To be very honest, it ain't basically a communication gap even, it in a raw assumption, not even a calculated hypothesis. And thinking of any reason behind unreasonable is simply waste. वैसे जाने ये समझ भरी बातें धूप और बरसात को क्यों नहीं समझ आयीं। वरना होती छतनार धूप पंजाबियों के सर चुन चुन और बरसातें किन्ही गुजरातियों, असमियों, बंगालियों.... इत्यादि-इत्यादि के सर। खैर! सब समझदार ही होते तो गुलाबों के बाग़ होते भला? :)
P.S.: हमें बेवकूफियाँ मुबारक रहे।
P.P.S.: फत्तू को आज फिर से देखा, ऑन डिमांड, ससम्मान फत्तू से आने का आग्रह किया जाए।
वोई तो..!! हम तो पंजाब और पंजाबियों की तरक्की में पूरे देश के योगदान को मानते ही हैं, उसके लिये हलफ़नामा देवें का? अब सोचने का नशा भी छोड़ना ही पड़ेगा, हाँ नहीं तो..!!
पूर्वाग्रह से ग्रसित होना एकदम उचित नहीं, हर व्यक्ति एक जैसा नहीं होता. लेकिन किसी भी सेक्ट के बहुसंख्य लोगों के बारे में बाकियों की धारणा का प्रतीक भी है. इस बारे में हम लोगों को आत्मावलोकन भी करना चाहिए कि ऐसी धारणायें क्यों बना ली जाती हैं.
वह पोस्ट और टिप्पणी दोनों देखे थे। सच पूछो तो भारत को इतनी अच्छी तरह देखा है कि उस वाक्य को देखकर न आश्चर्य हुआ और न दया आई। इतने दुःख की बात है कि इतनी विविधताओं वाले देश में रहते हुए भी पढे-लिखे लोग भी बचपन से अपने कुएं के मेंढक दल की श्रेष्ठता और बाकी सब के ये-वो होने की बात को न केवल बर्दाश्त बल्कि स्वीकार सा करते आये हैं। जैसा कि अर्चना जी ने कहा दिमाग की खिड़कियाँ, दरवाज़े खुले रखना पड़ेगा और यह प्रयास करना पड़ेगा कि वर्षों में बने दुराग्रह अगली पीढियों तक जाने से बचें। व्यक्तिगत रूप से मैं (समझदारी नाम के दुर्लभ गुण के अलावा) अंतर्जातीय विवाह को इस बीमारी का एक इलाज़ मानता हूँ। दूसरा इलाज़ है - जातिसूचक भेद-वाक्य आदि को हेट-क्राइम नामक अलग कैटेगरी मे लाना। मगर इन सब से पहले एक दूसरे को समझने की कोशिश ज़रूरी है। अब सोचना छोड़ो और जो भी पास में बैठा हो उसके साथ एक-एक कप खुशबूदार चाय पियो।
संवाद होता है तो दोनों के पास समझने का चांस रहता है, चुप रहें तो दोनों के अपने कुंये में रहने का ज्यादा चांस है। संबंधित पक्ष मेरे खुद के लिये बहुत सम्मानित व्यक्तित्व हैं, इसीलिये ये जोखिम उठाया वरना तो और बहुत सी जगह दूर से ही प्रणाम करके चले आते हैं। आपके बताये दोनों इलाज विचारणीय हैं। खुशबूदार चाय\काफ़ी हो ली, आईडिया आपके स्तर का ही था। उसके लिये अलग से धन्यवाद।
link padh aaya.....kumarji gambhir blogger hain saath hi swasth se juri jankari pradan karte hain....achhe vyakti hain......kuch galat kah gaye to uspar unhe vichar karna tha.......bakiya, aapke jaise mast...vindas ko 'kahin kuch laga' to mane lete hain kuch aur bhi baat ho sakta hai......khair, jane bhi do yaaro........
ऐसे ही अनर्गल प्रलापों ने राष्ट्र का भंटाधार किया है। हम अच्छे, दूसरे बुरे । जाति विरोधी, क्षेत्र विरोधी लोकोक्तियाँ हमें एक राष्ट्र के रूप में समृद्ध होने से रोकती हैं। किसी जाति में सभी बुरे या भले नहीं होते। दुःख तब और भी होता है जब साहित्य प्रेमी, पढ़े लिखे कहलाने वाले लोग ऐसी तकियानूसी टिप्पणियाँ करते हैं। मजाक के तौर पर भी ऐसा नहीं करना चाहिए।
कई बार बात संक्षेप में कही जाये तो उसके कई अर्थ निकल जाते हैं, मैंने शायद अपने हिसाब से ही अर्थ निकाला हो। हर घटना से हम एक नया अनुभव तो प्राप्त करते ही हैं।
मेरी राय में राधारमण जी के पूर्वाग्रह उनके कुछ व्यक्तिगत अनुभवों पर आधारित हैं जिन्हें उन्होंने सभी पर एक समान रूप से हांक दिया हैं जोकि गलत है. राधारमण जी की गलती ने आपकी पुरानी पोस्टों की याद दिला दी. ऐसे दाग या (दागदार लोग) अच्छे हैं.
’भये प्रकट कृपाला दीन दयाला..’ मेरे शुरुआती दौर के मित्र पाण्डेय जी, नमस्कार,अपका हाईबरनेशन खत्म करने वाले ’दाग अच्छे हैं।’ आशा है सक्रियता जारी रहेगी।
सिर्फ़ लिंक बिखेरकर जाने वाले महानुभाव कृपया अपना समय बर्बाद न करें। जितनी देर में आप 'बहुत अच्छे' 'शानदार लेख\प्रस्तुति' जैसी टिप्पणी यहाँ पेस्ट करेंगे उतना समय किसी और गुणग्राहक पर लुटायें, आपकी साईट पर विज़िट्स और कमेंट्स बढ़ने के ज्यादा चांस होंगे।
एक बार पहले भी सिर झुकाया था.. और आज भी!!
जवाब देंहटाएंकोई जरूरत नहीं है आपको, सलिल भैया और कोई औचित्य भी नहीं।
हटाएंबात ये भी सोलह आने खरी है
जवाब देंहटाएंहाँ जी बिल्कुल, उनकी भी जय जय और आपकी भी जय जय:)
हटाएंTo be very honest, it ain't basically a communication gap even, it in a raw assumption, not even a calculated hypothesis.
जवाब देंहटाएंAnd thinking of any reason behind unreasonable is simply waste.
वैसे जाने ये समझ भरी बातें धूप और बरसात को क्यों नहीं समझ आयीं।
वरना होती छतनार धूप पंजाबियों के सर चुन चुन और बरसातें किन्ही गुजरातियों, असमियों, बंगालियों.... इत्यादि-इत्यादि के सर।
खैर! सब समझदार ही होते तो गुलाबों के बाग़ होते भला? :)
P.S.: हमें बेवकूफियाँ मुबारक रहे।
P.P.S.: फत्तू को आज फिर से देखा, ऑन डिमांड, ससम्मान फत्तू से आने का आग्रह किया जाए।
agreed, that's why I didn't ask for a reason. It was just an attempt to portray different attitudes.
हटाएंनिर्दोष बेवकूफ़ियाँ मुबारकबाद के ही काबिल हैं। इत्ता सम्मान पाकर फ़त्तू शरम से लाल हो रहा होगा:)
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंवोई तो..!!
हटाएंहम तो पंजाब और पंजाबियों की तरक्की में पूरे देश के योगदान को मानते ही हैं, उसके लिये हलफ़नामा देवें का?
अब सोचने का नशा भी छोड़ना ही पड़ेगा, हाँ नहीं तो..!!
पूर्वाग्रह से ग्रसित होना एकदम उचित नहीं, हर व्यक्ति एक जैसा नहीं होता. लेकिन किसी भी सेक्ट के बहुसंख्य लोगों के बारे में बाकियों की धारणा का प्रतीक भी है. इस बारे में हम लोगों को आत्मावलोकन भी करना चाहिए कि ऐसी धारणायें क्यों बना ली जाती हैं.
जवाब देंहटाएंजब तब आत्मावलोकन का प्रयास करते हैं, सबको करना भी चाहिये।
हटाएंनशा ही तो बहाव लाता है जीवन में..
जवाब देंहटाएंबहा के ले भी जाता है।
हटाएंसघन और सार्थक अंतराल.
जवाब देंहटाएं(कुछ ऐसा ही लिखना होगा हमें कि जो न खुद समझें न कोई दूसरा, फिर भी कोई समझ ही ले तो हमें भी समझा दे... होली की तैयारी हो ली है.)
:) दीवाली से ही शुरू हो ली थीं जी..
हटाएं"सबसे सरल उपाय दिमाग की खिड़कियाँ-दरवाजे खुले रखना।"...:-)और तबसे खुले हुए हैं।
जवाब देंहटाएंकिस महान व्यक्ति का कथन है, ये पता चले तो सहमत या असहमत होंगे:)
हटाएंवह पोस्ट और टिप्पणी दोनों देखे थे। सच पूछो तो भारत को इतनी अच्छी तरह देखा है कि उस वाक्य को देखकर न आश्चर्य हुआ और न दया आई। इतने दुःख की बात है कि इतनी विविधताओं वाले देश में रहते हुए भी पढे-लिखे लोग भी बचपन से अपने कुएं के मेंढक दल की श्रेष्ठता और बाकी सब के ये-वो होने की बात को न केवल बर्दाश्त बल्कि स्वीकार सा करते आये हैं। जैसा कि अर्चना जी ने कहा दिमाग की खिड़कियाँ, दरवाज़े खुले रखना पड़ेगा और यह प्रयास करना पड़ेगा कि वर्षों में बने दुराग्रह अगली पीढियों तक जाने से बचें। व्यक्तिगत रूप से मैं (समझदारी नाम के दुर्लभ गुण के अलावा) अंतर्जातीय विवाह को इस बीमारी का एक इलाज़ मानता हूँ। दूसरा इलाज़ है - जातिसूचक भेद-वाक्य आदि को हेट-क्राइम नामक अलग कैटेगरी मे लाना। मगर इन सब से पहले एक दूसरे को समझने की कोशिश ज़रूरी है। अब सोचना छोड़ो और जो भी पास में बैठा हो उसके साथ एक-एक कप खुशबूदार चाय पियो।
जवाब देंहटाएंसंवाद होता है तो दोनों के पास समझने का चांस रहता है, चुप रहें तो दोनों के अपने कुंये में रहने का ज्यादा चांस है। संबंधित पक्ष मेरे खुद के लिये बहुत सम्मानित व्यक्तित्व हैं, इसीलिये ये जोखिम उठाया वरना तो और बहुत सी जगह दूर से ही प्रणाम करके चले आते हैं। आपके बताये दोनों इलाज विचारणीय हैं।
हटाएंखुशबूदार चाय\काफ़ी हो ली, आईडिया आपके स्तर का ही था। उसके लिये अलग से धन्यवाद।
लो जी हमें भी दो दिन ही पहले पता चला की मेरे पास कमाल की बनिया बुद्धि और सोच है और बनिया को बस अपना लाभ कमाना और सौदेबाजी करना आता है :)))
जवाब देंहटाएंhttp://indianwomanhasarrived.blogspot.in/2012/03/blog-post_02.html?showComment=1330936825285#c7136920351441513580
हम तो पहले से ये मानते हैं जी, जबसे सरकार ने विज्ञापन छपवाये थे कि - देश के अच्छे नागरिक ’बनिये’ :)
हटाएंसोच बदले तो समाधान भी बदल जाएँगे।
जवाब देंहटाएंदशाएँ बदले तो दिशाएँ बदल जाएगी!!
विनम्र अनुरोध - अपन दिशा सुधारना ज्यादा जरूरी समझते हैं, दिशा सही होगी तो देर सवेर दशा भी सुधरेगी।
हटाएंदशा से अभिप्रायः आर्थिक दशा नहीं था बल्कि लिंग-अनुपात की दशा और मांग व पूर्ति से दिशा पलट जाने का भाव था।
हटाएंपंजाबियों से पंगा मत लो जी।
जवाब देंहटाएंबड़े खराब होते हैं...:)
हटाएंदेखा जाये तो हम सब में एक समानता है कि हम सब इंसान हैं। इसके बाद के सभी वर्गीकरण हमारे खुद के बनाये हुये हैं।
जवाब देंहटाएंयह एक ऐसी सच्चाई है जिसे लोग कभी नहीं समझ पाएंगे।
सही कहते हैं वर्माजी।
हटाएंमै भी सोंच रहा...हरभजन से लेकर भगत सिंह क्रांति सेना तक सभी के द्वारा थप्पड़ मारने में उस्तादगीरी के पीछे इस बात कनेक्शन हो सकता है क्या...
जवाब देंहटाएंआपका सोचना भी वाजिब है:)
हटाएं.......
जवाब देंहटाएं.......
PRANAM.
link padh aaya.....kumarji gambhir blogger hain saath hi swasth se
जवाब देंहटाएंjuri jankari pradan karte hain....achhe vyakti hain......kuch galat
kah gaye to uspar unhe vichar karna tha.......bakiya, aapke jaise
mast...vindas ko 'kahin kuch laga' to mane lete hain kuch aur bhi
baat ho sakta hai......khair, jane bhi do yaaro........
pranam.
कुमारजी के बारे में कही सब बातों से अपनी भी सहमति है, वो भी पहले से ही।
हटाएंखैर, नामराशि हो तो और सहमत हो लेते हैं:)
ऐसे ही अनर्गल प्रलापों ने राष्ट्र का भंटाधार किया है। हम अच्छे, दूसरे बुरे । जाति विरोधी, क्षेत्र विरोधी लोकोक्तियाँ हमें एक राष्ट्र के रूप में समृद्ध होने से रोकती हैं। किसी जाति में सभी बुरे या भले नहीं होते। दुःख तब और भी होता है जब साहित्य प्रेमी, पढ़े लिखे कहलाने वाले लोग ऐसी तकियानूसी टिप्पणियाँ करते हैं। मजाक के तौर पर भी ऐसा नहीं करना चाहिए।
जवाब देंहटाएंकई बार बात संक्षेप में कही जाये तो उसके कई अर्थ निकल जाते हैं, मैंने शायद अपने हिसाब से ही अर्थ निकाला हो। हर घटना से हम एक नया अनुभव तो प्राप्त करते ही हैं।
हटाएंसंजय जी नमस्कार,
जवाब देंहटाएंमेरी राय में राधारमण जी के पूर्वाग्रह उनके कुछ व्यक्तिगत अनुभवों पर आधारित हैं जिन्हें उन्होंने सभी पर एक समान रूप से हांक दिया हैं जोकि गलत है. राधारमण जी की गलती ने आपकी पुरानी पोस्टों की याद दिला दी. ऐसे दाग या (दागदार लोग) अच्छे हैं.
’भये प्रकट कृपाला दीन दयाला..’
हटाएंमेरे शुरुआती दौर के मित्र पाण्डेय जी,
नमस्कार,अपका हाईबरनेशन खत्म करने वाले ’दाग अच्छे हैं।’ आशा है सक्रियता जारी रहेगी।