इस बार क्रिसमस का त्यौहार बहुत बढ़िया दिन था। आप कह सकते हो कि हर बार ही २५ दिसंबर को होता है, इस बार बहुत बढ़िया दिन कैसे हो गया? बात ये है कि इस बार पच्चीस दिसंबर शनिवार को था। दो दिन की छुट्टी एक साथ मिल जाये तो हमारे लिये तो जैसे जैकपॉट लग गया हो। बच्चों के स्कूल वालों ने इस बार छुट्टियों और परीक्षाओं का ऐसा घालमेल किया कि सर्दी की छुट्टियों में हमारा पेरेंट्स के पास जाना संभव नहीं हो पाया। अपने दो दिन की छुट्टी का जब पता चला तो हमने बहुत दिनों से थमी अपनी आवारगी को फ़िर से जिन्दा करने का फ़ैसला किया। सर्दी इतनी ज्यादा थी कि रजाई छोड़कर जाने का मन नहीं किया। वैसे भी अब हम कोई ऐंवे से बंदे नहीं रहे अब, हम हो गये हैं ब्लॉगर। अपनी बिरादरी के अकेले ब्लॉगर, अपने ऑफ़िस के अकेले ब्लॉगर, अपनी गली मुहल्ले शहर के भी संभवत: अकेले ब्लॉगर। तो सोचा कि चलो वैसी आवारगी न सही, आज वर्चुअल आवारगी ही सही। जानी पहचानी साईट्स को छोड़कर नई राहों पर चला जाये। लेकर ऊपर वाले का नाम, गूगल सर्च पर पता नहीं क्या डाला था, भूल गये अब और खुल गया एक नया रास्ता, एक नई डगर। पहला ही कदम और वो मुहावरा सच होता दिखा कि ’जहँ-जहँ पड़े पैर संतन के, तहँ-तहँ बंटाधार।’ अपनी तो आँखें और मुँह खुले के खुले रह गये। आश्चर्य भी हो रहा था और कभी खुशी कभी गम भी। आप भी देखें जरा, ।
सम्मान योग्य पुजा देवी उर्फ़ पुजा देबी अलियास puja jha, यही पोस्ट मय फ़त्तू फ़ीचर, मेरे ब्लॉग पर 17 जून 2010 को छप चुकी है। जो मैंने लिखा था, वो किसी और को भी पसंद आया और इतना पसंद कि उसे अपने ब्लॉग पर छाप डाला, सही मायने में तो खुशी हुई अपने को। आखिर किसी को तो हमारा उंगलियां तोड़ना भाया:) धन्यवाद पुजा देबी जी। फ़िर हमें तो वैसे भी चोरी की आदत हो चुकी है। कभी दिल चुरा लिया किसी ने, कभी चैन। किसी ने ख्वाब चुरा लिये तो किसी ने नींद ही चुरा ली। फ़िर हमने भी तो ये प्लॉट कहीं से चुराया ही था। यूँ समझ लेंगे कि चोरों को मोर पड़ गये। बस थोड़ा सा अफ़सोस है कि खबर न हुई हमें।
इसी बहाने आपका सारा ब्लॉग देखा। धर्म, व्रत, त्यौहार जैसी चीजों से अटा पड़ा है आपका ब्लॉग। फ़िर ये पोस्ट, बात कुछ हजम सी नहीं हुई।
हमारे पड़ौस में एक बुढि़या एक दिन सुबह सुबह घर के बाहर झाड़ू बुहारी कर रही थी और गुनगुना रही थी ’तेरे मन की गंगा और मेरे मन की जमुना का, बोल राधा बोल संगम होगा कि नहीं, बोल राधा बोल….’ लड़कों ने पूछा, “चाची, सुबह सुबह ये क्या गा रही हो, फ़िल्मी गाना?” चाची ने तमक कर झाडू हाथ में ऐसे उठाया जैसे यल्गार कहकर क्राँति ज्वाला में कूदने ही वाली हो। “शर्म नहीं आती तुम्हें, फ़िल्मी गाने का नाम लेकर मुझे बदनाम करते? भजन भी नहीं बोलने देते।” लड़कों ने हैरान होकर पूछा, “भजन?” “तो और क्या नासपीटों? राधा, गंगा, जमना, संगम जैसे पवित्तर नाम तुम्हें सुनाई नहीं देते?” भोली-भाली चाची गच्चा खा गई थी इन नामों को सुनकर। ये कहानी सुनाने का मतलब ये है कि कहीं ऐसा तो नहीं कि चांद, पूर्णिमा, शांति दूत जैसे शब्द पढ़कर आपने भी इस पोस्ट को कोई धार्मिक पोस्ट समझ लिया हो? हा हा हा।
खैर अपने तो पांव जमीन पर नहीं पड़ रहे हैं, फ़िर से शुक्रिया। अब आपने तो मुझे जाने अनजाने खुशी दे दी है, मेरा भी फ़र्ज बनता है कि अपको थोड़ा सा आगाह कर दूँ। मेरी वैफ़(गिरिजेश जी, वैफ़ ही लिखा जायेगा यहाँ पर, काहे कि जब हम अंदर से खुश हों और ऊपर ऊपर से गुस्सा दिखाने का प्रयत्न करते हैं तो वाईफ़ को वैफ़ कहकर बुलाते हैं), हां तो पुजा देबी जी, अगर मेरी वैफ़ को ये सब प्रकरण पता चल गया तो मेरा तो जो हाल वो शक और हालात के मद्देनजर करेगी सो करेगी, आप को दिक्कत आ सकती है।
मेरे से इतना प्यार करती है मेरी वैफ़ कि मेरी तरफ़ आने वाली हवा, धूप, टिप्पणी गरज ये कि स्त्रीलिंग वाली कोई भी कुदरती या मानव निर्मित चीज उसे अपने लिये खतरा लगती है। इज्जत भी पूरी करती है वैसे तो मेरी, करती है तभी तो उतारती है:) उसका सबसे पहला डायलाग ये होना है, “मैं उसकी गुत काटकर उसके हाथ में दे दूंगी(और आपका गला) ” दूसरा, “आ गई एक और मेरी जान की दुश्मन(एक को भगाओ तो दूजी चली आती है)” तीसरा, “पता नहीं सारे मेरी जान के पीछे ही क्यों पड़ी हुई हैं(जैसे जान नहीं रसगुल्ला है)?” चौथा, “जरूर पहले से कुछ गड़बड़ चल रही होगी, आप तो हो ही ऐसे शुरू से ही (गुडविल\बैडविल बहुत है अपनी)” पांचवा, “मुझे पता था, एक न एक दिन ये होना ही है(अब तक कैसे नहीं पकड़े गये?)” और मैं, थोड़ा उसके प्यार को समझते हुये और ज्यादा अपनी इज्जत की परवाह करते हुये कुछ कह नहीं पाऊँगा। वैसे भी ये वाली पोस्ट मेरी ’ओ जी’ की बड़ी फ़ैवरेट पोस्ट है। अरे देबी जी, आपको लेकर ही जानी थी तो कोई और पोस्ट ले जातीं, या फ़िर ले जाने से पहले या बाद में एक सूचना भर दे देतीं तो इससे आपकी इज्जत कोई कम नहीं हो जानी थी और मेरी थोड़ी सी इज्जत अफ़जाई हो जाती।
सच में आपको इस बात की खैरियत मनानी चाहिये कि अभी मेरी बेचारी पत्नी(मेरी पत्नी है, ये ही अपने आप में उसकी बेचारगी का सुबूत है) अपने स्वास्थ्य आदि व्यक्तिगत समस्याओं के कारण मसरूफ़ है और इस तरफ़ उसका ध्यान गया नहीं है, नहीं तो बस हो जानी थी दो पडौसी राज्यों की टक्कर।
आगे से ध्यान रखियेगा, गलती हम सबसे होती है लेकिन आगे के लिये हम सबक सीख लें तो बेहतर ही है। मानें आप तो अच्छा है नहीं तो हमारी तो देखी जायेगी..!!
:) फ़त्तू शादी के बाद बहू को लिवा कर घर आ रहा था। दोनों पैदल ही लौट रहे थे। रास्ते में एक छोटा सा नाला आया। फ़त्तू ने तो लगाई छलाँग और हो गया पार, बहू अटक गई।
हारकर बोली, “ए जी, मुझे भी नाला पार करवाओ न”
फ़ेरों और जयमाला के दौरान फ़त्तू उसके बहुत नखरे झेल चुका था, बोला, “इब आई ना ऊँटनी पहाड़ के तले? पार तो करवा दूंगा पर पहल्यां तीन बार काका बोल मन्ने।”
ऐसे भजननुमा शिकायती पोस्ट पढने को मिले तो एक-दो मैं भी उठा के चेप दूं अपने ब्लॉग पर :)
जवाब देंहटाएंमतबल इ है कि अब जाकर आप एक elite blogger बन पाए हैं ... अजी वो ब्लॉगर ही क्या जिसकी रचनाएँ चोरी न हो ... इसलिए कोई गम नहीं ...
जवाब देंहटाएंइ ससुरी आभासी दुनिया ही ऐसी है ... यहाँ चोरी करना भी आसान और पकडे जाना भी ... और पूजा जी तो बिलकुल धार्मिक प्रवृति के लग रही है मुझे ...
अब देखिये न ... एक तरफ व्रत त्यौहार के पोस्ट तो दूसरी तरफ ... सनिये से शादी करदे ... भी है ...बढ़िया विडियो है जी ... एक बार तो आप भी देख ही लीजिए ... गम भूलके ...
बहुत बधाई हो आपको, अनुयायी बनते जा रहे हैं। जाड़ों में रजाई में निश्चेष्ट हो पड़े रहें और सार्थक चिन्तन करते रहें, नववर्ष में और ठंडाना पड़ेगा अभी तो।
जवाब देंहटाएंहास्य तो बहुत बढ़िया है लेकिन पुजा देबी के ब्लॉग पर जा कर अपना विरोध जता दीजिए। अपन को ऐसी घटनाओं पर बहुत गुस्सा आता है।
जवाब देंहटाएंबिना बताये केवल दिल दिया लिया जाता है, यह तो हद्द है!
अपनी दुरूह परम्परा में एक ठो पुरानी अंग्रेजी कविता के अंश का अनुवाद देते जा रहा हूँ:
हमें पिघलना है, आँसू नहीं, कोई शोर नहीं।
तूफानों में चलना, आह नहीं भरना।
उल्लासी पापी व्यवहार,
प्यार उन्हें बताने को,
जिन पर पूजा का दायित्त्व नहीं।
जवाब देंहटाएंमुबारक हो संजय ....
ब्लॉग लिखते और कमेन्ट करते हज़ारों ज्ञानियों के बीच अब तुम कुछ तो ऐसा लिख ही रहे हो , पुजा देवी जैसी महान लेखिकाएं अब आपकी छोटी सी चोरी कर भी ले गयीं तो क्या फर्क पड़ेगा .....?
यहाँ ब्लॉग जगत में पढता कौन है संजय ??
यहाँ सिर्फ एक होड़ है अपने नाम कमाने के लिए.....
टिप्पणियों के लिए ताकि बता सकें हमें इज्ज़त देने वाले बहुत लोग हैं ....
अफ़सोस है यहाँ अपने आपको, चिन्तक विचारक के रूप में स्थापित करना बेहद आसान है........
विद्वता की इस खान में, समझने समझाने की कौनों जरूरत नहीं ...
कौन किसे टिपिया (चपत मार कर)कर चला जाएगा कुछ पता नहीं ...
जाने भी दो यार....
sundar, badhiya post.
जवाब देंहटाएंआपके ब्लॉग पर आने से दिल पर आनंद वर्षा हो जाती है...फत्तू तो हर दिल अज़ीज़ है...हर पति का प्रेरक और नुमाइंदा है फत्तू...पूजा जी का ब्लॉग भी देखा और गश खा कर गिर पड़े...आजकल चोरी के साथ साथ सीना जोरी भी होने लगी है...
जवाब देंहटाएं"मैं उसकी गुत काटकर उसके हाथ में दे दूंगी"
दुनिया की सारी पत्नियाँ एक से डायलोग क्यूँ बोलती हैं? कोई बतलायेगा?
नीरज
ठगित ब्लॉगर संघ की मेंम्बरी मिलने पर बधाई हो संजय जी। ये इकलौता ऐसा संघ है जिसके लिये फार्म वगैरह भरने की जरूरत नहीं होती। इधर आपकी रचना चोरी हुई उधर आप मेंम्बर बने :)
जवाब देंहटाएंअपन भी इस संघ के ठिये पर अड़्डा जमा चुके हैं कभी जब मेरी सदरू भगत वाली पोस्ट चोरी की गई थी।
by god की कसम क्या ये धार्मिक ब्लॉग नहीं है ??? हे भगवन मेरा तो धर्म ही भ्रष्ट कर दिया मै तो कितने दिनों से इसे धार्मिक ब्लॉग समझ कर भजन किये जा रही थी | मै तो समझ रही थी की लोगो का खून खौलने वाले धार्मिक ब्लोगों के बीच लोगो को हंसा हंसा कर खून बढ़ाने वाला ये एक धार्मिक ब्लॉग है | काहे हमारा भरम तोडा दिया इसका बदला बराबर लिया जायेगा नहीं दे रहे है अपने वैफ का ईमेल आई डी तो ठीक है अभी दो चार फेक आई डी बना लेती हु मल्लिका देवी , मलाईका देवी , बिपासा देवी के नाम से हर पोस्ट पर दो चार दस टिप्पणी इन नामो से बाकि का काम तो अपने आप ही हो जायेगा | बढ़िया आईडिया दिया आप ने सर जी |
जवाब देंहटाएंऔर फत्तू ठीक है जल्द ही दादा बनेगा |
lut gaye chori main.
जवाब देंहटाएंगया था जी पूजा देबी के ब्लॉग पर
जवाब देंहटाएंना कमेंट करने का रास्ता छोडा है ना ईमेल का
खैर भाभी जी अपने आप समझ लेंगी देबी को भी और देवता को भी, हमें क्या :)
खुद ही इतना बढिया लिखते हो तो भुगतो
प्रभु को प्रणाम
मेरा मन तो ये करता है कि मो सम कौन की प्रोफाईल पर ही अपनी फोटो चेप दूं। :)
जवाब देंहटाएंएक-आध पोस्ट उठाने से क्या फायदा, पूरा मो सम कौन ही मैं ना हो जाऊं।
असंभव!!!!
जवाब देंहटाएंआपको अभी पता चला कि ऐसा कुछ है?
हमें तो लग रहा था कि आपकी हर एक पोस्ट मय 'मो सम कौन' और 'उस लिखने वाले' नाम के डिस्क्लेमर के साथ दसियों जगह छप चुकी होगी।
कोई मराठी/गुजराती/पंजाबी/हिब्रू/सिंघलिज़ अनुवाद होता तो फिर भी हम खबर मानते, इस में नया क्या है?
लोग हम जैसों के लाचीदाने उठा ले जाते हैं (दोने के साथ), आप के पास तो पूरा गन्ने का खेत है।
पहले बताया होता तो मैं ही चुरा लेता कुछ, आप ने मुझसे ये सुनहरा मौक़ा छीन बहुत नाइंसाफी की है।
वैसे ये बहुत पुरानी आदत है इस ग्रह की, मुझे ही ३ साल का अनुभव है। मंगल पर पुछवाया?
देबी जी के यहाँ लिखने की जगह है नहीं (होनी भी न थी), पर शाबाशी की हकदार तो हैं वो, चुन कर अच्छा समान उड़ाया। वरना कुछ चोर बेचारे ....
हास्य बहुत अच्छा है (रिपीट मोड में लगा हुआ है ये गीत), और उठाया अच्छा ही जाता है।
P.S.: ज़हीर खान के सब चाचा हैं, अभे कुरूविला कौन? :)
आह संजय ..... वाह संजय......
जवाब देंहटाएंपोस्ट तो गार्डन गार्डन हो रही है......... गाने में दुखी क्यों ?
@नीरज जी,
"मैं उसकी गुत काटकर उसके हाथ में दे दूंगी"
दुनिया की सारी पत्नियाँ एक से डायलोग क्यूँ बोलती हैं? कोई बतलायेगा?
नहीं जी, हमारी जोगन कहती है..... गुट पकड़ कर बार कर देवांगी, तुन्हानु नाल........
लो जी आज तो फत्तू काका भी भये.
जवाब देंहटाएं:)
@ अभिषेक ओझा:
जवाब देंहटाएंशिकायती पोस्ट कहाँ से लगी यार तुम्हें? थोड़ा बहुत तो कहना ही पड़ता है, तुम ठैरे अभी छड़े। जल्दी समझ जाओगे प्यारे, टैम आयेगा तो:)
@ Indranil Bhattacharjee:
दादा, हम हैं काली कमलिया वाले, चढ़े न दूजो रंग। still a proud-non-elite blogger. और गम का क्या काम, अपने पास..मस्ते-मस्त।
@ प्रवीण पाण्डेय जी:
एक बाबाजी के भक्त बढ़ते जा रहे थे, तो उनका मुख्य चेला मठ की आर्थिक स्थिति देखकर बोल उठा, "बाबाजी, चेले घणे होग्ये"
बाबाजी, "चिंता मत कर बालक, भूखे मरते आप भाग जायेंगे"
म्हारी रजाई न छीने जी कोई, कर लेने दे हमें सार्थक चिंतन वगैरह।
@ गिरिजेश जी:
आचार्य, क्रोधित न हों। गये हम भी थे, लेकिन धन्यवाद करने, दरवाजा बंद मिला।
परंपरा जारी रहे।
@ सतीश सक्सेना जी:
बड़े भाई, जिसके पास जो है वही तो दे सकेगा। मुझसे कोई डालर की उम्मीद रखे तो निराश ही होगा। इस दुनिया को राम, कॄष्ण, नानक, ईसा नहीं बदल सके, हम आप क्या बदलेंगे?
(...) तो नहीं गये हो आप:)
मान गए आपको, आपके यहाँ चोरी हुई फिर भी आप खुद को धन्य समझ रहे हैं कि चोर ने आपके घर में सेंध मारी मतलब उनकी नजर में आप भी कुछ औकात रखते हैं।
जवाब देंहटाएंबड़े सज्जन आदमी हैं यार आप। अब आपके पुराने माल पर नज़र डालनी पड़ेगी, अपने लायक भी कुछ मिल ही जाएगा। और हाँ हम पढ़के ही चेपेंगे। बल्कि थोड़ा कांट छांट भी कर लेंगे ताकि आपकी शैली पकड़ मे न आए। :)
"मैं उसकी गुत काटकर उसके हाथ में दे दूंगी"
भाई जी ये गुत माने क्या होता है और ये किस भाषा का शब्द है। आप नही बताएंगे तो अजित जी से पूछना पड़ेगा। :)
ऐसे ही एक पोस्ट मुझे भी दिखायी दी थी, मैंने टिप्पणी में लिखा की भाई हूबहू ऐसा ही आलेख पूर्व किसी की पोस्ट पर भी पढा गया है तब हमेशा ही जो होता है वही हुआ कि हमारी टिप्पणी मोडरेशन की भेंट चढ़ गयी। हम तो तभी से मोडरेशन वाले पोस्ट पर टिप्पणी करने से डरते हैं। लेकिन आपको बधाई कि आपने स्वयं ने ही चोरी पकड़ ली।
जवाब देंहटाएं@ Arvind:
जवाब देंहटाएंThanx.
@ नीरज गोस्वामी जी:
नीरज भा जी, हर पत्नी एक से डायलाग इसलिये बोलती है क्योंकि हर पति एक सा ही होता है(कम से कम अपनी पत्नी की नजर में) :))
@ सतीश पंचम:
अब हम तो स्वघोषित अनुयायी हो ही गये हैं आपके, जब लैमनचूस के लिये तैयार हो गये तो ये ठगित भ्रमित संघ की मेंबरी से भी पीछे नहीं हटेंगे।
@ Anshumala ji:
हो पक्की नारीवादी आप!
सारे कुसूर हमारे ही निकाले।
निर्मल हास्य तो समझती नहीं हैं, बात करती हैं नकली प्रोफ़ाईल वगैरह की। हम भी ऐसी ही एक फ़ीमेल आई.डी. बनाकर भेज देते तो शायद ठीक रहता। व्हाट ऐन आईडिया मैडम जी :))
@ Poorviya:
कौशल जी, लुट तो पहले चुके हैं, अब तो पिट गये हैं हम।
@ अन्तर सोहिल:
जवाब देंहटाएंअमित,एक मेरा फ़ेवरेट गाना है, ’कभी सोचता हूँ........ बहुत ज्यादा प्यार भी अच्छा नहीं होता,
कभी दामन छुड़ाना हो तो मुश्किल हो’
यार, हो बहुत प्यारे। पर ये गाना स्साला बहुत हांट करता है:)
@ अविनाश:
राज्जा, हमारे गन्ने के खेत हैं तो तुम्हारी केसर की क्यारियाँ हैं - no comparison at all. गाना सुनने में लगा तो ठीक ही होगा।
p.s. - जैसे ’सास भी कभी बहू थी’ वैसे ही हर जहीर खान, इरफ़ान पठान, धोनी कभी........।
@ दीपक बाबा:
एक सूत्र है, ’सुखदुखे समेकृत्वा....’ - जिन्दगी में जो चीज मिसिंग हो उसे खुद ही न्यौत दो कि भाई जल्दी आ और फ़िर जा, इसीलिये गाना ऐसा लगा दिया:) और नीरज जी ने जो पूछा है वो आम इंसानों के लिये है, तुस्सी तो बाबा और जोगन हो, थोड़ा सा फ़र्क तो होना ही था यारा।
@ काजल कुमार जी:
आगे-आगे देखिये ...:) शुक्रिया सर।
@
@ सोमेश सक्सेना:
जवाब देंहटाएंऐसा इसलिये सोमेश भाई कि अपन पहले दिन से ही इस मुगालते में नहीं रहे कि हम कोई उत्कृष्ट साहित्य रच रहे हैं। रही बात सज्जनता की तो बगुला भगताई करेगा तो मछलियाँ आयेंगी ना?:))
छोटी छोटी बातों के लिये अजीत जी को काहे तंग करोगे यार, हम ही बता देते हैं। ’गुत’ बोले तो ’चोटी’ स्त्री के बालों की चोटी। पंजाबी भाषा का शब्द है, एक गाना भी है बहुत मशहूर - ’काली तेरी गुत ते परांदा तेरा लाल नी।’ नई नई दोस्ती है इसलिये इतनी सप्रसंग व्याख्या कर दी है, अब अपनी जबान निभाना, एकाध चोरी कर लो ना यार तुम भी, प्लीज़:))
@ अजीत गुप्ता जी:
मैडम, मोडरेशन में मैं कोई बुराई नहीं समझता बशर्ते उसका सही इस्तेमाल किया जाये। डरते वरते अपन नहीं, लेकिन जहाँ एक बार अपनी टिप्पणी दबी या गलत समझी गई, वहाँ साधारणतया टिप्पणी करते ही नहीं। उन्हें टिप्पणियों की कमी नहीं और हमें टिप्पणी करने वाली जगह की।
स्पष्ट राय देने के लिये आपका आभार।
ब्लॉगर सूची के लिए यह पैमाना कैसा रहेगा, देखा जाए कि किसकी कितनी पौस्ट कितनी बार चोरी हुई. वैसे पता आपको पहली बार चला, लेकिन आपके पास जो जमा-पूंजी है, उस पर और भी हाथ साफ हुए होंगे.
जवाब देंहटाएंआज तो हम भी लिंक बिखेरकर जाएँगे.. आप से जो बन पड़े कल्लो!!
जवाब देंहटाएंhttp://chalaabihari.blogspot.com/2010/12/blog-post_29.html
बाउजी एक बात बताओ चोरियां किसके यहाँ होती है भिखमंगों के घर पर या फिर धनवानों के यहाँ. अब ज्यादा कुछ कहूँगा तो टंकी पर चढ़ाने का आरोप लगेगा.....
जवाब देंहटाएंबाकी सब तो जो है सो है, लेकिन आप 'हर' में नहीं आत़े। हमारी आपत्ति दर्ज करें। :)
जवाब देंहटाएं"खैर अपने तो पांव जमीन पर नहीं पड़ रहे हैं, फ़िर से शुक्रिया।"……।
जवाब देंहटाएंओये बधाईयाँ सर जी… लख-लख फ़्री एक्सेल साइज बधाईयाँ :P
वैसे अपन भी कुछ ओरिजिनल नहीं कहने जा रहे बस आप ही की कही कहावत चेप रहे हैं… "जहँ-जहँ पड़े पैर संतन के, तहँ-तहँ बंटाधार…"। वैसे भी कुछ लोग "वसुधैव कुटुम्बकम" का जाप करते हैं आज कल, तो अपने कुटुम्बों की चीज को अपना मान कर चेप लिया तो क्या गुनाह किया… :P
नमन्।
@ राहुल सिंह जी:
जवाब देंहटाएंइस पैमाने का तो कह नहीं सकते सर, लेकिन क्वालिटी कमेंट्स का पैमाना हो तो अपन भी कहीं न कहीं, किसी न किसी पायदान पर जरूर होंगे।
@ सम्वेदना के स्वर:
बन्धुओं, आप बिखेरोगे तो हम समेटेंगे, और क्या चारा मुझ बेचारे को:)
@ विचारशून्य:
दोस्त हो तो इल्जाम तो लगेंगे ही, और तुम हँसकर झेलोगे:)
@ अविनाश:
न ’हर’ में न ’हरि’ में, कर ली भाई आपत्ति दर्ज, तुम्हें नाराज थोड़े ही करना है:)
@ रवि शंकर:
अपने कुटुम्ब? मरवाओगे यार मुझे..!!ये फ़्री-एक्सेल साईज़ की बधाईयां धरी की धरी रह जायेंगी:) खैर, शुक्रिया तो लो..
वाह मित्र क्या बात है। पहली पोस्ट बाद में पढ़ी तो पता चला कि आप भी.(सॉरी पोस्ट) चोरी भी होने लगे हो....भाभीजी की बात भी ठीक है की कहीं चोरी हो गई तो बेचारी कहां से लाएंगी इतना भोला भाला बंदा। वैसे जी सु डो को खेलने वाले पलायनवादी होते हैं या नहीं,पता नहीं...पर वादे तो होते हैं जी जो याद करने पड़ते हैं..जिनके सहारे चला जाता है.....हर चीज को पलायनवाद से जाने क्यों जोड़ देते हैं.....
जवाब देंहटाएंइसी से साबित होता है .
जवाब देंहटाएंहमारा परिवेस कितना बेपरवाह हो गया है.
काम किसीका भी हो नाम हमारा भी होना चाहिए.
वैसे आपका और आपके प्रशंसकों की प्रतिक्रिया असर लाएगी.
जल्दी कोई कॉपी करने मैं डरेगा.
संजय जी
जवाब देंहटाएंइस जानकारी के लिए शुक्रिया। वो गाना कई बार सुना था लेकिन शब्दों पर ध्यान नहीं दिया था।
यार वो चोरी वाली बात तो हमने मज़ाक में कही थी, आप तो पीछे ही पड़ गए। सही में कहीं आपके ब्लॉग से चोरी कर ली तो आप इन मैडम की तरह हमारी भी इज्जत उतार देंगे। :)
अगर चुराना ही होगा तो ऐसी जगह से चुराएंगे कि कोई पकड़ ही न पाए। यही तो असली हुनर है। है न? :)
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएं@ संजय जी
जवाब देंहटाएंलो जी गांव बसा नहीं लुटेरे पहले ही आ गये , ये कहावत आप के ही ब्लॉग पर पढ़ा था | ब्लैकमेलर पर कोई रिपोर्ट बना कर कही रखी है तो संभल जाइये, मुझे तो भविष्य दिख रहा है कलमाड़ी की घर की तरह आप के कंप्यूटर पर wife श्री की रेड पड़ी और कलमाड़ी की तरह ही ब्लैकमेलिंग की सीडी और पत्र की तरह आप की रिपोर्ट भी हाथ आ गया सीधा रेडीमेड सबूत ज्यादा जाँच पड़ताल की जरूरत नहीं कलमाड़ी को पर आपकी तो दी गई एक एक टिप्पणी की जाँच होगी | फिर क्या शिकारी खुद यहाँ शिकार हो गया | फिर देते रहिएगा वैफ को सफाई उम्र भर अब ये ना कहियेगा की देखी जाएगी क्योकि फिर उसके बाद देखने के लिए कुछ बचेगा ही नहीं :))))
बंटी चोर का आतंक अभी थमा भी नहीं था कि चोरनी आ गई। दूसरे ब्लॉग की सामग्री उठाना एक अच्छी परम्परा की शुरूआत हो सकती थी बशर्ते मूल लेखक का लिंक या संदर्भ दिया जाए। इससे सामग्री की पाठकीयता और मूल लेखक की लोकप्रियता-दोनो बढ़ती। मगर चोर लोग भी व्यस्त रहते हैं। यह सब करने का वक्त कहां!
जवाब देंहटाएंउम्दा पोस्ट !
जवाब देंहटाएंनव वर्ष(2011) की शुभकामनाएँ !
@ boletobindas:
जवाब देंहटाएंबल्ले तेरे बिंदास रोहित, २०-२० वाले रोहित शर्मा की तरह शानदार स्ट्राईक रेट दिखाते हुये एक ही तगड़ा सा कमेंट और हमारी कई पोस्ट्स को समेट लेते हो:) शुक्रिया, दोस्तों को संभालते रहते हो बीच बीच में।
@ संदीपन:
सुभेच्छाओं के लिये सुक्रिया।
@ सोमेश सक्सेना:
हमें तो उंगली पकड़ाओ एक बार, पहुंचा हम खुद पकड़ लेते हैं। और यार, आप क्यों चोरी करेंगे? आप तो खुद बहुत अच्छा लिखते हैं, सच में।
@ anshumala ji:
कलमाड़ी साहब(साहब तो कहना ही पड़ेगा इन्हें) को पता चल गया इस कमेंट का तो आप पर मानहानि का मुकदमा दर्ज कर देंगे। अब आप मत कहियेगा, ’देखी जायेगी......’:))
आप इतने फिक्रमन्द थे कि "मो सम (लेखक) कौन?" सो पूजा जी ने बिल्कुल आपका जैसा लेख लिखकर बता दिया कि आप सम कौन? जाके शुक्रिया अदा कर सकते हैं मगर मुझे शक है कि वे टिप्पणी पढेंगी या उन्हें यह पता भी होगा कि उन्होने जो किया वह सही बात नहीं है। शायद वे आपके ब्लॉग का एक बुकमार्क चाहती हैं मगर तकनीकी जानकारी न होने के कारणॅ नकल करके रख लिया है।
जवाब देंहटाएं@ कुमार राधारमण जी:
जवाब देंहटाएंसंदर्भित ब्लॉग की शुरूआती पोस्ट्स में से है मेरी पोस्ट, हो सकता है कि अनजाने में ही यह काम हो गया हो उनसे। इसलिये एकदम से कोई इल्जाम लगाना मुझे भी नहीं जंचा था, इसीलिये थोड़ा हास्य का पुट देकर पोस्ट लिखी थी। आपसे भी गुजारिश कि ’बेनेफ़िट ऑफ़ डाऊट’ दिया जाये।
@ डा. हरदीप संधू:
शुक्रिया डा. संधू, और आपको भी नववर्ष की ढेर सारी बधाईयां।
@ स्मार्ट इंडियन:
सरजी, अपना मो सम(कुटिल, खल, कामी) कौन था। शुक्रिया ही अदा करने गये थे, कमेंट्स बंद हैं। आपकी बात वैसे भी नहीं टाल सकते।
वैसे बाई द वे, आप उस्ताद किसके हैं? :))
@वर्चुअल आवारगी
जवाब देंहटाएंसर जी, सर्फिंग की इससे बढ़िया व्याख्या मैंने नहीं देखी .
बाकी... छमा बड़न को चाहिए...
पूर्णिमा और शांति के साथ पूजा भी ? मुबारक हो :)
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएं@ prkant:
जवाब देंहटाएंअब क्या बतायें प्रो.साहब, बड़ों को तो पता नहीं क्या क्या चाहिये.
@ अली साहब:
आप भी वैसे कम तमाशाई नहीं हैं:))
@ अदा जी:
फ़ाईनल वर्डिक्ट तो आप ही का है जी। चोरी भी हमारे यहाँ हुई और पकड़े भी हमीं जायेंगे। बड़े बेदर्द हाकिम हैं इस ब्लागजगत में। नहीं करेंगे जी फ़रियाद, बेदर्द हाकिमों के आगे। हमारे दुख में भी हँसी करते हैं:))