शुरुआती नौकरी बैंक के प्रशासनिक कार्यालय में साड्डी दिल्ली से दूर एक शहर में थी| ट्रांसफर अप्लाई करने के लिए तीन साल की नौकरी के बाद ही एलिजिबिलिटी का नियम था इसलिए शुरू के तीन साल बहुत बेफिक्री से कटे| जब तीन साल पूरे होने को हुए तो सभी अपने अपने गृहनगर में जाने की फिराक में लग गए| एक मित्र तो इतने व्यवस्थित निकले कि स्थानान्तरण आवेदन करने से पहले बाकायदा अवकाश लेकर अपने घर के आसपास की कुछ ब्रांच देखकर आये| मुझे बहुत हैरानी हुई, पूछने पर बताया कि ये देखने गया था कि वहाँ काम कम है या ज्यादा और उससे भी ज्यादा जरूरी ये जानना था कि वहाँ स्टाफ कैसा है? मेरे सवाल कहाँ खत्म होते थे? मैंने पूछा कि सब दो हाथ, दो पैर वाले ही मिले या कोई ज्यादा हाथ पैर वाले भी थे? मित्र बुरा मान गए और ऐसे में उनका तकिया कलाम रहता था, "तू रहने दे यार, तू नहीं समझेगा|"
इन मामलों में मैं वाकई बहुत नासमझ और अव्यवस्थित बन्दा रहा, यही समझता रहा कि जहां भी जायेंगे अपने जैसे ही तो मिलेंगे, वही थोड़े से फ़रिश्ते और थोड़े से शैतान टाईप| हमने इस काम के लिए कोई छुट्टी नहीं ली बल्कि ये पता करवाया कि दिल्ली में वैकेंसी है या नहीं| अधिकतर जगह की तरह जवाब 'ना' में ही मिला| कालेज टाईम से ही इतनी बार न न न न सुन चुके थे कि कहीं से भी कोई हाँ मिलती थी तो खुद को चिकोटी काटके देखते थे कि ख़्वाब तो नहीं देख रहे :) दिल्ली से कुछ दूर एक ब्रांच का पता चला कि वहाँ वैकेंसी है लेकिन सूत्र ने साथ ही आगाह कर दिया कि ब्रांच सेफ नहीं है, तीन चार स्टाफ सस्पेंड, डिसमिस हो चुके हैं इसलिए सोच समझकर रिक्वेस्ट लगाना, ऐसा न हो कि बाद में हमें दोष दो कि पहले बताया नहीं था| एल्लो जी, हमारा डेस्टिनेशन फाईनल हो गया और वो भी बिना ज्यादा दिमाग खपाए, बिना छुट्टी खर्च किये| हमने अपना आवेदन पत्र फट से भरकर दे दिया| समय आने पर उसी ब्रांच के आदेश भी आ गए और हम भी पहुँच गए वहाँ| जाते ही स्टाफ की पहली प्रतिक्रिया थी 'आ गई एक और गैया गार में' जो ब्लोगिंग में आने पर मेंरी पहली पोस्ट का शीर्षक बनी|
अपने को उस ब्रांच में आने पर जो धकधक थी वो सिर्फ इस बात पर थी कि अभी तक किसी ब्रांच में काम का अनुभव नहीं था| प्रशासनिक कार्यालय में काम करने और ब्रांच में काम करने में बहुत अंतर रहता है, फाईनेंशियल ट्रांजैक्शंस और पब्लिक डीलिंग, ये दो बड़े अंतर हैं| बड़ी ब्रांच थी तो पहले दिन तो सबसे हाथ मिलाने भर का परिचय हो सका और हल्की फुल्की औपचारिक बातचीत|
वो कैश विभाग में कार्यरत था, आया और बहुत प्रेम से मिला| देखने में बहुत खूबसूरत, आँखों पर नजर का चश्मा लेकिन उसके चेहरे पर खूब जमता हुआ| ब्रांच का अनुभव न होने की बात पर उसने बड़ी बेतकल्लुफी से विश्वास दिलाया कि कोई दिक्कत नहीं आएगी| कहने लगा, "हर सीट पर काम कर चुका हूँ, अभी तो कैश में ड्यूटी है लेकिन घबराना मत, जब भी मौक़ा लगेगा मैं आकर देखता रहूँगा|" बाकी लोग जहां आपस में हंसी मजाक कर रहे थे, शायद मेरे बारे में भी, वो सिर्फ इतना कहकर कैश में वापिस चला गया| उसके चेहरे की निश्चलता और सहयोग के आश्वासन से अपना कार्यानुभव न होने का भय बहुत हद तक दूर हो गया| मदद तो खैर सबने की, आखिर एक अतिरिक्त स्टाफ आने से कुछ काम तो सबका हल्का हो ही रहा था| वो भी दिन में एक दो बार मेरी सीट तक आता, हालचाल पूछता और फिर कैश में लौट जाता| ये जरूर पूछता कि कोई दिक्कत तो नहीं आ रही है और साथ में अपनी कैश में होने की मजबूरी थोड़ी खिसियानी सी हंसी हंसकर जाहिर कर देता| अपनी गड्डी धीरे धीरे चल पड़ी| चार छह दिन बीतते न बीतते समझ आने लगा कि कैश के बाहर के काम में उसकी महारत नहीं थी बल्कि कैश में भी उसे इसीलिये बैठाया गया था कि उधर जो जमा घटा होनी है वो शाम तक पता चल ही जानी है और उसके लिए वो खुद ही जिम्मेदार होगा, दुसरे नहीं| धीरे धीरे उसके बारे में और भी मालूम चलता रहा मसलन अपने पिताजी की जगह बैंक में भर्ती हुआ है और कुछ व्यक्तिगत जानकारियाँ भी|
उसके काम में माहिर न होने से मेरे मन में उसके लिए कोई हीनता का भाव नहीं आया, सब एक जैसे समझदार, कार्यपटु, वाकपटु नहीं हो सकते| बाकी सबसे मैं पीछे था और वो भी, मैं हंसा करता कि हम दोनों एक लेवल के हैं| पहले दिन मुझे जो मानसिक, नैतिक सपोर्ट उसने दी थी उसका मोल मेरे लिए कम नहीं था|
एक बात मैंने और गौर की, पूरी ब्रांच में सबसे ज्यादा मखौल उसीका उडाया जाता था| बैंक की नौकरी के लायक नहीं है, चुंगी महकमे में ठीक रहता, इतने सालों से कैश में काम कर रहा है और कैश नहीं संभालना आता के अलावा एक डायलोग और बहुत बोला जाता था 'इतने साल हो गए शादी हुए और ......' और वो चुपचाप मुस्कुराता रहता था, कोई जवाब नहीं देता था| एक दिन मेरी ही कहासुनी हुई, उसके बाद ये आख़िरी वाला डायलोग बंद हुआ|
एक दिन एक स्टाफ सदस्य ने खाना खाते समय एक और खुलासा किया कि पिछले रविवार को उसने अपनी आंखों से देखा है कि दिल्ली बस अड्डे के पास इसकी घरवाली इसका हाथ पकड़कर सड़क पार करवा रही थी| सब हो हो करके हंस दिए और उसकी खूब लानत मलानत करने लगे, 'सुसरे ने नाम डुबो के धर दिया', 'लुगाई इसका हाथ पकडके सड़क पार करवा रही थी', 'शर्म भी नहीं आंदी इसनै', 'और ब्याह कर दिल्ली की छोरी से, न्यूए नचाओगी तन्ने सारी उमर' वगैरह वगैरह और वो वैसे ही खिसियाना सा मुस्कुराता रहा और रोटी खाता रहा|
बहुत छोटा था, तबसे मैं गांधारी और धृतराष्ट्र के बारे में सोचता था कि क्या नेत्रहीन पति का साथ निभाने के लिए गांधारी ने अपनी आँखों पर पट्टी बांधकर सही किया था? अजब झमेला है, उसने खुद को नेत्रहीन कर लिया तो मुझे ये अस्वाभाविक लगा और एक स्त्री अपने पति का हाथ पकड़कर उसे सड़क पार करवा रही है तो ये सब उसे गलत मान रहे हैं? तब तक शायद मुझे भी ये सब देखने सुनने की आदत हो गई थी या फिर हो सकता है मैं ये समझने लगा था कि दुनिया ऐसी ही रहेगी और अब ऐसी बातों को इग्नोर करने लगा था| इतना जरूर हुआ कि उसका मखौल बनाने का एक और वाकया सबको मिल गया था|
उस दिन शनिवार था, सुबह बैंक पहुँचते ही वो कहने लगा, "भाई, आज मेरे को साथ लेकर जइयो दिल्ली| तेरी भाभी अपने मायके गई है, मुझे उसको लेकर आना है|" मुझे भी मौक़ा मिल गया, "तू उसे लेकर आएगा कि वो तुझे लेकर आयेगी?" हंस दिया वो, "बात तो एक ही है पर कहा तो ये ही जाएगा न?"
दोपहर में हमने दिल्ली के लिए बस पकड़ी| वो बस स्टैंड पर बनी कैंटीन से ब्रेड पकौड़े और कोल्ड ड्रिंक्स ले आया था| रास्ते में उसने अपनी ससुराल का एड्रेस बताते हुए थोड़ा सकुचाते हुए कहा, "मुझे ऐसी जगह उतरवा दियो भाई, जहां से सड़क पार न करनी पड़े|" अब मैं फंसा, कहीं भी उतरेगा, सड़क तो उसे पार करनी ही पड़नी थी| आखिरकार खाए हुए नमक का हक अदा करने को मैं भी उसके साथ उतर गया, हालांकि मुझे साथ उतरते देख उसने मुझे रोकने की बहुत कोशिश भी की| मैंने उसको सड़क पार करवाई और वो जैसे इतनी सी बात पर बहुत ज्यादा अहसान मानने लगा| मैं भी ऐसा ही कुटिल कि अपनी मदद की कीमत उससे वसूलने के लिए पूछ बैठा, "सड़क पार करने में तेरे को क्या तकलीफ होती है?" वो हरदम मुस्कुराते रहने वाला चेहरा अजीब सा हो गया, "मेरी उम्र उस समय शायद पांच या छह साल थी, उस दिन मेरी माँ और मेरे चाचा वगैरह परिवार के बहुत से लोगों के साथ मैं भी दिल्ली आया था| ये जो पीछे बड़ा वाला चौराहा गया है न, यहीं सड़क पर मेरे पिताजी की लाश रखी थी| सुबह ड्यूटी करने घर से आये थे और सड़क पार करते समय कोई बस उन्हें कुचल गई थी| जब भी दिल्ली में सड़क पार करने का मौक़ा आता है तो भाई, मेरी आँखों के सामने वो वाला सीन आ जाता है| फिर सब धुंधला दिखने लगता है मुझे|"
साफ़ लग रहा था कि उस समय मेरा चेहरा भी उसे धुंधला दिख रहा होगा|
दूसरों के द्वारा उसका मजाक बनाए जाने पर और उसके चुप रहने पर मुझे बहुत बार गुस्सा आता था, उस दिन और भी ज्यादा आया कि क्यों चुपचाप सुनता रहता था वो सबकी बातें? क्यों नहीं ये बात सबको बता दी थी
बेवकूफ आदमी ने? लेकिन अब ज्यूं ज्यूं अपनी उम्र बढ़ रही है, समझ आ रहा है कि अपने दुःख इस तरह सबके सामने रोने से ज्यादा हिम्मत का काम है, सहन करना और उससे भी ज्यादा हिम्मत का काम है मुस्कुराते रहना|
कई महीने पहले की बात है, एक अति उत्साही युवा इंजीनियर से मुलाक़ात हुई थी और वो किसी मशीन की बात कर रहा था जोकि फंक्शंस के मामले में आज तक की सबसे जटिल मशीन है| मैं चाहकर भी उससे सहमत नहीं हो पा रहा था, मुझे इंसान सबसे जटिल मशीन लगता है| एक से बढ़कर एक जटिल चरित्र, क्या ख्याल है आपका?
सलाम, परनाम आपको,
जवाब देंहटाएंजटिल से जटिल बात आसानी से कैसे कहनी चाहिए ये आप जैसे सरल इन्सान के ही वश की बात है..दूर से बैठ कर टिप्पणी करना सबसे आसान काम है..
हालाँकि इस समय हम भी यही कर रहे हैं |
वैसे तो मैंने आज तक कभी भी, किसी की, कोई भी कमजोरी का मज़ाक नहीं उड़ाया है, लेकिन आज के बाद और ज्यादा सतर्क रहूँगी..
इतने सरल-जटिल इन्सान कैसे हैं आप ? :)
हाँ नहीं तो..!!
अकेला मैं ही क्यों, हम सभी सरल-जटिल का मिक्स्चर ही तो हैं|आपकी भावना काबिले तारीफ़ है|
हटाएंहरि ॐ!
जवाब देंहटाएंहरि ॐ तत्सत|
हटाएंइंसान सबसे जटिल मशीन है ही, संजय जी्.
जवाब देंहटाएंकाजल जी और आपसे सहमति !
हटाएंसहमति के लिए बहुत बहुत आभार काजल भाई, अली साहब|
हटाएंइंसान सबसे जटिल मशीन है , इतना जटिल की खुद अपने हाथ से अपनी मौत का सामान बनाता भी है और खुद पर ही उसे आजमाता भी है । प्रशासनिक अनुभव के साथ सहकर्मी के जीवन के निजि जीवन के अनुभव को बांटते हुए आपने आज दिल्ली मुंबई जैसे शहरों में रहने वाले लगभग हर परिवार का दर्द उभार दिया । मैं आजकल मोटर वाहन दुर्घटना न्यायाधिकरण में ही नियुक्त हूं देखता हूं तो अफ़सोस होता है कि हादसों का शिकार भी इंसान ही और शिकारी भी । सच इंसान सबसे जटिल मशीन है ।
जवाब देंहटाएंMACT तो अपने आप में ही एक तंत्र है अजय भाई, जाने कितने किस्से कहानियां आपकी आँखों के आगे हो गुजरते होंगे|
हटाएंसच कहा, सैकड़ों पुस्तके लिखने के लिए यह विषय काफी है !
जवाब देंहटाएंइंसान से जटिल कोई नहीं ,
सही फरमाते हैं आप बड़े भाई|
हटाएंमनुष्य ही है सबसे जटिल.
जवाब देंहटाएंमुझे भी ऐसा ही लगता है निशांत जी|
हटाएंpranaam ..
जवाब देंहटाएंसादर प्रणाम..
हटाएंजो सवाल हल न हो, समय-समय पर वही जुगाली के काम आता है.
जवाब देंहटाएंजब तक हल न हो जाए या हजम न हो जाए|
हटाएंहूँ तो यह राज था ..एक कंडीशंड रिफ्लेक्स !
जवाब देंहटाएंजी हाँ सर|
हटाएंहमें तो मशीन की आवाज से उसके बारे में पता चल जाता है, आदमी को समझना बहुत कठिन। और उससे भी कठिन है, बिना किसी को जाने उसका मजाक उड़ाना।
जवाब देंहटाएंबिना किसी को जाने उसका मजाक उड़ाना - ये सबसे सरल माना जाता है प्रवीण जी|
हटाएंपढते रहो संजय बाऊ उपर वाले की बनाई जिन्द्गानियाँ/कहानियाँ......
जवाब देंहटाएंबहुत हैं.
कहानियों की तो कमी नहीं बाबाजी लेकिन अपनी तो कमी है:)
हटाएंइन्सान जटिल नहीं होता अगर वो इन्सान हैं तो .
जवाब देंहटाएंसंस्मरण ने बहुत कुछ समझा दिया , एक बार तो लगा शायद व्यक्ति को दिखने में कुछ समस्या होगी
अपनी मज़बूरी क़ोई दूसरो पर महज इस लिये नहीं जाहिर करता हैं क्युकी अपनी मज़बूरी एक तरह से अपनी कमजोरी होती हैं और अगर हमारी कमजोरी किसी को पता चल जाये तो फिर हमारा फयदा कभी भी उठाया जा सकता अपने फायदे के लिये
हमे अपनी इमोशनल सेल्फ को कभी रैशनल सेल्फ पर हावी नहीं होने देना चाहिये
बिल्कुल सहमत हु | लोग तो गिद्ध दृष्टि लगाये बैठे होते है की आप की कमजोरी, मजबूरी पता चले और वो उसका फायदा उठाये |
हटाएंये इंसान शब्द भी धर्मनिरपेक्षता की तरह हो गया है:)
हटाएंमेरी राय में हावी किसी को भी किसी पर नहीं होने देना चाहिए, इमोशंस और रेशनेलिटी में संतुलन बना सकें तो वो सबसे अच्छा|
अपनी कमजोरियों को एक सर्टिफिकेट की तरह पेश किये जाने के मैं भी विरुद्ध हूँ, लेकिन उन्हें जानकर अगर उनपर overcome किया जा सके तो उससे बेहतर और कुछ नहीं|
अपने दुःख इस तरह सबके सामने रोने से ज्यादा हिम्मत का काम है, सहन करना और उससे भी ज्यादा हिम्मत का काम है मुस्कुराते रहना|
जवाब देंहटाएंबहुत बड़ी बात कह दी अपने संजय जी और शायद यही सच भी है.....
एक नया सबक जिन्दगी के लिए...
आपका बहुत बहुत आभार ड़ा. गुप्ता|
हटाएंतो आप कुटिल ही नहीं, जटिल भी हैं। लोगों को समझने और समझाने का यह अंदाज भी अच्छा है।
जवाब देंहटाएंबिलकुल हैंगे जी, कुटिल भी और जटिल भी| और ये स्वाभाविक ही है|
हटाएं@ सब एक जैसे समझदार, कार्यपटु, वाकपटु नहीं हो सकते |
जवाब देंहटाएंचलो अच्छा है किसी को तो ये बात पता है |
@ "तू रहने दे यार, तू नहीं समझेगा|"
जी ये तो सभी पतियों का " पालतू " डायलाग है जब पत्नी की समझदारी वाली बात का जवाब ना सूझे और उसे बस टरकाना हो " तुम नहीं समझोगी " बस ख़त्म हो गई वही, सारी बात |
जटिल इन्सान नहीं होता है जटिल बस उसका दिमाग होता है | एक बच्चा भी इन्सान है वो तो जटिल नहीं होता है क्यों ? कितना सरल होता है क्योकि उसके पास एक बड़ा सा दिल होता है जो बड़ा सरल होता है और एक छोटा सा जटिल दिमाग होता है जैसे जैसे वो बड़ा होता है वो जटिल दिमाग भी बड़ा होता जाता है और सरल सा दिल छोटा होता जाता है और लोग गलतफहमी में आ जाते है की इन्सान जटिल होता है |
@ सब एक जैसे...
हटाएंबात पूरी यहाँ हो रही है 'बाकी सबसे मैं पीछे था और वो भी, मैं हंसा करता कि हम दोनों एक लेवल के हैं' इतना तो अपने को पता है की सब कुछ नहीं पता है:)
@ इसका मतलब हम टरकाए ही जाते रहे एक पत्नी की तरह सबके द्वारा, हमेशा ही:)
अब बच्चों को इस कैटेगरी से exclude करके ये गलतफहमी पाली जायेगी|
आपकी पोस्ट को हमने आज की पोस्ट चर्चा का एक हिस्सा बनाया है , कुछ आपकी पढी , कुछ अपनी कही , पाठकों तक इसे पहुंचाने का ये एक प्रयास भर है , आइए आप भी देखिए और पहुंचिए कुछ और खूबसूरत पोस्टों तक , टिप्पणी पर क्लिक करें और देखें
जवाब देंहटाएंबहुत मेहनत करते हो अजय भाई आप लोग:) शुक्रिया बहुत बहुत|
हटाएंव्यक्ति के जीवन में घटी एक घटना या दुर्घटना उसके जीवन को किस कदर प्रभावित करती है- ये हम जब तक सामना नहीं हो ,समझ नहीं सकते ....
जवाब देंहटाएंकिसी को भी अपने नज़रिये से देखकर कुछ कहने से पहले उसके नजरिये से भी देख लेना चाहिये..
ऐसी घटनाएं हमारे संस्मरणों का हिस्सा बन जाती ,है जबकि किसी के जीवन का हिस्सा होती हैं...
सबसे हिम्मत का काम है मुस्कुराते रहना....काश कि सब कर पाते ऐसा.........
जीवन का गणित सरल सांख्यिकी नहीं हैं, दुरूह रासयाकिन क्रिया है जिसमे बहुतेरे उत्प्रेरक हैं। कब कहाँ कौन कितना लगे, हिसाब कौन रख सका है?
जवाब देंहटाएंरसायनिक*
हटाएंवाह! गलती भी क्या तोड़-मरोड़ हुई है :(
:)
हटाएंसंस्मरण तो सबने लिखे होंगे मगर यह अंदाज-ए-बयां कुछ और ही है....गज़ब!
जवाब देंहटाएंअब तो अपनी लिस्ट में शामिल कर लो कविवर:)
हटाएंलिस्ट! लो जी, कल्लो बात। जो दिल में कब्जा जमाये बैठा है वह कुण्डी खड़खड़ा रहा है!!:)
हटाएंबात को बगैर जाने समझे हंसना , ज़िन्दगी का सरलीकरण भी है और मूर्खता तो खैर है ही !
जवाब देंहटाएंबेहद भावुक कर देने वाला प्रसंग है... अक्सर ऐसा होता है हम किसी घटना विशेष को लेकर किसी का मजाक बनाते हैं लेकिन घटना का कारन नहीं जानने की कोशिश करते. वैसे जो मजाक बनाते हैं उन्हें कारन जानने की जरुरत ही नहीं होती...
जवाब देंहटाएंवैसे कॉलेज में न न न सुनने की आदत पर में आपके मजे लेने वाला था लेकिन आपकी इस पोस्ट ने अंत में बेहद भावुक कर दिया. वैसे फिर भी कितनी लड़कियों से न न न सुना आपने...
लोकेन्द्र जी, मजे की कोई कमी नहीं है, जब मर्जी ले लेना| हम 'न' नहीं कहते:)
हटाएंहा हा हा....
हटाएंजब भी दिल्ली में सड़क पार करने का मौक़ा आता है तो भाई, मेरी आँखों के सामने वो वाला सीन आ जाता है| फिर सब धुंधला दिखने लगता है मुझे|"
जवाब देंहटाएंमुझे इंसान सबसे जटिल मशीन लगता है| एक से बढ़कर एक जटिल चरित्र, क्या ख्याल है आपका?
बहुत खुबसूरत वाकया जिंदगी को समझाने समझने का .....
इसके बाद कुछ भी नहीं और सब कुछ
दिल्ली की सड़कें वाकई आंखों के सामने सब गड्डमगड्ड कर देती हैं सिंह साहब, जब मेट्रो से बैंक जाता हूँ तो मेट्रो स्टेशन से मेरे बैंक तक जाने में पन्द्रह से पच्चीस मिनट लगते हैं जिनमें से पांच से पन्द्रह मिनट सिर्फ एक सड़क पार करने का औसत समय है:)
हटाएंबिल्कुल सहमत हु
जवाब देंहटाएंसहमति के लिए आभार संजय|
हटाएंअपने दुःख को सहन करना और मुस्कराना बड़े जिगर का काम है ...
जवाब देंहटाएंदूसरों पर तंज़ कसना और खिलखिलाना सबसे आसान ...
बात ही बात में कितनी पते की बात कही आपने !
आपको बात पते की लगी, शुक्रिया वाणी जी|
हटाएंओह !
जवाब देंहटाएंलेकिन अब ज्यूं ज्यूं अपनी उम्र बढ़ रही है, समझ आ रहा है कि अपने दुःख इस तरह सबके सामने रोने से ज्यादा हिम्मत का काम है, सहन करना और उससे भी ज्यादा हिम्मत का काम है मुस्कुराते रहना| ,,,bahut hee gambheer baaton ke kitni sahjta se kah dete hain aap..beech beech me aapke tarkash se nikle tooneron jo nukeele hote hain ..aatma ko jhakjhor dete hai...to kabhi tarkash ke hasya ke baan jo gudguda dete hai..hasate hue jindagi ke kadwe sach ka jahar bhee pilane ke maharat aapko hasil hai..behad shandaar
जवाब देंहटाएंडाक्टर साहब, ऐसी भी तीरंदाज नहीं हैं हम:) लेकिन आपके आने से और ऐसा कहने से यकीनन अपना मान बढ़ जाता है| आभारी हूं|
हटाएंवस्तुतः दूसरे की पीड़ाओं से मजे लेने की मंशाओं नें व्यक्ति को जटिल बनाया है।
जवाब देंहटाएंकिसी की दुविधा नहीं जानते और सहज ही तंज कसते है, बुरा तो है ही, किन्तु लोग में प्रायः जान जाने के बाद भी दूसरों की समस्याओं को मजाक बनाना जारी रखते है। जटिलता मृत संवेदनाओं के तंतुओं से बुना जाला होता है।
'जटिलता मृत संवेदनाओं के तंतुओं से बुना जाला होता है।' गज़ब की बात कही है आपने सुज्ञ जी, इतना स्पष्ट नहीं सोच कह पा रहा था मैं|
हटाएंआभार संजय जी, यह स्पष्ट कहन, आपके विचारबीजों से प्रेरणा पाकर ही परवान चढ़े है।
हटाएंउपरी टि्प्पणी में टंकन-दोष रह गया था……
किन्तु लोग में प्रायः जान जाने के बाद भी दूसरों की समस्याओं को मजाक बनाना जारी रखते है।
को…
किन्तु लोग प्रायः जान जाने के बाद भी दूसरों की समस्याओं को मजाक बनाना जारी रखते है।
पढ़ें। :)
क्या बात कही
हटाएंReally man is the most complex creature...nice post.
जवाब देंहटाएंthanks Gopal ji.
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंkewal hajari ....no comment...
जवाब देंहटाएंjai baba banaras....
kewal thans...no problem Kaushal ji:)
हटाएंpichla post hame "......." nahi aaya ... kya 'samajh'......
जवाब देंहटाएंso, pahla tip jo 'anshumalaji' ne kiya.....wahin apni 'present sir' lagaya......take, aap mugalte me rahen ke aapka 'namrashi ..."husiyar" hai.....
is post ka 'jar' hamare kai sans-mar-no se jura hai. jahir hai ke
hum bahut kuch sochte hue bhi kuch na likh paye....jis kritya ki
aapne charcha ki o nakabile bardast hota hai....aur aisa is abhasi
jagat me bhi 'kabhi bhi kisi se bhi kisi ke liye bhi' hota hai...
ganga kachar se dilli darbar tak aap apne 'namrashi' pooch/ooch rahe the.....aapka chota "veer" apna naam bara nahi kar sakta, janta hai isai liye aap aur aapke katar me khare naamon ke sath
'takna' chahta hai.........
ghar se bahar bhi sneh dikhane ke liye bahute dhanyavad.
pranam.
oho, mugaalta mitaane ka dhab-bad:)
हटाएंsneh hai to ghar baahar sab jagah hi hoga na, mast raha jaaye:)
वैसे तो पूरा लेख ही शानदार है लेकिन जो लाईने मुझे पसंद आई :-
जवाब देंहटाएं"कालेज टाईम से ही इतनी बार न न न न सुन चुके थे कि कहीं से भी कोई हाँ मिलती थी तो खुद को चिकोटी काटके देखते थे कि ख़्वाब तो नहीं देख रहे :)"
हा हा हा हा हा , चोट एसी लगी कि कसक हो जाती यदि हाँ मिल जाए हैं , कभी कभी किसी चीज कि अनुभवहीनता एक खास प्रकार के चेतना को ही समाप्त कर देती फिर चिकोटी काट के एहसास करवाना होता है अपने आप को :)
वोई तो कमाल भाई, चेतना ही समाप्त हो गई थी हमारी| वैसे कुछ देर से आये हो अपने संपर्क में, शुरू में आये होते तो देखते कि कभी किसी और की कोई कहानी या किस्सा भी लिख देता था तो यार लोग कैसे मेरे ही सर मढ देते थे| अब तो थोडा सुधर गए हैं लोगबाग या फिर आना ही बंद कर चुके हैं:)
हटाएंजो कुछ भी मिला है उसे मुट्ठी में छुपालो,
जवाब देंहटाएंगम की दौलत को सिक्के की तरह उछाला नही करते!
क्या बात कही है कुश भाई, गम,दौलत, सिक्का| मजा सा आ गया.
हटाएंआदमी संसार की सबसे जटिल मशीन ही नहीं, सबसे कुटिल मशीन भी है...
जवाब देंहटाएंविचार मिलते हैं जी हमारे आपके, खुदा खैर करे:)
हटाएंदुःख इस तरह सबके सामने रोने से ज्यादा हिम्मत का काम है, सहन करना और उससे भी ज्यादा हिम्मत का काम है मुस्कुराते रहना
जवाब देंहटाएंयही सच है
बड़ा झकझोरु किस्सा सुनाया आज आपने...आखिरी पंक्तियाँ आते आते आँखों में नमी सी छाने लगी। जानदार चरित्र चित्रण...!
जवाब देंहटाएंबिना सोचे समझे किसी का भी हम मजाक बना देते हैं. यदि हर बात के पीछे की सच्चाई जान जाएँ तो अपने पर ही लज्जित होना पड़ता है.
जवाब देंहटाएंघुघूतीबासूती
एक संक्षिप्त परिचय ( थर्ड पर्सन के रूप में )तस्वीर ब्लॉग लिंक इमेल आईडी के साथ चाहिए , कोई संग्रह प्रकाशित हो तो संक्षिप ज़िक्र और कब से
जवाब देंहटाएंब्लॉग लिख रहे इसका ज़िक्र .... कोई सम्मान , विशेष पत्रिकाओं में प्रकाशित हों तो उल्लेख करें rasprabha@gmail.com per
जटिल...? कुटिल....?
जवाब देंहटाएंनही नही चुटिल.
बहुत ही चुटिल होता है आपका लेखन.
सभी मजे से चुटकियाँ ले रहें है,जी.
आनन्द आता है आपकी सीधी सच्ची, चुटिल सरल सी बातें पढकर.
आभार.
बेहतरीन .भगवन की मशीन में यह खासियत है वह एक साथ जटिलतम और सरलतम है आपसे पूरी सहमति के साथ
जवाब देंहटाएंआप से जटिल और सुलझा हुआ सिर्फ एक मिला था इससे पहले
जवाब देंहटाएं
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