शुक्रवार, जून 10, 2011

Banks of Bharat(Bharat that is India) क्षोभास्य:)


बैंकों का मुख्य काम(कागजों में)  जनता का पैसा जमा के रूप में स्वीकार करना और उसी पैसे को वैध तरीके से अर्थव्यवस्था के विकास के लिये ऋण के रूप में वितरित करना होता है। ये अलग बात है कि कहीं कहीं कुछ समझदार लोग  ’बिट्वीन द लाईंस’ का मतलब समझकर  फ़ॉड, गबन आदि वीरोचित  कार्य भी कर दिखाते हैं।   पिछले कुछ सालों में महाराष्ट्र(अकेला प्रदेश नहीं है, लेकिन अग्रणी है)  में सहकारी संस्थाओं\बैंकों के जरिये ऐसे सफ़ल प्रयोग हुये हैं और जिस प्रकार हर सफ़ल पुरुष के पीछे कम से कम एक स्त्री का होना बताया जाता है, उसी प्रकार प्राय: इन धोखाधड़ियों के पीछे कम से कम एक कैबिनेट मंत्री या ऐसे ही किसी प्रभावशाली का होना बताया जाता है। 

सरकार अपनी तरफ़ से हर कोशिश करती है कि जी.डी.पी. बढ़ती रहे, अर्थव्यवस्था सुचारू रूप से चलती रहे और इसके लिये बैंकों का इस्तेमाल एक औजार के रूप में किया जाता है। जब सही लगा था, तब राष्ट्रीयकरण किया  गया और जब सही लगा तो निजीकरण किया जा रहा है। सरल शब्दों में सरकार\सत्ता जो भी करती है, उसे सही मान लेना चाहिये इससे  दिन का चैन और रातों की नींद नहीं उड़ती है। यूँ भी हम लोग सरकार के गुलाम हैं, बैंगन के नहीं।(अकबर-बीरबल से साभार)

इसके अतिरिक्त भी सरकार  आवश्यकतानुसार(चुनाव के समय को ध्यान में रखकर)  कर्जमाफ़ी, ब्याज सब्सिडी वगैरह के माध्यम से जनता को राहत पहुँचाती रहती है और    जनता का सद्चरित्र रहना   सुनिश्चित करती है।(वोट डलने तक)

हमें चाहिये कि सरकार के प्रयासों को सही परिपेक्ष्य में लें और  ख्वामख्वाह की चिल्ल-पौं न मचायें। अगर किसी ने मचाई तो हमारा तो कुछ नहीं जायेगा लेकिन  उसपर कट्टरवादी, तमाशेबाज, मजमेबाज, ठग, धोखेबाज आदि होने का आरोप न सिर्फ़ मढ़ा जायेगा बल्कि साबित भी कर दिया जायेगा। और यदि कहीं चिल्ल्पौं(er)  भगवा या मिलते जुलते रंग के कपड़ों से सुसज्जित पाया गया तो उसे भगवा आतंकवादी भी मान लिया जायेगा, फ़िर न कहना कि चेताया नहीं।


DISCLAIMERS:
1.    बैंक में नौकरी करता हूँ, सो बैंक के बारे में लिखा है। सीधे सीधे बोलो तो पायजामे में रहने की कोशिश की है। आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि (हर) किसी को मिर्चें नहीं लगेंगी।
2.     भारत का रहने वाला हूँ, इसलिये सिर्फ़ भारतीय बैंकों की बात की है। इसका(और मेरा भी) स्विस बैंकों, कालाधन आदि आदि से कुछ लेना देना नहीं है।
3.     इस लेख की और लेखक(मेरी)  की विश्वसनीयता बिल्कुल भी असंदिग्ध नहीं है, क्योंकि अर्थव्यवस्था में अपना योगदान तीस तारीख से पहले थैला भरकर तनख्वाह लेने और साल छह महीने में एकाध हड़ताल करने तक सीमित है।   

27 टिप्‍पणियां:

  1. सच तो यह है कि महाराष्ट्र के सहकारी बैंकों में यह लूट-खसोट हमारे समय में भी होती थी। भूल गये केतन पारेख, हितेन दलाल का समय? और मामला यहाँ नहीं रुकता, वहाँ की सहकारी सोसाइटियों के उच्चपदाधिकारी धन के लिये और दूसरे धन्धे भी कराते रहे हैं।

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  2. भारत के सभी बैंक किसी ना किसी साहूकार ने शुरू किया था आज कमोबेश वही स्थिति है....

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  3. हम तो कुछ ना बोलेंगे। डरे हुए बैठे हैं कि कब आतंकवादी घोषित कर दिए जाएं। कांग्रेस सफल रही है जनता को डराने में, धमकाने में। लेकिन फिर भी इसके मंत्री रूकते ही नहीं जेल जाने से। अब तो इसे सुप्रीम कोर्ट को डरा देना चाहिए।

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  4. आज नए स्टाईल का तीर एक दम सही निशाने पर मारा है

    इन नेताओ का कुछ नहीं हो सकता ?

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  5. हर सफल पुरुष के पीछे एक स्त्री और हर सफल भ्रष्टाचार के पीछे एक मंत्री ज़रूर होता है ...

    वाह क्या बात कही है ... आपके इसी बात पे एकबार और "वाह" !

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  6. हम तो बैंक में पैसा जमा कर के भूल गये थे।

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  7. हम तो चिल्ल-पों मचाना तो दूर, बोलते भी नहीं जी
    बापू के बन्दर हैं जी हम

    प्रणाम

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  8. बहुतों का उद्यम एसएमएस और मिसकाल से मुकाम पा ले रहा है.

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  9. disclaimer laga ke hi aisi-taisi karne wali claim
    laga sakte hain...........maja aaya........

    pranam.

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  10. बोलते तो आलसी हैं। आप तो खोलते हैं!..पोल।

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  11. sir ji ,
    dhaansu. @ बैंक में नौकरी करता हूँ, सो बैंक के बारे में लिखा है। सीधे सीधे बोलो तो पायजामे में रहने की कोशिश की है। baba ram dev se yahin galti ho gayi. ek to bina sila vastr....doosre usse bhi bahar aane ki koshish....
    swish bank ke bare men bhi aap ki soch jyada labhdayak hai :)

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  12. कभी विस्तार से ये भी बताइए कि ये अपना काम (देश को चूना लगाने का) किस-किस तरह से अंजाम देते हैं.

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  13. ...ज्यादा चिल्ल-पों मचाई तो लतिया अथवा लठिया भी दिए जाओगे!!

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  14. @ जिस प्रकार हर सफ़ल पुरुष के पीछे कम से कम एक स्त्री का होना बताया जाता है, उसी प्रकार प्रायः इन धोखाधड़ियों के पीछे कम से कम एक कैबिनेट मंत्री या ऐसे ही किसी प्रभावशाली का होना बताया जाता है।

    यह आधुनिक युग की सुभाषितानि है।

    तीखे तीर छोड़े हैं आपने, संजय जी।

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  15. सटीक है, निशाने पर है... घपलों पर एक पोस्ट हो जाये..

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  16. साहब जी विडम्बना ये है की इन सरकारों को हम लोग खुद ही चुनते हैं. अब जिस जूए (अरे वो बैल के कंधे पर रखा जाने वाला,...क्या करूँ बार बार प्रयास करने के बाद भी ठीक लिख नहीं पा रहा) को अपने कन्धों पर हम लोग खुद ही चढ़ाएं तो उसे ढोना भी तो हमें ही पड़ेगा न.

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  17. सही चेताया संजय बाऊ जी !
    नमस्कार !

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  18. सावधान तो आपने कर दिया, अब देखो क्या होता है

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  19. किसी को मिर्ची क्यूँ लगेगी....आपने तो सादगी से चेता दिया...
    "अगर किसी ने मचाई तो हमारा तो कुछ नहीं जायेगा लेकिन उसपर कट्टरवादी, तमाशेबाज, मजमेबाज, ठग, धोखेबाज आदि होने का आरोप न सिर्फ़ मढ़ा जायेगा बल्कि साबित भी कर दिया जायेगा।"

    पोस्ट को काम्प्लीमेंट करता हुआ गीत...

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  20. दोस्त,बहुत बहुत धन्यवाद चेताने के लिये
    सादर- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

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  21. बैंक की बैक के बारे में जानकारी मिली।

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  22. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  23. अत्यंत साहसिक पोस्ट!! सहमत.. लिख तो रहे हैं पर पता नहीं कब मानेंगे कि सह मत!!

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  24. आज कुछ कहने को है ही नहीं।

    Truth is raw, spotless, shiny, terribly warm but stunningly attractive. But then truth is plain, so very.

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  25. कभी मौका मिले तो देखिये इलेक्शन मे पार्टीयो की तरफ़ से मिलने वाली सहयोग राशी तो प्रत्याशीयो को दी जाती है की अधिकांश गड्डिया इन्ही सहकारी बैन्को की होती है .
    ज्यादा बोला तो बोलोगे की बोलता है

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  26. तोल मोल के खोली पोल ...मगर जो समझ गए , वो क्या बिगाड़ लेंगे , जो समझ कर भी नहीं समझे , खेलेंगे जी जान से !

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