"गीत लिखने वाले ने ठीक लिखा है, मतलब निकालने वालों ने भी ठीक मतलब निकाला है। अन्ना का फ़ार्मूला भी ठीक है और इस बात पर अन्ना की खिंचाई करने वाले भी ठीक हैं।
लिखने वाले, कहने वाले इतना कुछ लिख कह गये हैं कि हर कोई अपने मतलब की बात निकाल ही लेता है।
अनुराग जी का ये कहना "जिन्होने समाज-सुधार में थोड़ा भी योगदान दिया है वे उनसे तो बेहतर ही हैं जिन्होने कुछ नहीं किया" बिल्कुल ठीक है।
8 A.M. वाली हमारी ये टिप्पणी पता नहीं ठीक है या नहीं:)"
ये कमेंट किया था अंशुमाला जी की पोस्ट पर ’नशा शराब में होता तो......’
http://mangopeople-anshu.blogspot.com/2011/11/mangopeople.html?showComment=1322361489913#c6657040222165410415 ,
लेकिन वो फ़ंस गया था स्पैम में तो सोचा कि चलो आज इसी पर सही। मेहनत बरबाद न हो, इसलिये इतनी मेहनत और कर ली। फ़िर किसी वजह से पोस्ट नहीं कर पाया था और अब तो कमेंट भी दिख रहा है। लिख दिया था तो अब छाप भी देते हैं कौन सा पैसे लग रहे हैं अभी? :))
---------------------------------------------------------------------------------
जहाँ तक मेरी जानकारी है, ये गीत प्रकाश मेहरा ने लिखा था। वही
प्रकाश मेहरा, जिन्हें हम एक मसाला फ़िल्ममेकर के नाम से जानते हैं। इस गीत से भी
ज्यादा लावारिस फ़िल्म के कैबरे डांस वाले गीत ’अपनी तो जैसे-तैसे’ के शब्दों ने
मुझे बहुत प्रभावित किया था। उस गीत को अगर आप बिना देखे हुये सुनें तो उसका एक अलग
ही प्रभाव पायेंगे। अवैध रिश्तों के नतीजे के रूप में पैदा हुई, पली बढ़ी इंसानी
नस्ल के दर्द को बहुत नफ़ासत से बयान किया गया है। कमर्शियल सिनेमा की मजबूरियों के
चलते इस गाने को फ़िल्माते वक्त यकीनन दिल से बहुत बड़ा समझौता किया गया होगा। मैं
इस गाने को देखने की जगह ऑडियो फ़ार्मेट में सुनना ज्यादा पसंद करता हूँ, आखिर दिल
तो है दिल, दिल का ऐतबार क्या कीजै:)
बात करें नशे की तो ये भी मजे की तरह किसी का गुलाम नहीं। नशे का मायना सबके लिये अलग अलग है। शराबी को शराब से नशा होता है तो किसी को सत्ता से नशा होता है। किसी के लिये रूप से बड़ा कोई नशा नहीं तो किसी के लिये धन सबसे बड़ा नशा है। असली बात है नशे का असर, वो असर आपको कहाँ लेकर जा रहा है, ये बात ज्यादा मायने रखती है। बातों का नशा भी है और मुलाकातों का नशा भी है, और तो और मुक्का लातों का नशा भी होता है। समाजसेवा, परोपकार ये भी तो नशे से कम नहीं? शक्ति का नशा होता है तो भक्ति का भी नशा ही होता है। ये जो पीर-पैगंबर और हमारे दूसरे नायक हुये हैं, वो भी चाहते तो हम लोगों की तरह लीक पर चलते हुये जिंदगी बिता सकते थे। घर से बेघर होकर कहाँ कहाँ की यात्रायें की, किसी ने जहर पिया, किसी ने गोली खाई, कोई फ़ाँसी चढ़ा। कोई जलते तवों पर बैठाया गया, किसी को हाथी के आगे फ़ेंका गया। उनकी रूह पर भक्ति का नशा न होता तो ये सब संभव हो सकता था?
गुरू नानक देव जी द्वारा की गई यात्रायें चार उदासियों के नाम से जानी जाती हैं। ऐसी ही एक यात्रा के दौरान वो सिद्धों के इलाके में पहुँचे। अपने वर्चस्व वाले इलाके में एक नये साधु का आना सुनकर उन्होंने एक बर्तन भेजा, जो लबालब दूध से भरा हुआ था। लाने वाले ने वो बर्तन पेश किया और चुपचाप खड़ा हो गया, गुरू साहब ने उस बर्तन में गुलाब के फ़ूल की पंखुडियाँ डाल दीं जो दूध के ऊपर तैरने लगीं। इन यात्राओं में बाला और मरदाना उनके सहायक के रूप में शामिल थे। ये माजरा उन्हें समझ नहीं आया तो फ़िर गुरू नानक देव जी ने उन्हें समझाया कि सिद्धों ने उस दूध भरे बर्तन के माध्यम से यह संदेश भेजा था कि यहाँ पहले से ही साधुओं की बहुतायत है, और गुंजाईश नहीं है। गुरूजी ने गुलाब की पंखुडि़यों के माध्यम से यह संदेश दिया कि इन पंखडि़यों की तरह दूध को बिना गिराये अपनी खुशबू उसमें शामिल हो जायेगी, अत: निश्चिंत रहा जाये। उसके बाद दोनों पक्षों में प्रश्नोत्तर भी हुये। सिद्धों ने एक प्रश्न किया था कि आप ध्यान के लिये किन वस्तुओं का प्रयोग करते हैं? उत्तर देते हुये गुरू नानक देव जी ने कहा था, "नाम खुमारी नानका चढ़ी रहे दिन रात" कि प्रभु नाम सिमरन की ये खुमारी दूसरे नशों की तरह नहीं कि घड़ी दो घड़ी के बाद उतर जाये। ये तो वो नशा है जो एक बार चढ़ जाये तो दिन रात का साथी बन जाता है।
अब एक किस्सा शराब और शराबी पर, खुद सुना-सुनाया। हमारे एक भूतपूर्व गार्ड फ़ौज की
पेंशन लेने हर महीने एक या दो तारीख को अपने पैतृक गाँव वाले बैंक में जाया करते
थे। उनका कहना था कि इस बहाने कम से कम महीने में एक बार बूढ़े माँ-बाप, भाईयों के
परिवार से मिलना हो जाता है। उनका गाँव हरियाणा-राजस्थान सीमा पर पड़ता था। उस
इलाके में एक जाति विशेष रूप से इस कुटीर उद्योग में संलग्न थी। कई बार इस बात का
जिक्र कर चुके थे। एक बार गार्ड साहब पेंशन लेकर लौटे तो दो तीन दिन तक उनकी तबियत
कुछ नासाज़ दिखी। दरियाफ़्त करने पर उन्होंने कुछ इस तरह बताया।
"इस बार पेंशन लेने गया तो बैंक में ही एक पुराना मित्र मिल गया,
जो कुछ साल किसी डाक्टर के पास कंपाऊडरी करने के बाद अब गाँव में अपनी डाक्टरी
पेल रहा था(क्लैरिफ़िकेशन - गीता है नहीं मेरे पास, न तो उस पर हाथ रखकर कसम खा
लेता कि डाक्टरी ही बताया गया था)। बैंक के काम से फ़ारिग होकर दोनों दोस्तों ने
जिन्दगी के गम दूर करने की या इस मुलाकात को सेलिब्रेट करने की सोची। डाक्टर ने कहा
कि आज तुझे ’झीणी’ के हाथ की खींची हुई शराब पिलाता हूँ। जालिम क्या तो खुद है, और
क्या शराब खींचती है..बिना पिये अंदाजा लगाना मुश्किल है। हमने भी सोची कि सरकारी
उचित दर वाली दुकान से तो रोज पीते हैं, आज स्वदेशी, स्वावलंबी, कुटीर उद्योग वाली
ही सही। वैसे भी डाक्टर सिफ़ारिश कर रहा है तो पहुँच गये उस ठीये पर अपने और पूरे
जहान के गम गलत करने। पूरी बस्ती में कम से कम बारह पन्द्रह घर थे जिन्होंने घर के
पिछवाड़े में गड्डे बना रखे थे और उन गड्डों में शराब बनने बनाने की सतत प्रक्रिया
चलती रहती थी।
अपने पसंदीदा अड्डे पर पहुँचकर डाक्टर ने आवाज लगाई, "ओ झीणी, देख
आज नया बंदा लेकर आया हूँ। तेरी इतनी तारीफ़ की है इसके आगे, नीचा न दिखा दियो
मन्नै।"
चहकती हुई झीणी बाहर आई "कौण डाक्टर सै के?"
दो ही मिनट में झूलती टेबल और हिलती कुर्सियों के साथ मैचिंग करता
एक लबालब भरा हुआ जग और दो गिलास लेकर झीणी हाजिर हो गई। डाक्टर ने जेब से तली
मूँगफ़लियों का पैकेट निकाला और हम दोनों शुरू हो गये। डाक्टर घूँट घूँट पीने के
बाद ’जियो झीणी रानी’ का नारा लगाता था। मुझे स्वाद अटपटा सा लगा लेकिन डाक्टर को
सुरूर में आते देखकर मैं भी धीरे धीरे घूँट भर रहा था। बचपन का दोस्त बहुत दिनों के
बाद मिला था, शायद डाक्टर ज्यादा ही जोश में आ गया था। एकदम से पूछने लगा, "मैंने
यहाँ सबके ठियों पर चखकर देख रखी है, लेकिन झीणी रानी, तेरी शराब में बात ही कुछ
अलग है। कई बार पूछा है तुझसे, आज बता ही दे कि अलग से इसमें क्या मिलाती है तू?
बोल न, तुझे मेरी कसम है आज। मेरे दोस्त के सामने मन्ने नीचा न दिखा दियो।" अब बात
ये है जी, लुगाई जात ऐसी ही होवे है कि जहाँ अपनी कसम दे दो, फ़ट्ट से पिघल जावै
है। झीणी भी पिघल गई और बोली, "डाक्टर, तू भी न बस्स...। देख, माल मसाला तो सब जगह
एक सा ही डले है, मैं तो अपनी जानूँ हूं कि जद से ब्याह के इस घर में आई हूँ, रोजी
रोटी की कसम है मुझे अगर मन्ने एक बार भी इस गड्डे के अलावा कहीं और मूता हो।"
मैंने अब तक जो दो चार घूँट भरे थे, सूद समेत टेबल पर उलट दिये और
डाक्टर की दिप दिप करती आँखें पता नहीं इस बात से खुश थीं कि झीणी ने उसे नीचा नहीं
दिखाया या इस बात से कि उसके बचपन का दोस्त शहर वाला होकर देसी चीजों को पचाने
की अपनी शक्ति खो बैठा है। मैं उठ रहा था और वो मेरा हाथ पकड़ कर बैठा रहा था, एक
जग और पियेंगे। बार बार कहता था कि झीणी ने उसकी बात का मान रखा है और सीक्रेट
फ़ार्मूला बता दिया है। "बकवास मत कर तू। आज माँ बाबू से मिले बिना ही वापिस
जा रहा हूँ, कह दियो उनसे कि एकदम से कोई जरूरी काम आ गया था।"
बाद का हाल पूछने पर गार्ड साहब ने इस वाकये का सबक ये बताया कि
गाँधी बाबा महान थे। उनके बताये तीन बंदर भी महान थे। न बुरा देखो, न बुरा सुनो और
न बुरा बोलो। मैंने यूँ ही पूछ लिया कि काम तो एक ही बंदर से चल सकता था जिसकी
मार्फ़त ये संदेश मिलता कि बुरा मत करो? ड्यूटी ऑफ़ किये काफ़ी देर हो चुकी थी, आज
सरकारी उचित दर के ठेके के सेवनदार बने हुये गार्ड साहब ने कहा, "इस सारी बात से
आपने कोई सबक नहीं सीखा। फ़ालतू के सवाल करने से सेहत को नुकसान पहुँच सकता है,
जैसे डाक्टर के सवाल से हुआ। महान लोगों ने जो कह दिया, चुपचाप से उसे मान लो और
मान नहीं सकते तो भी संकट के समय में उनके बोले डायलाग बोल दो। बातों का पालन उतना
जरूरी नहीं है जितना मौके-बेमौके पर उनका बोला जाना।
याद आ रही हैं ये सब बातें और लग रहा है कहीं मीडिया ने जरूर वो
क्लिपिंग डिस्टार्ट या एडिट कर दी होगी जिसमें एक गाल पर तमाचे के बाद गाँधीजी को
याद करते हुये फ़ौरन दूसरा गाल आगे बढ़ाया गया होगा.........।.......सरदारजी ने पद
संभालते ही जो टेक लगाई थी ’देहि शिवा वर मोहे इहै, शुभ करमन से कबहुँ न टरूँ’
बराबर पूरी कर रहे हैं। साझीदार के एक थप्पड़ लगते ही खुद फ़ोन लगाकर हालचाल पूछा,
इससे ज्यादा और क्या कर सकते हैं?........कसाब के 26\11 को तीन साल हो गये हैं,
सिल्वर जुबली पता नहीं कितने साल में मानी जाती है आजकल? कानून अपना काम करेगा
-yes, law will take its own course. .........जो हमसे टकरायेगा, चूर चूर हो
जायेगा।....... केजरीवाल तो लपेटे में आ ही गये थे, अब क्रेन बेदी, हो जाओ तैयार,
मुकदमेबाजी के लिये।............. रामदेव, बालकिशन, अलानो फ़लानों, यू आल डिज़र्व
दिस ट्रीटमेंट। सबकी फ़ाईलें तैयार हैं। समझते ही नहीं गाँधीजी के तीन बंदर वाला
इशारा...।.......झीणी बाई, तुझे सर्च करता हूँ फ़ेसबुक पर और दूसरी साईट्स पर,
हौंसला न छोड़ियो और जारी रहियो अपने कुटीर उद्योग में वैल्यू एडीशन करने में।
यू.पी. वालों के बाद हरियाणा पंजाब के दलितों पिछड़ों के घर भी सवारी तशरीफ़ ला सकती
है, कभी तो वोट यहाँ भी पड़ेंगे.......हो सकता है झीणी बाई के ठीये पर ही अबकी
बार.................... .......सरकार किसानों का भला करके ही मानेगी, एफ़ डी आई पर
पीछे नहीं हटना है जी.............जनता साली पागल कहीं की, समझती है नहीं कुछ और
बरगलाये में आ जाती है.................बिचौलियों को उनकी औकात दिखा देनी है इस
बार...............कनिमोझी छूट गई.....मालेगांव वाले छूट गये.....law will take its
course..............ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे, तोड़ेंगे दम मगर, तेरे पैर न
छोड़ेंगे...................और इशारा करो जी आप तो, गद्दी जायेगी तो
जाये.................तेरा तुझको अर्पण, क्या लागे मेरा............
इतनी बार नशा नशा लिखा गया है मुझसे कि गम और भी गलत होता जाता है:)) सरकार
राशन कार्ड में कैरोसीन के साथ इसका भी कोटा बाँध दे तो कैसा रहे? खाओ-पियो करो
आनंद और .....................
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंमन रे....तू काहे न धीर धरे :)
जवाब देंहटाएंहरि ॐ तत्सत!
जवाब देंहटाएंहमारे यहाँ आम भाषा में जब अचानक से कोई कुछ जोरदार बात सुन ले या जान ले तो तो उसके मुँह से निकलता है "बेटे मजा आ गया", वहीं बात आपने बता दी कि मैंने आज तक इस गड्डे के अलावा और कहीं जो मूता हो, जय दारू जो पिये वो शराबी जो ना पिये उसमें
जवाब देंहटाएंभांति-भांति के नशे हैं ! नानक देव से लेकर... खैर कोई लिमिट तो है नहीं।
जवाब देंहटाएंवैसे ये सीक्रेट वाला फॉर्मूला बड़ा फेमस लगता है :) किसी और ने भी बताया था एक बार।
आज तो नशे का विश्लेषण भी नशा दे गया।
जवाब देंहटाएंनशा आ गया... मैं भी बह गया उसी रौ में.. मज़ा आ गया संजय बाऊजी!प्रकाश मेहरा से लेकर सुनील दर्शन तक.. भूल गए फिल्म "मेला" में जॉनी लीवर झीणी के चचेरे भाई आमीर खान की पहली धार वाली पी लेटा है और घंटों झूमता रहता है...
जवाब देंहटाएंऔर बाबा नानक की कथा से लेकर सरदार मन्नू सिंह तक की व्यथा भी... मगर ये जो सुबह-सुबह नशा चढ़ा दिया है वो देखता हूँ उतरता कब है... क्योंकि कभी कभी पोस्ट में कही बात से परे भी नशा होता है और उस नशे में कोई मन की बात कह ले तो उसे सैल्यूट!!
हर नशे का रंग अलग है, व्यक्तित्व और अपनी अपनी ईमानदारी के साथ ...
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें !
वाह भाई वाह भाई वाह भाई वाह |
जवाब देंहटाएंसुन्दर सुन्दर सुन्दर भाई |
उत्तम उत्तम उत्तम भाई ||
हम्म, नशा तब से है जब कुछ नहीं था, और संभवतः तब तक हो जब कुछ न बचे।
जवाब देंहटाएंलिखने वाले को किताबों का नशा है जैसे (Template अच्छा है)। :)
और यदि लिखवाने का यही तरीका है, तो आपकी टिप्पणियाँ स्पैम में ही फंसी रहें(एक बेकार निकाल दी मैंने)।
अमीन!
वेल्यु एडिशन महत्वपूर्ण है. विगत दिनों भोपाल में भी एक खाना पकाने वाली बाई पकडे. उसका बनाया दाल बहुत अच्छा होता था.
जवाब देंहटाएंगूगल बाबा ने भी पी रखी है और उतर नहीं रही उनकी , बिना मोडरेसन के मोडरेसन लग गई है , अब उन्होंने आप की झीणी वाली पी रखी है , सरकारी या विदेशी पता नहीं | और ये ब्लोगिंग का नशा भी बड़ा ख़राब है सलिल जी की पोस्ट पर कहा था की जब तक मेरा ये नशा उतर नहीं जाता इससे दूर रहूंगी पर वो कहते है न जो नशा जल्द उतर जाये तो समझो ठीक से चढ़ी नहीं थी लीजिये फिर से काम धंधा छोड़ ब्लॉग पर आ गए | सरदार और सरकार दोनों को ही सत्ता का नशा कुछ ज्यादा ही चढ़ गई है , अब तो सरकार रूपी बाप के इज्जत ( साख ) के लिए आम जनता रूपी बेटी को मरना ही होगा , बिलकुल सरकारी ऑनर किलिंग |
जवाब देंहटाएंदेखो नशे में सारा जहाँ है
जवाब देंहटाएंप्रसिद्ध उपन्यासकार विमल मित्र ने एक बार लिखा था कि शराब के व्यसन को हर कोई बुरा कहता है लेकिन पुस्तक के व्यसन को कोई कुछ नहीं कहता। लेकिन ऐसा व्यसन जिससे घर-परिवार तबाह होते हों और प्रत्येक परिवार का मन दुखित होता हो ऐसे व्यसन उचित नहीं हैं। इससे व्यक्ति खोता ही है कुछ पाता नहीं है।
जवाब देंहटाएंनशा के कई रंग रूप हैं। अहम बात यह है कि नशा भटकाव की ओर ले जाता है कि सुधार की ओर। नशीली पोस्ट है आपकी।
जवाब देंहटाएंउफ!
जवाब देंहटाएंये नशा!
डुबो दिया नशे में इस पोस्ट ने
॥………………॥…॥….…॥
सबसे बड़ा नशा है-सत्ता। उसकी खुमारी इतनी ज़्यादा होती है कि सत्तानशीं ही सबसे अधिक बोलता हैं नशे के ख़िलाफ़। नशा तो बस "नाम" का ही अच्छा है। दिन-रात चढ़ा रहे और अनहद में ही विश्राम हो।
जवाब देंहटाएंनानक ने जो आध्यात्मिक सुरूर दिया, झीणी ने उसपर लौकिकता बरसा दी! :-)
जवाब देंहटाएंआदरणीय संजय जी,
जवाब देंहटाएंअरे रे रे .... आपने तो सभी प्रकार के नशे को एक तुला में तोल दिया....
'नशा' यदि विवेकशून्य कर दे त्याज्य है और यदि विवेक को 'आत्मोद्धार' या 'समाजकल्याण' में लगा दे तो वरेण्य है...
अब एक दूसरी बात...
यदि गांधी जी तीन की जगह एक बन्दर को ही प्यार करते तो कैसे बयाँ कर पाते कि 'क्या-क्या बुरा न करो'.
क्योंकि 'बुरा न करो' का बन्दर क्या करते हुए दिखाया जाता?... 'क्या हाथ बाँधे हुए तो नहीं?' या 'हाथ पर हाथ धरे हुए तो नहीं?'
यह बात अलग है कि आपके सभी कथा प्रकरण पसंद आए हैं...
पढ़ तो पूरी गए, लेकिन अटके रह गए प्रकाश मेहरा और उनके गीत पर, ...ये जीना भी कोई जीना है लल्लू.
जवाब देंहटाएंपूरी पोस्ट को छोड़ मैनें तो लेबल पढ़े, बिना कॉमा के --- कुटीर नशा पेंशन बैंक और मो सम कौन...:-)
जवाब देंहटाएंपूरी बोतल का नशा है गुरू..लेकिन एक बात खटक रही है कि पोस्ट में विचारों का कॉकटेल हो गया!
जवाब देंहटाएंवाह भई डाक्टर साब धन्य हो.
जवाब देंहटाएंस्मार्ट इन्डियन जी से सहमत !
जवाब देंहटाएंनशे के दर्शन की रोचक व्याख्या.वास्तव में जिदगी भी एक नशा ही तो है.
जवाब देंहटाएं:):):)
जवाब देंहटाएंwelcome bale bol bole to 'controooooooool'......
jo? kabhi-kabhi nahi bhi hota hai........tapchik.
pranam.
क्या नशा इस आलेख की तरह ही मजेदार होता है? बहुत बडिया। शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंसेल्यूट संजय .... दिअर आज तो मस्त कर दिया...
जवाब देंहटाएंअब तक पढ़ते आयें है 'सब कुछ ब्रह्मं है' ....................अब लगता है 'सब नशा ही नशा है'............................ इस झीणी का सम्बन्ध कबीर बाबा की झीणी चदरिया से तो नहीं ही है ....................
जवाब देंहटाएं@कनिमोझी छूट गई.....मालेगांव वाले छूट गये. >>>>>>>> पर असीमानंद और प्रज्ञा की रोज ठुकाई-भक्ति होती है, उनका टुटा-फुटा रोबडा दिखा था अभी नेट पर कहीं उनको भी गलत नशा चढ़ गया था राष्ट्र-भक्ति का
"सिर्फ़ लिंक बिखेरकर जाने वाले महानुभाव कृपया अपना समय बर्बाद न करें। जितनी देर में आप बहुत अच्छे, शानदार लेख, प्रस्तुति जैसी टिप्पणी यहाँ पेस्ट करेंगे उतना समय किसी और गुणग्राहक पर लुटायें, आपकी साईट पर विज़िट्स और कमेंट्स बढ़ने के ज्यादा चांस होंगे।"...
जवाब देंहटाएंओह, ये टिप्पणी तो मैंने पहले कभी पढ़ी ही नहीं थी :-)
mast mast mast...
जवाब देंहटाएंjai baba banaras....
मंटो की टोबा टेक सिंह की याद दिला दी, संजय भाई ...'औपड़ दी गड-गड दी अनैक्स दी बेध्याना दी मूंग दी दाल ऑफ दी टोबा टेक सिंह एंड पाकिस्तान ...'बेसुध ही कर दिया पोस्ट ने!!
जवाब देंहटाएंबड़े दिनों बाद नशे में आए हैं।
जवाब देंहटाएंnashaa puraan..........:-)
जवाब देंहटाएंबेहतरीन पोस्ट के लिए धन्यवाद । मेरे नए पोस्ट पर आपका आमंत्रण है । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंnasha sharab me hota to naachti botal..sharab me nasha hai hi kahan...hamne sadiyon pahle surakkshit aaur asurakshit ke beech ek lakshman rekha kheench dee the...bhojan ka nasha...seema se bahar to apach....daulat ka nasha...ek seema se bahar to kalah ka, pariwarik bibadon ka karan...santanonpatti ka nasha..seema se aage badhali me tabdeel...jahar antibenam bhee..marak bhi.....prem basna har jagah ek seema hai..uske bahar sab galat...roka to sirf isliye kee bibhajan rekha intni sukshm hai jiska bhaan sabko nahi ho paata. lekin bibhajan rekha samajh aa jaaye to kahin koi khatra nahin..ati sarvatra barjyet....kisi baat ko kahne kee aapki shaili mujhe behad pasan hai..sadar pranam aaur badhayee ke sath
जवाब देंहटाएंचलिये बाकी सब तो सुधर ही गया है, अब जरा इन शराबियों की भी खबर ली जाये!
जवाब देंहटाएं@"डाक्टर, तू भी न बस्स...।
जवाब देंहटाएंकती रांध काट दी, कर दिया कळी म्है पाणी :)
नशे पर भी होश में? बहुत ही खूब!!!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया बात आप सिखाय. फालतू का सवाल नहीं, वरना ...............
जवाब देंहटाएंइंसान नशे के बिना ज़िंदा नहीं रह सकता भाईजान ! संत का अपना नशा है और कुटिल का अपना.
जवाब देंहटाएंगुलाब की पंखुड़ियों की खुशबू का नशा कितनों को लगा है अभी तक .....मगर कसम झीणी की उसका टपकाया मंद (आसुत मद्य) हमारे यहाँ खूब चलेगा ....
Dhuaadhaar lekhan .
जवाब देंहटाएंआपके पोस्ट पर आना सार्थक हुआ । बहुत ही अच्छी प्रस्तुति । मेर नए पोस्ट "उपेंद्र नाथ अश्क" पर आपकी सादर उपस्थिति प्रार्थनीय है । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंनशे की बातों से भी नशा आता है.
जवाब देंहटाएंसांपला में आपसे मिल कर बहुत ही खुशी हुई.
आपकी बातों का नशा इस बार मेरे ब्लॉग पर अधूरा सा है संजय भाई.
आपकी पोस्ट और उस पर हुई टिप्पणियों का नशा अदभुत है.
आगामी नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ.
नव वर्ष की शुभकामनाएं. कोयम्बतूर सी...
जवाब देंहटाएंआपको और परिवारजनों को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ.
जवाब देंहटाएंनशे में कौन नहीं मुझको ये बता दो जरा???
जवाब देंहटाएंआलेख मजेदार है
जवाब देंहटाएंनववर्ष की आपको बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनाएँ.
शुभकामनओं के साथ
संजय भास्कर
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
संजय भाई,इत्थे ही हो.
जवाब देंहटाएंनशे की रौ में कहाँ से कहाँ ले गए.
ऊपर गुरु नानक देव जी और नीचे झीणी.
कनिमोझी,कसाब,अन्ना,केजरीवाल,किरण बेदी,रामदेव,बालकिशन,
सभी एक लाइन में खड़े कर दिए.
जय हो नशा देवता.
पोस्ट के नशॆ का रंग भी जुदा है...जबरदस्त!!!
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंदुबारा आया हूँ संजय भाई ...
दीपक बाबा के आश्रम से आ रहा हूँ ...इसलिए गलतियों की क्षमा हो ..फिलहाल बाबा के दुःख में मज़ा लेते हैं ...
वादे, कसमें, रिश्ते, नाते झूठ कसम से, हैं साकी
बस ये मय और प्याला ही एक डोर बनाये रहता है !
और पिला दे साकी मुझको, मयखाने में आये हैं !
मदहोशी में दिल बाबा का , दर्द भुलाये रहता है !
तेरी अदा, जो क़त्ल ए गैरत करती रहे ज़माने में
पता नहीं कैसे बाबा, इस दिल को बचाए रहता है !
:)
हटाएंश्रीमान जी आपकी याद आ रही है.
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट आज ही जारी की है.
आप आजकल हैं कहाँ ?
आपकी नई पोस्ट कब आ रही है?
नमस्कार राकेश साहब,
हटाएंआपने याद किया तो खुद की पीठ थपथपा रहा हूँ, जल्दी ही हाजिर होता हूँ।
संजय भाई, लगता है नशा कुछ ज्यादा हो गया जो उतरने का नाम ही नहीं ले रहा है, हा हा हा हा हा..........
जवाब देंहटाएंलगता है सच में बुढ़्ढे हो गए हैं..वरना इतना अंतराल पोस्ट में.....ब्रांच का असर आ गयग है क्या बड़े भाई....अगर ये हाल रहा तो तो अपना तो बेड़ा ही गर्क हो जाएगा....अपने जैसे महाआलसी के लिए तो मुश्किल हो जाएगी....जरा जल्दी जल्दी पहले की तरह आते रहिए..स्पीड सौ मीटर वाले रेसर की न सही पर कम से कम 500 मीटर वाली तो बना कर रखिए.....मैं तो खैर मैराथन का रेसर हूं सो मुझ पर पलट कर इल्जाम न लगाइएगा....
जवाब देंहटाएंबेफ़िक्र रहो रोहित प्यारे, कोई इल्जाम नहीं लगायेंगे:)
हटाएंनशा तो भाई नशा है जो आप की पोस्ट में भी भरपूर छलक रहा है। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंक्या आपकी उत्कृष्ट-प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंशुक्रवारीय चर्चामंच
की कुंडली में लिपटी पड़ी है ??
charchamanch.blogspot.com
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति आज charchamanch.blogspot.com par है |
हटाएंऐ कुटिल जी...
जवाब देंहटाएंकुछ ज्यादा ही देर नहीं हो गयी का अब...???
ज्यादा खुशामद नहीं करेंगे हम ..कहे देते हैं...
अब फटा-फट पोस्ट डालिए...
हाँ नहीं तो..!!
खुशामद तो जी हम न करें और न करवायें। कंप्यूटर फ़ार्मेटिंग हुई और हमारा सब रॉ-मैटीरियल खो गया है। आदेश का पालन होगा जी।
हटाएंआपका पोस्ट बहुत अच्छा लगा । मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद । .
जवाब देंहटाएंआपको हुआ क्या है? कुछ लेते क्यों नहीं? मेरा मतलब है कुछ लिखते क्यों नहीं!! हांय?
जवाब देंहटाएं