आज के अखबार में एक खबर का शीर्षक था, “छेड़छाड़ से रोका तो घर पर हमला।” खबर कुछ इस तरह से थी कि कुछ लड़के एक परिवार की लड़कियों को रोज सड़क पर छेड़ते थे। लड़कियों के परिवारवालों ने उन्हें रोकने की, समझाने की कोशिश की तो लड़कों ने पहले तो वही पर उन्हें पीटा और फ़िर कुछ देर बाद अपने साथियों के साथ उनके घर पर आकर तोड़फ़ोड़ भी की और फ़िर से उन्हें पीटा।
देख लो जी, कितनी नाईंसाफ़ी है बेचारे लड़कों के साथ। एक तरफ़ तो इस सवा अरब की आबादी वाले देश का भार इनके कंधों पर जबरन लादने के बिना राशन के भाषण पिलाये जाते हैं, और जब ये बेचारे प्रेरित होकर सामर्थ्यानुसार भार उठाना चाहें तो अखबार में ऐसी ऐसी खबरें छापकर इनका मनोबल तोड़ा जाता है। इनका गुस्सा तो सबने देख लिया, त्याग किसी ने नहीं जाना समझा। अपनी पढ़ाई-लिखाई, कैरियर, घर के जरूरी काम वगैरह छोड़कर इस सामाजिक यज्ञ में डाली जा रही आहूति की तारीफ़ करना तो दूर की बात है, ऐसा सिद्ध करने के प्रयास किये जा रहे हैं कि जैसे इन्होंने बहुत गलत काम कर दिया हो।
गलत काम का विरोध हम शुरू से ही करते रहे हैं, विरोध का तरीका बेशक थोड़ा अलग हो सकता है। मिडल स्कूल से लेकर सैकंडरी स्कूल तक स्कूल प्रबंधन के द्वारा हमपर किये गये इमोशनल और फ़िज़िकल अत्याचार का विरोध हमने किया था, स्कूल से भागकर फ़िल्में देखने के तरीके से। अगर हमारे उस स्कूल का इतिहास हमारे द्वारा या हमारे किसी साथी के द्वारा लिखा जाये तो ‘school bunkers association’ के संस्थापक सदस्य के रूप में हमारा योगदान भुलाया नहीं जा सकता। जैसे देश की आजादी में सारे क्रांतिकारी एक तरफ़, बापू-चाचा एक तरफ़ और फ़िर भी इनका पलड़ा भारी था, हमारे स्कूल से भागने वाले तो कई थे लेकिन धनंजय और हमारी जोड़ी का अलग ही स्थान था। अत्याचार हमने सहना नहीं था, बस।
सीनियर सैकंडरी में साथी बदल गये लेकिन मिशन नहीं बदला हमारा। अध्यापक हमें एवायड करते थे, हमसे फ़िर अत्याचार सहन नहीं हुआ, हमने उन्हें अवायड करना शुरू कर दिया। कोई अंग्रेजी फ़िल्म नहीं छोड़ी जी हमने। अपने स्कूल में पहली ऐतिहासिक हड़ताल में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया लेकिन हमने अत्याचार चुपचाप नहीं सहन किया।
कालेज में आकर भी अन्याय का विरोध करने के बचपन के संस्कारों ने हमें व्यस्त रखा। कैंटीन वाले द्वारा समोसे में मिर्च ज्यादा डालने का मामला हो या चाय में चीनी कम होने का मामला, लाईब्रेरियन महोदय का लाईब्रेरी में चुपचाप बैठने की सलाह देना हो या किताबें समय से वापिस करने का आग्रह, अनचाही कन्याओं द्वारा लिफ़्ट देने का मामला हो या मनचाही कन्याओं द्वारा घास न डालने का मुद्दा, हम अपने कर्तव्यपथ से कभी नहीं चूके।
इतना गौरवशाली इतिहास होने के बावजूद, अगर आज हम अपने जूनियर्स के साथ होने वाले अन्याय को चुपचाप सहन कर लें तो हम खुद से कैसे नजरें मिलायेंगे? तो प्रथम पैराग्राफ़ में वर्णित छेड़छाड़क समुदाय के सदस्यों, खुद को अकेला मत समझना। हम और हमारे जैसे कई बुझते चिराग तुम्हारे साथ हैं। अच्छे काम में रुकावटें आती ही हैं, लेकिन ये रुकावटें जीवट वालों को और मजबूत करेंगी। अगर तुम में से कोई हमें पढ़ता हो तो अपना बायोडाटा हमें प्रेषित करे ताकि हम आपका मुद्दा सही तरीके से उठा सकें। बायोडाटा भेजते समय अपने धर्म, जाति आदि का उल्लेख जरूर करें ताकि आपका केस और मजबूत हो सके। कित्ता सेंसेशनल लगेगा जब लिखा होगा शीर्षक में, “अल्पसंख्यक युवाओं के मानवाधिकारों का हनन” या “अनु.जाति\जजा के उभरते युवाओं के साथ भेदभाव?”
हम ये मामला मानवाधिकार आयोग तक जरूर पहुंचायेंगे, क्योंकि अगर खूबसूरत दिखना लड़कियों का अधिकार है तो उन्हें छेड़ना तुम्हारा भी तो मानवाधिकार है। बेइज्जती, मारपीट, बदनामी आदि सहकर भी आप लड़कियों के आत्मविश्वास को जो बूस्ट कर रहे हैं वो काबिले तारीफ़ है। तुम्हारी छेड़छाड़ के कारण ही कास्मेटिक आईटम्स की मांग बनी हुई है, नहीं तो लोग तो भूख से मर रहे हैं। पन्द्रह रुपये किलो आटा न खरीद सकने वाले लोगों के देश में चार सौ रुपये की रेवलॉन की लिपस्टिक, मस्कारा, रूज़, पाऊडर, अलाना, फ़लाना के बढ़ते बाजार में तुम्हारे योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। तुम्हारी छेड़छाड़ के चलते ही भारतीय उद्योग जगत अन्तर्राष्ट्रीय मंदी का मुकाबला कर सका है। और कोई इस बात को समझे न समझे, हमारे अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री जरूर वांछित विकास दर को बनाये रखने में तुम्हारी भूमिका को सराहेंगे। इसलिये हम पी.एम.ओ. तक भी इस मामले को पहुंचायेंगे कि ’छेड़छाड़ हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है और हम इसे हर हाल में हासिल करके रहेंगे।’
सरकार से मांग की जायेगी कि हर जिले हर गांव में ’छेड़छाड़ प्रशिक्षण केन्द्र’ की स्थापना की जाये, बीस सूत्रीय योजना में इसे शामिल किया जाये, हो सके तो इस काम के लिये नरेगा के माध्यम से आर्थिक सहायता भी मुहैया करवाई जाये ताकि कोई अपनी धार्मिक, सामाजिक, जातीय या आर्थिक विषमताओं के कारण अपने इस अधिकार से वंचित न रह जाये।
मेरे उदीयमान साथियों, जरूरत पड़ने पर हम कैंडल मार्च भी निकालेंगे और सरकार तक अपनी बात पहुंचा कर ही रहेंगे।
लेकिन यारों, एक बात है, कल को अगर कोई तुम्हारी बहन-बेटी को छेड़ेगा तो बुरा मत मानना, ये मानवाधिकार उस छेड़ने वाले के भी तो हैं न?
:) फ़तू को भीड़ भरी बस में दरवाजे के सामने वाली ही सीट मिली हुई थी। एक बुढ़िया जिसके साथ तीन चार बच्चे थे और पांच छ थैले थे, बस में चढ़ी। फ़त्तू ने तरस खाकर एक थैला अपने पैरों के पास रख लिया और एक बच्चे को अपनी गोद में बैठा लिया। बुढ़िया ने मौके का फ़ट से फ़ायदा उठाया और फ़त्तू की गोद में एक और बच्चे को बिठा दिया। उस बच्चे की गोद में दूसरे को बिठा दिया और दो थैले उन बच्चों को पकड़ा दिये।
फ़ारिग होकर बुढ़िया ने बड़े प्यार से फ़त्तू से कहा, “भाई, घणा समझदार सै तू, नाम के सै थारा?”
फ़त्तू बोला, “ताई, मेरा नाम सै खूंटा, किमै और टांगणा हो तो ल्या उसने भी टांग दे, मेरी तो देखी ज्यागी।”
आप जैसे कर्तव्यनिष्ठों के आगे मेरा सर श्रृद्धा से झुका जा रहा है. आपके जूझारु व्यक्तित्व, संघर्षशील जीवन एवं लोगों की मदद के लिए बढ़ते हाथ प्रभावित करते हैं. :)
जवाब देंहटाएंहाँ अंत में यह सलाह: कल को अगर कोई तुम्हारी बहन-बेटी को छेड़ेगा तो बुरा मत मानना- कुछ संघर्षशीलों का मनोबल जरा ढीला कर सकती है. इसका भी कोई तोड़ बतायें, महाप्रभु. आपके पास तो सब उपाय हैं.
बहुत बेहतरीन रहा जी..मजा आया!!
बेचारा खूँटा...हा हा!!
जवाब देंहटाएंबड़े मजेदार तरीके से मौज लेते हुए आपने बाट लगा दी बदतमीजी करने वालों की.. ऐसे लोगों से मुझे भी आप और अन्य लोगों की तरह खुन्नस है.. बाकी मेरे दिल की बात काफी कुछ समीर जी जैसी ही है.. बेचारा फत्तू खूंटा :) गाना भी पसंदीदा लगाया आज किस-२ बात के लिए आभार करुँ..
जवाब देंहटाएंछेड़छाड़ प्रशिक्षण केन्द्र के प्रिंसिपल साहेब....
जवाब देंहटाएंघणी चोखो सै जी ..आज की पोस्ट....
मैं तो कहती हूँ ...तुस्सी जी बस कमाल ही करते हो...
हँस-हँस के हमें जो कभी दिल का दौरा पड़ गया ...तो जी मेरे लड़कों ने आपकी बैंड बजा देनी है..मैं कह के जाऊँगी उन्हें...
हा हा हा हा
सच में....
सुपर्ब...
@ मो सम कौन ?
जवाब देंहटाएंबड़ा स्नेहिल / सहलाया / फुसलाया सा , स्पर्श लिए हुए , आगे सरकती हुई पोस्ट से आश्वस्ति होना शुरू ही हुई थी कि आखिरी पंच गहरे घाव कर गया !
क्या आप* हॉकी खेलते थे और आपको ड्रिबलिंग का शौक भी था ,सामने वाले का फोकस स्टिक पर नाचती हुई बाल पर...और तब तक गोल हो चुका होता !
* = अपनी जवानी के दिनों में :)
और अगर ये कहें कि माशाल्लाह अब भी जवान हैं तो...
* = अपनी जवानी के लंबेsss दिनों में :)
मत छेड लडकी को पाप होगा
जवाब देंहटाएंकभी तू भी लडकी का बाप होगा
{औटॉरिक्शा/ब्लूलाइन कवि/शायर से साभार}
किमै और टांगणा हो तो ल्या उसने भी टांग दे...
यो छोरा कमाल सै!
अपने युवाओं से हम इससे ज्यादा की उम्मीद भी नहीं रखते मौसम जी ! :)
जवाब देंहटाएंलेख के अंत में आपने जो सलाह दी है उसके द्वारा आपने लाख टेक की बात साफ़ शब्दों में कह दी. दरअसल जिनके अपने घर शीशे के होते है उन्हें पर्दा लगाकर ही कपडे बदलने चाहिए :-) :-)
जवाब देंहटाएंऔर फत्तु ने तो मस्त कर दिया.
वाह वाह-ताई नै तो कमाल कर दिया
जवाब देंहटाएंइब वो छोरा कदे किसी बुड्ढी पे रहम कोनी करेगा।
राम राम
इसे भी पढिए फ़ूंकनी चिमटा बिना यार-मुहब्बत है बेकार
इसे कहते हैं सुपर रिन की धुलाई .....फ़त्तु ने नील टीनोपाल भी लगा दिया.........
जवाब देंहटाएंएक बेहद उम्दा पोस्ट के लिए आपको बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है यहां भी आएं !
He Bhagwaan! Ha,ha,ha!!Chhedchhad abhiyaan kamyaab ho..din dooni raat chauguni pragati karen..yahi duayen hain!(!!!!)
जवाब देंहटाएंएक हमारे भी सहपाठी थे, सुबह बालिकाओं को स्कूल छोड़ने जाते थे दिन में कन्याओं को कॉलेज, ऐसे ही सारा दिन बीतता था समाज सेवा में। अब बेचारे कॉलेज आ ही नहीं पाते थे। वास्तव में आपने इस पीढी का दर्द बताकर समाज पर उपकार किया है। हम तो आपके समान किसी को पहले भी नहीं मानते थे और आज के लेख के बाद तो बिल्कुल नहीं मानते।
जवाब देंहटाएंअभी कुछ समय पहले रोहतक में एक लडके ने खुदकुशी की थी, कारण उसने भरे बाजार में पीछे से जिस लडकी के सूट की चेन (जिप)खोल दी थी, वह उसकी सगी बहन थी। (सत्य घटना)
जवाब देंहटाएंएक मेरे पडोस का युवा है - उसने एक दिन बाईक पर बैठी एक औरत पर पीछे से कमेंट किया। वो औरत खुद उसकी माँ थी। (सत्य घटना)
"तुम सा कोई नहीं"
इस बेहतरीन लेख के लिये धन्यवाद
प्रणाम
वाकई जुझारू हो अगर एक असोसिअशन बना लो तो हर शहर के लफंगे " मो सम कौन " के नेतृत्व में अपने सपने पूरे कर पायेंगे ! ९५ % पोस्ट पढ़ कर तुम्हारी तकलीफ देखकर ह्रदय द्रवित और सर तुम्हारे सम्मान में समीर लाल की तरह ही झुका जा रहा था अगर लास्ट लाइन न पढ़ी होती तो !
जवाब देंहटाएंइन हरामजादों को पैदा कौन करता है भैया ...इस पर लिखते रहना ! बेहद तकलीफदेह न्यूज़ !
achcha lagaa is laekh ko padh kar
जवाब देंहटाएंइतना बढ़िया चल रहा था कि आपने बेचारों की हवा ही निकाल दी।
जवाब देंहटाएंफत्तू जी गजब के हाज़िर जवाब निकले।
पोस्ट क्या है गाने समेत आनन्दम् ,आनन्दम्!
घुघूती बासूती
मानवाधिकार सबके हैं पर कौन बड़ा मानव।
जवाब देंहटाएंwah ji kya bat hai, ap to har post me kamal kar dete hain, badhiya laga aapko padhna
जवाब देंहटाएंइससे बेहतर पोस्ट और क्या हो सकती है ...
जवाब देंहटाएंछा गए हो जी आप तो ...
बहुत जबरदस्त लिखा जी और खूंटा तो वाकई खूंटा है.
जवाब देंहटाएंरामराम
एक बेहद उम्दा पोस्ट के लिए साधुवाद . अंतिम पंक्ति ने पोस्ट के पात्रों की हवा निकाल दी और पोस्ट का वजन बढ़ा दिया. जितनी देर में कमेन्ट लिखा उतनी देर में एक सुन्दर गीत भी सुन लिया. आभार.
जवाब देंहटाएंइस तरह की घटना मे करीब 10 साल पहले अपनी मौसी को खो चुके है हम...........उसका दोष सिर्फ़ इतना था कि अपनी बेटी को स्कूल आते-जाते छेडने वाले लडके को मना किया था उसने .....और उस लडके ने घर पर आकर दस्तक देकर दरवाजा खुलवाया ,आँखों में मिर्च झोंककर बेटी के सामने ही माँ को चाकुओं से गोद दिया ...बेटी भी घायल हुई.....अब तक कुछ फ़र्क नही पडा........
जवाब देंहटाएंबेहद मनोरंजक. भोपाल में एक लड़के ने लड़की की पिटाई कर दी. आजतक में लगातार आ रहा है.
जवाब देंहटाएं"मिले न फूल तो काँटों से दोस्ती कर ली" बहुत दिनों के बाद सुनने को मिला. आभार.
@ समीर सर:
जवाब देंहटाएंसाब जी, बस यूं समझ लो की हीरे को पहचानने वाले विरले ही होते हैं, वैसे कितना ही कोशिश कर लो आप, हम चढ़ने वाले नहीं हैं|
@ दीपक:
आभार काहे का दोस्त? अगर यह जरूरी है तो मेरा ही फर्ज बनता है तुम्हारा आभार मानने का|
@ अदा जी:
एक तो मेरी डिमोशन कर दी आप ने(वी सी के लायक हम और बना दिया प्रिंसिपल) और ऊपर से बैंड बजवाने की धमकी? दिल का दौरा न पड़े जी दुश्मनों को भी, हमीं बहुत है इस काम के लिए| हाँ नहीं तो|
@ अली साहब:
आपका कमेन्ट मेरी सारी पोस्ट पर भारी है, अली साहब.
@ अनुराग शर्मा जी:
हां हां हां|
@ गोदियाल जी:
हम कभी नाउम्मीद नहीं रहते हैं जी|
@ भावेश जी:
शुक्रिया सर, आभार आपका|
मै कभी स्कूल से भागा नही . अपने गुरुओ से कह रखा था इन्टरवेल के बाद रोक सको तो रोक लेना . वह रोकते नही थे क्योकि मै पहले ही वहा से चला जाता था .
जवाब देंहटाएंऔर छेड्छाड कभी नही की क्योकि शिशु मन्दिर के कुछ संस्कार तो थे ही
@ ललित शर्मा जी:
जवाब देंहटाएंपधारने का धन्यवाद, आभारी हूँ आपका|
@ अजय कुमार झा:
वकील साहब, आपका भी धन्यवाद|
@ शिवम् मिश्रा जी:
आभारी हूँ आपका|
@ क्षमा जी:
आपकी दुआएं क़ुबूल हों, आमीन|
@ अजीत गुप्ता जी:
धन्यवाद मैडम आपका इस इज्जत अफजाई के लिए|
@ अंतर सोहिल:
अमित, ये लगभग हर शहर की बात है| हम बहुत झंझावात के दौर से गुजर रहे हैं, ऊपर वाला खैर करे| आभार तुम्हारा भाई|
@ सतीश सक्सेना जी:
इरादा तो यही है जी, आपकी दुआएं चाहियें|
@ रचना जी:
आपको अच्छा लगा तो हमें और अच्छा लगा जी, धन्यवाद|
@ घुघूती जी:
आभारी हूँ मैडम आपका|
@ प्रवीण पाण्डेय jee:
सर, मानवों के ही अधिकार की बात नहीं करता कोई आयोग|
मैं तो बस्स यही कहूँगा बहुत दिनों बाद दिल को तस्सली हुई.........
जवाब देंहटाएंबहुत मजेदार पोस्ट है जी....ये खूँटा भी खूब रहा...:))
जवाब देंहटाएं@ मिथिलेश:
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मिथिलेश, तुम आये|
@ इन्द्रनील जी:
आभारी हूँ आपका सैल जी|
@ ताऊ रामपुरिया:
ताऊ, तेरा आशीर्वाद बना रहे सर पर|
रामराम|
@ हेम पाण्डेय जी:
बेहद शुक्रिया आपका|
@ अर्चना जी:
माफी चाहता हूँ अर्चना जी, मैंने जिसे मजाक का विषय बनाया, उस से आपकी इतनी दुखद यादें जुडी हैं| लेकिन मैंने भी दुखी होकर ही यह लिखा है.
@ सुब्रमनियन सर:
सर, आपके पधारने का शुक्रिया|
@ धीरू सिंह जी:
धन्यवाद आपका|
@ विचारशून्य:
बंधू, ये तसल्ली पोस्ट पढ़कर हुयी है या .....? वैसे तसल्ली, मजा जैसी चीजें किसी की गुलाम नहीं होती, आ जाएँ तो पता नहीं किस बात पर आ जाएँ, और ना आयें तो फिर दुनिया का राज मिलने पर भी नहीं आतीं|
@ परमजीत सिह बाली जी:
बाली साहब, शुक्रगुज़ार हूँ आपका|
Lolz !!!
जवाब देंहटाएंवाह क्या दर्द बयान किया हैं इन #@$% का !
जवाब देंहटाएंवी सी जी ध्यान दीजियेगा कि कोई विद्यार्थी सुधरने नहीं पाए पूरी तरह से दक्ष हो | छेड़ छाड़ करने वाले इसे पढ़ कर भी मजे लेंगे उन्हें लगेगा कि यह तो उनकी तारीफ ही हो रही है | अच्छी पोस्ट मजा आया |
जवाब देंहटाएंhahhhaaahahah.......mast!!!
जवाब देंहटाएंकमाल की पोस्ट!
जवाब देंहटाएंआपका मोरल सपोर्ट युवावों में नया उत्साह भर देगा. अब देखिएगा. देश में छेड़-छाड़ की घटनाओं में ९-१० प्रतिशत (अपने जी डी पी जितनी) बढ़ोतरी होगी. आप के उत्साह वर्धन से पूरे देश के युवाओं की दशा और दिशा दोनों बदल जायेगी. :-)
आपके लिए युवाओं की तरफ से ये नारा;
जब तक सूरज चाँद रहेगा
संजय तेरा नाम रहेगा.
और संजय भाई, इस गाने के लिए अलग से धन्यवाद.
लफंगाधिकार? संजय जी पोस्ट सटीक सट्टाक रही!!
जवाब देंहटाएंकमाल फत्तू की खूँटाशीलता!!
Padhi. Haziri darj ho.
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