मंगलवार, अगस्त 31, 2010

बिछड़े सभी बारी बारी-२

उस दिन तन्ख्वाह मिलनी थी। सुबह से मेन ब्रांच से तीन चार फ़ोन आ चुके थे मेरे पास कि मैंने दो सौ रुपये लेने हैं, मेरे तीन सौ पचास हैं, मेरे एक सौ दस हैं। हद हो गई यार, ब्याज कमाना है या नाम कमाना है तो करो अपने दम पर। वाहवाही भी लूटेंगे और बंदूक दूसरे के कंधे पर रखकर। अब मैं कैसे कहता कि यारों मेरा भी कुछ हिसाब किताब रहता है, वो कब होगा? खैर लिस्ट बना लेता, नाम और उसके सामने उनके बताये रुपये। उधर से कैशियर साहब आवाज लगाते भोले को, उधर से मैं अपनी लिस्ट लेकर खड़ा हो जाता। ये हर महीने का बंधा बंधाया रूटीन था जी। अरे मैं बताना भूल गया शायद कि ये रिकवरी नोटिस मेरे खिलाफ़ नहीं बल्कि भोले के खिलाफ़ होते थे। अपन तो वैसे भी लेकर लौटाया  नहीं करते, बल्कि मुकर जाने के कायल हैं। 
“हां भई, फ़लाने का फ़ोन था, कह रहा था कि तीन सौ पचास लेने हैं?
“आहो जी, देने हैं उसदे।”
“अच्छा, …….  के दो सौ रुपये हैं?”
“हां जी, हैगे, ओ वी रख लो।”
“अच्छा, मेरा हिसाब.?”
“कोई नी जी, साड्डी तां घर दी गल्ल है, फ़िर कर लांगे।”
“एक सौ दस …. के भी हैं? ये दस रुपये का क्या चक्कर है, मेरे से तो सौ रुपये की गवाही दिलवाई थी?”
“ओ जी, एक पेप्सी होर पिलाई सी उसनूं, दस रुपये उसदे हैगे।”
“ते भले आदमी, फ़िर दस रुपये दुकानदार को देगा कि इसको?”
“न जी, इसनू ही देने है, दुकानदार नाल ओ आपे कर लेगा।”
और बकाया पैसे लेकर मुझे अलग ले गया, जाकर एक सौ पचास रुपये दिये। मैंने कहा, "ओये मेरे तो ज्यादा पैसे हैं, पांच सौ हैं।" कहने लगा, "मैं कौन सा मना कर रहा हूं, अब भी पांच सौ ही हैं। ये एक सौ पचास तो वो पंडित आयेगा ढाबे वाला, उसको देने हैं। और ये मत कहना कि तुमने खाना नहीं मंगवाया था।"
मुझे कुछ दिन पहले की बात याद आ गई। गरमी बहुत थी, और ये महाराज दफ़्तर में फ़्रूटी का टैट्रापैक मुंह से लगाये घूम रहे थे, जैसे बच्चे लॉलीपॉप मुंह में दिये रहते हैं। मैंने तो देखकर अनदेखा कर दिया, पता था इसके ड्रामों का,  हमारे इन्चार्ज और एक दूसरे स्टाफ़ ने देखा तो पूछा. “क्या ड्रामा है भई?”   कहने लगा, “ऐन्नी गरमी हैगी कि जान निकल जाये, पैसे साले साथ थोड़े जाने हैं,  खाओ पियो ते मस्त रहो।”   छेड़ दी जी दुखती रग उसने, एक बोल ही उठा, “लेके आ यार, मेरे लिये भी एक फ़्रूटी।” इन्चार्ज महोदय कैसे चुप रहते, उन्होंने भी आर्डर दे दिया। टोटल चार नये आर्डर मिले और उसने सब से दस दस रुपये लिये, मुझसे एक बार पूछा वो भी ऐसे, “संजय बाऊ,  तू तो नईं पियेगा न?” मेरे इन्चार्ज ने मेरे पैसे भी देने चाहे, मैंने मना कर दिया और भोला भी कहने लगा, “इसदी प्यास नहीं बुझनी इस डब्बी नाल” और सारे हंस दिये, हंसना भी चाहिये जी। दो मिनट में ही पांच फ़्रूटी ले आया भूरे की दुकान से। सबने बड़े चटखारे ले लेकर पी। दस मिनट  बाद मैंने कहा, “भोले, जरा भूरे को बुला कर ला।” कहने लगा, “की कम्म है?” मैंने कहा, “यार, बुला तो सही।”  आ गया जी भूरा, “हां जी बाऊजी, बताओ?” मैंने कहा, ”यार भूरे, आज  भोले ने तेरी इतनी सेल करवाई है, एक फ़्रूटी तो पिलाता इसको।”  भोला बीच में ही बोल पड़ा, “तू जा ओये दुकान ते आपनी, मैं नईं पीनी होर फ़्रूटी, जाके ग्राहक संभाल अपने।” और भूरा कहने लगा, “बाऊजी, काहे की सेल करवाई है, एक अपने आप पी गया फ़्रिज में से निकालकर,  पांच फ़िर दुबारा ले आया बैंक के नाम पर और पीने के बाद जाकर कह रहा है कि मेरे खाते में लिख ले, महीने बाद हिसाब करेंगे।”
हा हा हा, मुझे पहले ही पता था और अब सारे स्टाफ़ वाले उसके पीछे पड़ गये, और वो कह रहा था, "त्वाडा की गया है? तुसी फ़्रूटी पी पैसे देकर, बात खत्म। मान लो मैं भूरे को दे देता तो इस बात की क्या गारंटी है कि इसने वो आगे पेमेंट  की है या नहीं? अगर त्वानूं कोई तकाजा करे ते मैन्नूं कहो।” सही कहता था जी।

“साले, तू जो रोज ये  सात आठ दिन से  खाना लेकर आता था ढाबे से, ये भी मेरे नाम लिखवा कर आता था?”
“अच्छा, भूखा मर जाऊँ फ़िर? मेरा पेट नहीं है क्या?”
“चल, आगे से ध्यान रखियो, तू क्या रखेगा मैं ही रखूँगा। तू कब बाज आयेगा, इन हरकतों से?  सारी जगह उधार का करोबार फ़ैला रखा है तूने। बाजार में,  स्टाफ़ में किसी को छोड़ेगा कि नहीं।”
“ओ जी, टेंशन न लिया करो। एकाध जगह है जहाँ दूसरों का नाम लेना पड़ता है, नहीं तो अपनी गुडविल बहुत है जी। और ये स्टाफ़ वालों ने मेरे से पैसे लेने होते हैं तो टाईम से सैलरी के वाऊचर भेज देते हैं न तो कौन परवाह करेगा तुम्हारी सबकी? अहसान तो मानते नहीं उल्टे भाषण देते रहते हैं।” और हंस देता हो हो करके। उस दिन शाम तक मेज पर तबले की और ढोलक की थाप देता और ट्रैक बदल बदल के पंजाबी गानों की दो-दो तीन-तीन लाईने बड़े सुर में सुनाता।
’जद जोबन तीर चलाये, कुड़ी हंस के नीवियां पाये, ते समझोSSSSSSS,  मामला.. गड़बड़ है’
‘मेरा बड़ा करारा पूदना, मेरा बड़ा करारा पूदना’
’तूतक तूतक तूतियां, अई जमालो ओ तूतक तूतक तूतियां’
सब जानते थे कि आज ये चुप होने वाला नहीं है और आगे दो तीन दिन ऑफ़िस आने वाला नहीं है, पूरा एन्जॉय करेगा अपनी बची खुची सैलरी को और फ़िर से वही रुटीन शुरू। उस दिन मेरे दिमाग में खुजली ज्यादा ही हो रही थी, बिठा लिया पास में। समझाया उसे कि छुट्टियां और पैसे बेकार मत खर्च किया कर, बाद में बहुत काम आयेंगी। उसका तर्क ये था कि गाज़ियाबाद और फ़रीदाबाद तो देख रझे हैं, ये अकेली  बाद किसने देखी है? किसी दिन ऐसे ही फ़ूंक निकल जायेगी तो भी तो ये छुट्टियां और पैसे बेकार ही जाने हैं। मैं भी जुटा रहा और वो भी अड़ा रहा, आखिर में ये डील हुई कि वो छुट्टियां बचाकर रखेगा और साल में एक बार दो तीन दिन के लिये उसे हरिद्वार लेकर जाना पड़ेगा। उस साल मैंने बहुत खींच कर रखा उसे, छुट्टी लेनी भारी कर दी उसके लिये। कभी कभी गुस्से में आकर कहा करता, “मेरी जितनी ऐसी तैसी तुसी कीती है न, आज तक किसी ने नहीं कीती।” मैं पूछता, “एक बार ये बता दे, तेरे से अपना कौन सा काम करवाया है या तेरा क्या नुकसान किया है?” सिर हिला देता कि चलो ठीक है।
गजब आदमी, खाना न मिले तो दो दो दिन ऐसे ही निकाल दे और मिल जाये तो चार आदमियों के बराबर अकेला खा ले। सारा दिन अपनी हिन्दी, पंजाबी, डोगरी की कॉकटेल  भाषा में    बोलते रहना, चुप रहना जैसे सजा थी उसके लिये। हमारे एक अधिकारी तो दुखी होकर उसे ऑफ़र दिया करते कि दस मिनट चुप बैठ जा और दस रुपये ले लियो। दो या तीन मिनट मुश्किल से बीतते कि जाकर पीछे से जफ़्फ़ी डाल देता और कोई गाना गाने लगता और कहता त्वाडा घाटा नईं करवाना जी। झूठ बोल कर  पैसे ले लेता था  लेकिन अगर उसे खजाने की या पैसों की रखवाली पर बैठा दो तो मजाल है कि खजाने वाले सांप से रत्ती भर भी कम हो। उधारी लौटाने में लेट बेशक हो जाये लेकिन अगर सामने वाले ने कह दिया कि तेरे से सौ नहीं दो सौ लेने थे तो एक बार भी बहस नहीं करता, ठीक है जी। कितना ही डांट ले, नाराज भी जो जाता कभी कभी लेकिन अगले ही पल कोई काम कह दें तो उसने कभी पलट कर जवाब नहीं दिया। जिसने आड़े वक्त में थोड़ी सी मदद कर दी, अपने काम के लिये बेशक उसे दो दिन, चार दिन या हफ़्ते के लिये ले जाये कभी मना नहीं किया उसने। नजर का सच्चा एक्दम, ईगो नाममात्र की भी नहीं। बीस गालियां दे दे कोई, या नाजायज भी कर दे इसके साथ, मैंने कभी दुर्भावना नहीं देखी इसके मन में। हमारे जैसा कोई भड़काता कभी तो कहता, “उसने ऐसा कह दिया तो कौन सा हम छोटे बाप के हो गये जी?”  किसी के घर जाता, तो जाते ही महिलाओं से मां-बहन का नाता जोड़ लेता। दुनिया प्रेरणा लेती है मशहूर आदमियों से, अपने को प्रेरणा दे जाते हैं ऐसे कैरेक्टर। ऐसी नम्रता अपने अंदर आ जाये तो मजा ही आ जाए। 
अगली बार हरिद्वार लेकर चलेंगे जी, पहले एक बानगी देख लीजिये इसकी कलाकारी की।
मेन ब्रांच से सीनियर मैनेजर साहब  शायद पहली बार हमारे एक्स्टेंशन काऊंटर पर आये। कहने लगे कि यार दो साल हो गये थे, मैं इधर आया ही नहीं था। आज सोचा कि देखकर तो आऊं। खैर, जाने लगे तो भोले को बाहर ले गये। धीरे धीरे कुछ बात होती रही और मैं ताड़ता रहा। दो दिन बाद फ़ोन आया, हाल चाल पूछकर कहने लगे, “यार, बात करवाओ जरा उससे।” मैंने करवा दी, इससे पूछा कि क्या बात है? आगे से बोला, “क्यों, वड्डे अफ़सर नूं मेरे नाल कम्म नईं हो सकदा?” मैंने कहा, “जरूर हो सकदा है।” अब जी आलम ये हो गया कि हर दूसरे दिन फ़ोन आये सीनियर मैनेजर साहब का, ये इधर से हां जी, हां जी, बस्स। चिंता न करो जी तुसी। अपन भी सुनते रहते और इसका अपने को दिया जवाब याद करते रहे। एक दिन फ़िर से फ़ोन आया। मैनेजर साहब कहने लगे, “यार, उससे बात तो करवाओ।” मैंने कहा, “सर, कितने पैसे हैं?” बोले, “तीन सौ, आपको बताया है क्या उसने?” मैंने कहा, “सर जी,  अपने बछड़े के दांत पता हैं मुझे। जबतक आप अपने मुंह से नहीं बताओगे, पैसे लेकर दिखा दो।” बताने लगे बेचारे, “तीन महीने पहले इसे टैंपरेरी एक हफ़्ते के लिये मेन ब्रांच में बुलाया था। आखिरी दिन जब वापिस जाना था, मेरे पास आया और कैंटीन का कार्ड दिखाकर बोतल मंगवाने की पूछने लगा। मैंने कागज पर ब्रांड लिखकर दे दिये और पूछा कितने रुपये दूं? इसने मुझसे सिर्फ़ तीन सौ मांगे। मैंने कहा भी कि ये ब्रांड कम से कम पांच सौ के आयेंगे लेकिन ये कहने लगा कि फ़ाईनल हिसाब फ़िर कर लेंगे, आप तीन सौ ही दो। मैंने इसे कहा कि देख स्टाफ़ में किसी से कुछ मत बताईयो, सबको मालूम चल जायेगा कि मैं दारू पीता हूँ। आगे से ये मुझे कह्ता है कि जी ऐही गल्ल मैं आपजी नूं कह रया सी, स्टाफ़ में किसीसे न कहना कि मुझसे आपने बोतल मंगाई है नहीं तो सारे मेरे पीछे पड़ जायेंगे। मेरा तीर मेरे ऊपर ही चला गया है, न बोतल लाया और न ही मना कर रहा है। मैं जोर से मांग नहीं सकता कि सब क्या सोचेंगे।” इतना हंसा मैं उस दिन और बाद में तो ये हमारी ब्रांच में एक जोक ही बन गया। होती है कई बार ऐसी मजेदार स्थितियां, जब दोनों पक्ष एक ही बात कहते हैं, किसी को बताना मत नहीं तो….। लेकिन कहां छुपती है असलियत?    ...जारी........
:) फ़त्तू  बस स्टैंड पर बस का इंतजार कर रहा था। दो शहरी लड़कियां भी वहीं खड़ी थीं और अखबार पढ़ रही थीं इंगरेजी का। फ़त्तू ने मोटे अक्षर जोड़ जोड़ कर पढ़े और पूछने लगा, "यो रापे(rape) के होवे है जी?" क्या समझातीं वो? एक बोली, "इसका मतलब है लड़ाई झगड़ा।" बस आई और जब तक फ़त्तू सीट ढूंढता, एक लड़की सीट घेर चुकी थी और अपनी सहेली के लिये साथ वाली सीट पर अखबार रख चुकी थी। फ़त्त्तू ने आराम से अखबार उठाई और जम गया सीट पर। लड़की ने कहा भी कि ये सीट हमारी है, फ़त्तू कित माने था? लड़की भी कित माने थी, बहस करे गई। कुछ देर तो फ़त्तू ने सुना, फ़िर बोला, "सीट तो सै मेरी, तेरे न जंचती हो तो बेशक रापे कर लै मेरे साथ, थम दो सौ मैं एकला, पर देखी जायेगी।"


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35 टिप्‍पणियां:

  1. हा हा!! फत्तु का रापे!! :)


    भोले तो छा गया भई..क्या दर्शन है:

    गाज़ियाबाद और फ़रीदाबाद तो देख रझे हैं, ये अकेली बाद किसने देखी है? किसी दिन ऐसे ही फ़ूंक निकल जायेगी तो भी तो ये छुट्टियां और पैसे बेकार ही जाने हैं

    -उसे तो प्रवचन देने के काम के लिए स्पॉन्सर करा दो...उधार भी लौटाने की झंझट से बेचारा मुक्त हो जायेगा. मुफ्त चढ़ावा आयेगा.

    जारी रहिये.

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  2. बोतल का किस्सा भी जबरदस्त रहा..बताओ, सीनियर मैनेजर के पैसे खा गया. :)

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  3. ” बताने लगे बेचारे, “तीन महीने पहले इसे टैंपरेरी एक हफ़्ते के लिये मेन ब्रांच में बुलाया था। आखिरी दिन जब वापिस जाना था, मेरे पास आया और कैंटीन का कार्ड दिखाकर बोतल मंगवाने की पूछने लगा। मैंने कागज पर ब्रांड लिखकर दे दिये और पूछा कितने रुपये दूं? इसने मुझसे सिर्फ़ तीन सौ मांगे। मैंने कहा भी कि ये ब्रांड कम से कम पांच सौ के आयेंगे लेकिन ये कहने लगा कि फ़ाईनल हिसाब फ़िर कर लेंगे, आप तीन सौ ही दो। मैंने इसे कहा कि देख स्टाफ़ में किसी से कुछ मत बताईयो, सबको मालूम चल जायेगा कि मैं दारू पीता हूँ। आगे से ये मुझे कह्ता है कि जी ऐही गल्ल मैं आपजी नूं कह रया सी, स्टाफ़ में किसीसे न कहना कि मुझसे आपने बोतल मंगाई है नहीं तो सारे मेरे पीछे पड़ जायेंगे। मेरा तीर मेरे ऊपर ही चला गया है, न बोतल लाया और न ही मना कर रहा है। मैं जोर से मांग नहीं सकता कि सब क्या सोचेंगे।” इतना हंसा मैं उस दिन और बाद में तो ये हमारी ब्रांच में एक जोक ही बन गया। होती है कई बार ऐसी मजेदार स्थितियां, जब दोनों पक्ष एक ही बात कहते हैं, किसी को बताना मत नहीं तो….। लेकिन कहां छुपती है असलियत? ...जारी........
    ha,ha! Ye jo hai zindagee!

    "Bikhare Sitare"pe aapka shukriya ada kiya hai.."In sitaron se aage" is post me..zaroor gaur farmayen!

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  4. मैं कौन सा मना कर रहा हूं, अब भी पांच सौ ही हैं।
    बात का पक्का है बन्दा। इसको कहते हैं, प्राण जाय पर वचन न जाय।

    देख स्टाफ़ में किसी से कुछ मत बताईयो, सबको मालूम चल जायेगा कि मैं दारू पीता हूँ।
    ये वाले भाई साहब तो सुपर-भोला निकले, पंजाबी में कहें तो नवाज़ शरीफ। अरे यह भी तो कह सकते थे कि बैलेंसिंग करने के लिये बाउओं को पिलानी पडती है! राम, राम! कैसे-कैसे लोग मैनेजर बन गये हैं - घोर कलजुग है.

    फत्तू पर नो कमेंट्स - पता नहीं कब कौन कहाँ ऑउट ऑफ कॉंटेक्स्ट उद्धृत कर दे, पता लगे आये थे हरिभजन को और ओटन लगे कपास! न बाबा न हम तो नहीं लिखने वाले कुछ भी। बल्कि हमने तो आपकी यह वाली पोस्ट भी नहीं पढी है।

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  5. मजेदार वाकये हैं। हाहाहाहा.....पर एक बात है चांद को तंग न करा करो.... नहीं तो चांद देखते देखते क्या क्या दिख जाने लगे बिरादर

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  6. रोज़मर्रा की ज़िन्दगी से कैसे कैसे पात्र ढूँढ़ लाते हैं आप! पाला तो सबको पड़ता होगा लेकिन नज़र वाले ही 'देख' पाते हैं! अगली कड़ी की प्रतीक्षा है।

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  7. @ समीर सर:
    सरजी, यही बंदा औरों की नजर में कुछ और है और अपनी नजर में कुछ और, लेकिन इसी तरह उसकी नजर में अपनी पोज़ीशन भी सब से अलग है।
    आपका बहुत आभारी हूँ।

    @ kshama ji:
    जो कहा था तब,दिल से ही कहा था। आप, अदा जी,गिरिजेश जी, अनुराग सर वगैरह ने शुरू में ही मुझे अपने बड़प्पन से जीत लिया है। आपके ब्लॉग पर तो टिप्पणी भी बहुत कम करता हूँ, पढ़ता जरूर हूँ लेकिन सच में व्यथित हो जाता हूँ, इसलिये टीपता बहुत कम हूँ। इन टिप्पणियों के कारण कितने हंगामे होते हैं, लेकिन आपने कभी इस बात को अन्यथा नहीं लिया, आती रहती हैं, हौंसला बढ़ाती रहती हैं। शुक्रिया कहता हूँ फ़िर से आपको।

    @ अनुराग सर:
    आप किस युग के आदमी हैं जी? कहानी कहते हैं चोरों की और खुद एक्दम उलट काम करते हैं जी? बिना पढ़े ही टिप्पणी कर देते हो, वो भी इतनी बढ़िया बढ़िया। अब मैं कैसे इमोशनली टच करूं आप को, बहुत मुश्किल में हूँ :)

    @ रोहित:
    बिरादर,तुम मेरी तरफ़ हो या चांद की तरफ़? तंग तो चांद करता है यार, तुम मुझे कह रहे हो। कोई बात नहीं, यारों के पत्थर सर माथे पर। इसका मतलब पिछली पोस्ट्स भी पढ़ लीं तुमने, शुक्रिया दोस्त।

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  8. अगर ये कैरेक्टर जीता जागता बन्दा है तो सच्चा इंसान है और अगर ये अफसाना निगार की जेहनी पैदाइश है तो बन्दा जो है सो है हमें अफसाना निगार से जलन सी हो रही है जी !

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  9. माल-ए-मुफ्त, दिल-ए-बेरहम,
    सूतिये बारात में, क्या सब्जी, क्या चिकन!

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  10. भोला तो लगता है नाम का ही भोला है मगर ये सीनियर मैनिजर साहब का की नाम है ? :) इन्हें सहाल दीजिये कि भोला से इसतरह पैसे निकालना नामुमकिन है इसका भी रापे....... :) :)

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  11. bhola ka kirdar bhi achcha laga or post bhi
    fattu es bar to maf hi kare es bar unhe kuch kahana khatare se khali nahi hai

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  12. फत्तू का रापे की बीट कैसी होवे है।

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  13. किसी को बताना मत .....गीत बहुत दिनों बाद सुना
    होती है कई बार ऐसी मजेदार स्थितियां....,
    जब दोनों पक्ष एक ही बात कहते हैं, ......................शुक्रिया ...

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  14. कोई नी जी, साड्डी तां घर दी गल्ल है, - ऐसे करेक्टर कि हर जगह ही घर दी गल्ल होती है...... बाकि दुनिया चलने के लिए हर टेप के किरदार चाहिए होते हैं जी. ये किरदार वि बहोत जरूरी है........

    बढिया ..... बहुत ही बढिया

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  15. भोला बाबू तो गज़ब हैं. आपने सच ही कहा. ये औपन्यासिक चरित्र हैं. हरिद्वार के किस्से पढने का इंतजार है.

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  16. हम त वैसहीं कम पढे लिखे हैं, मगर अंगरेजी के एगो किताब में का मालूम किसका लिखा पढ लिए थे कि I don’t want to DIE RICH, I want to LIVE RICH.. ई भोलवा त एकदम उसको सच्चे साबित कर दिया... हम त उससे बहुते बड़ा बैंक अधिकारी हैं, बाकी ई घटना पर त सलाम करने का मन कर रहा है...
    हमरे ब्रांच में भी एगो इंसान थे (प्रभु ईशू उनके आत्मा को सांति दे, क्रिस्चन में कंवर्ट हो गए थे). खानदानी आदमी, उनके सगे चचा दिल्ली के लेफ्टिनेंट गवर्नर रह चुके थे. ऊ जनवरी में कर्जा लेते थे अऊर हर महीने रोल ओभर कर देते थे, बारह आदमी के ब्रांच में कभी डिफॉल्टर नहीं हुए. एक स्टाफ का नम्बर दोबारा अगिला साल आता था. सबके मदद के लिए तैयार,किसी समय, कोनो काम के लिए. रोड एक्सीडेंट में मौत हुआ उनका.अऊर स्टाफ से लेकर कस्टमर तक का आँसू नहीं रुकता था.
    चलिए हम भी कहाँ का कहानी लेकर बईठ गए. आपका लिखना देखकर (पढकर) हमको अपना सरनेम खैतान रख लेने का मन करता है. फत्तू त रापे कर रहा था, मगर आजकल हर दोकान में साले काहे लिखा रहता है... !! सोचिएगा! गाना पसंद आया!!

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  17. @ गिरिजेश राव जी:
    राव साहब, ऐसा नहीं कि बड़ों से प्यार न मिला हो या अपन उनसे प्रभावित न हुये हों, लेकिन उन्हें चाहने सराहने वाले तो वैसे ही बहुत हैं। शायद मायोपिया का मरीज हूँ, जिनके साथ कम्फ़र्टेबल महसूस करता हूँ, उनकी बात करने की कोशिश की है। आप पीठ थपथपा देते हैं, अपन और तत्पर हो जाते हैं। धन्यवाद।

    @ अली साहब:
    बड़े से बड़े खानसामा को भी कुछ बनाने के लिये जिंस की जरूरत होती है। हमारा बंदा बिल्कुल है जी, सौ नहीं तो अस्सी टका, लेकिन है। आपको जलन नहीं होने देंगे। प्यार बनाये रखियेगा।

    @ मज़ाल साहब,
    हम तो इसे अपनी तारीफ़ ही समझ रहे हैं, कुछ और मतलब हो तो सुधार दीजियेगा। धन्यवाद।

    @ गोदियाल साहब:
    रीछ को वही नचा सकता है जो उस पर काबू करना जानता है। पैसे निकलवा देता था, विदाऊट रापे, तभी तो ऐसी तैसी वाले डायलाग भी सुनता था। हा हा हा।

    @ अन्शुमाला जी:
    काहे घबराती हैं जी फ़तू से? सीधा आदमी है, जो सिखाया जाये वही मान लेता है।

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  18. @ प्रवीण पाण्डेय जी:
    :)

    @ अर्चजा जी:
    नहीं बतायेंगे जी(कि गाना बहुत दिन बाद सुना है आपने)। शुक्रिया।

    @ दीपक जी:
    सही कहते हैं जी आप, ये दुनिया है ही इसलिये कि हर टाईप का पात्र है यहाँ पर।

    @ शिव कुमार जी:
    शुक्रिया शिव भैया। सुनने सुनाने से कहीं बेहतर थे अनुभव, आप तक तो छनकर ही पहुंचेंगे।

    @ ताऊ रामपुरिया जी:
    ताऊ की जय-हय।
    राम राम।

    जवाब देंहटाएं
  19. तनेजा साहब बहुत बढ़िया लिखा है आपने. "हाँ जी" की नौकरी करते हुए इस प्रकार के कई चरित्रों से मिल चुका हूँ पर अपनी कलम में इतना बढ़िया चरित्र चित्रण करने की ताकत नहीं..... त्वाडा जवाब नहीं बादशाहों....तुस्सी ग्रेट हो........त्वाडे जेया बंद नि देख्या कदों....... जरा देना १०० रुपये....

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  20. मेरे मकानमालिक ने मुझे घर से निकाल दिया है...मोहल्ले वाले पागल समझ के पत्थर मार रहे हैं...मुह पर मफलर लपेट रखा है फिर भी हँसी नहीं रुक रही...ये कमेंन्ट पहुँच जाए बस..जब तक आप पढेंगे मुझे गुडगाँव से खींच कर आगरा ले जाया जा चुका होगा... पेट में बल पड़ गए हैं सो अलग...
    हर इल्जाम आपके नाम, जो कल से न दिखूं मैं तो.....भोला साहब को थैंक यू बोलियेगा..

    जवाब देंहटाएं
  21. बेहद रोचक भाई जी.. मगर एक बात सच-२ बताना कि ये भोला और फत्तू एक ही हैं क्या????
    अफसर को भी चूना लगा दिया महान हैं भाई..

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  22. Aapka Bhola to Apne aap men ek hee lagta hai. Aur Fattuji ko to aap Rape se alag hee rakhen ladkiyon se kahen ki seat chodan hee behatar hai. Jabardast.

    जवाब देंहटाएं
  23. @ सलिल वर्मा जी:
    सर, सलाम करने की कोई जरूरत नहीं है, इस बहाने आपको अपने एक पुराने साथी कि याद आई, हमारा बयान करना वसूल हो गया जी।
    और ई साले वाले बात पर हमौ बहुत विचारे हैं जी, ई सब दुकानवा नहीं न हैं, अखाड़ा हैं सब के सब, मल्ल(mall) लिखे रहते हैं और फ़ेर साले साले लिखकर उत्तेजित करते हैं रापे करने को, जाने दीजिये सर, कंट्रोलवा का बटन दबाईये और इग्नोरवा मारिये।

    @ दीप(प्रदीप\कुलदीप):
    ठीक है प्यारे, धो ल्यो बहती गंगा में हाथ तुम भी। हमारा भोला भी हमेशा सामने वाली की ऐकात देखकर ही मांगता था, इसीलिए कामयाब रहा। पहले पिछले दो सौ लौटाओ, फ़िर आगे देखेंगे।

    @ अविनाश:
    इल्जाम का और अपना बहुत पुराना नाता है भाई, लेकिन ये इल्जाम नहीं चलेगा।

    @ दीपक:
    फ़त्तू हो, भोला हो या मो सम कौन हो,हमारी कंपनी का उसूल ही यही है कि जो अफ़सर समझते हैं, उन्हीं की अफ़सरी ढीली करने में मजा है, आदमी लड़े तो शेर चीतों से।

    @ श्रीमती आशा जोगलेकर जी:
    एकदम ’भूतो न भविष्यति’ है जी, कम से कम मेरी नजर में।
    फ़त्तू को समझाने की कोशिश कर सकते हैं जी, जरूर करेंगे।
    आभार मैडम।

    जवाब देंहटाएं
  24. बहुत रोचक,
    कृपया अपने बहुमूल्य सुझावों और टिप्पणियों से हमारा मार्गदर्शन करें:-
    अकेला या अकेली

    जवाब देंहटाएं
  25. ਮੈਕਯਾ ਸਾਡੇ ਵੀਰ ਅਤੇ ਹਮਪੇਸ਼ਾ ਸੰਜਯ ਬਾਉ ਜੀ,
    ਸਤ ਸ੍ਰੀ ਅਕਾਲ!
    ਮੌਜਾ ਆ ਗਯੀਂ! ਇੱਦਾ ਦੇ ਬੰਦੇ ਸਾਰੇ ਦਫਤਰ ਚ ਹੁੰਦੇ ਨੇ! ਰਹੀ ਦਾਰੂ ਦੀ ਗਲ, ਕੁਚ੍ਹ ਦਿਨਾਂ ਪਹਿਲੇ ਸਾਰੇਯਾਂ ਸਟਾਫ਼ ਨਾਲ ਬਾਰ ਗਯਾ ਸੀ..... ਉਥੇ ਪਤਾ ਚਲਾ ਦਾਰੂ ਸਾਰੇ ਸੀਨਿਯਰ-ਜੂਨਿਯਰ ਦੇ ਭੇਦ ਮਿਟਾ ਦੇਂਦੀ ਨੇ! ਏ ਵਖਰੀ ਗਲ ਹੈ ਕੇ ਮੈਂ ਲਿਮ੍ਕਾ ਪੀਤੀ ਸੀਗੀ!
    ਤੇ ਤੁਹਾਡਾ ਫ਼ਤ੍ਤੁ ਹੁਣ ਅਸ਼ਲੀਲ ਹੋਣ ਲਗਾ ਹੈ! ਮਾਧਾਜ੍ਯਾ ਸਮ੍ਹਾਲੋ.....
    (ਆਠਵਾਂ ਮਹੀਨਾ ਅਜੇ ਪੂਰਾ ਹੋਯਾ ਨਹੀਂ ਪੰਜਾਬ ਚ, ਗਲਤੀ ਨੂ ਨਯਾਹਨਾ ਸਮਝ ਕੇ ਮਾਫ਼ ਕਰ ਦੇਣਾ!
    ਆਸ਼ੀਸ਼
    ਫਿੱਲੌਰ
    --
    ਹੁਣ ਮੈਂ ਟ੍ਵਿਟਰ ਚ ਵੀ!
    https://twitter.com/professorashish

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  26. उधार की टोपी का थमना बहुत मुश्किल होता है अगर एक बार घूमने लग गई तो. भोले की ख़ुदा ख़ैर करे.

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  27. आपको जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें.....!!



    :)

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  28. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  29. @ आशीष:
    point noted boss, shall be more careful in फ़ुचुरे।
    टेक केअर(ਅਠਵਾਂ ਮਹੀਨਾ ਔਖਾ ਸੌਖਾ ਹੋਕੇ ਕੱਟ ਲੈ, ਫ਼ਿਰ ਰੱਬ ਰਾਖਾ ਹੈ:)

    @ काजल कुमार जी:
    टोपी बहुत घूमी जी, अब तक घूम रही है।सही कहा है आपने।

    @ Babli ji:
    उर्मि जी, आभारी हूँ आपका।

    @ अदा जी:
    "..ये निर्मल हास्य है :):)" इससे पहले जो लिखा है, एकदम निर्मल हास्य है जी, लेकिन किशोर जी और अली साहब बुरा न मान जायें कहीं? हा हा हा।
    आपके भारीपन को लाईटली ही ले रहे हैं जी।
    हम हैं सदैव आभारी।

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  30. अपन तो आपकी तरफ हैं....समझे ही नहीं आप.....राय थी.....चांद को काफी देखने पर वो तरह तरह के भ्रम देने लगता है...बावला कर देता है..खुद तो जहां का तहां टिका रहता है.....हम तो पहले ही बावले हो कर उसे तीन बार तलाक तलाक कह चुके हैं....सो आपको भी राय का पत्थर मार गए ..हीहीहीहीही

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  31. जै हो...तीसरी भी पढ़ लूँ..अभी पंखा बन गया..मेरा मतलब फैन।

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  32. Aapki barish par wistrut tippani ka dhanyawad, jaroor is gane ke rang me ise dekhoongi .

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