कुछ दिन पहले की बात है, बुद्धू-बक्से पर फिल्म अभिनेता अक्षय खन्ना का इंटरव्यू आ रहा था| विनोद खन्ना-अक्षय खन्ना और धर्मेन्द्र-सन्नी दयोल ये पिता-पुत्र की वो दो जोडियाँ हैं जो मुझे अच्छी लगती हैं, शायद इसी पसंदगी के चलते उस इंटरव्यू का थोडा सा हिस्सा देख लिया| एंकर ने सवाल किया, "क्या वजह है कि इतना अच्छा एक्टर होने के बावजूद आप उतने सफल नहीं हुए जितने शाहरुख खान, आमिर खान ....?" इसका जवाब देते हुए अक्षय थोडा सोचकर बोला, "एक बात बताईये, अगर मैं व्यापार कर रहा हूँ और मेरे पास पांच सात सौ करोड़ का बिजनेस है| अब मुझे इसलिए सफल न माना जाए कि मेरी वैल्थ अम्बानी से कम है तो क्या ये ठीक है?" बात मुझे तो दमदार लगी| सफल होने का पैमाना सबके लिए एक कैसे हो सकता है? अब एंकर महोदया ने फिर से घुमाकर पूछना शुरू किया, "इसकी वजह क्या ये है कि आप दूसरों की तरह खुद को प्रोमोट नहीं करते? आप अकेले रहना पसंद करते हैं, आप लोगों से मिलना जुलना पसंद नहीं करते, आप के बारे में लोग कहते हैं कि आप सोशल नहीं हैं, वगैरह वगैरह|" अक्षय थोडा सा असहज दिखे भी लेकिन हर बात का उन्होंने बड़े सलीके से जवाब दिया मसलन दूसरों के खुद को प्रोमोट करने को वो बुरा नहीं मानते, जिसे जैसा पसंद है वो वैसा कर सकता है| और दूसरी बातों के जवाब में अक्षय ने कहा, "ऐसा नहीं है कि मुझे लोगों से मिलना जुलना पसंद नहीं है, मैं अपने दोस्तों, अपनी फैमिली और बहुत से दूसरे लोगों की कंपनी भी बहुत एंजाय करता हूँ| हाँ, लोग अकेलेपन से दूर भागते हैं, मुझे दो दिन, चार दिन, हफ्ता अकेला रहना पड़ेगा तो मैं उसे भी बहुत एंजाय करता हूँ| अपने गार्डन में काम करता हूँ, साईकिल लेकर मैं बाहर निकल जाता हूँ और ये सब करने में मुझे बहुत खुशी मिलती है|"
असली बात ये है कि खुशी के मायने सबके लिए एक जैसे नहीं हो सकते| सबके अपने अपने अनुभव, अपने अपने आग्रह, अपनी अपनी खुशी और अपने अपने गम| अपनी पसंद है अक्षय खन्ना, ये तो ऊपर बता ही चुका हूँ लेकिन उस इंटरव्यू के बाद पसंदगी का ये ग्राफ और ऊपर उठा| 6-8 pack-ab बेशक न हों, होंठों पर दोनों हाथ रखकर ooooooooooh की सिस्कारियां भरती छूने छुआने को आतुर फैन्स बेशक न हों, ओछी हरकतों से मीडिया का ज्यादा ध्यान बेशक न खींचता हो, ऐसा जरूर लगा कि एक परिपक्व और सुलझा व्यक्तित्व है इसके पास| मुझे अक्षय एक बहुत ही सहज और सरल चरित्र लगा, ये अलग बात है कि दुनियादार लोग ऐसे मामलों को अजीब या जटिल मानते हैं| लेकिन फिर वही बात सोचता हूँ कि दुनिया ही सरल लोगों के हिसाब से क्यों चले?
बात पुरस्कारों से ही संबंधित है, एक पोस्ट पहले लिख ही चुका हूँ| सोचा था अब इस मामले में नहीं लिखूंगा लेकिन हर बार ऐसा नहीं होता कि सोचा हुआ हो ही जाए| प्लान ये था कि परिकल्पना वाले उस सुझाव या खिंचाईनुमा उस पोस्ट से समझ जायेंगे कि इस बंदे को अभी वैचारिक नसबंदी नहीं करवानी है और आलसी महाराज के ब्लॉग पर जो परिणाम आया उसकी बिलकुल आशा नहीं थी| वैसे भी परिणाम से ज्यादा निष्कर्ष पर अपना फोकस था| रुझान वगैरह(कितने तो पाठक और कितने मतदाता? लेकिन फिर भी कहा तो रुझान ही जाएगा न:) ) से इतना तो पता चल गया था कि कुछ ने मेरे ब्लॉग को पसंदीदा माना है लेकिन फाईनली जो सामने आया उसकी आशा नहीं थी| मेरे हिसाब से सबसे बड़ा असर उनके यहाँ प्रयोग किये गए निगेटिव मार्किंग वाले नियम से हुआ, अपन दो नम्बरी भये| मुझसे बहुत बहुत अच्छा लिखने वाले इस नियम के चलते सांप-सीढी के खेल की मानिंद सांप के द्वारा(निगेटिव मार्किंग) काटे गए होंगे, ऐसा मेरा अनुमान है|
अब राव साहब ने जो करना था कर दिया, शमा ब्लॉग महफ़िल के अन्य शिरकतकारों के सामने आ गई| आलोचना, प्रत्यालोचना, महालोचना का दौर शुरू हो गया| ये कोई अप्रत्याशित नहीं था, हम भी निस्वार्थ भाव से ये सब करते ही रहे हैं| ये एक ऐसा कर्म है जिसे निभाना हर जागरूक ब्लोगर का धर्म है| ऐसा मौक़ा कौन सा रोज रोज आता है? 'मत चूके चौहान' की तरह जिसे जैसे सुविधा लगी, सब अपनी प्रतिक्रया दे रहे हैं| नौटंकी, किट्टी पार्टी, गोलबंदी, मदारी का तमाशा, एलीट- नॉन एलीट ब्लोगर्स वगैरह कई तरह के नाम इस आयोजन के बाद दिए जा रहे हैं| ये सब जाहिर करता है कि ब्लॉग जगत अभी सोया नहीं है, प्रतिक्रया व्यक्त करता है| कई सवाल उठाये जा रहे हैं लेकिन मेरी राय में रायता अभी ढंग से, तरीके से फैला नहीं है|:) आज अपने पास टाईम था तो इस विषय पर लगाया, सेलिब्रेट करने का अपना तरीका है ये| आईये देखते हैं कुछ बातें -
मेरी सबसे पहली आपत्ति तो उन ब्लोगर्स से है जिन्हें राव साहब ने अपने आयोजन में तीसरे और उसके बाद वाले स्थानों पर आया बताया है| इनमें से एक ने भी विरोध नहीं किया, पुनर्मतदान की मांग नहीं की और शरीफाना ढंग से बधाई सधाई देकर खिसक लिए| सच में एलीट लोग हैं ये सारे, जानते नहीं कि शरीफ दिखना आजकल दब्बूपन की निशानी है| अबे धुरंधरों, मेरे से बाद वाले पायदानों में ला खडा किया आप सबको इस राव साहब ने और इसमें आपको फर्जीवाड़ा नहीं दिखा? 'तुमने चुप रहकर सितम और भी ढाया मुझपर, तुमसे अच्छे हैं मेरे हाल पे हंसने वाले|' हमें इत्ती शर्म आ रही थी और आपमें से किसी ने 'ओब्जेक्शन मी लोर्ड' भी नहीं बोला :(
अब बात करते हैं, हँसने वालों की, ये बंदे अपने को सही लगे| निगेटिव वोट किसे मिले हैं, आयोजक ने ये खुलासा नहीं किया इसलिए आलोचना की जा रही है| खुलासा किया जाता तो विवाद खड़ा करने के नाम पर आलोचना कर लेते| 'बुड्ढा मरे या जवान, ह्त्या से है काम' हम तो आलोचना करेंगे| सोच देखिये कौन सी स्थिति बेहतर होती, निगेटिव वोट प्राप्त ब्लोग्स के नाम बताए जाने वाली या अभी वाली?
एक दूसरी प्रतिक्रिया कई कमेंट्स में देखी कि 'परिकल्पना सम्मान समारोह' से नाम वापिस ले लिया लेकिन 'आलसी सम्मान समारोह' से नाम वापिस नहीं लिया| इस आपत्ति विशेष को खुद से जोड कर देख रहा हूँ| ये तो कुछ वैसे ही सवाल हैं कि सामान उस दूकान से क्यूं लिया और इस दूकान से क्यूं नहीं लिया? आज आपने काली पैंट के साथ गुलाबी शर्त क्यूं पहनी, नीली क्यूं नहीं पहनी? जिस दिन घर में पनीर बना था उस दिन तीन चपाती क्यूं खाईं और जिस दिन लौकी बनी थी उस दिन दो चपाती क्यूं खाईं आपने? निज विचारों की स्वतंत्रता (जिससे किसी दुसरे का कोई नुकसान न होता हो) के अधिकार के अलावा मेरा एक और स्पष्टीकरण है जो अगले प्वाईंट से और स्पष्ट होगा|
एक अन्य आपत्ति है कि जो पहले परिकल्पना से सम्मान ले चुके हैं, वो अब उसे गाली दे रहे हैं और इधर बहुत ज्यादा उल्लासित दिख रहे हैं| - पहली बात तो गाली किसी ने नहीं दी है, सिर्फ असहमति जताई है, दूसरी बात ये है कि क्या सम्मान इसीलिये दिए गए थे कि भविष्य में मुंह बंद रखा जाएगा? मुझे ब्लोगजगत में आये हुए लगभग ढाई साल हो गए हैं, सुनी-सुनाई की जगह अपने ओब्जर्वेसशंस के आधार पर मेरा अंदाजा था कि यहाँ पुरस्कृत किये जाने का एक hidden effect ये भी हो सकता है, कुछ अन्य बातों के अलावा ये भी एक वजह थी कि मैंने वहाँ से नाम वापिस लिया था|
अलेक्सा रैंकिंग, ये रैंकिंग, वो रैंकिंग वाले पैमाने पर नापकर बड़ा छोटा देखने की कवायद भी हो रही है| इतनी तरह की रैंकिंग है तो एक ये भी सही| टेक्निकल जानकारी मुझे न के बराबर है इसलिए इस विषय पर ज्यादा नहीं कहूँगा लेकिन पोस्ट से असंबंधित लेबल्स लगाकर pageviews को मैनेज करने के खेल के बारे में क्या ख्याल है?
आयोजक मदारी और ब्लोगर बन्दर वाली बात पर 'नो कमेंट्स|' कुछ बातों पर चुप्पी से अच्छा कोई जवाब नहीं हो सकता|
इस बहाने कुछ भ्रांतियों पर ध्यान गया हालांकि इन सबका इस आयोजन से कोई लेना देना नहीं है बल्कि आम जीवन में भी इनका अनुभव करता रहा हूँ, आपने भी जरूर किया होगा| औरों की नहीं, अपने ऊपर लेकर ही बात करता हूँ - मैं किसी बात के होने से खुश हूँ तो इसका शर्तिया मतलब ये नहीं होगा कि इस बात के न होने से मैं दुखी महसूस कर रहा होउंगा| किसी के साथ मेरी दोस्ती नहीं है तो इसका इकलौता मतलब ये नहीं है कि मेरी उसके साथ दुश्मनी है ही| सुख-दुःख, लाभ-हानि, दोस्ती-दुश्मनी के बीच एक और बहुत बड़ी जमीन होती है जिसे कभी break-even-point और कभी no-men's-land और कभी कभी 'निस्पृहता' भी कहा जाता है|
अगर मेरा ब्लॉग गिरिजेश राव की सूची में शुरू के बीस स्थानों पर भी न आता तो भी मुझे कम से कम इतनी ही खुशी होनी थी, आपको क्या लगता है तब मैं दुखी होता? या जो ब्लॉग किसी वजह से पीछे रह गए, वो मेरी पसंद से हट जायेंगे? इस आयोजन से मुझे और मुझ जैसों को ये लाभ हुआ कि कम सक्रियता, ज्यादा जगह पर कमेन्ट न करने वाले लेकिन सार्थक लिखने वाले कुछ नए ब्लोग्स का परिचय मिला और यही इस आयोजन की सकारात्मकता है, मेरे लिए| एक अकेले ने आकाश में पत्थर उछाला है, विरोध करने वाले ऊर्जा ही प्रदान करेंगे|
एक दो किताबें फिर से पढ़ी हैं और उनके बारे में कुछ शेयर करने का मन था लेकिन उस मामले में होमवर्क अभी पूरा नहीं हुआ, फिर कभी सही| यूं भी इंतज़ार करने और करवाने की आदत हो गई है अपुन को, so keep waiting:)
p.s. - ये पोस्ट बिना किसी खिन्नता के, बिना किसी क्रोध या वैमनस्य के बिलकुल सही स्पिरिट और सही तबियत में लिखी गई है इसलिए अपनी असहमति, आपत्ति, नाराजगी, आलोचना या उपदेश बेझिझक यहाँ या कहीं और प्रकट कर सकते हैं| वर्तनी की गलतियों की तो कोई बात नहीं लेकिन भाषा की मर्यादा बरकरार रखी जा सके तो हमारे, आपके और सबके लिए अच्छा होगा क्योंकि आपकी भाषा आपके संस्कारों की, आपकी पारिवारिक, शैक्षणिक पृष्ठभूमि की, आपकी मानसिकता की झलक दिखलाती है|
छोड़ो बेकार की बातों में कहीं छूट न जाए अच्छे लेख...
जवाब देंहटाएंबस यही कहें
रंजिश ही सही, आ फिर से मुझे...
नहीं छूटेंगे सिद्धार्थ जी, देखिये आप का आना हुआ तो उसी आयोजन के चलते ही न? सकारात्मक चीज क्यों न ढूंढी जाए, ढूंढेगे तो मिल जायेगी|
हटाएंधुआँ उट्ठा है कहीं आग भी लगी होगी ... मस्त रहो ऐश करो, ये दिल तो आपके ब्लॉगिंग में आने से पहले भी जल रहे थे और हमारे जाने के बाद भी जलते रहेंगे।
जवाब देंहटाएंकुछ भी आप करें पर, फूस का स्वभाव है जलना ...
वैसे आपत्तियों की सही आपत्ति उतारी है।
[इस टिप्पणी में वर्तनी व व्याकरणगत ग़लतियाँ अनायास ही हैं, जानकर नहीं की गयी हैं]
गलतियों से क्या डरना जी, अनायास वाली से तो बिलकुल नहीं| गलती सिर्फ वो नहीं करता, जो कुछ नहीं करता|
हटाएंहमेशा की तरह ईमानदार, सच्ची और सादगी भरी प्रस्तुति, आप तो बस लिखते रहिये..
जवाब देंहटाएंमेरा एक शेर आज समर्पित है...
कितने ही पत्थर आज यहाँ, अब बरस जाएँ आज 'अदा'
जिन्हें मंदिर की पहचान नहीं, वो रंग महल कह देते हैं
उंगलियां दर्द कर जाती हैं इतना सा लिखने में और आप हैं कि कह रही हैं लिखते रहिये बस| बात करती हैं, हाँ नहीं तो:)
हटाएं:)
हटाएंयह प्रतिक्रिया लाजिमी हैं ....और हाँ बधाई तो भूल ही गए थे!
जवाब देंहटाएंआपके ब्लॉग के चयन पर कहीं कोई उज्र नहीं है ...
मगर यह एक ग्रुप का आयोजन हो गया था ,हाँ आप उससे बाहर थे ..
मगर निष्पक्षता भी तो दिखानी थी ...बकरा यहाँ मिल गया :) :)
ओह अच्छा!! ये बात है, अब समझ आई:)
हटाएंअरविन्द जी, मेरे चयन पर मुझे उज्र है न| बाकी लोगों के अपने उज्र हैं\होंगे|
बधाई के लिए धन्यवाद|
संजय भाई आपकी यह बात दिल को भा गयी बिलकुल सही सोचते हो कि अपना कर्म किये जा फल की चिंता मत कर,
जवाब देंहटाएंविस्तार से लिखा सारा मामला
शुक्रिया संदीप, कोशिश तो यही रहती है|
हटाएंअक्षय खन्ना मुझे भी बेहद पसंद हैं | वे ना सिर्फ़ अच्छे अभिनेता हैं, सही सोच समझ रखने वाले एक आम इंसान भी लगते हैं | और उनकी कॉमिक टाइमिंग तो लाजवाब है |
जवाब देंहटाएंसहमत हूँ नीरज, 'हलचल' मस्त मूवी लगी थी|
हटाएंहमने तो ओ.पी. रल्हन वाली हलचल देखी थी [उम्र काफ़ी हो गयी अपनी :( ]
हटाएंडिस्क्लेमर जरूरी नहीं। पर अब लिख दिया तो लिख दिया :)
जवाब देंहटाएंनीरज का कमेन्ट नहीं पढ़ा तो पढ़ कर आइये। मुझे बहुत पसंद आया।
हाँ भाया, जरूरी नहीं पर फिर भी लिख दिया| कभी कभी बिना जरूरी वाले काम भी करने चाहियें:)
हटाएंजो स्वयं प्रसन्न रहना जानते हैं, वही औरों को प्रसन्नता दे सकते हैं।
जवाब देंहटाएंएकदम सिंपल फंडा है सरजी|
हटाएंखुशदीप के ब्लॉग पर की गयी यह टिप्पणी यहां भी मौजूं लगी इस लिये इसे यहां सटा रहे हैं:
जवाब देंहटाएंब्लॉगिंग की रेंज बहुत बड़ी है। वहां सूर्यदीप को भी जगह है, खुशदीप के लिये भी जगह है। बीथोविन की सिम्फ़नी के भी चाहने वाले हैं और मक्खन को मिस करने वाले भी। सूर्यमाल के सप्तक के तारीफ़ करने वाले भी हैं यहां और मक्खन के स्लाग ओवर भी। जिसके साथ मन हो आनन्दित होइये।
बाकी अक्षयकुमार के बारे में कही बात से सहमत। जरूरी थोड़ी हर जगह सबसे आगे खड़े होने के लिये मदारीगीरी की जाये।
इनाम के अब इत्ता भी क्या परेशान होना। अब मिल गया सो मिल गया। :)
जानदार चीज एकाधिक जगह पर सटाई जा सकती है जी| आनंदित होने वाले मन के लिए सही में बहुत कुछ है| अक्षय(कुमार) खन्ना वाली सहमति के लिए विशेष आभार|
हटाएंपरेशान नहीं हैं जी, थोड़ा सा इश्टाईल दिखाकर हम भी मदारीगिरी कर रहे थे :)
अक्षय मुझे पसंद हैं. वो जब दांत पीसते हुए खीझ भरा अभिनय करते हैं तो मजा आता है.
जवाब देंहटाएंमैं 'आलसी पुरस्कार योजना' में कोई खामी नहीं देखता. उसके परिणामों से न केवल सहमत हूँ बल्कि यह भी मानता हूँ कि उसमें चयनित ब्लौग निस्संदेह हिंदी ब्लौगिंग का परिचायक हैं.
आपको बधाई, पुनः)
पुनः धन्यवाद, निशांत भाई|
हटाएंबेलाग श्रेष्ठ आभार प्रस्ताव वक्तव्य!! :)
जवाब देंहटाएंआलसी पर हो सकता है सीमित मतदाता समूह था। किंतु उनमें सभी तरह की ब्लॉगरीय सोच, विचारधारा, मान्यताओं का प्रतिनिधित्व हो रहा था। फिर पूरे ब्लॉगजगत में ऐसा कौन है जो समग्र ब्लॉग जगत का निष्पक्ष मन्तव्य लेने का दम ठोक सके। सभी अपने अपने मन्तव्यों और पूर्वाग्रहों में केद है। कोई ऐसा मंच ही नहीं है जो समस्त ब्लॉगजगत के ब्लॉगर्स को समानरूप से भाए, निष्पक्ष निस्पृह हो।
गिरिजेश जी ने सर्वोत्तम के लिए 'प्रिय' शब्द का उपयोग बहुत सोच समझ कर किया था। श्रेष्ठ लेखन में माहिर तो बहुत होंगे, अपने अपने विषय के विशेषज्ञ भी। सभी स्वयं को श्रेष्ठ ही मानते है। कोई उन्नीस नहीं समझता स्वयं को। लेकिन 'प्रिय' लगना एक दम जुदा बात है। श्रेष्ठ लेखन प्रिय भी हो सकता है और अप्रिय भी। वहीं अनगढ़ लेखन, पाठकों की नजर में प्रिय अतिप्रिय हो सकता है।
इसलिए आपकी इस बात से सहमत हूँ कि वहाँ प्रियता की सीढ़ी चढ़ रहे कईं ब्लॉग्स को अप्रियता के मत नें खींच नीचे उतार डाला होगा। नाकारात्मक मत वहाँ निष्पक्ष अभिव्यक्ति का श्रेष्ठ माध्यम साबित हुआ है।
Perfect!!
हटाएंगिरिजेश जी ने सर्वोत्तम के लिए 'प्रिय' शब्द का उपयोग बहुत सोच समझ कर किया था।
हटाएंagree
and as usual - sugya ji has done the perfection to the last letter :)
सुज्ञ जी के सुलझे विचार हमेशा संबल देते हैं|
हटाएंसुज्ञ जी ने मेरे मन की बात कह दी।
जवाब देंहटाएंइसके अलावा और जोड़ना चाहूंगा कि गुटबंदी, एलिट क्लास, क्लिष्टता और तमाम उपमाएं देने वालों में से एक एक का हाल हम लोग पहले से ही जानते हैं कि वो लोग कित्ते बड़े संत हैं....कब किसने क्या स्टैंड लिया था....कब क्या बका था :)
बनाकर फकीरों का वो भेष पंचम
हटाएंतमाशा ए अहले ब्लॉग वर्ल्ड देखते हैं:)
:)
हटाएंअक्षय खन्ना मुझे भी बहुत पसंद है हालांकि मैं मानता हूँ कि हमारी फिल्में उनका कम इस्तेमाल कर रहीं हैं।
जवाब देंहटाएंमुझे यह बात बहुत बुरी लगती है जब हर अक्षय खन्ना या अजय देवगन के हलक में हाथ डाल के पूछा जाता है - "तुम शाहरुख़ या आमिर क्यों नहीं हो?"
इतनी ही भक्ति जगी है तो उनके ही interview करें न रोजाना, जीने दो इन इन्हें अलग थलग चैन से।
एक England -RSA मैच के बीच पत्रकार पहला सवाल पूछते हैं, "आप सचिन के बारे में क्या कहना चाहेंगे?", मुझे बड़ी ख़ुशी मिलती है जब कोई Graeme Smith खड़ा हो कर बोलता है "Invalid! Let's talk only about England or South Africa tonight!"
खैर, अधिकतर बातों से सहमत हूँ - कुछ तो पल्ले ही नहीं पड़ीं।
आलसी आयोजन के बारे में कुछ नहीं कहना - "सर्वप्रिय (सीमा सहित)" और "सर्वश्रेष्ठ (बेधड़क)", इन शब्दों के अंतर की मर्यादा बहुत है।
सभ्य शब्दों पर ही पहरे हैं बंधु, extinction का ख़तरा जो है|
हटाएंस्तुतिगान की अपेक्षा जब उसूल वरीय हों तो खुशी मिलनी स्वाभाविक ही है| खुश रहने के मौके मिलते रहें सबको|
फिल्मी कवर (अक्षय खन्ना-राजेश खन्ना) में सैंडविच षट्-रस ब्लागिंग.
जवाब देंहटाएंआभार आपका, राहुल सर|
हटाएं@ "सर्वप्रिय (सीमा सहित)" और "सर्वश्रेष्ठ (बेधड़क)", इन शब्दों के अंतर की मर्यादा बहुत है।
जवाब देंहटाएंlog-bag.........bhai-log ise man-ne ke liye taiyar-ich nai hain.
..................Gg Aa Jj Nn Aa Tt...............................
PRANAM.
मानेंगे भाई लोग, कब तक न मानेंगे:)
हटाएंTt Hh Nn Xx
हाज़िरी दर्ज कर लीजियेगा !
जवाब देंहटाएंस्नेहाकांक्षी रहूँगा अली साहब|
हटाएंsab kuch theek hai AAP KO BADHAI HO...
जवाब देंहटाएंHamare baba ji ka kahana hai jo kiya aacchha kiya jo kar rahe ho aacchha kar rahe ho aur jo hoga wah aacchhaa hi hoga ...
ab ham mudde ki baat par aate hai PARTY KA DIN AUR VENUE ki khabar abhi tak nahi aaye hai...agar pata ho to suchit kare...
jai baba banaras....
बाबाजी तो ज्ञान के भण्डार हैं|
हटाएंमुद्दे वाली बात ये है की अभी पता नहीं है, सूचित होते ही सूचित करेंगे बी ही:)
हमारे हिस्से की दो बूंदें हवा में उछाल देना ... तन से न सही, मन से आपके समारोह में मौजूद रहेंगे ...
हटाएंजरूर हो लिया समारोह :)
हटाएंअसहज विषय पर सरल आलेख |
जवाब देंहटाएंआभार ||
हौंसला बढाने के लिए शुक्रिया रविकर जी|
हटाएंदेख ली जी हमने भी चार सालों में नैतिकता, भाईचारे और व्यक्तित्व विकास पर पोस्ट लिखने वालों की मानसिकता
जवाब देंहटाएंकुछ तो अधिकतर पोस्टें अखबारों से उठाते हैं और डिस्कलेमर लिखते हैं "ईमेल से अनुवाद"
हम तो समझते हैं कि पसन्द-नापसन्द अपनी-अपनी होती है और समय के साथ बदलती भी रहती है
और हमें भी इंतजार करने की आदत पड ही गई है तो keeping wait
अभी तो मेरे लिये सूर्यमाल के सप्तक आप ही हैं
प्रणाम
ले लो मजे|
हटाएंफत्तू का ट्रेलर दिखा दिया और फिलिम देखने जाओ तो लाल देवार| झाड़ा लगवाना पडेगा, ऐसा दीखे है|
अब क्या कमेन्ट करूँ संजय जी ? आपने सब ही तो cover कर लिया जो मैं कहना चाहती थी :)
जवाब देंहटाएंआभार आपका | आपसे , आपकी इस पोस्ट की भावना से, सहमत हूँ | गिरिजेश जी का आयोजन - और उससे ज्यादा उस आयोजन के पीछे की निस्वार्थ positive भावना बहुत pleasing लगी |
वैसे "मदारी" और "बन्दर" के अलावा एक और title है "महिला ही महिला की शत्रु " :) | जो ब्लॉग के अलावा भी बिजी हैं - क्या उनके पास समय है ? या इच्छा ? कि इन निराधार और मनघडंत आक्षेपों के उत्तर दें ? तो जैसा आपने कहा - चुप रहना ही बेस्ट जवाब है |
... अरे हाँ - यह कहना तो रह ही गया कि - आपके बताये इस interview से मेरे मन में भी अक्षय जी के लिए इज्ज़त बढ़ गयी | अभी २-३ दिन पहले ही मैं और मेरे ये बात कर रहे थे कि SRK जी और अक्षय कुमार जी , जैसे real लाइफ में हैं - उससे उलट (एक दुसरे के character वाले ) रोल्स फिल्मों में करते हैं | अक्षय जी एक बहुत disciplined और साफ़ सुथरी विचारधारा के व्यक्ति है और फिल्मों में irresponsible idiot बनते हैं | SRK जी के रोल्स और निजी बिहेवियर भी बहुचर्चित ही हैं :)
जी शिल्पा जी, एक चुप सौ सुख|
हटाएंvaise - akshay khanna ji bhi mujhe kaafi pasand hain | kintu oopar main akshay kumar ji kee baat kar rahi thee - discipline ke baare me |galati hui :(
हटाएंसमझ गया था, आप और अनूप जी अक्षय कुमार से कन्फ्यूज कर गए लेकिन नाम से क्या फर्क पड़ता है, बात तो व्यवहार की है| इसलिए :( को :) मान रहा हूँ:)
हटाएंsanjay ji - ek tippani do baar kee hai - spam me gayee hai dono baar
जवाब देंहटाएंplease take it out from there :)
माफ़ कीजियेगा मीठा बोलने तो मुझे आता नहीं है ये भी खूब रही सब जगह से पुरुस्कार बटोर लिया तो कह रहे है की जो नहीं मिलता तो भी बुरा ना था सब मालूम है आज तो हद ही कर दी आप ने आप को बुरे ब्लोगरो की लिस्ट से शामिल नहीं किया था सो वहा भी जुगत लगाने का सब प्लाट बनाया जा रहा है अरे हम भी पहुंचे हुए राजनीतिज्ञ है सारी अन्दर की खबर रखते है कोशिश कामयाब ना होगी याद रखियेगा | इस पोस्ट को कहते है पुरुस्कार के साइड इफेक्ट अब देते रहिये सफाई जो हम लोगो के गुट में होते तो कई सफाई नहीं देनी पड़ती श्रीमान "एलिट" ब्लोगेर कही के :)))
जवाब देंहटाएंएक गंभीर वाली बात मुझे लगता है की कुछ बाते किसी और के लिए कही जा रही है उसे आप ने गलतफहमी में अपने ऊपर ले लिया है |
हम अब भी आप ही लोगों के ग्रुप के हैं, कोई माने कि न माने| और कोशिश आप अपनी जारी रखिये, हमारी भी जारी है - हम होंगे कामयाब( बुरे ब्लोगर वाली लिस्ट में हम भी होंगे) :)
हटाएंसंजय बाऊ पोस्ट शुरू हुई अक्षय खन्ना के साथ ..... बहुत दिन बाद याद आये, सही में अच्छे एक्टर हैं. और कल्पनाशील ब्लॉग्गिंग परिकल्पना तक पहुँची और बात आचार्य के ब्लॉग से होती होती अपने तक ले आये.
जवाब देंहटाएंदेखिये, बीच में मुझे लगने लगा था, कि मैं ब्लॉग्गिंग क्यों कर रहा हूँ, कुछ ढंग से लिखना चाहिए, मैं खाम्ख्वाय साहित्कार बनने की कोशिश करने लगा, मन की कल्पना को दौडना आसान था, पर उसे की-बोर्ड पर शब्दों द्वारा आकृति देने बहुत दुष्कर कार्य लगा. अत: छोड़ दिया, जो थोड़ी बहुत बकवास कर लेता था उस से भी गए,
फिर कुछ इंग्लिश के ब्लॉग टटोले तो देखा ये जरूरी नहीं है कि आप साहित्य सृजन ही करें या फिर किसी पत्रकार की तरह राजनीतिक ख़बरों पर विवेचना या फिर अर्थशास्त्री की तरह देश की अर्थव्यवस्था को दुरुस्त करने के मायने सरकार को बताएं.
दोनों जगह पुरुस्कारों में आया है... पराई कल्पना को तो छोडिये, पर जहाँ तक आचार्य के चिट्ठे की बात है - आप को लोग पसंद करते हैं - ये बहुत है अत: लोगो ने आपको वोट किया.
जब तक मैंने पोस्ट पढ़ ली थी तो मन में यही गीत आया : कुछ तो लोग कहेंगे, ओर ताज्जुब हुआ आपने वही ठेल/पेल रखा है :)
बढिया है : क्या कहते हैं कीप इट उप (इतना इंग्लिश पुरविया बाबा ने सिखा रखा है) :
कीपते हैं बाबाजी:)
हटाएंजय बाबा बनारस\लखनऊ|
निष्पक्ष , बेलाग मगर संतुलित प्रतिक्रिया !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद वाणी जी|
हटाएंपहला आधा ही पढ़ा, बाकी तो वही ब्लोगर बकैती थी.. ;-)
जवाब देंहटाएंबेशक आधा पढ़ा हो प्रशांत, हमारी तरफ से धन्यवाद पूरा|
हटाएंई का लम्बा-चौड़ा लिखे हैं कुछ समझे में नहीं आया। मजा तो एकदम्मे नहीं आया।(:
जवाब देंहटाएंअब महाराज, मजा तो किसी का गुलाम नहीं| न आने पर आ जाए तो नहीं ही आता:)
हटाएंअब इस जवाब पर आया।:)
हटाएंआना चाहिए गुरू, इस पर आये या उस पर आये:)
हटाएंकथे गई ......... म्हारी टीप.
जवाब देंहटाएंसही ठिकाने पर है बाबाजी, घबराओ मत|
हटाएंपोस्ट बिना किसी खिन्नता के, बिना किसी क्रोध या वैमनस्य के बिलकुल सही स्पिरिट और सही तबियत में लिखी गई है इसलिए अपनी असहमति, आपत्ति, नाराजगी, आलोचना या उपदेश बेझिझक यहाँ या कहीं और प्रकट कर सकते हैं| वर्तनी की गलतियों की तो कोई बात नहीं लेकिन भाषा की मर्यादा बरकरार रखी जा सके तो हमारे, आपके और सबके लिए अच्छा होगा क्योंकि आपकी भाषा आपके संस्कारों की, आपकी पारिवारिक, शैक्षणिक पृष्ठभूमि की, आपकी मानसिकता की झलक दिखलाती है|
जवाब देंहटाएंव्यवहार और सिद्धांत खासकर लिखित दस्तावेजों में सदैव एक शालीनता होनी ही चाहिए जब कभी हम मुड़कर अपना लेखा जोखा देखें खुद को अफसोस न हो कि
यहाँ चुक नहीं होनी थी . मुझे तो अति आनंद आता है आप सब को पढ़कर मेरे लेखन पर आप सब का मार्गदर्शन मिल जाता है.
मेरी मृत्यु के बाद किसी ने मेरे ब्लॉग को खोला और एक भी कमेन्ट डाला तब जीवन की सार्थकता दिखेगी .... बाकि सब तो ठीक ही है ......
सिंह साहब, आपकी विनम्रता श्रद्धेय है|
हटाएंब्लोगिंग को बहुत मान दे दिया आपने:)
आपने लिखा- कुछ बातों पर चुप्पी से अच्छा कोई जवाब नहीं हो सकता।
जवाब देंहटाएंऔर हम इसी का अनुसरण कर रहे हैं।
हां, गाना बहुत अच्छा लगा।
आपकी चुप्पी, गाने का अच्छा लगना भी अच्छा लगा वर्मा साहब|
हटाएंसंजय जी, काफी समय से मैं तो इस ब्लॉग जगत से एकदम कटा सा हूँ इसलिए ख़ास जानकारे भी नहीं है कि क्या चल रहा है लेकिन हाँ, इधर- उधर कुछ जगहों पर नजर गई थी कि इनाम बँटने जा रहे है ! मैं पाने वालों को सिर्फ अग्रिम बधाई ही प्रेषित कर सकता हूँ ! किन्तु आप अपने लेखन की धार बनाए रखिये, हरेक की लेखन शैली में भिन्नता होती है जो किसी पुरूस्कार की मोहताज नहीं रहती !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद गोदियाल जी| यही मैं भी कह रहा हूँ की सिर्फ इनाम मिलने न मिलने से श्रेष्टता पर कोई असर नहीं पड़ता|
हटाएंबढ़िया संजय भाई! हम इंतजार करेंगे...
जवाब देंहटाएंशुक्रिया त्यागी सर, आशा है कि आपको निराशा नहीं होगी|
हटाएंbhaisaheb..akshy ke jabab sunkar wakai ek sakaratmak urja mili...phir dheere dheere aapke tarkash se nikalkar pratyancha par chadhte aaur hkahakar machate tooneeron ka taj dekha..samjhte ham bhee hain aapki tarah jehan me uthte tamam prashno ke baare me par objection me lord nahi kahte,,,aap ye bhee sahai kahte hain shalinta dabboo pan kee nishani samjha jaata hai..kabhi kabhi ye sahi lagta hai..jang kya msalon ka hal dengi..jang to khud hee ek masla hain..khe oon aaur aag aaj bakhshengi..bhookh aaur ahtiyaj kal dengi isliyeb\ ai sarif insaano jang talti rahe to behtar hai.................par aaj aapko padhne ke baad ye sahi laga..baar baar bairi aawe baad ka adhana vyarth..ladna agar ho to ek baar lad lo..fan failaye fuskar raha baarbaar...hath se pakad fan paawn se kuchal do....sadar pranam ke sath
जवाब देंहटाएंतो सम कौन चुटील गल ज्ञानी......
जवाब देंहटाएंमुझे कुछ भी और कहना समझ नहीं आ रहा.
गाना अच्छा लगा, मेरी पसंद का है.
अब इत्ता लिखे पढ़े के टाइम नहीं है जी अभी
जवाब देंहटाएंसो ये लिंक टिका के निकल रै
बाक़ी बाद में
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