से भतीजे को शादी करनी चाहिए उससे उसका सबसे छोटा भाई शादी कर लेता है और भतीजा बीस साल बाद कुवारा रह जायेगा मतलब आज जो अंतर दिख रहा है उसका परिणाम धीरे आप को दिखेगा और समाज में दिखेगा कई सारे बेमेल विवाह |
मेरी मानिये झुमा से एक बार फिर से गुलाबी (लड़कियों का फेवरेट पिंक) रंग दिखा कर पूछिये की उसे वो पसंद है या ये आप वाला पिंक अब अगली बार से आप का ब्लॉग खोलने से पहले धुप का चश्मा पहनना पड़ेगा आँखे चौंधिया जाती है :))
meree dadeejee jinhe hum ammajee kahte the jab kabhee kisee se prabhavit hotee thee to kahtee thee ye jitna oopar se dikhata hai usase thugna zameen me hai........chotee thee kabhee isaka arth samjh nahee paee par aaj tumhe vo hee shavd thohrane ka man ho raha hai......
जवाब देंहटाएंjitne oopar dikhte ho usase thugna ( double ) zameen me ho.......
sir ji , kisi chashmevale se tay to nahin kar rakha hai :) aankhen michmicha rahi hain.
जवाब देंहटाएंpost dhaansu hai. prawah tez hai. maza aa gaya.
कामयाबी के सूत्र मिले...बड़ा हितकारी प्रवचन रहा आज का.
जवाब देंहटाएंbahut badhiya sir
जवाब देंहटाएंसामने वाला कभी हावी नहीं हो सकता जी, कर्ज जो लिया है और ऐसे लोगों से वही लेते हैं, जिनके नाते-रिश्ते, पास-पडोस और मित्र-बंधु दूर से नमस्ते करके निकल जाते हैं।
जवाब देंहटाएंप्रणाम
मॉरल अच्छा लगा
जवाब देंहटाएंअब सोच रहा हूँ कि कौन-कौन से सर्टिफिकेट साथ रखने चाहियें। कमियों, कमजोरियों की कोई कमी तो है नहीं अपने पास
एक चश्मा भिजवा दो जी धूप का
जवाब देंहटाएंपोस्ट पढने में परेशानी हो रही है। :)
प्रणाम
गाढ़ा रंग, चुंधियाई आंखें, चश्मे वाली कंपनी से कमीशन, वर्ग विशेष से इस रंग को जोड़ना - भ्रष्टाचार और कदाचार के ऐसे ऐसे आरोप लगाये जा रहे हैं मुझ पर। साजिश है ये मुझे भ्रष्टाचारी साबित करने की, ताकि कल को कोई मुझसे कमेंट न ले। कह देंगे कि ये तो भ्रष्टाचार का आरोपी है:))
जवाब देंहटाएं@ भारतीय नागरिक:
जवाब देंहटाएंये हुआ न सकारात्मक दृष्टिकोण:)
@ प्रवीण पाण्डेय:
सबसे शक्तिशाली हैं जी फ़िर तो हम:)
@ सतीश सक्सेना जी:
धन्यवाद जी।
@ poorviya:
अब का करें मिश्रा जी, यही बेतरतीबी हमें भी तो चैन नहीं लेने देती। प्रयास करेंगे कि आपको कम अखरा करे हमारी पोस्ट।
@ चला बिहारी...:
जवाब देंहटाएंमैं भी कल ही लिखवाता हूँ सलिल भाई, हो सकता है हमारी भी चल निकले। प्रेरक कमेंट:)
@ झूमा:
जान गये बेटा डैडी वाली बात। देख लो कितने लोग शिकायत कर रहे हैं रंग के बारे में, लेकिन एक तुम्हारी बात के कारण अब तक नहीं बदला है। गुड लक डियर फ़ोर युअर स्टडीज़।
@ अभिषेक ओझा:
चले कहाँ? अपने एक प्रिय बंधु की मेल से प्राप्त फ़ीडबैक के संपादित अंश तो पढ़ते जाते। पहचान सको तो मेल में लिखना कौन हो सकता\ती है:) - "रंग संयोजन पर अभिषेक ओझा की शिकायत पढ़ी। उन्हें समझा दीजिये कि यह अभिजात्य रंग है - elite classs blogger, कोई कितना भी रोये चिल्लाये आप नहीं बदलने वाले! पाठकों को झेलना ही होगा।
अभिषेक ओझा की आँखों के लिये तो उपचार की तरह है - ********** से जमा बेकार इस रंग से ठीक हो जाता है।" :))
@ स्मार्ट इंडियन जी:
हम किसी से पंगा नहीं लेते जी, डरते हैं खुद से:)) सिपाही-जन्नल आला फ़ार्मूला कत्ती चाल्हापाड़ सै जी, पंगा सॉरी मजा आ गया:)
@ धीरू सिंह:
जवाब देंहटाएं:)) मस्त मैजिक वाला मुहावरा।
@ वाणी गीत:
सच में तारीफ़ वाली ही बात है। बेचारे:)
@ देवेन्द्र पाण्डेय:
मुद्दा उठाने वाले तो और बहुत से हैं देवेन्द्र भाई, इधर तो खालिस भटकन ही है और हम ये शुरू से कहते आये हैं:) अब मुद्दों पर भी हम लिखने लगे तो हो लिया काम, वैसे कोशिश करेंगे कभी जरूर।
@ विशाल:
ओये होये विशाल भाई, मिलाओ एक और समानता पर हाथ:)
@ राहुल सिंह जी:
जवाब देंहटाएंआप भी बांकपन और खम के बहुत मुरीद दिखते हैं:)
@ विचारशून्य:
’अहसासे कमतरी’ रखने से अपने पैर जमीन पर रहते हैं बंधु, सो अपने को पसंद है। बहुत दिनों के बाद पिछली फ़ार्म में दिख रहे हो, अच्छा लग रहा है।
@ निर्मला कपिला जी:
आप ऐसा कहकर मुझे शर्मिंदा मत करें। मुझसे क्षमा क्यों? अवश्य कुछ गलतफ़हमी है और फ़िर बड़ों से तो सिर्फ़ आशीर्वाद की आस रहती है, आप आशीर्वाद देती ही अच्छी लगती हैं। वही दीजिये, वही स्वीकार्य है।
@ Ajit Gupta ji:
आप सहमत हैं, मेरा हौंसला शूट-अप कर गया है:) शुक्रिया जी।
@ anshumala ji:
जवाब देंहटाएंहम तो सबको विद्वान ही मानते समझते हैं जी।
लिंगानुपात वाली बात बहुत अच्छे से समझाई आपने, वैसे तब तक हो सकता है चाईना वाले कोई हल उपलब्ध करवा दें:)
ये वाला पिंक भी मेरा नहीं है जी, निकालेंगे इसका कोई सर्वमान्य हल। ड्राफ़्ट बनाकर हाईकमान से पूछना पड़ेगा:)
@ Apanatva:
सरिता दी, जैसा हूँ सो हूँ ही। जब तक हूँ, झेलना ही है:) आपका कहा मेरे सर-माथे।
@ prkant:
’शिवाजी, द बॉस’ आप भी ले लो हमारे मजे:)
@ Udan Tashtari:
वैसे आप के तो खुदके प्रवचन बहुत शानदार होते है समीर सर:)
@ somali:
जवाब देंहटाएंपसंद आया, बहुत शुक्रिया जी।
@ अन्तर सोहिल:
सही कहा अमित, असमर्थ और असहाय ही फ़ंसते हैं ऐसे मकड़जाल में।
साँपला, रोहतक या दिल्ली कहीं से भी ले लो यार चश्मा अच्छा सा, मेरे हिसाब में दर्ज कर लेना। मिलेंगे तो कर लेंगे हिसाब चुकता:)
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंअपनी कमजोरी को इस्तेमाल करने वाले लोग बिरले ही मिलते है
जवाब देंहटाएंकिस्सा अच्छा और सीख देनेवाला है
धन्यवाद
सुन्दर रंगीन पृष्ठ (वो अलग बात है कि, "हमारी आईज की ब्यूटी, सभी की आईज में खटकी"... २ पोस्ट पूर्व से ससंदर्भ :)) ), आकर्षक सज्जा, शिक्षाप्रद कहानी (यहाँ शिक्षा मिली ही नहीं केवल हमेशा की तरह, अंत में निचोड़ के बताई भी गई है :) ) ।
जवाब देंहटाएंअंत में सुन्दर मीठा सन्देश।
और सबसे बढ़िया बात, इस पाठ के अंत में प्रश्न नहीं हैं, गीत है। :)
बहुत ही बढ़िया।
हर शहर में हर शख्श परेशान सा क्यों है ?
जवाब देंहटाएंटिप्पणी डीरेल्ड लग सकती है पर हमारे समाजी हालात इस तरह के मर्जीवडों की उर्वर भूमि हैं !
सत्य वचन प्रभु!...पंगा लेने वाला भला पंगु कैसे हो सकता है?
जवाब देंहटाएं@ अदा जी:
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्र है जी ऊपर वाले का जो आपको ’शार्ट एंड स्वीट’ बनाया। फ़्रंट में रहें हमेशा और उठाती रहें फ़ायदा आप, हमारी तो देखी जायेगी। कहीं पढ़ा था कि मुसीबत जब तक शार्ट रहती है तब तक ही स्वीट रहती है। आपको मुसीबत नहीं बताया है जी, कहीं भूल से ये समझ बैठें..:)
वैसे आपका ’ठिंगनी राग’ हमें पसंद नहीं है(गुस्से वाला स्माईली या जो भी कहते हों उसे) हमारी नजर में आप 'larger than life' हैं। जान लीजिये, मान लीजिये।
@ दीपक सैनी:
ऐसे विरले ही किस्से कहानियों के पात्र बनते हैं दीपक। शुक्रिया।
@ Avinash Chandra:
दो बनारसी असहमतियों के बाद एक समर्थक भी मिला(वैसे यकीन था), अब कम से कम जमानत जब्त तो नहीं होगी:)
धन्यवाद अवि।
@ अली साहब:
टिप्पणी एकदम डिरेल्ड नहीं है अली साहब, सहमत हैं आपसे।
जितना ज्यादा दुखी दिखाई दे सकने की कला में निपुण होगा, वह भीतर से उतना ही सुखी होगा।
जवाब देंहटाएंलाख टके की बात कह गए हैं आप...अद्भुत लेखन है आपका...
नीरज
sanjay ji prasang to majedar tha hi sari tippaniyan bhi padh gayee aur un par aapke reply bhi sach maja aa gaya.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर तरीके से आपने इस शख्सियत को सबके सामने परोसा है ... आपके चरित्र चित्रण करने का अपना ही निराला तरीका है ... एक सांस में पढके खतम कर लेते हैं ... आप कितना भी लंबा पोस्ट लिखो पढ़ने में बोर नहीं लगता ...
जवाब देंहटाएं