आजकल ऑफ़िस में कुछ अपग्रेडेशन का काम चल रहा है। जाने का समय तो है, आने का कोई समय नहीं है। पब्लिक डीलिंग तक तो रूटीन का काम चलता रहता है, उसके बाद कभी तो बहुत काम रहता है और कभी सिर्फ़ बैठकर इंतज़ार करते रहो कि इलैक्ट्रिशियन या दूसरे टैक्नीशियन अपने हिस्से का काम कर रहे हैं। कभी लाईट डिस्कनैक्ट कर रहे हैं कभी इधर की तार यहाँ से डालकर वहाँ निकाल रहे हैं। अपन बावलों की तरह कभी इधर देखकर हैरान होते हैं कभी उधर देखकर हक्के-बक्के। सावन का महीना, बंद हाल में लाईट भी नहीं, गा ल्यो कजली और खा ल्यो मालपुये। अब नौकरी करनी है तो ये सब भुगतना ही पड़ता है। एकाध साथी को और बैठना पड़ता है बेचारे को साथ में, जबरदस्ती ही। अपना तो खैर चल ही जाता है कि पता है घर पर कौन सा गले में हार डाले जाने हैं, जैसे कंता घर भले वैसे भले बिदेस। पर ये खाली बैठना, बस मार ही डालता है। जब दिल ढूंढता था फ़ुर्सत के रात दिन, तब तो मिले नहीं और जब मिलते हैं तो उस समय उन्हें न ओढ़ सकते हैं न बिछा सकते हैं। सुडोकू भी कितने हल करें, अखबार में एक ही आती है और एक ही हिन्दी की वर्ग पहेली। और फ़िर ये कागज की पहेलियां हल करने से जिन्दगी की पहेलियाँ कहाँ सुलझती हैं?
साथी हमारे गृहस्थ आदमी हैं, बेचारे कुढ़ते रहते हैं और खीझते रहते हैं लेकिन साथ में बैठे जरूर रहते हैं। हमने भी सोचा कि एक्स्ट्रा टाईम में रुकना रोकना तो मजबूरी है, लेकिन अगर इनके मनोरंजन का कुछ ख्याल रखा जाये तो थोड़ा ठीक रहेगा। बिजली तो भाई लोग काटे रखते हैं, रोज अपने मोबाईल में जितनी गुंजाईश होती है, गाने लोड करके ले जाते हैं, फ़ुर्सत हुई तो चला दिया कि टाईम पास हो जायेगा भाई का। एक दिन गज़लें ले गये, तो भाई साहब ने मुँह बिचका दिया। कहने लगे कि इन गज़लों में से दिल, शराब, महबूबा, दीदार जैसे दस शब्द लिख कर देता हूँ, वो निकाल दो फ़िर देखो कि क्या बचता है इनमें? मैंने भी हाँ में हाँ मिलाई, सही बात है जी, और फ़िर ये सब ख्वाम्ख्वाह की ही तो चीजें हैं। अगले दिन ले गये पंजाबी गाने, उन्हें कहाँ पसंद आने थे? नहीं आये। नये फ़िल्मी गाने उन्हें फ़ूहड़ लगे तो वो भी फ़ेल हो गये। आखिरी हथियार के तौर पर एक रात काली करके अपने पसंदीदा गानों में से शार्टलिस्टिंग की और ले गये हुज़ूर की अदालत में। हम हुये थोड़े से सफ़ल। उन्होंने रियेक्शन तो देनी शुरू की, देखिये बानगी – गाना दर गाना।
चंचल साहब गा रहे थे बुल्ले शाह की काफ़ी – फ़िल्म बॉबी की, सुनते रहे भाई साहब हमारे मगन होकर। जब अंत में चंचल ने कई बार दोहराया, मैं नईं बोलना, मैं नईं बोलना। मैं नईं बोलना जा, मैं नईं बोलनाSSSS -
प्रतिक्रिया – तू नईं बोलना ते ……….. खड़ के, साला शोर मचाई जांदा है नईं बोलना, नईं बोलना। भारत दा विदेश मंत्री समझदा है खुद नूं, पहले कैंदा है पाकिस्तान नाल नईं बोलणा, नईं बोलणा फ़िर आप ही कैंदा है वार्ता करेंगे।
सागर फ़िल्म का गाना था – सागर जैसी आँखों वाली ये तो बता तेरा नाम है क्या?
प्रतिक्रिया – तू सालेया नाम तों कि लैणा है, सीधे सीधे काम बता।
किशोर कुमार गा रहे थे – आदमी जो कहता है, आदमी जो सुनता है, जिंदगी भर वो सदायें पीछा करती हैं।
प्रतिक्रिया – केड़े जमाने दी गल्ल करदा ऐ जी ऐ बंदा, आदमी तां सिर्फ़ सुनदा है, कहंदी ते जनानी है। झूठ बोल्दा है जी ऐ।
’रोटी कपड़ा और मकान’ में मनोज जी और जीनत पर फ़िल्माया गाना, ’मैं न भूलूंगा, मैं न भूलूंगी’
प्रतिक्रिया – नईं भुल्लोगे ते दुख ही पाओगे। तुसी वी ऐंवे ही आओगे दफ़्तर विच बिना शेव कीत्ते।
मैं हर गाने पर उनकी प्रतिक्रिया देखदेखकर हैरान हो रहा था कि कितनी सटीक ऑब्जर्वेशन है इनकी।
आखिर में मेरा अकेला फ़ेवरेट फ़ास्ट गाना. लावारिस फ़िल्म से ’अपनी तो जैसे तैसे, थोड़ी ऐसे या वैसे, कट जायेगी।
प्रतिक्रिया – ऐ गाना है मज़ेदार, देखन विच्च किन्ना मजा आंदा है।
मैंने कहा, “यार, मुझे तो सुनने में ज्यादा मजा आता है, ये गाना। देखने लगो तो ध्यान भटकता है इधर उधर, सुनो तो सिर्फ़ गाने की वर्डिंग पर ध्यान जाता है।
पुनर्प्रतिक्रिया – तुसी तां होजी ड्राई आदमी, अगली बंदी ने किन्नी कुर्बानी कीती सी, तुसी सारी भुला दित्ती।
मैं सोच रहा था कि भाई मेरे, हमने तो भगत सिंह, चन्द्रशेखर आज़ाद, बिस्मिल, अशफ़ाकउल्ला खां, ऊधम सिंह, मदन लाल धींगड़ा जैसे अनगनित वीरों की कुर्बानी भुला दी तो कल्पना ऐय्यर या जो भी थी, उसकी कुर्बानी भुलाने का इल्ज़ाम भी अपने सर पर ले ही लेते हैं, देखी जायेगी।
आज फ़त्तू वाला स्पेस inner beautiful वाले अमित जी के नाम, हमारी एक पर्सनल मेल बिना अमित की इजाजत के पब्लिकली पब्लिश कर रहा हूँ, विश्वास है इस धृष्टता का भी बुरा नहीं माना जायेगा।
From: मो सम कौन ?
To: antarsohil1977@gmail.com
Sent: Friday, August 06, 2010 4:16 PM
Subject: [अन्तर सोहिल = Inner Beautiful] New comment on मन्नै तै रै छोड कै लुगाई मेरी जावेगी.
मो सम कौन ? has left a new comment on your post "मन्नै तै रै छोड कै लुगाई मेरी जावेगी":
भाई अमित, वादा पूरा कर लिया तुमने तो।
भले आदमी, एक बार शिकायत तो करते मुझसे कि जिस फ़त्तू को इस्तेमाल करके मैं कमेंट और वाहवाहियाँ बटोर रहा हूं, वो फ़त्तू पहले से ही तुम्हारी पोस्ट्स का कैरेक्टर है। वो तो आज भाटिया जी के ब्लॉग से पुराने लिंंक्स लेते हुये पहुंचा तो पता चला और शर्म से पानी पानी हो रहा हूं। रागणी का भी पूरा स्वाद नहीं ले पाया।
आज मेरी तरफ़ से तुम्हें प्रणाम।
Amit Gupta
to me show details 4:20 PM (2 hours ago)
काहे की शिकायत जी
फत्तू उतना ही आपका है जितना मैं आपका हूँ, दिल से
आपकी टिप्पणी पाकर पोस्ट सफल हो गई
प्रणाम
p.s. - गाने तो जी और भी बहुत सारे थे, पर आपका ध्यान भी तो रखना है। आज इन्हें ही झेलो..
वाकई "मो सम कौन" माननीय है !शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएं:-)
बस जी आप ग्रेट... ग्रेटेस्ट हो....
जवाब देंहटाएंहाँ नहीं तो..!!
बड़ी मजेदार प्रतिक्रियायें हैं जी आपके शार्टलिस्टेड गानों पर ! पूरी पोस्ट से गुजरते हुए आपके तंज गज़ब के लगे !
जवाब देंहटाएंपता है तो सम कोय नाईं ..लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं कि पोस्ट लिखते समय साँस लेने की जगह ही ना रहे..कम्बख़्त एक साँस में पढनी पड़ती है और कभी हँसी आ जाए तो ये भी डर रहता है कि कहीं पाला छूने से पहले साँस न टूट न जाए...पहली बार पोस्ट की लम्बाई कम लगी और फत्तू नदारद... वज़ह पता चली, पर कोइ गल नहीं...हमारे हिंदी फिल्म के गानों में आपके इस पोस्ट का स्कोप हमेशा बना ही रहता है..हमारी तरफ से तो बधाई हो, मज़ा आ गया!!
जवाब देंहटाएंहम ये पूछने आए हैं कि पिछली दो पोस्टों पर की गई मेरी टिप्पणियाँ कहाँ गईं? एक तो आलसी, दूसरे कंजूस - बड़ी मेहनत के बाद तो कहीं कहीं टिपिया पाते हैं, वह भी लोग उड़ा देते हैं (मो सम कौन को लोगों के साथ रखना कष्टकारी है, फत्तू को प्रोफेसरों के साथ रखने जैसा लेकिन क्या करें करनी ही ऐसी है।)
जवाब देंहटाएंऐसा कीजिए टिप्पणी भले उड़ा दीजिए - धन्यवाद तो दे ही दिया कीजिए। ताकि पता चले कि मेरी टिप्पणी पढ़ने के बाद उड़ा दी गई है।
आनंद आगया पोस्ट पढकर.
जवाब देंहटाएंरामराम
हा हा!! मजेदार रहा
जवाब देंहटाएं'टू गुड'... जबरदस्त शैली है आपकी :) :)
जवाब देंहटाएं:) :) :)
जवाब देंहटाएंपोस्ट पढकर एक गाने पर हुई टिप्पणी याद आ गयी. किशोर दा का गाना है-- तेरी दुनिया से होकर मजबूर चला ,
जवाब देंहटाएंमैं बहुत दूर ,बहुत दूर, बहुत दूर चला .
ताऊ ने सुनकर कहा -- अबे क्या शहर से ही बाहर चला जायेगा .
वाह जी वाह
जवाब देंहटाएंतो चीज़ बडी है मस्त-मस्त सुनाकर देखो वरना तो कुछ काव्यात्मक सा सुनाना पडेगा, मसलन अल्ताफ रज़ा वगैरा ...
जवाब देंहटाएंकेड़े जमाने दी गल्ल करदा ऐ जी ऐ बंदा, आदमी तां सिर्फ़ सुनदा है, कहंदी ते जनानी है। झूठ बोल्दा है जी ऐ।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रतिक्रिया
प्रणाम
दृष्टता की बात लिखकर शर्मिन्दा कर रहे हैं जी आ॥
जवाब देंहटाएंकभी आपसे सामना/मिलना हो जाये और कहीं ऐसा ना हो कि मैं जमीन में गड जाऊं।
प्रणाम स्वीकार करें
फत्तू के बिना आपकी पोस्ट अधूरी लगती है जी
जवाब देंहटाएंप्रणाम
@ संवेदना के स्वर:
जवाब देंहटाएंजोड़ी में काम करने का यही लाभ है जी की धन्यवाद या बधाई वाली बात हो तो दोनों लपक सकें, इल्जाम लगता हो दोनों बच सकें| सलिल जी व चैतन्य जी, म्हारा धन्यवाद दोनों तक पहुंचें जी, पधारने का| आभार स्वीकार करें दोनों जने, थम ले ल्यो बैनेफ़िट ऑफ़ डाऊट, म्हारी तो देखी जाओगी।
@ गिरिजेश राव जी:
आप दुनिया को गणितीय प्रेम कथा पढ़ा रहें हैं, हम आपका गणित सुधारना चाहते हैं जी| उड़ाई गयी टिप्पणियों की संख्या दो नहीं चार थी, अपना तो ये उसूल है जी की खाओ तो हाथी की लीद, कम से कम पेट तो भरेगा! वैसे अपनी पोस्ट पर आई आप जैसे महारथी की टिप्पणियों को हटाने की लक्जरी वो करेगा जिसे पागल कुत्ते ने काटा होगा, पर हमारी करनी तो ऐसी ही है,जैसाकि आपने खुद ही फरमाया है| रही बात धनबाद देने की, तो राव साहब, हमारा बस चले तो अकेला धनबाद क्या, रांची भी आपको दे दें, मान सकें तो|
पोस्ट बढ़िया है....गानों की ऐसी तैसी करना भी एक आर्ट है और उसका अलग ही आनंद होता है।
जवाब देंहटाएंमस्त पोस्ट।
पहली बार आपको पढ़ा. अच्छा लगा आपके बारे में जान कर.
जवाब देंहटाएंभाई संजय जी, इस छोटे से दिमाग में कितने कु आयडिया छुपाए बैठे हैं..हर पोस्ट में एक अलग सा ही अन्दाज देखने को मिलता है. घनघोर आनन्ददायक पोस्ट :)
जवाब देंहटाएंहा हा ह!! सम्वेदना के स्वर पर सब हमारा है..न मेरा न उसका...बुके भी हमारा ब्रिकबैट भी हमारा... हमारी पुरानी ग़ज़ल देखिएगा… मक़्ता में जहाँ लोग अपना नाम या तख़ल्लुस लगाते हैं, हमने वहाँ भी सम्वेदना के स्वर लगाया है...और एक राज़ की बात बताऊँ... ये मेरा तेरा हमारी डिक्शनरी में है ही नहीं... अभार आपका!
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