बुधवार, जून 02, 2010

स्टोरी ऑफ़ कालीदास रिविज़िटेड..........

अग्रिम चेतावनी – आज की पोस्ट एक सीरियस पोस्ट है, हंसना नहीं जी कोई भी। जो इस चेतावनी को इग्नोर करेगा, अपने अंजाम का खुद जिम्मेदार होगा:):)
क्या आप मे से कोई ऐसा है जिसने महाकवि कालिदास के बारे में न सुना हो?  अभिज्ञान शाकुन्तलम, मेघदूतम, रघुवंशम जैसी संस्कृत की कालजयी रचनाओं के रचनाकार के बारे में शायद सभी जानते हैं। यही कालिदास आरंभिक जीवन में एक अलग ही बौद्धिक और मानसिक स्तर पर जीवन गुजार रहे थे।  जीवन यापन का साधन था, वनवृक्षों को काटकर लकड़ियां  बेचना।  उस समय राज्य की राजकुमारी एक अत्यंत विदुषी कन्या थी(सुन्दर तो होगी ही, राजकुमारियां सुन्दर होती ही हैं और न भी हों तो दिखती और लगती तो हैं ही) और नकचढ़ी भी। अब ये बुजुर्गों ने ’करेला और नीम चढ़ा’ वाला मुहावरा तो बना दिया पर ये नहीं बताया कि परिस्थिति के अनुसार ’करेली और नीम चढ़ी’ भी कह सकते हैं कि नहीं। अमां. बता जाते इतनी सी बात तो काहे हमें ये देढ़ दो पंक्तियां लिखनी पढ़तीं और हमारे पाठकों को पढ़नी पड़तीं? खैर, बेनेफ़िट आफ़ डाऊट देते हुये और नारी किसी रूप में नर से कम नहीं है(बढ़कर ही है), इस विश्वास पर कायम रहते हुये हम भारी मन से लिख ही रहे हैं कि ’राजकुमारी करेली और नीम चढ़ी’ थी। जिसे करना हो कर ले केस हम पर,  वैसे भी आजकल धमकने और धमकाने का सीज़न चल रहा है। हो सकता है कि हमारे ब्लागजगत को एक और विचारणीय मुद्दा और मिल जाये। 
तो साहब हम अपनी बात आगे बढ़ाते हैं, राजकुमारी विवाहयोग्य तो थी ही, विवाह के लिये दबाव पड़ा तो उसने घोषणा कर दी कि जो उसे शास्त्रार्थ में हरा देगा, वही उससे विवाह का हकदार होगा। कितने ही आये और मुंह की खाकर चले गये। अब ऐसे लोग सिर्फ़ यहीं ब्लाग पर ही सक्रिय नहीं है कि आकांक्षा पूरी न होने पर नये नये हथकंडे  अपनाते हों, ये सनातन प्रवृत्ति है तो तब भी भाई लोगों ने  पराजित, पीड़ित, शोषित और रिजेक्टिड संघ बना  लिया और लग गये इस जुगाड़ में कि कैसे अपने अपमान का बदला लिया जाये।  एकदा आरण्ये भ्रमणते ते पश्यन्ते कि एक लकड़हारा पेड़ की जिस डाल पर  बैठा था, उसीको कुल्हाड़ी से काट रहा था।  बस जी, संगठन वालों ने जान लिया, पहचान लिया और ठान लिया कि यही लकड़हारा उनके दुखों का निवारण करेगा।  अब आप ये मत पूछियेगा कि लकड़हारे की मूर्खता से उनके दुखों का निवारण कैसे होगा?  इस दुनिया में अधिकतर लोग इस बात से सुखानुभूति कर लेते हैं कि दूसरे दुखी हो रहे हैं। अब आगे क्या हुआ था, ये तो सबने पढ़ा हुआ है, हम नहीं तोड़ने वाले उंगलियां अपनी।  आप भी तो बच जाओगे अपनी आंखों को कष्ट देने से।  और ये जो सब अभी तक लिखा है, वो लेखन का एक नया स्टाईल समझने की कोशिश है, जिसे ’बिटवीन द लाईंस’ विधा के नाम से जानते हैं।  हम कितना कह पाये, ये हम तो जानते ही हैं, कौन कितना समझा है, इसकी परीक्षा नीचे ली जायेगी।
बढ़िया कट रही थी अपनी यहां आने से पहले,  ’न उधौ से लेना, न माधो को देना’(और कट तो अब भी बढ़िया ही रही है, ये तो वैसे ही सबको इमोशनल करने के लिये लिख दिया था)। अब यहां तो देने लेने के अलावा और कुछ है ही नहीं। कमेंट दो, कमेंट लो। हमें तो ऐसा लगता है कि ये रिमिक्स है उस गाने का, ’प्यार दो, प्यार लो।’  काहे के झगड़े मचा रखे हैं भाई लोग? कौन से यहां खेत-खलिहान बंट रहे हैं? कौन किसको कमेंट कर रहा है, कौन किसे पसंद कर रहा है, कौन चर्चा में किसका नाम ले रहा है, क्या यही सवाल सबसे बड़े हैं? इन सब बातों की कोई फ़ीस ली है क्या किसी ने? वरिष्ठता और कनिष्ठता का सवाल कहां से उठ गया? और भाई हमें भी बता दो, वरिष्ठ होने पर क्या क्या छूट मिल रही है?  बैंक में आधा प्रतिशत ब्याज, रेलवे में रियायती किराया, इन्कम टैक्स में छूट तो सुनी है वरिष्ठ लोगों को,  यहां कौन सा फ़ायदा मिल रहा है, और हमारी कंपनी खाम्खाह ही घाटे में जा रही है। अमां, तुम्हें किसी का लिखा अच्छा लगे तो तारीफ़ कर दो करनी है तो, दुबारा उसकी पोस्ट निकले तो पढ़ो।  किसी का स्तर सही नहीं लग रहा है और तुम्हें लगता है कि इसने बेकार लिखा है तो उससे अच्छा लिखकर दिखा दो।  सबके पास अपना प्लेटफ़ार्म है।  मैं अपने ब्लाग पर अपनी पसंद का कुछ लिख रहा हूं, अगर मैं किसी के बारे में कोई अशालीन बात नहीं लिख रहा तो तुम्हें मैं पसंद आऊं या नहीं, मुझे लिखने से कैसे रोक लोगे? ऐसे ही तुम्हें भी और किसी को भी कोई भी नहीं रोक सकता।  देखा जाये तो कितना कुछ बिखरा पड़ा है यहां, धर्म, राजनीति, साहित्य, मनोरंजन, खेल।  ढूंढो तो सबको अपनी पसंद का मैटीरियल यहां मिल जायेगा।  बाकी सबके अपने अपने ख्याल और अपनी अपनी सोच। और अपना तो ये मानना है कि छोटा परिवार सुखी परिवार। हमारा फ़त्तू ही ज्यादा समझदार निकला। अभी कल ही हमारे फ़ॉलोअर्स की संख्या देखकर चिंतित हो गया, कहने लगा, “महाराज, चेले घणे हो गये?” मैंने देखा और हैरान हो गया, “भाई, अभी तो पच्चीस हुये हैं।”  कहने लगा, “महाराज, पच्चीस की संख्या मत देखो, एक लाखों के बराबर है। मेरी चिंता समझो, चेले घणे हो गये।” मैंने दिलासा दिया, ’भूखे मरते खुद आप भाज जायेंगे, तू क्यों परेशान है।” हम तो जी अपने इस चेले से बहुत कुछ सीख रहे हैं।
:) फ़त्तू ने मैरिज ब्यूरो खोला।  गांव का पुराना परिचित एक बूढ़ा एक दिन आया और अपनी लड़की के रिश्ते की बात करने लगा।
फ़त्तू ने पूछा, “पर रामभतेरी का तो ब्याह पाछले साल हो गया था?” 
बूढ़ा बोला, “रै भाई, उसका घरआला बीमारी में मर गया है। सोचूं हूं कि राम भतेरी ने बैठा दूं(दूसरे ब्याह को देशज भाषा में बैठाना ही कहते हैं) तो चैन से मर जाऊंगा।”  
फ़त्तू ने रिश्ता करवा दिया।  छ महीने बाद फ़िर मुलाकात हुई, बूढ़े ने नये वर के एक्सीडेंट में मर जाने की बात बताई और फ़िर  वही डिमांड रखी।  फ़त्तू ने फ़िर रिश्ता करवा दिया। 
चार महीने फ़िर गुजरे कि बूढ़ा फ़िर आ गया और बोला, “भाई कोई रिश्ता बता राम भतेरी के लिये।”  
फ़त्तू, “अर वो बैठाई थी, चार महीने पहले?”   
बूढ़ा, “रै भाई,  वा फ़ेर खड़ी हो गई।” 
फ़त्तू, “बात यो सै कि तेरी राम भतेरी ने तो खड़े होन की आदत हो री सै, इअने अब खड़ीये रैन दे।”

योही हाल सै जी म्हारे ब्लागजगत का, राम भतेरी(मुद्दा\विवाद) ने कितना ही  बैठा लो, दस दिन न बीते हैं कि फ़ेर खड़ी हो ले सै यो राम भतेरी, नये रूप में और नये अंदाज में।
छोटे और बड्डे ब्लॉगरों, तुम देख लो अपना हिसाब किताब। अपनी तो कट ही जायेगी…..जैसे तैसे…….

अब आज का प्रश्न, ऊपर कालिदास के सन्दर्भ में जो भूमिका बांधी गई है, उसमें लेखक किस रोल में है?  करेली(नीमचढ़ी), लकड़हारा, पराजित पीड़ित शोषित सद्स्य या कुछ और? पहले की तरह ईनाम विनाम के भरोसे मत रहना, हम देने वाले नहीं हैं। देने को सिर्फ़ हमारे पास धमकी है, वो वैसे भी दे देंगे कभी।

24 टिप्‍पणियां:

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  2. लेखक ने इस पोस्ट में अपने ब्लॉग-नाम को सार्थक करने की कोशिश की है.

    — या तो वो अन्य ब्लोगों के फोलोअर्स-संख्या को देखकर दुखी मन से पराजित महसूस कर रहा है और किसी कालीदास की तलाश में भटक रहा है जिसे वह मोहरा बना सके. फिर कभी वो अन्य विद्वत [शतक टिप्पणीवीर] ब्लोग्गर्स के सम्मुख नतमस्तक हो उनसे प्रतिशोध लेने को योजना बनाने की शोचता है मतलब किसी शून्य-विचार वाले ब्लॉगर को शतकवीर से चेपने की तिकड़म लगाने की सोचता है.


    — या फिर वो स्वयं कालीदास की तरह डाल पर बैठा-बैठा अपने पोस्टें भेजे जा रहा है लेकिन सब की सब टिप्पणी विहीन देख दुखी हो जाता है.


    आपकी फत्तू कथा मनोरंजक लगी.

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  3. 'इस दुनिया में अधिकतर लोग इस बात से सुखानुभूति कर लेते हैं कि दूसरे दुखी हो रहे हैं 'ज्ञान खूब बाँट रहे है गुरुदेव ,,,,और हां ...फोलोअर के मामले आप बड़े धनी है ,,,एक तुला राशी का फोलोअर तो बड़ा ही जोरदार ..चेला है आपका ...इस मामले में तो हम ही कंगाल है ,,,जहाँ पढने वाले सिर्फ आप जैसे है :) : ) :) ...

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  4. अब आज का प्रश्न, ऊपर कालिदास के सन्दर्भ में जो भूमिका बांधी गई है, उसमें लेखक किस रोल में है।
    बेफिक्र रहो जी, हम तो अपना फायदा देखे बिना किसी दुश्मन का भंडा भी नहीं फोड़ते, आप तो मित्र हो. वैसे प्रश्न के अंत से विराम का लट्ठ हटाकर प्रश्न का हुक (या क्रुक) लगा दीजिये!

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  5. भइया मन्ने तो लागे हे कि ई ससुरा लेखक कटन वाली डाल के रोल में है... अब धमकी ना दईयो मोकों.. :D हम भी ई राम भतेरी के बारम्बार खड़े हुई जावन सें हडे हैंगे ..

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  6. ha ha ha too good..maja aa gaya ekdam jhakkas type ka likha hai .

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  7. हम तो मौन धरे हैं चाहे मौसम कैसा भी कर लो....:)

    ’बिटवीन द लाईंस’ विधा में ऐसी गजब महारत...वाकई, बहुत खूब!!

    मस्त लेखन!

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  8. दीपक "मशाल" के जवाब पर भी गौर फरमाया जाए.

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  9. आईये जाने .... प्रतिभाएं ही ईश्वर हैं !

    आचार्य जी

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  10. @ deepak:

    भाई दीपक,
    आऊं सूं थारा चेला बनन मैं भी।

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  11. बहुत लंबी पोस्ट है, कल पढूंगां जी
    आपकी पोस्ट है तो बिना पढे भी नहीं छोड सकता

    प्रणाम

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  12. मैं अभी फिर से आऊंगा.... पूरा दिल लगा कर पढना पड़ेगा.... आख़िर आपकी पोस्ट है..... दिल से पढना है ना....

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  13. राम भतेरी को खडा ही रखो भाई .बैठ गयी तो एक आध को फ़िर अलविदा करवा कर ही छोडेगी .{ मै विवाद के बारे मे ही कह रहा हू }

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  14. Writer seems to be in the role of Kareli's beloved.

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  15. हम भी पूरी कोशिश करेंगे कि रामभतेरी खड़ी ही रहे। बैठाते ही दंगे करती है। बढिया प्रस्‍तुति आनन्‍ददायक।

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  16. क्या आप मे से कोई ऐसा है जिसने महाकवि कालिदास के बारे में न सुना हो?
    न जी, हम तो न जानते इनके बारे में...ये कोई नये बिलागर आए हैं क्या? :)

    "अब यहां तो देने लेने के अलावा और कुछ है ही नहीं। कमेंट दो, कमेंट लो"
    लो कल्लो बात्! मिय़ाँ अभी जरा चन्द रोज ठहरिए तो सही...अभी तो एक ओर नया खेला शुरू होने वाला है...."सम्मन दे, सम्मन ले"

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  17. मजा आ गया आज पहिला बार एहाँ आकर... ब्लोग जगत में सम्मान से सम्मन तक का नजारा देख लिए... छोटा परिवार का मुहावरा एक दम सटीक चिपियाएं हैं... नम्बर उम्बर के चक्कर में त हमहूँ नहीं हैं... बाकी बिबाद से तनी घबरा जाते हैं..मन का सांति खतम हो जाता है...

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  18. Maikya Fattu ji,
    Sat Sri Akal and Copy To All!
    Tussi udda hi mainu daraye jaande ho! Kiven na hansiye.....? Tuhade jo bas mein hai oh kar lo!Rahee gal ladai-jhagde di to, Lokan nu duja hor koi kaam ni han! Aiwen hi lade jaane hain!
    Hun dasso, main sikkh gaya maadhi-motti Punjabi ya ni aje?
    Hor ye hor lo......
    Ha ha ha ha ha ha ha ha

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  19. इतने दोनों के बाद आज पढ पाया जी आपकी यह पोस्ट
    बुकमार्क करके रखली थी।
    टिप्पणी के लिये शब्द नही है, बस इतना ही कहूंगा कि बहुत मजा आया इसे पढने में। बहुत पसन्द आई।

    प्रणाम स्वीकार करें

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  20. @ deepak:
    भाई दीपक, ये कटी डाल का सैल्यूट ले लै, ड्यू रह रहा था।

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