शुक्रवार, दिसंबर 27, 2019

वेले दी नमाज ते कुवेले दियां टक्करां

भौगोलिक कारणों से अन्य राज्यों की अपेक्षा पंजाब और बंगाल पर मुस्लिम रवायतों का प्रभाव अधिक पड़ा। इसे संक्रमण कहना भी अनुचित नहीं होगा क्योंकि दोनों पक्षों समान रूप से प्रभावित नहीं हुए, दोनों समाजों में हठधर्मिता की असमान मात्रा इसका एक बड़ा कारण हो सकती है। बंगाली के बारे में मुझे बहुत अनुमान नहीं किन्तु इन्हीं कारणों से बोलचाल में पंजाबी और उर्दू में निकटता रही और एक दूसरे के व्यवहार-रवायतें आम बोलचाल में प्रयुक्त भी होते रहे। हो सकता है कि बहुत से लोगों को इस बात से आश्चर्य हो कि पाकिस्तान की एक बड़ी जनसंख्या पंजाबी बोलती है। खैर, आपको पंजाबी की एक कहावत के बारे में बताता हूँ जिसे मेरे पिताजी कई बार हमपर प्रयोग करते थे। ये कहावत है, 'वेले दी नमाज ते कुवेले दियां टक्करां।' आरम्भ में जब यह हम पर प्रयोग हुई तो इतना समझ आया कि कुछ समझाईश मिली है पर अर्थ अच्छे से समझ नहीं आया। बाद में किसी उपयुक्त अवसर पर पिताजी से पूछा तो उन्होंने विस्तार से बताया कि जैसे हम लोगों में ईश्वर की पूजा करने के नियम विधान होते हैं, वैसे ही मुसलमान अपने खुदा की इबादत के लिए नमाज पढ़ते हैं और उनके भी कुछ नियम हैं कि कितनी बार पढ़नी है, किस समय पढ़नी है, कैसे उठना-बैठना है आदि आदि। इसी क्रम में उन्हें बार-बार धरती पर माथा टेकने पड़ता है। अब कहावत से सन्दर्भ जोड़ते हुए मुझे समझाया गया कि कोई व्यक्ति सही समय पर वह गतिविधियां कर रहा हो तो सामने वाले जानेंगे कि नमाज पढ़ रहा है और असमय पर करे तो सामने वाले यही जानेंगे कि यह जमीन पर टक्करें मार रहा है। भाव यही कि हर कार्य उपयुक्त वेला अर्थात समय पर ही करना चाहिए।
CAA के विरोध में हाथों में गुलाब के फूल लेकर, बच्चों को मोहरा बनाकर महफ़िल लूटने का ड्रामा कर रहे अमन के पैरोकारों को देखकर यह सब स्मरण हो आया। जब सार्वजनिक संपत्ति की तोड़फोड़ कर रहे थे, आग लगा रहे थे, सुरक्षा बलों पर और निर्दोष लोगों को पत्थर मार रहे थे, तब हाथों में पत्थर-हथियारों के स्थान पर फूल लिए होते तो सबके लिए अच्छा रहता। 
कहावतें तो और भी ध्यान आती हैं, अभी इसी से काम चलाइये।

2 टिप्‍पणियां:

  1. बच्चों के हांथों में फूल यही सोच दिया गया कि ना उधर से पत्थर चले ना इधर से लाठी भांजनी पड़े | बिरोध करने वालों में भी कुछ गरम तो कुछ नरम थे | गरम वालों ने पहले आंदोलन हथिया लिया फिर नरम वाले सामने आये | पत्थर पहले मारे गए तो क्या उसके पश्चाताप में फूल बाद में ना दिए जा सकते |

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  2. लिखा यही है कि किसी कार्य की उपयोगिता चयन किए गए अवसर पर निर्भर करती है। जैसे आपको मेरे मंतव्य पर संदेह है कि मुझे उनके फूलमय विरोध से समस्या है, वैसे ही मुझे उनके मंतव्य पर संदेह है कि यह वाला विरोध प्रदर्शन दिखावा है।
    विपरीत विचार रखने का अधिकार पूर्ववत ससम्मान सुरक्षित है☺️
    धन्यवाद।

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